Hindi Stories Online : मैं  वंदे भारत ट्रेन के एसी चेयर कार कंपार्टमैंट में अपनी सीट पर पहुंची और सामान जमा कर बैठी तो देखा सामने से एक 10-12 साल की लड़की बैगपैक टांगे तेज कदमों से मेरी ही बगल वाली सीट की तरफ आ रही थी जहां एक मोटा व्यक्ति पहले से बैठा था.

बच्ची ने उस आदमी को संबोधित करते हुए तेज आवाज में कहा, ‘‘अंकल, आप मेरी सीट पर बैठे हो. प्लीज आप अपनी सीट पर चले जाओ.’’

वह आदमी उठा नहीं बल्कि लड़की से कहने लगा, ‘‘अरे बेटा मैं यहां बैठ गया हूं अब उठना मुश्किल होगा. मुझे विंडो सीट अच्छी लगती है. यह आंटी की बगल वाली मेरी सीट है. तू उस पर बैठ जा.’’

दरअसल, 3 सीटों की उस रौ में मेरी सीट बीच की थी. मेरी दाईं तरफ विंडो सीट थी जिस पर वह आदमी बैठा था और बच्ची को मेरे लैफ्ट साइड वाली सीट पर बैठने को कह रहा था.

मगर बच्ची अपनी बात पर डटी रही, ‘‘अंकल मैं अपनी सीट पर ही बैठूंगी. आप उठ जाओ प्लीज.’’

मुंह बनाता हुआ वह आदमी उठ गया. लड़की ने जल्दी से अपना सामान जमाया और मेरी तरफ देख कर मुसकराई. फिर पूछने लगी,  ‘‘दीदी, आप भी मसूरी जा रही हो?’’

मैं ने भी प्यार से उसे जवाब देते हुए कहा, ‘‘मैं देहरादून तक जाऊंगी. तुम्हें मसूरी जाना है क्या?’’

‘‘हां जी,’’ उस ने जवाब दिया.

‘‘अकेली जा रही हो?’’ मैं ने फिर पूछा.

‘‘हां जी,’’ उस ने आत्मविश्वास के साथ कहा.

‘‘किसलिए?’’

‘‘मैं वहां पढ़ती हूं.’’

‘‘मगर तुम्हारे साथ कोई नहीं? तुम्हारे मम्मीडैडी?’’

‘‘मम्मीडैडी इस दुनिया में नहीं रहे,’’ उस ने बु?ो स्वर में जवाब दिया.

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