फ्रूड होम डिलिवरी सॢवस स्वीगी का इस साल का नुकसान 3629 करोड़ है. उस के साथ काम कर रही जामाटो भी भारी नुकसान में है और उस से 550 करोड़ की सहायता अभी किसी फाइनैंशियल इनवैस्टर से भी है. स्वीगी को पिछले साल 1617 करोड़ का नुकसान था पर फिर भी उस का मैनेजमैंट धड़ाधड़ पैसा खर्च करता रहा और अब यह नुकसान दोगुना से ज्यादा हो गया.

स्वीगी की डिलिवरी से फूले नहीं समा रहे ग्राहक यह भूल रहे हैं कि इस नुकसान की कीमत उन से आज नहीं तो कल वसूली ही जाएगी. जितनी भी ऐप बेस्ड सेवाएं हैं वे मुफ्त या सस्ती होने के कारण भारी नुकसान कुछ साल चलती हैं पर जब वे मार्केट पर पूरी तरह कब्जा कर लेती हैं तो खून चूसना शुरू कर देती हैं. स्वीगी अब धीरेधीरे छोटे रेस्तरांओं का बिजनैस खत्म कर रही है वह क्लाइड किचनों से काम करा रही है. वह अब डिलिवरी बौयज को दी गई शर्तों पर काम करने को मजबूर कर रही है. स्वीगी से जो रेस्तरां नहीं जुड़ता वह देरसबेर बंद हो जाता है चाहे उस की रेस्तरां की सेवा कितनी ही अच्छी हो. स्वीगी न घरों की औरतों को काम न करने का नशा डाल दिया है और इस के लिए एक साल का 3600 करोड़ रुपए का खर्च सस्ता है. अगर औरतें घरों की किचन में नहीं घुसेंगी तो उन्हें देरसबेर वही खाना पड़ेगा जो स्वीगी या उस जैसा कोई ऐप मुहैया करेगा. घरों में से किचन गायब हो जाएगी तो लोग दानेदाने के लिए किसी ऐप को तलाशेंगे.

जैसे किराने की दुकानों को अमेजन व जियो भारी नुकसान सह कर बंद करा रहे हैं वैसे ही स्वीगी लोगों का स्वाद बदल रही है. आप वह खाइए जो मां या पत्नी ने नही बनाया और डिलिवर हुआ. मां या पत्नी का प्रेम उस खाने से पैदा होता है जो वे प्रेम से बनाती हैं. खिलाती हैं. जब इस प्रेम की ही जरूरत नहीं होगी तो घर की छतें टूटने लगेंगी. यह बड़ी कौरपोरेशनों के लिए अच्छा है. सदियों तक राजा और धर्मों के ठेकेदार घरों से आदमियों को निकाल कर पैसा या धर्म प्रचार में लगाते रहे हैं और दोनों काम करने वालों को जम कर लूटते रहे थे. उन की औरतें बेबस, अनचाही, केवल बच्चे पैदा करने वाली मशीनें बन कर रह जाती थीं. अब इन औरतों को भी कौरपोरेशनों ने खापना शुरू कर दिया है और उन से किचन छीनवा दी है, सैनिकों या धर्म के सेवकों की तरह मैसों व लंगरों में खाना खाना पड़ता था, एक जैसा. वही स्वीगी करेगा. दिखावटी, नकली सुगंध वाला खाना जिस में सस्ती सामग्री लगे लेकिन पैङ्क्षकग बढिय़ा हो और दाम इतने कि न दो तो खाना मिले ही नहीं.

भारत में नए साल पर स्वीगी ने 13 लाख खाने डिलिवर किए क्योंकि इतने घरों की औरतों ने खाना बनाने से इंकार कर दिया. इस डिलिवरी में कौन लगा था. स्वीगी की एलेब लेबर जो भीड़ में गर्म खाना डिलिवर करने में लगी थी. उन के लिए न अब दीवाली त्यौहार रह गया है, न नया साल. 3600 करोड़ का खर्च इतनी बड़ी जनता को घरों में कैद करने में या मोटरबाइक पर गुलामी करने में कुछ ज्यादा नहीं है. इस का फायदा कोई तो उठा रहा है चाहे आप को वह दिखे न.

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