‘‘बोलो माताजी महाराज की जय,’’ पंडित का यह स्वर कानों में पड़ते ही घर की औरतों ने घूंघट खींच लिए और बारीबारी से पंडित के पैर छूने के लिए आंगन में आ गईं.

‘‘सदा खुश रहो. जल्द ही बेटे का मुंह देखो,’’ पंडित ने घर की नई बहू के सिर पर हाथ रखते हुए आशीर्वाद दिया.

‘‘चलो, सब औरतें घर के भीतर जाओ. हमें पंडितजी से कुछ बात करनी है,’’ घर के मुखिया रामचरण ने घर की औरतों को अंदर भेज दिया और फिर पंडितजी के साथ चारपाई पर बैठते हुए बोले, ‘‘पंडितजी, 3 बेटों का बाप होने के बाद भी पोते का मुंह नहीं देख पा रहा हूं. जो उपाय आप ने दोनों बेटों की बहुओं को बताए थे वे सब करने के बाद भी दोनों ने एक के बाद एक 4 लड़कियां पैदा की हैं.’’

‘‘अरे, कहां, रामचरण, आप की बहुओं को एकादशी का निर्जला व्रत करने को कहा था मैं ने, जब वे पहली बार पेट से थीं. बड़ी बहू तो आधे व्रत में ही बेहोश हो गई और पता नहीं दूसरी ने भी व्रत पूरा किया या नहीं. अरे, एक बार व्रत पूरा नहीं हुआ तो देवीमां थोड़े ही बारबार मानती हैं,’’ पंडित ने अपनी झोली से पत्रिकाएं निकाल लीं, ‘‘अरे, रामचरणजी, आप तो सभी संस्कार भूल गए हैं. हमें आए इतनी देर हो गई और आप की बहुओं ने चायनाश्ता भी नहीं कराया, घर आए पंडित को भूखा

रखना पाप है.’’

पंडित की यह बात सुन कर रामचरण गुस्से में चिल्लाए, ‘‘अरे, रमेश की बहू, पंडितजी के लिए चायनाश्ता ला.’’

कुछ देर बाद ही पंडितजी ने चायनाश्ता कर के नई बहू और बेटे का मंदिर में आ कर हवन कराने का मुहूर्त निकाला और चले गए.

रामचरण गजोला गांव के सरपंच हैं.

3 बेटे और अब 3 बहुओें से भरापूरा परिवार है. छोटे बेटे की शादी को अभी 4 दिन हुए हैं. मंदिर में पूजा कराने के लिए मुहूर्त के लिए पंडित को घर बुलवाया था, पर पंडित जातेजाते उन्हें एक बार फिर पोते का सपना दिखा गया.

‘‘अरी, रमेश की अम्मां, पंडितजी ने कल सुबह का मुहूर्त निकाला है. मंदिर में पूजा के लिए सभी को कह दे. सुबहसुबह तैयार रहेंगे,’’ रामचरण अपनी बीवी को कह कर घर के बाहर निकल गए.

रसोईघर में जा कर उन की बीवी ने सभी बहुओं को जल्दी तैयार होने को कह दिया. उन के जाने के बाद बहुएं आपस में बातें करने लगीं, ‘‘अरे, पंडित भी न, मुआ पता नहीं कब हमारी जान छोड़ेगा,’’ रमेश की बीवी गीता बोल पड़ी, ‘‘पैर कब्र में हैं, पर देखा, नई बहू को कैसे घूर रहा था.’’

‘‘हां दीदी, जब मेरी शादी हुई थी तो आशीर्वाद देने के बहाने बारबार कभी मेरी कमर तो कभी सिर पर हाथ फेर रहा था,’’ बीच वाली बहू मंजू बोली.

‘‘जब मैं पहली बार पेट से थी तो 7वें महीने में एकादशी का व्रत आया. मुझ से बोला कि अगर निर्जला व्रत करोगी तो बेटा होगा. अरे, 7वें महीने 1 घंटे भी भूखाप्यासा नहीं रहा जाता, तो पूरे 24 घंटे कैसे रहती? आधे दिन में बेहोश हो गई. इसलिए बेटी होने पर सब दोष मेरे सिर आ गया,’’ गीता की आवाज भर्रा गई.

‘‘दीदी, जाने भी दो, इस पंडित ने तो मांबाप

दोनों को बस में कर रखा है. साल में जितने ये हम से व्रत रखवाएगा उतना ही तो दान बापू से पाएगा,’’ मंजू पानी की बालटी उठा कर किचन से बाहर चली गई और गीता अपने काम में लग गई, पर दिल की धड़कन तेज हो गई सीमा की, जो अभी बस, 4 दिन पहले ही इस घर में आई थी. उसे भी पंडित की नजरें सही नहीं लगी थीं, पर बेचारी नई है, घर में दोनों बहुओं की बातचीत से उस ने अपने को दूर ही रखा.

अगली सुबह घर के सारे लोग नहाधो कर मंदिर की ओर चल पड़े. रास्ते में औरतों का एक झुंड देख कर गीता ने सीमा से कहा, ‘‘नई बहू, वहां उन औरतों के चेहरे मत देखना. देखना, उन के पास से जब हम निकलें तो आंखें नीची रखना.’’

‘‘क्यों दीदी, क्या हुआ?’’ सीमा ने पूछा.

‘‘अरे, वह विधवाओं का झुंड है. वे सुबह तड़के ही मंदिर से पूजा कर के वापस आ रही हैं. सूरज निकलने के बाद वे मंदिर क्या, घर के बाहर भी नहीं जा सकतीं, समझी? बस, सुबह उन के मुंह देखना अपशकुन है,’’ गीता ने सीमा से कहा.

मंदिर पहुंच कर रामचरणजी ने पंडित से पूछा, ‘‘पंडितजी, ये विधवाएं आज देर से मंदिर आई थीं क्या? हमारे रास्ते में पड़ गई थीं. इन को कहा था कि सुबह तड़के मंदिर आ कर अपनेअपने घर में बंद रहा करो.’’

‘‘अरे, रामचरणजी, आप गुस्सा मत हों, आज के बाद ऐसा नहीं होगा. आप आइए, पूजा करिए,’’ पंडित ने पूजा संपन्न की और बोला, ‘‘रामचरणजी, आप की नई बहू के ग्रह कुछ अनुकूल नहीं हैं. राहु जल्द ही मंगल के साथ आ कर इस की राशि में आने वाला है,’’ पंडित ने अपना सिर खुजाया.

‘‘अरे, पंडितजी, पर आप ने ही तो विवाह से पहले इन की कुंडलियां मिलाई थीं और

आप ने कहा था, इस के ग्रह बहुत अच्छे

हैं,’’ रामचरणजी ने चिंता से पंडित से कहा.

पंडित कुछ हड़बड़ा गया, ‘‘अरे, वे ग्रह कुंआरी लड़की के थे, अब एक विवाहिता के ग्रह हैं,’’ पंडित ने बात संभाली.

‘‘अब आप ही कहें, क्या करें हम?’’ रामचरण ने पंडित से पूछा.

‘‘करना क्या है, रामचरणजी, ग्रह शांति के लिए 12 दिन का हवन है, जो हम यहां अपने दूसरे पंडितों की सहायता से करेंगे और उस का प्रसाद 12वें दिन आप की बहू ग्रहण कर लेगी. बस, सारी चिंताएं दूर हो जाएंगी,’’ फिर पंडित उंगलियों पर कुछ हिसाब करने लगा.

‘‘रामचरणजी, ग्रह की दशाओं के अनुसार यह हवन हम पंडित ही कर सकते हैं. आप के घर का इस में कोई नहीं बैठे. आप बस, हवन सामग्री के लिए 5,100 रुपए दे दीजिए. हम हवन संपन्न कर देंगे.’’

पंडित की बात सुन कर रामचरणजी तुरंत राजी हो गए और पैसे पंडित को दे कर वापस आ गए.

घर आ कर सीमा ने अपने पति सूरज से इस

अंधविश्वास के बारे में बात करनी चाही पर सूरज ने यह कह कर बात टाल दी कि ग्रहों की दशा पंडित से बेहतर कौन समझ सकता है. इसलिए उन को इस सब में नहीं पड़ना चाहिए. पर सीमा का मन बेचैन हो रहा था. वह समझ चुकी थी कि यह एक शुरुआत है. अभी उसे बड़ी भाभियों की तरह इस अंधविश्वास के नाम पर बहुत कुछ सहना पड़ेगा.

हवन हो गया. फिर व्रतों का सिलसिला चल पड़ा. वह पंडित अपनी टोली के साथ किसी न किसी बहाने रामचरण को डरा कर, कभी ग्रह का डर तो कभी नक्षत्रों का भय दिखा कर पैसे लेता रहता और इस सब का असर सीमा पर और दूसरी बहुओं पर होता. उन्हें पूरे दिन का उपवास, कभी ठंड में सुबहसुबह नदी के ठंडे पानी में नहाने और कभीकभी तो 7 दिन तक मौन व्रत भी रखना पड़ता. हद तो तब हो जाती जब नदी में स्नान के बाद गीले कपड़ों में उन्हें पंडित मंदिर बुलाता और पंडित की लालची निगाहें उन के गीले बदन को घूरतीं.

सीमा के सब्र का बांध टूटने को था कि घर में जैसे भूचाल आ गया. 5 महीने के बाद भी जब सीमा ने गर्भधारण नहीं किया तो पंडित ने ग्रहों को एक बार फिर अनुकूल करने के लिए 3 रातों तक मंदिर में महाकाली का हवन कराने की सलाह दी. जब सीमा को पता चला तो वह फूटफूट कर रोने लगी.

उसे रोता देख गीता ने उस की हिम्मत बढ़ाई, पर सीमा बोली, ‘‘दीदी, आप तो सब जानती हैं, यह पंडित कितना कमीना है. मैं रात में अकेली मंदिर में हवन के लिए नहीं जाऊंगी. बच्चा पैदा करना क्या सिर्फ मेरे हाथ में है? यह तो पतिपत्नी दोनों के हाथ में है. तो हवन में सिर्फ मैं ही क्यों जाऊं, मेरे पति क्यों नहीं बैठ सकते?’’

सीमा की बातों में दम था पर गीता उसे समझाने लगी, ‘‘तू घबरा मत. तू आज रात को जा. वे पंडित कुछ नहीं करेंगे,’’ गीता ने सीमा को झूठी तसल्ली दी.

रात को डरतेडरते सीमा हवन के लिए अकेली मंदिर पहुंच गई. पंडित और उस के चेले पहले से ही वहां मौजूद थे.

‘‘आ जाओ, दुलहन, बैठो,’’ पंडित ने सीमा को अपने पास बैठने को कहा पर सीमा उस के सामने ही बैठ गई.

‘‘क्या दुलहन, 5 महीने बाद भी गर्भ नहीं ठहरा, मतलब घोर विपदा आने वाली है, पर मेरे पास सब का हल है, अगर तुम चाहो तो…,’’

सीमा ने घूर कर पंडित को देखा.

‘‘अरे, मेरा मतलब है, यह हवन कर के सब कुछ ठीक हो जाएगा,’’ सीमा का मन घबराने लगा. 3 घंटे तक पंडित कुछ मुंह में ही मंत्र बोलता रहा और हवन में सामग्री डालता रहा. रात गहराने लगी.

‘‘अरी दुलहन, अगर थक गई हो तो थोड़ा आराम कर लो. हवन 1 घंटे बाद फिर शुरू करेंगे,’’ पंडित ने लालची निगाहों से सीमा को ऊपर से नीचे तक देखा.

‘‘नहीं, हम ऐसे ही ठीक हैं. हमें आराम नहीं करना,’’ सीमा अपनी जगह से नहीं हिली.

‘‘अरे दुलहन, हवन तो हमारे चेले कर ही रहे हैं. चलो, भीतर थोड़ा आराम कर लो,’’ पंडित थोड़ा सा पास आ कर कहने लगा, ‘‘देखो दुलहन, तुम्हारे ससुर को पोता चाहिए. उस के लिए तुम्हें कुछ तो करना ही होगा.

‘‘मेरा मतलब अभी 2 रातें बाकी हैं. आज नहीं तो कल आराम कर लेना.’’

पंडित की बातें सीमा को समझ में आ गई थीं. पूरी रात पंडित सीमा को बहलाने की कोशिश करता रहा.

सुबह तड़के विधवाओं के मंदिर आने पर सीमा की जान में जान आई. पंडित के एक चेले ने उन विधवाओं से पूजा की थाली ली. सीमा साफ देख पा रही थी कि थाली लेने के बहाने  चेला उन विधवाओं को घूर रहा था. एक विधवा का तो उस चेले ने हाथ ही पकड़ लिया था, पर वे विधवाएं चुपचाप अपना अपमान करा रही थीं. मंदिर से लौटते समय सीमा ने उन विधवाओं को रोक लिया. ‘‘देखो बहनो, वह पंडित और उस के चेले ठीक नहीं हैं. तुम सब क्यों अपना ऐसा अपमान करवा कर भी चुप हैं?’’

उन में से एक विधवा बोली, ‘‘दीदी, आप

के सिर पर पति का साया है, फिर भी आप रात को मंदिर में इस पंडित के पास आईं मगर हम तो असहाय हैं. हम विरोध नहीं कर सकतीं. हमें तो जब चाहे यह रात को हवन के बहाने बुला सकता है और हमारे घर के लोग ग्रहों के डर से हमें यहां भेज देते हैं. आप हमारी फिक्र मत करिए, हमें तो आदत हो गई है इस अपमान की.’’

वे सब चली गईं, पर सीमा को आईना दिखा गईं. सीमा ने गहरी सांस ली और घर आ गई. वह जानती थी और उसे यह बात समझ में आ गई थी कि पंडित का हौसला सिर्फ इसलिए बढ़ा है, क्योंकि औरतें लोकलाज के डर से उस के खिलाफ नहीं जा सकतीं, पर वह नहीं सहेगी. एक रात तो बच गई पर आज रात वह पंडित उसे नहीं छोड़ेगा और अगर उस ने उस की बात नहीं मानी तो फिर ग्रहों की दशा का बहाना कर वह बाबूजी के कान भरेगा और कोई और रास्ता खोज लेगा.

सीमा ने काफी देर तक सोचविचार कर एक योजना बनाई. उस ने घर की बड़ी बहू को पूरी योजना बताई, गीता ने भी सीमा का साथ देने का मन बना डाला. रात को जब सब सो गए और सीमा मंदिर चली गई तब गीता ने जोरजोर से चिल्लाना शुरू कर दिया. सब घर वाले आंगन में इकट्ठा हो गए. तब गीता बोली, ‘‘मांजी, मुझे अभी कालीमां का सपना आया है. अगर हम सब इसी वक्त मंदिर में मां के दर्शन करने नहीं गए तो अनर्थ हो जाएगा.’’

सपने वाली बात सुन कर घर के सभी लोग मंदिर जाने को तैयार हो गए और वहां मंदिर में अपनी योजनानुसार सीमा वक्त देखने लगी. रात गहराते ही पंडित ने उसे आराम करने को कहा, वह तुरंत मान गई. वहां घर से जब सब मंदिर जाने के लिए निकले तो मंदिर में पंडित और सीमा को कमरे में जाता देख पंडित के चेले भी हवन छोड़ कर दारू पीने लगे. थोड़ी देर बाद ही जब रामचरण का परिवार मंदिर पहुंचा तो पंडित के चेलों को दारू पीता देख उन के होश उड़ गए.

तभी योजनानुसार सीमा भी चीखतीचिल्लाती पंडित के कमरे से बाहर निकली. अपने घर की बहू की ऐसी हालत देख कर रामचरणजी गुस्से में आ गए और उन्होंने पंडित का गला पकड़ लिया.

‘‘अरे रामचरणजी, आप की बहू पर काला साया है. वह चुड़ैल है…’’ पंडित कुछ और कहता, उस से पहले ही रामचरण ने उस के मुंह पर ही 2-4 घूंसे जड़ दिए.

‘‘कमीने पंडित, तू ने हमारे घर की बहू को छुआ कैसे? ग्रहों के नाम पर हमें लूटता रहा और हम घर की शांति के लिए अपना धन लुटाते रहे, पर हमारी आंखों पर तो पट्टी बंधी थी, जो पोते के लालच में हम ने अपनी बहू को यहां भेजा,’’ रामचरण ने एक और थप्पड़ पंडित को जड़ दिया.

पंडित के बाकी चेले अब तक रामचरण के बेटों की लातों और घूंसों से होश में आ चुके थे.

रामचरण को पंडित को मारते देख सीमा

बोली, ‘‘बाबूजी, रुकिए, पंडित को मारने से क्या होगा? आज यह पंडित चला जाएगा तो दूसरा आ जाएगा. दोष इन पंडितों का नहीं है, हमारे डर का है. ग्रह आसमान में नहीं हमारे दिलों में हैं, जिन की शांति के लिए हम इन पंडितों के पास आते हैं और ये पंडित जैसा चाहे उस का फायदा उठाते हैं. आप जब तक इन अंधविश्वासों से नहीं निकलोगे तब तक ये पंडित हमारा फायदा उठाते रहेंगे. मेरा साथ तो आप सब ने दिया पर उन विधवाओं के बारे में सोचें, जो आए दिन ऐसे पंडितों का शिकार होती हैं और इन के साथसाथ अपने घर के लोगों द्वारा भी अपमानित होती हैं. बाबूजी, कृपया आप उन्हें भी अंधविश्वासों के इस जाल से मुक्ति दिलाएं.’’

सीमा की बात सुन कर रामचरणजी की आंखें खुल गईं और वे बोले, ‘‘बेटी, तुम

चिंता मत करो. तुम ने मेरी आंखें खोली हैं. मैं बाकी गांव वालों की भी आंखें खोलूंगा. चलो, घर चलें. इस पंडित और इस के चेलोें को कमरे में बंद कर दो, सुबह इन की ग्रहों की शांति जो करनी है.’’

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