तेंतिस साल की उम्र में 15 अगस्त 1947 को स्व. ताराचंद बड़जात्या ने बेटों राज कुमार बड़जात्या,कमल बड़जात्या व अजीत कुमार बड़जात्या की बजाय अपनी बेटी राजश्री के नाम पर फिल्म प्रोडक्शन व वितरण कंपनी ‘राजश्री’ की नींव रखी थी. उन्होने शुरूआत में दक्षिण भारत से उत्तर भारत तक कई शहरों में अपने आफिस खोलकर फिल्म वितरण/डिस्टिब्यूसन से शुरूआत की थी. ताराचंद्र बड़जात्या ने देश के कई शहरों में अपने सिनेमाघर भी बनाए. फिर भारतीय परंपरा व रीति रिवाजों की बात करने वाली पारिवारिक फिल्मों का निर्माण करने का संकल्प लेकर 1962 में फणी मजुमदार के निर्देशन में मीना कुमारी, अशोक कुमार व प्रदीप कुमार को लेकर पहली फिल्म ‘‘आरती’’ का निर्माण किया था. जिसे क्रिटिकली काफी सराहा गया था.1964 में सत्येन बोस के निर्देशन में ताराचंद बड़जात्या निर्मित फिल्म ‘दोस्ती’ ने सफलता के रिकार्ड स्थापित किए थे.उसके बाद से ‘राजश्री प्रोडक्शन’ ने कभी पीछे मुड़कर नही देखा.

‘राजश्री प्रोडक्शन्स’ अब तक 64 फिल्मों का निर्माण कर चुका है.जिनमें से ‘जीवन-मृत्यु‘, ‘गीत गाता चल‘, ‘तपस्या‘, ‘उपहार‘, ‘पिया का घर‘, ‘दुल्हन वही जो पिया मन भाए‘, ‘सावन को आने दो‘, ‘अंखियों के झरोखे से‘, ‘नदिया के पार‘, ‘सारांश‘, ‘मैंने प्यार किया‘, ‘हम आपके हैं कौन‘, ‘हम साथ-साथ हैं‘,‘विवाह’ और ‘प्रेम रतन धन पायो‘ जैसी चर्चित फिल्मों का समावेश है.इनमें से ‘मैने प्यार किया’,‘हम आपके हैं कौन’,‘हम साथ साथ हैं’,‘विवाह’ और ‘प्रेम रतन धन पाओ’का निर्देशन ताराचंद बड़जात्या के पोते और राज कुमार बड़जात्या के बेटे सूरज कुमार बड़जात्या ने किया. अब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की 64वीं फिल्म ‘‘दोनो’ का निर्देशन सूरज बड़जात्या के बेटे अवनीश कुमार बड़जात्या ने किया है,जिसमें सनी देओल के बेटे राजवीर देओल व पूनम ढिल्लों की बेटी पालोमा ने अभिनय किया है. षश्भ मुहूर्त देखकर इस फिल्म को छह अक्टूबर,शुक्रवार की बजाय गुरूवार,पांच अक्टूबर की रात सवा आठ बजे पहला शो रखकर प्रदर्शित किया.लेकिन बड़जात्या की चाौथी पीढ़ी की अपनी कमजोरी के चलते यह मुहूर्त भी काम न आया. अफसोस थाईलैंड में फिल्मायी गयी 20 करोड़ की लागत वाली फिल्म ‘दोनो’ पहले दिन बाक्स आफिस पर महज दस लाख रूपए ही कमा सकी.जिसके चलते अब बौलीवुड में चर्चा गर्म हो गयी है कि ‘दोनो’ की असफलता की वजह क्या है और  ‘राजश्री’ के 76वें वर्ष में स्व.ताराचंद बड़जात्या की लीगसी /परंपरा को कौन डुबा रहा है…???

बहरहाल,ताराचंद बड़जात्या हमेशा समय के साथ चलते रहे हैं.राजश्री प्रोडक्शन्स ने 1985 में टीवी सीरियल के निर्माण के क्षेत्र में कदम रखते हुए ‘पेइंग गेस्ट‘ सीरियल का निर्माण किया.उसके बाद ‘वो रहने वाली महलों की‘,‘प्यार के दो नाम- एक राधा एक श्याम‘जैसे कुछ सीरियल बनाए.1998 में स्व. ताराचंद बड़जात्या की मृत्यू के बाद ‘राजश्री म्यूजिक‘ की भी नींव रखी गई, जिससे कई प्राइवेट अलबम आ चुके हैं.

जब ‘राजश्री’ की परंपरा से हटे थे सूरज बड़जात्याः

बौलीवुड में चर्चाएं गर्म हैं कि ताराचंद बड़जात्या के पड़पोते और सूरज कुमार बड़जात्या के बेटे अवनीश ने अपने खानदान व परदादा की 76 वर्ष से चली आ रही परंपरा को धता बताते हुए लीक से हटकर फिल्म बनाने के प्रयास में ‘बड़जात्या’ की परंपरा व ‘राजश्री’ की नींव खोदने का काम किया है.उनके इस कृत्य से न सिर्फ फिल्म ‘दोनो’ डूबी है,बल्कि ‘राजश्री प्रोडक्षन’ की साख पर भी बट्टा लगा है.बौलीवुड से जुड़ा एक तबका ‘राजश्री प्रोडक्शन’ को डुबाने के लिए अपरोक्ष रूप से सूरज कुमार बड़जात्या पर भी उंगली उठा रहा है.कहा जा रहा है अपने परदादा ताराचंद बड़जात्या की 21 सितंबर 1992 को मृत्यू होने के बाद सूरज कुमार बड़जात्या ने ‘राजश्री’ पर अपना प्रभुत्व बढ़ाना शुरू कर दिया था.सबसे पहले सूरज कुमार बड़जात्या ने ही अपने परदादा की परंपरा के खिलाफ जाकर आधुनिकता का लबादा ओढ़कर 2003 में लगभग सवा तीन घंटे की अवधि की रोमांटिक काॅमेडी फिल्म ‘‘मैं प्रेम की दीवानी हूं’ का लेखन व निर्देशन किया था,जो कि ‘राजश्री’ की ही 1976 में प्रदर्शित बासु चटर्जी निर्देशित सफलतम फिल्म ‘‘चितचोर’’ का ही आधुनीकरण थी.फिल्म ‘मैं प्रेम की दीवानी हॅूं’ में करीना कपूर,हृतिक रोषन व अभिषेक बच्चन जैसे कलाकार थे.‘राजश्री प्रोडक्शन’ के बैनर तले बनी यह पहली फिल्म थी,जिसमें नायिका का विवाह संस्था में यकीन नही होता.अंततः उसकी शादी उसी इंसान के साथ होती है,जिससे वह प्यार करती है.इस फिल्म में पहली बार नायिका ने अपने शरीर पर कम कपड़े पहनकर ग्लैमर परोसा था.जब 27 जून 2003 को यह फिल्म सिनेमाघर पहुॅची,तो इसने पानी तक नही मांगा.

इससे ‘राजश्री’ के अंदर काफी हंगामा हुआ था.उसके बाद सूरज कुमार बड़जात्या ने अपनी गलती स्वीकार कर ‘बड़जात्या’ व ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की ही परंपरा पर आंख मूॅदकर कर 2006 में बतौर लेखक व निर्देशक फिल्म ‘‘विवाह’’ लेकर आए थे,जिसमें विवाह संस्था,शादी के रीतिरिवाज आदि को ‘मैने प्यार किया’ की ही तरह परोसा गया था.इस फिल्म में शाहिद कपूर और अमृता राव की जोड़ी थी.80 मिलियन की लागत से बनी इस फिल्म ने बाक्स आफिस पर 539 मिलियन कमा कर दिए थे.फिर भी अच्छी कहानी की तलाश के नाम पर पूरे नौ वर्ष तक सूरज कुमार बड़जात्या ने कोई फिल्म निर्देशित नही की.2015 में उन्होने सलमान खान को लेकर फिल्म ‘प्रेम रतन यान पाओ’ का लेखन व निर्देशन किया.यह फिल्म भी काफी सफल रही.

सरकार बदलने के साथ बदलते बौलीवुड का असरः

लेकिन 2014 के बाद बौलीवुड में आ रहे बदलाव के रंग में सूरज कुमार बड़जात्या भी ख्ुाद को रंगने लगे.वास्तव में 2014 के बाद धीरे धीरे बौलीवुड पत्रकारों से दूरी बनाते हुए अपने पीआर व पीआर कंपनी के इशारे पर नाचने लगा था.इसी वजह से ‘राजश्री प्रोडक्शन’ निर्मित 2016 में ‘दावत ए इष्क’ और अभिषेक दीक्षित लिखित व निर्देशित ‘हम चार’ जैसी फिल्मों का ठीक से प्रचार नही किया गया और यह दोनों फिल्में बाक्स आफिस पर धराशाही हो गयी.तब सात वर्ष बाद असफल फिल्म ‘‘हम चार’’ के ही लेखक की कहानी पर बतौर निर्देषक सूरज कुमार बडजात्या ने फिल्म ‘‘उंचाई’ का निर्देषन किया.फिल्म की कहानी अच्छी थी,फिल्म बनी भी ठीक ठाक थी.लेकिन यह पहली बार था,जब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ और सूरज कुमार बड़जात्या ने इस फिल्म का प्रचार उस पैमाने पर नही किया,जिस पैमाने पर ‘राजश्री प्रोडक्शन’ अपनी हर फिल्म को प्रचारित करता था.परिणामतः यह फिल्म बाक्स आफिस पर किसी तरह से महज अपनी लागत ही वसूल कर पायी.जबकि इस फिल्म में अमिताभ बच्चन, डैनी,अनुपम खेर,सारिका,नीना गुप्ता जैसे कलाकार हैं.

सूरज के बेटे अवनीश बने निर्देशकः ताराचंद बड़जात्या की चैथी पीढ़ी का कारनामाः

अब सूरज बड़जात्या के बेटे,राज कुमार बड़जात्या के पोते और ताराचंद बड़जात्या के पड़पोते अवनीश बड़जात्या ने कुछ कमियों के बावजूद राजश्री की ही परंपरा को आज के परिवेश की कहानी बयां करते हुए आगे बढ़ाने का प्रयास किया है.फिल्म ‘दोनो’ में राजस्थानी परिवेश की शादी व्याह,पे्रम, विछोह, डेस्टीनेशन वेडिंग के साथ ही पारिवारिक मूल्य व वर्तमान पीढ़ी की आधुनिक सोच को भी रेखंाकित किया गया है.

फिल्म ‘दोनोः किसने डुबायी

पिछले पांच छह वर्ष के दौरान ‘राजश्री प्रोडक्शन’’ के कर्ताधर्ताओं और खुद सूरज कुमार बड़जात्या ने अनुभवो के आधार पर क्या सीखा,यह तो वही जाने.लेकिन सूरज कुमार बड़जात्या के बेटे अवनीश कुमार बड़जात्या निर्देशित फिल्म ‘दोनो’ का बाक्स आफिस पर जो हाल है,वह इसी ओर इंगित करता है कि शायद अब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ से जुड़े लोग इसे डुबाने पर आमादा हो गए हैं.

जी हाॅ! ‘‘प्रेम रतन धन पाओ’’ और हम चार’ में बतौर सहायक निर्देशक तथा फिल्म ‘‘उंचाई’’ में बतौर एसोसिएट निर्देशक काम कर चुके अवनीश कुमार बड़जात्या ने अपने पिता सूरज बड़जात्या के पदचिन्हो पर चलते हुए बतौर स्वतंत्र निर्देशक रोमांटिक फिल्म ‘‘दोनो’’ के सह लेखन व निर्देशन की जिम्मेदारी संभाली तो तय किया कि वह ‘राजश्री’ की परंपरा के साथ ही लीक से हटकर फिल्म बनाएंगे.अवनीश बड़जात्या अपनी फिल्म ‘दोनो’ में जहां एक तरफ पुरानी मान्यताओं व रीति रिवाजों को चुनौती देने के साथ ही अपरोक्ष रूप से नारी समानता के नाम पर संयुक्त परिवारों को तोड़ने व धार्मिक रीति रिवाजों,पूजा आदि की अवमानना करने की वकालत करते हुए नजर आते हैं,तो वहीं वह भारतीय शादी व्याह के रीति रिवाजों की भी वकालत करते हुए नजर आते हैं.यानी कि वह पूरी तरह से द्विविधाग्रस्त हैं.

फिल्म ‘दोनो’ की कहानीः

रोमांटिक कहानी की शुरूआत बंगलोर में अपने स्टार्ट व्यवसाय को जमाने में व्यस्त देव सराफ (राजवीर देओल ) से षुरू होती है.उसके माता पिता मंुबई में रहते हैं और देव की स्कूल व कालेज की दोस्त अलीना (कनिका कपूर ) की षादी होने जा रही है.इससे वह परेषान हो गया है.क्योंकि वह पंद्रह साल की उम्र से ही अलीना से प्यार करता आया है,पर वह इस बात को आज तक अलीना से कह नहीं पाया.वह अपनी मां व अलीना को भी फोन पर शादी में शामिल होने पर असमर्थता जाहिर कर देता है.तब अलीना कहती है कि यदि वह षादी में नही आया तो वह शादी नही करेगी.

क्योंकि अलीना की नजर में देव सराफ अच्छा दोस्त है.यह शादी डेस्टीनेशन वेडिंग है,जो कि थाईलैंड में हैं.लेकिन मिस अंजली मल्होत्रा (टिस्का चोपड़ा ) के एक कार्यक्रम में एक काॅलर निशांत की इसी तरह की समस्या का जवाब देते हुए अंजली मल्होत्रा ,निशांत को सलाह देती हैं कि ‘स्टेशन पर बैठकर ऐसी ट्रेन का इंतजार करने से क्या फायदा, जो ट्रेन उस स्टेशन पर आती ही नहीं. दूसरी ट्रेन पकड़ने के लिए उसे दूसरे स्टेशन पर जाना पड़ेगा या फिर उसी स्टेशन पर आने वाली दूसरी ट्रेन को पकड़ना पड़ेगा. तभी उसको एक नई मंजिल मिल सकती है. इसलिए उसे अपनी दोस्त की षादी में जाना चाहिए,हो सकता है वहां पर उसे नई ट्ेन की राह मिल जाए.’’देव सराफ थाईलेंड में अलीना की शादी में शामिल होता है.जहां उसकी मुलाकात मेघना (पालोमा ढिल्लों) से होती है. छह साल तक गौरव (आदित्य नंदा) संग रिलेशनशिप में रहने के बाद एक माह पहले ही उसका ब्रेक अप हुआ है. इस शादी में गौरव भी आया हुआ है.देव और मेघना दोनो एक दूसरे के को समझने की कोशिश करते हैं.

बीच बीच में गौरव की अपनी हरकतें हैं,तो वहीं अलीना के होने वाले पति निखिल(रोहण खुराना ) की अपनी हरकते हैं.षादी के रीति रिवाज संपन्न होते रहते हैं.हल्दी व संगीत कार्यक्रम हो जाते हैं.कहानी बढ़ती रहती हंै.कहानी में कई मोड़ आते हैं.एक मोड़ पर लगता है कि मेघना,गौरव के पास वापस जाएगी.उधर अलीना व निखिल की षादी से पहले की रात,अलीना व निखिल का समुद्री बीच पर सैकड़ों लोगो के सामने   लिया गया लंबा चुंबन वायरल हो जाता है.उस चुंबन दृष्य को लेकर रिश्तेदारों में फुसफुसाहट शुरू होती है.अलीना की मां उसे डांटती है,तब अलीनाप मन ही मन निखिल से प्याह न करने की सोचकर देव सराफ के साथ रात में ही कार में बैठकर होटल से बाहर घूमने निकल जाती है.रास्ते में अलीना,निखिल से षादी न करने व देव,अलीना से प्यार करने की बात कबूल करता है.

पर सारा सच जानने के देव सराफ, अलीना को सलाह देता है कि उसे इस बारे में  बात करके अंतिम निर्णय लेना चाहिए.निखिल पूरे परिवार व रिश्तेदारों के सामने अलीना से कह देता है कि वह दोनो राजी हैं,जिन्हे एतराज है वह भाड़ में जाएं.और दोनों एक दूसरे संग लंबे समय तक चुंबनबद्ध होते हैं.सब कुछ देख व सुनकर निखिल के पिता अलीना से वरमाला डालने के लिए कहते हैं.

बाक्स आफिस पर बुरी तरह से लुढ़की ‘दोनो’

राजश्री प्रोडक्शन की फिल्म ‘‘दोनों’ पूरे देश में महज 273 स्क्रीन्स में ही प्रदश्र्षत हो पायी है. इनमें उन स्क्रीन्स का भी समावेश है,जिनके मालिक ‘राजश्री फिल्मस’ खुद है.निर्माता ने एक टिकट खरीदने पर एक टिकट मुफ्त का प्रावधान भी रखा हुआ है, इसके बावजूद फिल्म ने पहले दिन केवल दस लाख रूपए कमाए.कुछ स्क्रीन्स में सिर्फ छह लोग नजर आए तो कुछ स्क्रीन्स के षो रद्द कर दिए गए.75 वर्षो से जिस कंपनी की चार पीढ़ियां फिल्म निर्माण व वितरण में सक्रिय हों,उस ‘राजश्री प्रोडक्षंस ’ की फिल्म की यह दुर्गति शुभ संकेत नही है.इस पर ‘राजश्री प्रोडक्षन’ से जुडे़ हर शख्स को गंभीरता से मनन करना चाहिए.

वास्तव में इसकी मूलतः दो बड़ी वजहें हैं.पहली वजह तो अनुभवी लोगों ने पहली बार अपनी फिल्म का ठीक से प्रचार नही किया.लोगों को पता ही नहीं चला कि ‘दोनो’ नाम की कोई फिल्म बनी है.इसके लिए फिल्म के प्रचार की जिम्मेदारी जिन लोगो को दी गयी,उन लोगों ने इमानदारी से काम नही किया.पी आर कंपनी का पत्रकारों के संग व्यवहार ऐसा रहा,जैसे कि पत्रकार उनके गुलाम हो.दूसर बात लेखक व निर्देशक की अपनी कमजोरियां व द्विविधाग्रस्त होकर फिल्म बनाना रहा.वहीं फिल्म के कलाकारों ने भी फिल्म को डुबाने में कोई कसर बाकी नही रखी.

कहानी के स्तर पर कमीः

फिल्म ‘दोनो’ एक प्रेम कहानी प्रधान रोमांटिक फिल्म है.मगर पूरी फिल्म में रोमांस कहीं नही है.लेखक व निर्देशक की अपनी कमजोरियों के चलते फिल्म गड़बड़ा गयी.फिल्म के नायक देव सराफ के साथ किसी को हमदर्दी नहीं होती? क्योंकि फिल्मकार इस बात को ठीक से चित्रित ही नहीं कर पाए कि देव सराफ का अलीना से एक तरफा प्यार की गहराई कितनी है? फिल्म देखने पर अहसास होता है कि देव का 15 वर्ष की उम्र में अलीना से प्यार का अहसास महज बचपना था.बचपने में किए गए प्यार का कोई महत्व नही होता.यही वजह है कि जब क्लायमेक्स से पहले अलीना को पता चलता है कि देव उसका सिर्फ अच्छा दोस्त ही नही है,बल्कि प्यार करता है.तब भी उस पर ज्यादा असर नही होता.यहां तक क्लायमेक्स मे जब देव,अलीना से निखिल से ब्याह करने की सलाह देता है,तब भी लोगों को देव पर तरह नही आता.देव के किरदार में हीरोईजम नजर ही नहीं आता.

 अवनीष की लीक से हटकर बनी फिल्म ‘दोनो’ की कमियांः

जैसा कि हमने पहले ही बताया कि ‘राजश्री प्रोडक्शन’ पिछले 76 वषों अपनी फिल्मों में भारतीय परंपरा,पारिवारिक जीवन मूल्यों की वकालत करते हुए विवाह व उसके रीति रिवाजों के इर्द गिर्द ही कहानियां पेश करते आया है.लेकिन पहली बार स्व.ताराचंद बड़जात्या के परिवार की चैथी पीढ़ी यानी कि सूरज बड़जात्या के बेटे व निर्देशक अवनीश बड़जात्या ने अपने निर्देषन में बनी पहली फिल्म ‘‘दोनों’’ में लीक से हटकर काम किया है.

स्टार्ट अप का माखौल

लीक से हटकर फिल्म बनाने के चक्कर में अवनीश बड़जात्या ने अपनी फिल्म ‘दोनो’ की शुरूआत ही गलत कर दी.फिल्म की शुरूआत में ही युवा पीढ़ी यानी कि नायक देव सराफ के ‘स्टार्ट अप’ व्यापार का माखौल उड़ाया गया है.फिल्म के पहले ही दृश्य में  देव की स्टार्ट अप कंपनी में एक ग्राहक आता है और उसे देखकर मजाक उड़ाता हुए कहता है-‘‘अरे आप इस कंपनी के सीईओ है.मैने तो किसी बुजुर्ग इंसान की कल्पना की थी’ और वह देव की कंपनी के साथ व्यापार नही करता.फिर फिल्म बताती है कि देव सराफ ‘लूजर’ हैं.उसकी स्टार्ट अप कंपनी सफल नही है और उस पर कर्जा है. इस तरह फिल्म की षुरूआत कर अवनीष बड़जात्या युवा पीढ़ी को अपनी फिल्म से दूर ले जाने का ही काम किया है.सच यह है कि वर्तमान समय में युवा पीढ़ी ‘स्टार्ट अप’ षुरू कर निरंतर प्रगति कर रही है.

गणपति भगवान की पूजा छोड़कर नायिका का होने वाले पति संग चुंबनबद्ध होनाः …??

फिल्म में एक दृष्य है,जहां विवाह से पूर्व गणपति पूजा का कार्यक्रम चल रहा है.वर व वधु दोनों पक्ष के लोग मौजूद हैं.नायिका अलीना अपनी मां के साथ गणपति पूजा कर रही है.पर अलीना को यही नही पता कि रक्त अक्षत व नैवेद्य किसे कहते हैं.इतना ही नहीं पूजा शुरू होेते ही अलीना अपने दोस्तों के इशारे पर गणपति पूजा छोड़कर अपने पति निखिल के पास समुद्र के किनारे पहंुच जाती है,जहां उसका होने वाला पति निखिल दोस्तों के सामने ही उसके सामने घुटने के बल बैठकर शादी का प्रस्ताव रखता है और फिर दोनों एक दूसरे के साथ लंबे समय तक चुंबन लेते हैं,जिसका वीडियो भी बनाया जाता है.मजेदार बात यह है कि यह बात दोनों परिवारों को पसंद नही है.सर्वाधिक आश्चर्य की बात यह है कि ‘राजश्री प्रोडक्शन’ इससे पहले 63 फिल्में बना चुका है और अब तक किसी भी फिल्म में एक भी ‘चंुबन दृश्य’ नही रहा.मगर ‘दोनों’ राजश्री प्रोडक्शन’ की पहली फिल्म है,जिसमें एक नही बल्कि तीन तीन लंबे चुंबन दृश्य हैं.

अब क्लायमेक्स में अलीना विवाह से पूर्व समुद्री बीच पर सैकड़ाें लोगों के बीच अपने होने वाले पति निखिल संग लिए गए लंबे चुंबन दृश्य के वायरल हो जाने पर बतंगड़ खड़ा करती है,जिसे युवा पीढ़ी भी गलत मानती है,इस कारण भी किसी को भी अलीना से हमदर्दी नही होती.

दूसरी बात फिल्म के इस तरह के दृश्यों से अहसास होता है कि लेखक व निर्देशक पूरी तरह से द्विविधा में हैं,कि शादी के धार्मिक रीति रिवाजों को सही ठहराते हुए ‘राजश्री फिल्मस’ की 76 साल पुरानी परंपरा को आगे बढ़ाएं अथवा लीक से हटकर आधुनिकता की बात करते हुए धार्मिक रीति रिवाजों व गणेश पूजा के खिलाफ जाएं. जब निर्देषक अवनीष बड़जात्या ने लीक से हटकर कुछ करने का निर्णय लिया था,तब उन्हे ‘राजश्री प्रोडक्शन’ की फिल्मों  की परंपरा और आधुनिकता में से किसी एक का दामन थामना चाहिए था.

पुरानी फिल्मों का कचूमरः

लेकिन अपनी पिछली तीन पीढ़ी से चली आ रही परंपरा का निर्वाह करने के चक्कर में उन्होने अपनी ही कंपनी की कुछ पुरानी फिल्मों के दृश्यों को सही ढंग से ‘दोनो’ में पिरोने का असफल प्रयास किया है.वह भूल गए कि समय व संदर्भ बदलने के साथ ही षब्दों के भी अर्थ बदल जाते हैं,इसलिए नए तरह के दृष्य गढ़े जाने चाहिए थे.फिल्म ‘दोनो’ में अविष्वसनीय दृष्यों की भरमार है.कुछ दृष्य इस बात की ओर इंगित करते है कि वर्तमान पीढ़ी के लिए रिष्ते मायने नहीं रखते.इतना ही नही पति पत्नी में समानता व नारी स्वतंत्रता की बात करते हुए फिल्म निर्देशक ने जो बात कही है,उस पर अमल करने से संयुक्त परिवार विखरते हैं,जबकि ‘राजश्री’ की फिल्मों की परंपरा परिवार विखेरना नही रहा है..

इसी तरह फिल्म में चुंबन वाला दृश्य भी खटकता है.जिस तरह से राजस्थानी परिवेश की शादी में निर्देशक ने नायक व नायिका को सार्वजनिक रूप से सभी रिश्तेदारों के समक्ष लंबे लंबे चुंबन दृश्यों दिखाए हैं,वह स्वीकार नही किए जा सकते. क्या दो पीढ़ियों के बीच जो अंतर है,उसे अवनीश इसी तरह से समझते हैं.क्या उनके अपने परिवार के संस्कार अब यही हो गए हैं? इस तरह के सवाल उठना लाजमी हैं.वैसे अवनीश बड़जात्या ने फिल्म में यह सवाल उठाने की कोशिश की है कि जब किसी भी काम में लड़के और लड़की दोनों की समान भागीदारी है,तो दोष सिर्फ लड़की के सिर पर क्यों?

फिल्म ‘‘दोनो’’ में कुछ अच्छा संदेशः

वैसे लेखक व निर्देशक ने कई गल्तियों के बावजूद कुछ अच्छा संदेश परोसने में सफल रहे हैं.फिल्म इस बार पर रोशनी डालती है कि कोई भी इंसान हर किसी को खुश नहीं रख सकता है.अगर इंसान सारी जिंदगी इस बात से डर डर के जिए सिर्फ अपनी नजरो में उठने की जरूरत है,तो वह सफल नही हो सकता.हमारी जीवन शैली और रहने के तौर तरीके पर दूसरे क्या सोचते हैं, यह सोचने के बजाय, इस बात पर गौर करना चाहिए कि खुद को क्या पसंद है और क्या अच्छा लगता है? हर इंसान अपने आप में हीरो होता है,बशर्ते उसे खुद की काबिलियत समझ में आ जाए.

फिल्म के प्रचार में पत्रकारों कीे अनदेखी करना

पर फिल्म दोनो’ की असफलता का एक कारण फिल्म का सही प्रचार न किया जाना भी रहा.‘राजश्री’ की अपनी एक परंपरा रही है.वह कम बजट में अच्छी फिल्में बनाते हुए अपनी फिल्म का जमकर प्रचार करते रहे हैं.हमें अच्छी तरह से याद है कि 1986 में जब गोविंद मुनीस के निर्देशन में ज्ञान शिवपुरी, रश्मी मिश्रा व आकाशदीप जैसे नए कलाकारों को लेकर ताराचंद बड़जात्या ने फिल्म ‘बाबुल’ बनायी थी,तब उन्होने इस फिल्म के प्रचार के लिए अपने बेटे स्व.राज कुमार बड़जात्या के नेतृत्व में फिल्म की पूरी टीम को राजस्थान,दिल्ली,मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश के कई शहरों में पत्रकारों व आम दर्शकों के साथ संवाद स्थापित करने के लिए भेजा था.

अब तक ताराचंद बड़जात्या के तीन बेटों में से किसी ने भी निर्देशन के क्षेत्र में कदम नहीं रखा था.सभी फिल्म निर्माण व वितरण के कार्य में अपने पिता की मदद कर रहे थे.लेकिन 1989 में जब राज कुमार बड़जात्या के बेटे और ताराचंद बड़जात्या के बेटे सूरज बड़जात्या ने निर्देशन में कदम रखने का फैसला किया,तब परिवार के सभी सदस्यों ने इसका विरोध किया था,मगर ताराचंद बड़जात्या ने सूरज को फिल्म निर्देशन की इजाजत दी थी.

सूरज बड़जात्या ने भाग्यश्री व सलमान खान को लेकर फिल्म ‘‘मैने प्यार किया’ का निर्माण किया था,जिसके प्रचार के लिए भी पूरा देष घूमे थे और फिल्म ने सफलता के नए रिकार्ड बनाए थे.  लेकिन अब ‘राजश्री प्रोडक्शन’ का 76 वर्ष और 64 फिल्मों के निर्माण के अनुभवांे के बावजूद पत्रकारों और समाचार पत्र व पत्रिकाओं की अनदेखी कर सोषल मीडिया के आगे घुटने टेकना भारी पड़ गया.फिल्म निर्माता यह भूल गए कि जब अखबार या पत्रिका में फिल्म के संबंध में कुछ छपता है,तो उसे पढ़कर पाठक/ दर्शक कल्पना करता है और फिर उसके अंदर फिल्म देखने की उत्सकुता पैदा होती है.पर ‘दोनो’ के प्रचार में ऐसा हुआ ही नहीं.

 इंफ्यूलंसर और छोटे छोटे यूट्यूबरों के आगे नतमस्तक होना

इतना ही नहीं यह पहली बार हुआ जब प्रेस शो में कुछ इन्फ्यूलंसर के साथ ही देश के कोन कोने से छोटे यूट्यूबरों को बुलाया गया था.शायद फिल्म के निर्माता व उनकी पीआर कंपनी ने सोचा होगा कि मुंबई के पत्रकारों से दूरी बना देश के छोटे छोटे यूट्यूबराें को बुलाकर फिल्म को सुपर हिट बना लेंगे. पर फिल्म के बाक्स आफिस की कमाई से साबित होता है कि फिल्म के निर्माता,निर्देशक,कलाकारों और उनकी पीआर कंपनी की हरकतों ने इस फिल्म को डुबाने में कोई कसर बाकी नही रखी.

कलाकारों का अहम और कमतर अभिनयः

फिल्म ‘दोनों’ की सबसे बड़ी कमजोर कड़ी इस फिल्म में नए कलाकारों की जोड़ी है.फिल्म के मुख्य कलाकार तो अपने परिवार के नाम पर अहम में रहे.फिल्म के नायक राजवीर देओल के दिमाग में हावी है कि वह महान अभिनेता धर्मेंद्र के पोते व सफल अभिनेता सनी देओल के बेटे हैं. जबकि अभिनय व संवाद अदायगी के मामले में वह शून्य हैं.उनका चेहरा सदैव सपाट रहता है.तो वहीं फिल्म की नायिका पालोमा ढिल्लों को अहम है कि वह तो मषहूर अभिनेत्री पूनम ढिल्लों व मशूहूर फिल्म निर्माता अशोक ठाकरिया की बेटी हैं.वह न खास सुंदर हैं और न ही उनके अंदर अभिनय क्षमता है.मजेदार बात यह है कि अब सोशल मीडिया पर मुहीम चलायी जा रही है सफलतम अभिनेता के बेटे राजवीर देओल को ‘‘राजश्री फिल्मस’’ ने फंसा दिया.मगर सोशल मीडिया पर इस तरह की बकवास करने वाले यह भूल जाते हैं कि 2019 में सनी देओल ने स्वयं अपने बड़े बेटे करण देओल के कैरियर की पहली फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’’ निर्देषित की थी,जिसने बाक्स आफिस पर पानी नहीं मांगा था और करण देओल का कैरियर शुरू होने सेे पहले ही डूब गया था.

वैसे कुछ दिन पहले करण देओल के कैरियर को डुबाने का आरोप अपरोक्ष रूप से राजवीर देओल अपने पिता सनी देओल पर यह कहते हुए लगा चुके हैं कि उनके भाई करण देओल को अपने किरदार को चुनने की स्वतंत्रता नही मिली थी. जबकि उन्होेने ‘दोनों’ के देव के किरदार को स्वयं चुना है.अब यदि हम राजवीर देओल की बात सच मान ले,तो खुद देव का किरदार चुनकर राजवीर देओल ने कौन सी सफलता दर्ज करा ली. राजवीर को याद रखना चाहिए कि करण देओल की फिल्म ‘‘पल पल दिल के पास’ ने पहले दिन लगभग एक करोड़ कमाए थे,जबकि राजवीर की फिल्म ‘दोनो’ ने बाक्स आफिस पर केवल दस लाख रूपए ही कमाए.कड़वा सच सह है कि अभिनय के मामले में राजवीर देओल और पालोमा को बहुत अधिक मेहनत करने की जरुरत है.

राजवीर और पालोमा को इसी फिल्म में पंद्रह वर्षीय देव व अलीना के किरदारो में क्रमषः वरूण बुद्धदेवा और मुस्कान कल्याणी के अभिनय से कुछ सीखना चाहिए.इन दोनों किषोर वय के कलाकार अपने अभिनय से न सिर्फ अमिट छाप छोड़ जाते हैं,बल्कि इस ओर भी इशारा करते है कि उनमें आगे बढ़ने की असीम संभावनाए हैं.

जवाबदेही तय करने की आवश्यकता

हम स्वयं ‘दोनो’ की असफलता या ‘राजश्री प्रोडक्शन’ को पतन की ओर ले जाने के लिए किसी पर भी दोषारोपण नही करना चाहते.हम तो सिर्फ सच बयम कर रहे हैं,जिन पर पूरी टीम को गौर करना चाहिए.प्रिंट मीडिया एक शाश्वत सत्य है.इसकी अनदेखी से किसी भी शख्स को फायदा नही हो सकता.नए जमाने की आड़ में तेजी से उभर रही पीआर कंपनियों और ईवेंट कंपनियों का मकसद ऐन केन प्रकारेण अपनी जेंबें भरना है. सभी को रातोंरात करोड़पति बनना है.इन कंपनियों से काम लेने के लिए इनकी एकाउंटेबिलिटी/ जवाबदेही तय करना आवष्यक है.तो वहीं परंपराओं को तोड़ने वाला या लीक से हटकर सिनेमा बनाने में बुराई नही है,मगर उस दिषा में ठोस कहानी व ठोस तथ्यों के साथ विश्वसनीय दृश्य पेश किए जाना अनिवार्य है. ढुलमुल नीति कभी किसी भी क्षेत्र में सफल नही होती.

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