आज के समाज में बांझपन (इंफर्टिलिटी) तेजी से चिंता का विषय बनता जा रहा है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन के एक आकलन के मुताबिक, भारत में बांझपन की समस्‍या 3.9% से 16.8% तक है. बांझपन (इंफर्टिलिटी) की बढ़ती वजह आज के दौर लोगों की दबाव से भरपूर जीवनशैली और स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक आदतों से दूर होने को माना जा रहा है. आधुनिक युग में पुरुषों और औरतों पर वर्क-लाइफ संतुलन बनाने का काफी दबाव है, उस पर अल्‍कोहल और कैफीन का अत्‍यधिक मात्रा में सेवन, तथा बढ़ता धूम्रपान भी इंफर्टिलिटी का कारण बन रहा है.

डॉ राम्या मिश्रा, वरिष्ठ सलाहकार- फर्टिलिटी और आईवीएफ, अपोलो फर्टिलिटी (लाजपत नगर) का कहना है

बेशक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई रोग नहीं है लेकिन इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि इसकी वजह से प्रभावित व्‍यक्ति की भावनात्‍मक और मनोवैज्ञानिक सेहत पर असर पड़ता है. इसके कारण कई प्रकार के मनोवैज्ञानिक-भावनात्‍मक विकार या साइड इफेक्‍ट्स जैसे कि तनाव, अवसाद, नाउम्‍मीदी, अपरोधबोध, झुंझलाहट, चिंता और जीवन में किसी लायक न होने जैसा भाव पैदा होता है.

एनसीबीआई के मुताबिक, बांझपन (इंफर्टिलिटी) से जूझ रहे लोग कई बार दु:ख, अफसोस, अकेलेपन जैसी समस्‍याओं के अलावा मानसिक रूप से काफी परेशान भी महसूस करते हैं. इंफर्टिलिटी से गुज़र रहे व्‍यक्ति की सेहत इन तमाम कारणों से काफी प्रभावित हो सकती है, लेकिन इनसे निपटने और सांत्‍वना देने के लिए कई उपाय और सपोर्ट सिस्‍टम्‍स भी हैं, जो मददगार साबित हो सकते हैं.

  1. इंफर्टिलिटी का भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक प्रभाव

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) कोई जीवनघाती समस्‍या नहीं है, लेकिन इसे कपल्‍स के जीवन में तनावपूर्ण स्थिति के रूप में देखा जाता है। चूंकि हमारे समाज में, वैवाहिक जीवन में बच्‍चों का होना काफी महत्‍वपूर्ण घटना मानी जाती है, ऐसे में बांझपन के चलते तनाव की स्थिति काफी बढ़ सकती है. गर्भधारण नहीं कर पाने के चलते कपल्‍स अपरोध बोध, पश्‍चाताप, निराशा, दुख, चिंता और झुंझलाहट जैसी भावनाओं के ज्‍वार से जूझते हैं. उस पर उन्‍हें समाज के दबाव भी झेलने पड़ते हैं, जो उनकी पहले से तनाव की स्थिति को और बढ़ाता है तथा उनके आत्‍म-सम्‍मान की भावना भी घटाता है। इसका परिणाम यह होता है कि वे अपने खुद के महत्‍व को लेकर सवाल करने लगते हैं.

हालांकि बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या से पुरुष और महिलाएं दोनों ही जूझ सकते हैं, लेकिन अक्‍सर समाज में महिलाओं को ही इसके लिए जिम्‍मेदार ठहराया जाता है. विश्‍व स्‍वास्‍थ्‍य संगठन का कहना है कि बांझपन झेल रहे कपल्‍स की जिंदगी पर समाज का नकारात्‍मक असर पड़ता है, खासतौर से महिलाओं को इसका दबाव ज्‍यादा सहना पड़ता है और वे कई बार हिंसा, तलाक, सामाजिक तौर पर बेइज्‍़ज़ती, भावनात्‍मक दबाव, निराशा, चिंता तथा आत्‍म-सम्‍मान में कमी जैसी समस्‍याओं को सहने को मजबूर होती हैं.

बांझपन (इंफर्टिलिटी) की वजह से पैदा होने वाला निराशा का भाव आपको अवसाद के गर्त में डुबो सकता है जहां से वापसी या आत्‍म-सम्‍मान वापस प्राप्‍त करना काफी चुनौतीपूर्ण भी हो सकता है. लेकिन इससे निपटने के कई उपाय हैं और कई तरह के सपोर्ट भी उपलब्‍ध हैं जो कपल्‍स को बांझपन के दबावों से मुक्‍त रखने में मददगार साबित हो सकते हैं.

2. समस्‍या के साथ तालमेल बैठाने और सपोर्ट समाधान

1.सैल्‍फ-केयर

इसमें कोई शक नहीं कि खुद की देखभाल (सैल्‍फ केयर) सबसे बेहतरीन तरीका होता है अपना ख्‍याल रखने का. अपना मनपसंद मील बनाएं, सुकूनदायक संगीत को सुनें, सैर पर जाएं, रिलैक्सिंग स्‍नान करें और अच्‍छी नींद लें. अपने लिए कुछ समय निकालें और अपना ख्‍याल करें.

2. किसी नई हॉबी को अपनाएं

इंफर्टिलिटी से जूझते हुए बेशक, अपनी भावनाओं को समझना और संभावना काफी अहम् होता है, लेकिन लगातार उनके बारे में सोचते रहते से आप तनाव बढ़ाते हैं और एंग्‍ज़ाइटी भी लगातार बढ़ती रहती है. इसलिए यह जरूरी है कि आप अपने लिए कुछ समय निकालें, अपनी मनपसंद हॉबी को समय दें. कुछ ऐसा करें जिससे आपको सहजता हो और आप खुद को रिलैक्‍स महसूस करें, जैसे कि कुकिंग क्‍लास, म्‍युज़‍िक लैसन या पेंटिंग क्‍लास आदि से जुड़ें.

3. एक्‍सपर्ट की सहायता लें

अगर आपको लगता है कि आपके हालात बेकाबू हो रहे हैं, तो बेहतर होगा कि आप किसी हैल्‍थ प्रोफेशनल की मदद लें जो आपको सही तरीके से अपनी भावनाओं को नियंत्रित करने के उपायों के बारे में बता सकते हैं और आपको खुद को सकारात्‍मक बनाने की दिशा भी दिखा सकते हैं. सच तो यह है कि किसी फर्टिलिटी स्‍पेश्‍यलिस्‍ट से परामर्श लेना सही फैसला हो सकता है, जो आपको कुछ अन्‍य तरीकों से गर्भधारण के बारे में जानकारी दे सकते हैं.

4. क्‍या करें कि सब ठीक रहे

आज के समय में बांझपन (इंफर्टिलिटी) की समस्‍या काफी व्‍यापक हो चली है जिसका लोगों के भावनात्‍मक तथा मनोवैज्ञानिक स्‍वास्‍थ्‍य पर विपरीत असर पड़ता है. इसका नकारात्‍मक असर तनाव, स्‍वभाव में चिडचिड़ापन, नाउम्‍मीदी का भाव, अपरोधबोध, निराशा और एंग्‍जाइटी बढ़ाता है. जब आप खुद को व्‍यस्‍त रखने के लिए किसी नई हॉबी को अपनाते हैं, सैल्‍फ-केयर पर ध्‍यान देते हैं और अपने हालात से निपटने के लिए प्रोफेशनल मार्गदर्शन लेते हैं, तभी आपको इस पूरे हालात के बारे में सकारात्‍मक परिप्रेक्ष्‍य दिखायी देता है.

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