0:00
12:24

कल्पना सिनेमाघर में काफी पुरानी फिल्म ‘अपना कौन’ चल रही थी. बहुत कम दर्शक थे. मनोहर भी फिल्म देखने आया था. जैसेजैसे वह सीन निकट आ रहा था, उस के दिल की धड़कनें बढ़ती जा रही थीं. एक घंटे बाद वह सीन आया. अचानक फिल्म की हीरोइन सीढि़यों से लुढ़कती हुई फर्श पर आ गिरती है.

यह देखते हुए मनोहर के मुंह से दुखभरी चीख निकली. वह बुरी तरह कांप उठा. उस का मन बहुत भारी हो गया. वह सीट से उठा और सिनेमाघर से बाहर निकल गया. वह बस इतनी ही फिल्म देखने आया था.

सिनेमाघर से बाहर आ कर मनोहर ने एक रिकशा वाले को जनकपुरी चलने को कहा.

मनोहर के चेहरे पर दुख की रेखाएं फैलती जा रही थीं. 20 साल पहले बनी थी यह फिल्म ‘अपना कौन’. किसी को क्या पता था कि सीढि़यों से लुढ़क कर फर्श पर गिरने वाली हीरोइन नहीं, बल्कि हीरोइन की डुप्लीकेट नीलू थी. नीलू उस की पत्नी ऊंचे जीने से बुरी तरह लुढ़कती हुई फर्श पर गिरी. उस के बाद वह कभी उठ ही न पाई.

फिल्म नगरी की नकली सुनहरी चमकदमक. खिंचे चले जा रहे हैं अनेक नौजवान. न जाने कितने चेहरे इस चमक के पीछे छिपे गहरे अंधकार में हमेशा के लिए खो जाते हैं.

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा

मनोहर विचारों के सागर में गोते लगाने लगा. उसे याद आ रहा था जब वह नौजवान था, हैंडसम था. उसे ऐक्टिंग करने का शौक था. शहर के कुछ मंचों पर नाटकों में भी ऐक्टिंग की थी. उसे भी फिल्मों में काम करने का भूत सवार हो गया था. वह घर से मुंबई भाग आया था. महीनों मारामारा घूमता रहा. जो रुपए लाया था, खत्म हो गए.

तभी उस की दोस्ती विजय से हो गई जो फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करता था. विजय उसे भी स्टूडियो में साथ ले जाने लगा. वहां वह फिल्मों की शूटिंग देखता और सोचता कि काश, मुझे भी किसी फिल्म में काम मिल जाता.

वह दिन मनोहर की खुशी का दिन था जब एक फिल्म में विजय ने उसे भी डुप्लीकेट का काम दिला दिया था. उस ने मन ही मन सोचा था कि आज वह डुप्लीकेट बना है, कल हीरो भी जरूर बनेगा.

पर, यह सोचना कितना गलत रहा, क्योंकि फिल्म नगरी में हीरो कभी डुप्लीकेट नहीं बनता और डुप्लीकेट कभी हीरो नहीं बनता. जो जिस लाइन पर चल निकला, सो चल निकला. जिस पर जो लेबल यानी ठप्पा लग गया, सो लग गया.

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया

फिल्मी दुनिया में मनोहर भी एक डुप्लीकेट बन कर रह गया था. वह कुछ नामचीन हीरो के लिए काम करने लगा था. शीशे तोड़ कर कमरे में घुसता. ऊंचीऊंची इमारतों पर विलेन के डुप्लीकेट से लड़ाई के शौट देता. कभी वह पहाडि़यों से लुढ़कता तो कभीकभी ऐसे स्टंट भी करने पड़ते जिन्हें देख कर दर्शक अपनी सांसें रोक लेते.

फिल्मों की शूटिंग पर मनोहर सुंदर सलोनी सी एक लड़की को देखा करता था. एक दिन जब उस से बात की गई, तो उस ने बताया था कि उस का नाम नीलिमा है. पर सभी उसे नीलू कहते हैं. उसे भी थोड़ीबहुत ऐक्टिंग आती थी. वह भी अपने शहर में कई नाटकों में रोल कर चुकी थी. वह भी फिल्मों में हीरोइन बनना चाहती थी.

यहां मुंबई में नीलू के दूर के एक रिश्ते का मामा रहता है. उस से फोन पर बात हुई तो उस ने एकदम कह दिया कि आ जाओ, मेरी बहुत जानपहचान है फिल्म नगरी में.

नीलू ने जब मम्मीपापा को मुंबई में जाने के बारे में बताया तो दोनों ने साफ मना कर दिया था. फिल्मी दुनिया में फैली अनेक बुराइयों व परेशानियों के बारे में भी उसे समझाया था.

पापा ने कहा था, ‘नए लोगों को वहां पैर जमाने में बहुत संघर्ष करना पड़ता है. उन लड़कियों के लिए दलदल में गिरने जैसी बात हो जाती है जिन का फिल्म नगरी या मुंबई में कोई अपना नहीं होता.’

‘वहां पर मामा जगत प्रसाद तो हैं. उन्होंने फोन पर मुझ से कहा है कि उन की बहुत जानपहचान है,’ नीलू बोली थी.

‘नीलू बेटी, वह तेरा सगा मामा तो है नहीं. दूर के रिश्ते में मेरा भाई लगता है. तू फिल्मी दुनिया के सपने छोड़ कर यहीं पढ़ाईलिखाई में अपना ध्यान दे,’ मम्मी ने कहा था.

पर नीलू नहीं मानी. उस की जिद के सामने वे मजबूर हो गए. उन दोनों को नाराज कर वह मुंबई पहुंच गई. जगत मामा व मामी उसे देख कर बहुत खुश हुए.

जगत मामा ने नीलू को फिल्मी दुनिया के अनेक लोगों के साथ अपने फोटो भी दिखाए. उसे पूरा विश्वास हो गया था कि मामा उसे जल्द ही किसी न किसी फिल्म में रोल दिला देंगे.

एक दिन मामी बाजार गई हुई थीं. मामा और वह घर पर अकेले ही थे. वह एक फिल्मी पत्रिका पढ़ रही थी.

‘नीलू, एक दिन तुम्हारी तसवीरें भी इसी तरह पत्रिकाओं व अखबारों में छपेंगी.’

‘सच, मामाजी,’ नीलू की आंखों में खुशी भरी चमक तैरने लगी मानो उस की फिल्म की शूटिंग हो रही है. उसे हीरोइन की सहेली का रोल मिला है. उस के फोटो भी अखबारों में छप रहे हैं.

तभी नीलू चौंक उठी. मामा ने एक झटके से उसे अपनी तरफ खींचना चाहा था. वह एकदम बोल उठी, ‘यह क्या करते हो आप मामाजी?’

मामा ने मुसकरा कर उस की ओर देखा था. मामा की आंखों में वासना के डोरे तैर रहे थे.

‘मामाजी, आप से मैं क्या कहूं? आप को तो शर्म आनी चाहिए. आप अपनी भांजी के साथ ऐसी हरकत कर रहे हो.’

‘अरे, तुम मेरी सगी भांजी तो हो नहीं. मेरी 2-3 निर्माताओं से बात चल रही है. उन्होंने कहा है कि वे जल्द ही तुम्हें स्क्रीन टैस्ट के लिए बुला लेंगे. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर यह सब होना मामूली बात है.

‘अगर तुम इस से बचना चाहोगी तो नामुमकिन हो जाएगा काम मिलना. अखबारमैगजीनों में तुम ने पढ़ा होगा कि बहुत सी हीरोइन अपने इंटरव्यू में बता देती हैं कि फिल्मों में काम देने के नाम पर उन का यौन शोषण हुआ है.’

नीलू भी मजबूर हो गई थी. उस का सब से पहला यौन शोषण मामा ने किया. स्क्रीन टैस्ट के नाम पर कई बार यौन शोषण हुआ, पर उसे किसी फिल्म में काम नहीं मिला.

शूटिंग देखतेदेखते नीलू की दोस्ती निशा से हो गई थी. निशा फिल्मों में डुप्लीकेट का काम करती थी. कभीकभी छोटामोटा रोल भी उसे मिल जाता था.

एक दिन एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी. निशा के डुप्लीकेट के रूप में कुछ शौट फिल्माए जाने थे. अचानक निशा की तबीयत खराब हो गई तो उस ने अपना काम नीलू को दिला दिया.

इतने साल हो गए हैं डुप्लीकेट का रोल करतेकरते, पर किसी फिल्म में कोई ढंग का रोल नहीं मिला.

इस के बाद मनोहर व नीलू का मिलनाजुलना बढ़ता रहा. एक दिन वह आया जब उस ने नीलू से शादी कर ली.

शादी के बाद उस ने नीलू को किसी भी फिल्म में डुप्लीकेट का काम करने को बिलकुल मना कर दिया था.

2 साल बाद उन के घर में एक नन्हामुन्ना मेहमान आ गया. बेटे का नाम कमल रखा गया.

एक दिन नीलू ने उस से कहा, ‘मैं तो चाहती हूं कि तुम भी डुप्लीकेट का काम छोड़ दो. जब तुम शूटिंग पर चले जाते हो, मुझे बहुत डर लगता है. अगर तुम्हें कुछ हो गया तो हम दोनों का क्या होगा?’

‘हां नीलू, तुम ठीक कहती हो. मैं भी यही सोच रहा हूं. मेरा मन भी इस काम से ऊब चुका है. इस काम में इज्जत तो बिलकुल है ही नहीं. कभीकभी तो अपनेआप से ही नफरत होने लगती है.

क्या हम बेइज्जती के ही हकदार हैं, शाबाशी के नहीं?

‘जब कोई मामूली सा डायरैक्टर भी सब के सामने डांट देता है तब लगता है कि क्या हम इतने गिरे हुए हैं जो हमारी इस तरह बेइज्जती कर दी जाती है? क्या हम बेइज्जती के ही हकदार हैं, शाबाशी के नहीं?

‘अब तो यहां मुंबई में रहते हुए मेरा मन ऊब गया है,’ नीलू ने कहा था.

‘तुम ठीक कहती हो. हम जल्द ही यहां से चले जाएंगे किसी छोटे से शहर में या किसी पहाड़ी इलाके में. वहीं पर मैं कोई छोटामोटा काम कर लूंगा. हम अपने बेटे कमल को इस फिल्मी दुनिया से दूर ही रखेंगे.’

नीलू ने मुसकराते हुए उस की ओर देखा था.

एक दिन मनोहर की तबीयत कुछ ज्यादा ही खराब हो गई. इलाज शुरू हुआ. कई डाक्टरों को दिखाया गया, पर बीमारी कम नहीं हो रही थी. जो भी पास में पैसा था, बीमारी की भेंट चढ़ गया.

एक स्पैशलिस्ट डाक्टर को दिखाया गया तो उस ने कुछ जरूरी जांच, दवा, इंजैक्शन वगैरह लिख दिए थे.

मनोहर बिस्तर पर लेटा हुआ कुछ सोच रहा था. उस की आंखों से पता नहीं कब आंसू बह निकले.

नीलू ने उस के आंसू पोंछते हुए कहा था, ‘आप अपना मन दुखी न करो. डाक्टर ने कहा है कि तुम ठीक हो जाओगे.’

‘नीलू, इतने रुपए कहां से आएंगे? तुम रहने दो, जो होगा वह हो जाएगा.’

‘तुम किसी भी तरह की चिंता मत करो. मैं प्रकाश स्टूडियो जाऊंगी. वहां फिल्म ‘अपना कौन’ की शूटिंग चल रही है. डायरैक्टर प्रशांत राय तुम्हें और मुझे जानता है.’

‘नहीं नीलू, तुम्हें चौथा महीना चल रहा है. तुम दोबारा पेट से हो. ऐसे में तुम्हें मैं कहीं नहीं जाने दूंगा.’

‘तुम्हारी यह नीलू कोई गलत काम कर के पैसे नहीं लाएगी. मुझे जाने दो,’ कह कर नीलू चली गई थी.

मनोहर चुपचाप लेटा रहा. उस ने मन ही मन यह फैसला कर लिया था कि बीमारी ठीक होते ही वह नीलू व बेटे कमल के साथ यहां से चला जाएगा. उसे नींद आने लगी थी.

रात के 3 बज रहे थे. दरवाजे पर खटखटाहट हुई तो उस ने उठ कर दरवाजा खोल दिया. सामने खड़े विजय को देख कर मनोहर बुरी तरह चौंका.

विजय एकदम बोल उठा, ‘मनोहर, जल्दी अस्पताल चलना है. भाभी बहुत सीरियस हैं.’

मनोहर ने घबराई आवाज में पूछा, ‘क्या हुआ नीलू को?’

‘प्रकाश स्टूडियो में ‘अपना कौन’ की शूटिंग चल रही थी. नीलू भाभी ने तुम्हारी बीमारी की बता कर डायरैक्टर प्रशांत राय से काम मांगा. डायरैक्टर ने डुप्लीकेट का काम दे दिया. हीरोइन को सीढि़यों से लुढ़क कर नीचे फर्श पर गिरना था.

‘यही सीन नीलू भाभी पर फिल्माया गया. वे फर्श पर गिरीं तो फिर उठ न सकीं. बेहोश हो गईं. शायद वे पेट से थीं,’ विजय ने बताया था.

यह सुन कर मनोहर सन्न रह गया था. विजय ने एक टैक्सी की और उसे व कमल को साथ ले कर चल दिया.

विजय ने रास्ते में बताया था, ‘जब नीलू भाभी बेहोश हो गईं तो डायरैक्टर प्रशांत राय ने कहा था कि आजकल किसी के साथ हमदर्दी करना भी ठीक नहीं. इस ने हम को बताया नहीं था अपनी प्रैगनैंसी के बारे में. यह सीरियस है. इसे अभी अस्पताल ले जाओ और इस के घर पर खबर कर दो,’ कहते हुए डायरैक्टर ने मुझे कुछ रुपए भी दिए थे.

मनोहर के मुंह से एक शब्द भी नहीं निकल पा रहा था.

अस्पताल पहुंचने पर पता चला कि नीलू आपरेशन थिएटर में है. कुछ देर बाद लेडी डाक्टर ने बाहर आ कर कहा था, ‘सौरी, ज्यादा खून बह जाने के चलते नीलू को नहीं बचाया जा सका. उसे इस हालत में यह काम नहीं करना चाहिए था.’

मनोहर चुपचाप सुनता रहा. वह कुछ भी कहने की हालत में नहीं था.

नीलू ने तो उस से यह डुप्लीकेट का काम न करने का वादा ले लिया था, पर यही काम नीलू को हमेशा के लिए उस से बहुत दूर ले गया था.

फिर उस की जिंदगी में आई निशा. वह निशा को भी कई सालों से जानता था. निशा नीलू की सहेली थी. निशा पड़ोस में ही रहती थी. उसे भी नीलू के इस तरह मरने का बहुत दुख था.

निशा के साथ मनोहर का मेलजोल बढ़ता रहा. वह भी फिल्म नगरी के इस अंधकार से ऊब चुकी थी. वह भी यहां से कहीं दूर जाना चाहती थी, पर अकेली कहां जाए? हर जगह इनसान के रूप में ऐसे भेडि़ए मौजूद हैं जो उस जैसी अकेली को नोचनोच कर खा जाना चाहते हैं.

मनोहर व निशा को एकदूसरे के सहारे की जरूरत थी. सो, उन्होंने शादी कर ली.

कुछ दिनों बाद वे दोनों मुंबई से हजारों किलोमीटर दूर इस शहर में आ गए थे.

यहां आ कर अपने पैर जमाने के लिए मनोहर को बहुत मेहनत करनी पड़ी थी.

15 साल बीत गए. इस बीच निशा ने एक बेटी को जन्म दिया, जिसे मधुरिमा कहा जाने लगा. मधुरिमा अब 10वीं में और कमल बीए फाइनल में पढ़ रहा था.

जनकपुरी में रिकशा रुका तो मनोहर यादों से बाहर निकला. रिकशे वाले को पैसे दे कर वह भारी मन से घर पहुंचा. एक कमरे में सोफे पर जा कर वह पसर गया. उस ने आंखें बंद कर लीं. बारबार आंखों के सामने वही सीन आ रहा था, जब नीलू सीढि़यों से लुढ़क कर गिरती है.

मनोहर के पास आ कर निशा सोफे पर बैठते हुए बोली, ‘‘देख आए वह सीन. सचमुच देखा नहीं जाता. बहुत दुख होता है. उस समय नीलू को कितना दर्द सहना पड़ा होगा.’’

मनोहर कुछ नहीं बोला.

‘‘मैं तुम्हारे लिए चाय बना कर लाती हूं,’’ कह कर निशा रसोईघर की ओर चल दी.

मनोहर की नजर दीवार पर लगी नीलू की तसवीर पर चली गई. वह एकटक उस की ओर ही देखता रहा.

निशा ने चाय मेज पर रखते हुए कहा, ‘‘चाय पी लीजिए. मन ज्यादा दुखी करने से कुछ नहीं होगा.’’

मनोहर ने चाय पीते हुए पूछा, ‘‘कमल अभी तक नहीं आया? कहां रह गया वह? उस का कोई फोन आया या नहीं?’’

‘‘हां, एक घंटा पहले आया था कि अभी पहुंच रहा हूं.’’

‘‘फिल्म की शूटिंग देखने वह लखनपुर गया है?’’

‘‘हां, मैं ने तो उसे बहुत मना किया था, पर वह माना नहीं, बच्चों की तरह जिद करने लगा. कह रहा था कि पहली बार फिल्म की शूटिंग देखने जा रहा हूं. बचपन में मुंबई में देखी होगी, वह तो अब याद नहीं. साथ में उस का दोस्त सूरज भी जा रहा है. बस शाम तक लौट आएंगे?’’

‘‘फिल्मी दुनिया की चमकदमक किसे अच्छी नहीं लगती,’’ मनोहर ने कह कर लंबी सांस छोड़ी.

मधुरिमा दूसरे कमरे में पढ़ाई कर रही थी, तभी घर के बाहर मोटरसाइकिल के रुकने की आवाज आई तो मनोहर समझ गया कि कमल आ गया है.

कमल कमरे में घुसा. उस के माथे पर पट्टी बंधी देख मनोहर व निशा बुरी तरह चौंक उठे.

‘‘यह क्या हुआ? कोई हादसा हो गया था क्या?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘नहीं पापा…’’

‘‘फिर यह चोट…? तू तो लखनपुर शूटिंग देखने गया था न? वहां किसी से झगड़ा तो नहीं हो गया?’’ निशा ने कमल की ओर देखते हुए पूछा.

तभी मधुरिमा भी कमरे से बाहर निकल आई. उस ने भी एकदम पूछा, ‘‘यह क्या हुआ भैया?’’

कमल ने कहा, ‘‘मैं शूटिंग देखने ही गया था. जैसे ही शूटिंग शुरू हुई तो हीरो के डुप्लीकेट के पेट में भयंकर दर्द हो गया. जब दवा से भी आराम नहीं हुआ तो उसे शहर के एक बड़े अस्पताल में भेज दिया. प्रोड्यूसर माथा पकड़ कर बैठ गया, तभी डायरैक्टर की नजर मुझ पर पड़ी…’’

‘‘फिर…?’’ मनोहर ने पूछा.

‘‘डायरैक्टर ने मुझे अपने पास बुलाया. नीचे से ऊपर तक देखा और कहा कि एक छोटा सा काम करोगे. काम बहुत आसान है. हीरोइन नाराज हो कर जाती है. हीरो आवाज देता है, पर हीरोइन सुनती नहीं और चली जाती है. हीरो उस के पीछे दौड़ता है. पैर फिसलता है और छोटी सी पहाड़ी से लुढ़क कर नीचे गिरता है. बस यही काम था उस डुप्लीकेट का.

‘‘मैं मना नहीं कर सका. सीन ओके हो गया. तब डायरैक्टर ने मेरी पीठ थपथपा कर मुझे 10,000 रुपए भी दिए थे. सिर में मामूली सी चोट लग गई है. 2-4 दिन में ठीक हो जाएगी,’’ कमल ने बताया.

यह सुन कर मनोहर ने एक जोरदार थप्पड़ कमल के मुंह पर मारा और चीखते हुए कहा, ‘‘तू भी बन गया डुप्लीकेट. दफा हो जा मेरी नजरों के सामने से. मैं तेरी सूरत भी नहीं देखना चाहता. जा, भाग जा… चला जा मुंबई. वहां जा कर देख कि किस तरह कीड़ेमकोड़े की जिंदगी जीते हैं ये डुप्लीकेट.

‘‘मेरे साथ चल कर देख फिल्म ‘अपना कौन’ में तेरी मम्मी डुप्लीकेट का काम करतेकरते हमेशा के लिए हमें छोड़ कर चली गई. मुझे इस काम से क्यों नफरत हो गई थी. मैं यह काम छोड़ कर क्यों मुंबई से यहां आ गया था? तुझे भी तो यह सब मालूम है, फिर तू ने क्यों जानबूझ कर अपने माथे पर डुप्लीकेट का लेबल लगा लिया?

‘‘अगर तुझे आज कुछ हो जाता तो हमारा क्या होता? यह सब नहीं सोचा होगा तू ने,’’ कहतेकहते मनोहर का गला भर्रा उठा.

कमल को अपनी भूल का अहसास हो रहा था. वह बोला, ‘‘माफ कर देना पापा, मुझे दुख है कि मैं ने आप का दिल दुखाया. यह मेरी पहली और आखिरी भूल है.’’

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...