Family Story in Hindi: ‘‘मम्मा पापा को कह दीजिए कि मेरे स्कूल न आया करें.’’ ‘‘मगर क्यों बेटी?’’ ‘‘कह दिया न न आया करें बस.’’ ‘‘अरे, तो कोई कारण तो होगा?’’ ‘‘मुझे पसंद नहीं उन का स्कूल आना. क्या यह कारण काफी नहीं?’’ ‘‘लेकिन रूसा तुम ही तो चाहती थीं कि पापा ही तुम्हारी पेरैंट्स मीटिंग में आएं. तुम्हारी खातिर वे हर बार दफ्तर से छुट्टी लेते थे.’’ ‘‘वह तब की बात थी,’’ रूसा उखड़े स्वर में बोली. ‘‘रूसा, मैं आजकल देख रही हूं तुम्हारा व्यवहार अपने पापा के प्रति बहुत रूढ़ होता जा रहा हो. यह ठीक बात नहीं बेटी.’’

लेकिन रूसा बिना कोई जवाब दिए अपने कमरे में चली गई. मैं हैरान रह गई यह क्या हो गया है इस लड़की को... धीरज तो जान थे उस की, रातदिन, पापा... पापा... कहते हुए उन से ही लिपटी रहती थी. जब कभी दफ्तर से आने में देरी हो जाती तो रोने लगती, बारबार फोन करती, पापा कितनी देर हो गई आइए न.

खाने पर उन का इंतजार करती, बिना धीरज के कभी खाना नहीं खाती. पहला निवाला पापा खिलाएंगे तभी खाएगी. मेरा तो कोई वजूद ही नहीं धीरज के सामने. कहीं जाना है तो पापा चाहिए, स्कूल की पेरेंट्स मीटिंग हो तो पापा चाहिए. धीरज भी तो दिल से चाहते हैं, कितनी परवाह करते हैं उस की लेकिन पिछले कई दिनों से मैं महसूस कर रही हूं कि रूसा बातबात पर धीरज को झिड़क देती है. पहले दोनों घंटों किसी बात को ले कर स्वस्थ चर्चा करते थे.

आजकल रूसा उन से चर्चा कम करती है, अपमानित अधिक करती है. एक धीरज ही हैं जो मुसकरा कर रह जाते हैं. मैं ने कई बार रूसा को उसके इस व्यवहार पर डांटा, ‘‘कैसे बात कर रही हो अपने पापा से... क्या यही सीखती हो स्कूल में अपने पापा से ऐसे बात की जाती है? तब धीरज ने ही हर बार मुझे रोक दिया, ‘‘जाने दो निकिता बच्ची है अभी वह.’’ ‘‘कैसे जाने दूं. अरे, संस्कार नाम की कोई चीज होती है,’’ मैं कहती. मुझे रूसा का यह व्यवहार बिलकुल अच्छा नहीं लग रहा था. पिछले हफ्ते ही धीरज ने कहा, ‘‘रूसा ‘ऐनिमल’ लगी है मौल में.

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