मैट्रो ट्रेन में यात्रा के दौरान मोबाइल में डेटा औन कर सोशल मीडिया के किसी प्लेटफौर्म में डूबा युवा जान न पाया कि उस का स्टेशन निकल गया, जब पता चला तो लड़तेभिड़ते, बदहवास सा गेट की तरफ बढ़ चला.

युवा 6 इंच के स्क्रीन में किस कदर घुसा हुआ है, यह आसपास आसानी से देखा जा सकता है. कमर से सटी कुहनी, पेट के ऊपर फोन और नीची झुकी गरदन, स्क्रीन को एकटक निहारती आंखें, यह मुद्रा तब तक रहती है जब तक या तो गरदन नहीं अकड़ जाती या फोन की बैटरी खत्म नहीं हो जाती.

लेकिन मजाल कि फोन की बैटरी खत्म हो जाए, मुआ मोबाइल बनाने वाली कंपनियां 6 हजार एमएच की बैटरी वाले फोन जो ले आई हैं, ऊपर से चार्जर ऐसेऐसे आ गए हैं कि 15 मिनट में ही मोबाइल चार्ज हो जाए. युवा भी ढीठ हैं, अगर गरदन अकड़ जाए तो इस का इलाज भी खूब है, दो बार गरदन दाएंबाएं और एक बार आगेपीछे किया और फिर उसी मुद्रा में घंटों लेटेबैठे युवा हाथों में मोबाइल थामे, कभी उंगली से तो कभी अंगूठे से स्क्रीन ऊपर खिसकाते रहते हैं.

दिल्ली की ब्लूलाइन मैट्रो सुबह और शाम भरी रहती है, कारण है कि पूरी लाइन 9-6 के औफिस जाने वालों की है. दुनिया बड़ी है लेकिन युवाओं के लिए दुनिया 6 इंच के भीतर घुस गई है. 6 इंच की मारामारी वैसे भी युवाओं में खूब है, खासकर लड़के या तो अवसाद में रहते हैं या भारी दुख में.

इसी ब्लूलाइन में बाराखंबा रोड स्टेशन के नजदीक नीली कमीज और काली पैंट पहने कोई 26-27 साल का एक नौजवान लड़का अचानक चौंकते हुए सीट से खड़ा हुआ, मानो स्टेशन के बाहर उस का कोई देनदार पैसे ले कर आया हो जिस से मिलने की उसे हड़बड़ी हो.

पिछले आधे घंटे में यह पहली बार था जब उस ने अपने मोबाइल के स्क्रीन से नजर हटाई हो क्योंकि इस से पहले तो वह आसपास के माहौल से अनजान था. जब से वह मैट्रो में बैठा था तब से उस के अगलबगल में कौन से मुसाफिर आए गए, उसे इस का होशोहवास नहीं था. बेसुध उस की टकटकी मोबाइल पर थी.

उस के दाएं वाली सीट में करीब 3 स्टेशन तक 10 मिनट के लिए एक सुंदर सी कालेजगोइंग लड़की बैठी थी. कपड़े जरूर अतरंगी थे लेकिन उस पर लग कमाल रहे थे. लड़की ऐसी कि आलिया भट्ट भी फैशन टिप्स उस से मांग ले. बाल खुले, नाक में नोजपिन, होंठ पर शायद लिप ग्लौस, मल्टीकलर लूज क्रौप टौप, जिस में से एक तरफ ब्रा का स्ट्रिप दिखाई दे रहा था और डैनिम की शौर्ट स्कर्ट. हां, उस के बैठने का सलीका सभ्य था, उस ने टांगें फैलाई नहीं थीं, बल्कि एक टांग के ऊपर दूसरी टांग रखी थी और साफसुथरी टांगों के ऊपर पर्पल कलर का बैग.

फैशन के मामले में दिल्ली की लड़कियों की बात ही अलग होती है. कहते हैं मुंबई और दिल्ली में लड़केलड़कियां जिस फैशन को एप्रूवल देते हैं उसे बाकी जगह के लड़केलड़कियां अपनाते हैं.

कोई दिलफेंक आशिक होता तो एक नजर उस लड़की की तरफ देख ही लेता पर मजाल उस लड़के की कि अपने फोन के स्क्रीन से नजर हटाए और एक नजर देख ले. मैट्रो में लगभग सभी कमर, पेट, कुहनी, मोबाइल और गरदन वाली मुद्रा में बैठे हुए थे. और जो खड़े थे वे एक हाथ से सपोर्ट लिए थे तो दूसरे हाथ से मोबाइल थामे थे.

इन बेचारे खड़े लोगों को बड़ी तकलीफ रहती है. एक तो सीट नहीं मिलती, ऊपर से एक नजर फोन पर रखनी पड़ती है, दूसरी नजर बैठे हुए लोगों पर कि कोई खड़ा हो तो फटाक से सीट पकड़ ली जाए. समस्या बड़ी यह कि सुबहसुबह क्रीज लगी कमीज मुचड़ जाती है. इतना बिचक के खड़ा होना पड़ता है कि आतेजाते हुए किसी की टांग कभी जूते पर तो कभी पैंट पर लगती रहती हैं. बेचारा मैट्रो से निकलते हुए बेदम हो पड़ता है.

लेकिन बैठा हुआ लड़का तो बेफिक्र था अपनी उंगलियों से कभी फेसबुक तो कभी इंस्टाग्राम स्क्रौल करता हुआ. वह कान में सफेद रंग के एयरडोप्स ठूसे हुए था, जिस में से न आवाज बाहर आ सकती है न बाहर की आवाज भीतर घुस सकती है. स्क्रीन पर बदलती हर फीड से उस के चेहरे के भाव भी बदल जाते.

कभी पूजापाठ, भगवान व धर्म की रील पर आंखों में गर्व ले आता और एक हाथ अपनी छाती पर छू कर होंठों को चूमता तो कभी गालीगलौच व हंसीठट्ठे वाली रील पर जोर से ठहाका लगाता तो कभी कामुक लड़की की मटकती कमर और डांस की मुद्राओं को आंख गढ़ा कर देखता. ऐसी रील देखते हुए वह हलके से फोन को भीतर की तरफ घुमा लेता कि अगलबगल वाला देख न सके.

पिछले आधे घंटे से रील देखते जब उसे होश आया तो पता चला कि उस का स्टेशन तो 2 स्टेशन पीछे छूट गया है. उस के साथ ‘जाना था कलकत्ता, पहुंच गए पटना’ वाली बात हो गई. बदहवास नजर उस ने अपनी बगल में दौड़ाई, यहांवहां झंका तो सिवा भीड़ में लोगों की कमर, टांगों के कुछ न दिखे.

जिन मुसाफिरों से मुंह फेर कर आधे घंटे से स्क्रीन पर नजर गढ़ाई थी, उन से इतनी हिम्मत न जुटा पाया कि पूछ सके कि कौन सा स्टेशन आ गया. अंत में पीछे घूमा, स्टेशन पर लगा बोर्ड देखा, बाराखंबा रोड लिखा देखा. सो, अचानक उठा और लड़तेभिड़ते, बदहवास सा गेट की तरफ बढ़ने लगा.

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