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फैमिली स्टोरी

आशा का दीप: किस उलझन में थी वैभवी

वक्त ने कितनी अजीब स्थिति में डाल दिया था वैभवी को. खुशियां उस के आगे हाथ पसारे खड़ी थीं लेकिन वह उन्हें थाम नहीं सकती थी.

  • Digital Team
  • ,
  • Dec 1, 2022
भाग - 1

औफिस में अपनी सीट पर बैठी वैभवी गंभीर सोच में थी. हर रोज वह अपने सहयोगियों के साथ कंपनी के किसी नए उत्पादन और उस की मार्केटिंग पर डिस्कशन करती थी.

भाग - 2

किनारे पर किश्ती लगी. वैभवी उतरी. उस ने एक नजर अपने मंगेतर की तरफ डाली और फिर मुड़ कर स्थिर कदमों से बाहर चली गई.

भाग - 3

सभी आधुनिक सुविधाओं से युक्त था. पूरे देश में इस की कई शाखाएं थीं. इस का संचालन एक बड़ा व्यापारी घराना करता था. चिकित्सा व्यवस्था भी अब बड़े कौर्पाेरेट घराने अपना चुके थे.

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