देश बदल रहा है. महिलाओं की दशा में सुधार हो रहा है. समय के साथसाथ नारी और सशक्त होती जा रही है. इंदिरा गांधी, इंदिरा नूई और किरण बेदी से ले कर सानिया मिर्जा, सुनीता विलियम्स और कल्पना चावला तक जैसी कितनी ही आधुनिक भारत की महिलाओं ने देश को विश्वभर में गौरवान्वित किया. लेकिन फिर भी घर हो या बाहर महिलाओं के साथ घरेलू हिंसा और यौन अपराधों में लगातार वृद्धि होती रही है. इस की मूल वजह है महिलाओं की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता. महिला सशक्तीकरण तभी संभव है जब महिलाएं आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर हों.

आज भी महिलाओं की अधिकांश समस्याओं का कारण आर्थिक रूप से दूसरों पर निर्भरता है. देश की कुल आबादी में 48 फीसदी महिलाएं हैं जिन में से मात्र एकतिहाई महिलाएं कामकाजी हैं. इसी वजह से भारत की जीडीपी में महिलाओं का योगदान केवल 18 फीसदी है.

हमारे समाज की महिलाओं का एक बड़ा तबका आज भी सामाजिक बंधनों की बेडि़यों को पूरी तरह से तोड़ नहीं पाया है. उन का घर में अपना स्वतंत्र अस्तित्व नहीं है. एक तरह से हमारा पितृसत्तात्मक समाज उन्हें जन्म से ही ऐसे सांचे में ढालने लगता है कि वे अपने वजूद को बनाए रखने के लिए पुरुषों का सहारा ढूंढें़ और हर काम के लिए पुरुषों पर निर्भर रहें. जब कोई स्त्री अपनी उपस्थिति दर्ज कराना चाहती है तब कितने रीतिरिवाजों, परंपराओं और पुराणों में लिखी सीख की दुहाई दे कर उसे परतंत्र जीवन जीने पर विवश कर दिया जाता है.

समान अवसर दिए जाएं

भारतीय संसद में केवल 14 फीसदी महिलाएं हैं. इसी तरह पंचायत स्तर पर अधिकांश महिलाओं को केवल मुखौटे की तरह इस्तेमाल किया जाता है यानी चुनाव तो महिला जीतती है लेकिन सत्ता से संबंधित सभी निर्णय उस के परिवार के पुरुष सदस्य करते हैं. देश के सर्वोच्च न्यायालय सहित उच्च न्यायालयों में मौजूद न्यायाधीशों में महज 11 फीसदी महिलाएं हैं.

समय की मांग है कि अब महिलाएं अपनी क्षमता को पहचान कर, परंपरागत रूढि़यों को दरकिनार कर देश और परिवार की कमाऊ सदस्य बनें. यदि परिवार और समाज में महिलाओं के साथ होने वाले भेदभावों को समाप्त कर उन्हें पुरुषों के समान अवसर प्रदान किए जाएं तो दूसरी महिलाएं भी गीता गोपीनाथ, इंदिरा नूई किरण मजूमदार की तरह सशक्त हो सकती हैं.

शिक्षा और आत्मनिर्भरता

लड़कियों को बचपन से ही पाक कला और गृहकार्य में निपुणता की शिक्षा दी जाती है. मगर इस से ज्यादा जरूरी है महिलाओं का शिक्षित और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना. यह केवल परिवार के लिए नहीं बल्कि महिलाओं के लिए भी आवश्यक है. शिक्षा का महत्त्व तब पता चलता है जब परिवार आर्थिक संकट से गुजर रहा हो या किसी भी लड़की के वैवाहिक जीवन में अचानक परेशानी आ जाए.

ऐसे में शिक्षा और आर्थिक निर्भरता की बदौलत ही एक लड़की अपने मातापिता या पति की सहायता के बगैर भी सम्मानजनक जीवन जी सकती है.

महिलाओं के लिए बहुत जरूरी है आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होना. भारत में कई ऐसी महिलाएं हैं जो एक कुशल गृहिणी और मां तो हैं लेकिन इन सब के बदले उन्हें अपने कैरियर से हाथ धोने पड़े. कई महिलाएं पढ़ीलिखी हैं लेकिन मैटरनिटी लीव के बाद कभी औफिस जौइन ही नहीं कर पाईं और इस वजह से उन का बना हुआ कैरियर भी खत्म हो जाता है. ऐसी महिलाओं के लिए बाद में कई तरह की दिक्कतें आने लगती हैं और उन्हें समस्याओं से उबरने का मौका ही नहीं मिल पाता.

आर्थिक निर्भरता के माने

भले ही जीवन में पैसा सबकुछ नहीं होता लेकिन पैसे के बिना बेहतर जीवन जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है. पैसा हमें आत्मनिर्भरता और सम्मान के साथ जीने का अधिकार देता है. आमतौर पर गृहिणियां घरबाहर के और अपने सभी छोटेछोटे खर्चों के लिए अपने पति पर निर्भर होती हैं. हालांकि पति की कमाई से खर्च करने में कोई बुराई नहीं है लेकिन महिलाओं का वजूद दब सा जाता है. उन के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता के अपने अलग ही माने हैं.

जब एक महिला जौब या फिर कोई बिजनैस करती है तो वह केवल पैसे ही नहीं कमाती है बल्कि वह खुद को भी स्थापित करती है और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनती है. वह कई तरह से खुद को एक बेहतर इंसान बनाने की तरफ कदम बढ़ाती है.

फाइनैंशियली इंडिपैंडैंट होने के कई लाभ

घर खर्च में कंधे से कंधा मिलाना. जब एक महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती है तो वह बेहतर तरीके से अपने परिवार का सपोर्ट सिस्टम बन सकती है. आज के महंगाई के युग में केवल एक व्यक्ति की सैलरी से घर चलाना काफी मुश्किल हो जाता है. ऐसे में महिला की आमदनी घर खर्च को काफी आसान बना देती है. वह अपना और बच्चों का खर्च वहन करने में सक्षम बनती है. पति कभी बीमार हो जाए या उस की जौब छूट जाए तो ऐसे में महिला परिवार का सहारा बन पाती है.

आर्थिक आजादी का एहसास

जब महिलाएं आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर होती हैं तो उन्हें हर छोटेबड़े खर्चे के लिए पति से पैसे मांगने पड़ते हैं. अगर पति मना कर दे तो उन्हें अपना मन भी मार कर रहना पड़ता है. कई दफा पति पैसों को ले कर बात भी सुना देते हैं. तब महिलाएं हर्ट हो जाती हैं और अपनी जरूरतें सीमित करने लगती हैं. लेकिन आर्थिक आत्मनिर्भरता महिलाओं को आर्थिक आजादी प्रदान करती है. जब वे खुद कमाती हैं तो वे खुद पर खर्च भी कर सकती हैं और इस के लिए उन्हें अलग से किसी की परमिशन लेने की आवश्यकता नहीं होती है.

परिवार में सम्मान बढ़ता है

जो महिलाएं कमाती हैं और आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर होती हैं उन्हें घरपरिवार में अधिक सम्मान मिलता है. घर में भले ही वे 24×7 काम करने के लिए तैयार होती हैं लेकिन फिर भी परिवार में लोग उन के घरेलू कामों को अहमियत नहीं देते. वहीं अगर वे किसी कंपनी में जौब करती हैं या फिर खुद का ही बिजनैस है तो पति या घर वालों के अलावा रिश्तेदार व पड़ोसी भी उन्हें सम्मान की दृष्टि से देखते हैं.

रूढि़यां तोड़ सकती हैं

भारतीय घरों में महिलाओं के साथ शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना होना कोई नई बात नहीं है. लेकिन अधिकतर महिलाएं इस हिंसा को सिर्फ इसलिए बरदाश्त करती हैं क्योंकि वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर नहीं होती हैं. उन्हें यह लगता है कि अगर वे अन्याय के खिलाफ आवाज उठाएंगी तो उन्हें घर छोड़ना पड़ेगा और फिर उन का व उन के बच्चों का गुजारा कैसे होगा. इसी सोच के चलते वे जीवनभर एक टौक्सिक रिश्ते में भी बंधी रहती हैं.

लेकिन अगर महिला आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर है तो वह ऐसे रिश्ते को ढोने से इनकार कर अकेली रह सकती है, उस का दिल करे तो वह अविवाहित भी रह सकती है. उस में हिम्मत होती है कि वह पुरानी सोच और रूढि़यों के खिलाफ जा सके.

आत्मविश्वास बढ़ता है

आर्थिक रूप से आत्मनिर्भरता महिलाओं को अधिक आत्मविश्वासी भी बनाती है. उन्हें यह एहसास होता है कि वे अपने पति व परिवार की परछाईं से अलग अपनी भी कोई पहचान रखती हैं और समाज में लोग उन्हें केवल पति के नाम से ही नहीं जानते. उन का अपना वजूद होता है. लोग उन्हें उन के नाम से पहचानते हैं.

यह आत्मविश्वास उन्हें जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करता है. वे खुद को बेहतर तरीके से ट्रीट कर पाती हैं और अपनी पर्सनैलिटी को बेहतर बना पाती हैं. हर तरह के कपड़े कैरी करती हैं और लोगों के आगे अपनी बात रखने का जज्बा रखती हैं.

महिलाएं कहां करें निवेश

आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए पैसे कमाने और बचत करने के साथसाथ उन्हें सही जगह निवेश करना भी आना चाहिए. महिलाओं के लिए निवेश के कई औप्शन हैं. सोने में निवेश करना पुराने समय से चला आ रहा है. सोने में निवेश करने के लिए बहुत सारे विकल्प हैं, जिन में गोल्ड फंड, गोल्ड ऐक्सचेंज ट्रेडेड फंड, बार, गहने, सिक्के, सौवरेन गोल्ड बौंड प्रोग्राम शामिल हैं.

भारत सरकार की रिटायरमैंट स्कीम में निवेश कर के कामकाजी महिलाएं बुढ़ापे के लिए पैंशन फंड एकत्रित कर सकती हैं. राष्ट्रीय पैंशन योजना में निवेश कर के पैसा सुरक्षित रख सकती हैं.

बिना रिस्क वाले निवेश विकल्पों की तलाश में तो उन के लिए एफडी भी एक बेहतर विकल्प है. कामकाजी महिलाएं हों या होम मेकर, पब्लिक प्रौविडैंट फंड उन के लिए निवेश का अच्छा विकल्प हो सकता है. इस में 15 साल तक निवेश करना होता है जिस पर सरकार अच्छा ब्याज देती है.

इसी तरह नैशनल सेविंग सर्टिफिकेट सब से सुरक्षित निवेश की स्कीमों में से एक है. इस में आप एक निश्चित रकम एक निश्चित समय के लिए निवेश कर सकती हैं.

स्कीम मैच्योर होने के बाद आप को पूरा पैसा मिल जाता है. यह स्कीम महिलाओं के लिए इसलिए अच्छी है क्योंकि एक निश्चित समय में आप की बचत ब्याज समेत वापस मिल जाती है.

फिक्स्ड डिपौजिट स्कीम निवेश के साथसाथ सेविंग का भी एक अच्छा विकल्प है. इस में आप के खर्च के बाद जो भी रकम बचती है उस की आप एफडी करवा सकती हैं.

अलगअलग बैंकों में अलगअलग दर से ब्याज मिलता है. जरूरत पड़ने पर मैच्योरिटी से पहले भी एफडी तोड़ी जा सकती है. इसे किसी भी बैंक में खोला जा सकता है.

यदि आप थोड़े जोखिम के साथ निवेश प्लान के लिए तैयार हैं तो आप के लिए म्यूचुअल फंड एसआईपी बेहतर विकल्प साबित होगा. आप सिस्टेमैटिक इनवैस्टमैंट प्लान (एसआईपी) के जरीए थोड़ाथोड़ा पैसा भी म्यूचुअल फंड में डाल सकती हैं.

आप अपने मोबाइल पर ऐप्लिकेशन डाउनलोड कर के म्यूचुअल फंड में निवेश शुरू कर सकती हैं. इस निवेश पर होने वाले प्रौफिट में से म्यूचुअल फंड कंपनी अपनी फीस काट कर बाकी रकम आप को दे देती है. म्यूचुअल फंड्स की कई अलगअलग स्कीम्स मार्केट में उपलब्ध हैं जैसे डैब्ट फंड्स, इक्विटी फंड्स, बैलेंस्ड फंड्स आदि. म्यूचुअल फंड में होने वाला लौंग टर्म कैपिटल गेन टैक्स फ्री होताहै. इस में आप को इनकम टैक्स में छूट भी मिलती है.

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