हर  स्त्री जब उम्र के इस दौर से गुजर रही होती है यानी 40 के पार. हलका भरा हुआ बदन, चेहरे पर जीवन के अनुभव से आया हुआ आत्मविश्वास, मांबाप, भाईबहन की बंदिशों से आजाद. बच्चे भी काफी हद तक निर्भर बन चुके होते हैं, पति भी अपने कार्यक्षेत्र में ज्यादा मशरूफ हो जाते हैं यानी कुल मिला कर औरत को थोड़ा समय मिलता है अपने ऊपर ध्यान देने का. फिर आज के समय में सोशल मीडिया के माध्यम से बहुत से नए मित्र बन जाते हैं या पुराने बिछड़े हुए प्रेमी युगल इस सोशल मीडिया प्लेटफौर्म पर भी मिल जाते हैं.

अब जब नए मित्र बनेंगे या पुराने मित्र मिलेंगे तो उन के बीच कुछ आकर्षण होना स्वाभाविक है. विवाह के बाद जीवन के 15 से 20 वर्ष तो घरपरिवार बनाने में, बच्चों की परवरिश में बीत जाते हैं यानी अब एक बार फिर स्त्री खुद को नजर उठा कर आईने में देखती है तो नजर आता है कि पहले का रूप तो गायब ही हो गया है. अचरज तो इस बात का है कि पता ही नहीं चला कि कहां गायब हुआ है.

खुद को अकेला न समझें अब अवसाद में घिरने के बजाय स्त्री फिर कमर कसती है इस बार खुद को निखारने, संवारने की. खोए हुए शौक को पूरा करने के लिए. अब इस राह पर चलते हुए वह खुद को अकेला पाती है. पति व्यस्त हैं. बच्चे अपने जीवन में आगे बढ़ने के लिए मेहनत कर रहे हैं. अब वह ढूंढ़ती है कोई हो जो उसे समय दे सके, उसे प्रोत्साहित कर सके और शायद इस में कुछ गलत भी नहीं है. अब अगर कोई उसे सराहता है, उस की खूबियां उसे गिनाता है तो आखिर स्त्री को अच्छा क्यों नहीं लगेगा?

भई लगना भी चाहिए. आखिर तारीफ किसे अच्छी नहीं लगती. अब अगर छोटीमोटी तारीफ, एकदूसरे को थोड़ा इमोशनल सपोर्ट, थोड़ा सहारा मिल जाए और स्त्री अपने इस मित्र से कुछ अबतक के अनकहे एहसास सा?ा कर ले, अपने मित्र के कहे गए तारीफ के शब्द सोच कर रात को खाना बनातेबनाते कुछ गुनगुना ले तो क्या यह गुनाह हो गया या स्त्री बदचलन हो गई? तो बहुत अच्छे से सम?ा लें. इस में कुछ भी गलत नहीं है. अब आप कोई 16 साल की लड़की नहीं हैं. आप किसी की मां हैं, पत्नी, सास, चाची, नानी, दादी, बुआ, मामी हैं तो किसी की महिला मित्र क्यों नहीं बन सकतीं क्योंकि इन सभी रिश्तों को निभाने के बाद भी एक स्त्री एक ऐसे पुरुष को ढूंढ़ती है जो उसे मन से पूर्ण कर दे. उस की रूह को छू ले क्योंकि जिस्म का कुंआरापन तो शादी के बाद मिट ही जाता है, किंतु रूह अनछुई ही रह जाती है. सब की नहीं तो बहुतों की. देह की दहलीज से कोसों दूर. इस में कोई बुराई नहीं अगर मन से मन मिल सकता है तो कोई बुराई नहीं है.

बरसों पहले देखी ‘खामोशी’ फिल्म के एक गाने के पंक्तियां यहां लिखूंगी, ‘‘हम ने देखी है उन आंखों की महकती खुशबू प्यार को प्यार ही रहने दो कोई नाम न दो सिर्फ एहसास है ये रूह से महसूस करो हाथ से छू के इसे रिश्तों का इलजाम न दो…’’ आप के मित्र भी किसी के पति, पिता, ससुर, चाचा, नाना, दादा होंगे तो अब यहां साथसाथ जीनेमरने की कसमें खाने का या रिश्तों में बंधने या बांधने का कोई प्रश्न या औचित्य नहीं है. शायद उम्र के इस दौर में जिंदगी के खट्टेमीठे अनुभव सा?ा करने के लिए वे भी एक दोस्त ढूंढ़ रहे हों कि किसी को बता सकें कि उन्हें आज भी शाम को समुंदर के किनारे डूबता सूरज देखना अच्छा लगता है या वे डायरी में कभीकभी कुछ लिखते हैं आदिआदि. एक बात और लिखूंगी कि कोई भी रिश्ता बुरा या गंदा नहीं होता है.

हम उस रिश्ते को किस ढंग से निभाते हैं उस रिश्ते की सफलता या असफलता उस पर निर्भर करती है. हमेशा खुश रहें हमारी सब से बड़ी जिम्मेदारी खुद को खुश रखने की होती है. जब हम खुद खुश होंगे तभी हम अपने अपनों को भी ज्यादा खुशी दे पाएंगे. अब अगर हमारी खुशी कहीं गुम हो गई है तो उसे खोजने में अगर हमारा कोई मित्र या शुभचिंतक हमारी कोई मदद कर रहा है तो यह कोई गलत नहीं है. आप अब इतनी परिपक्व हो चुकी हैं कि किसी से चंद मिनट अकेले बात कर सकती हैं, कभी एक कौफी पी सकती है, कभी चैट कर सकती हैं. तो बस अगर आप का कोई ऐसा मित्र है आप के जीवन में तो खुद को खुशहाल सम?ों न कि अपने को अपनी ही नजर में गिरी हुई, बदचलन औरत सम?ों.

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