Rebellion Youth: हमारा समाज जौइंट फैमिली, उन की परंपराओं और रिश्तों की मिठास से भरा है. लेकिन जब वही रिश्ते, वही परंपराएं हमारी आजादी को बांधने लगें, जब मांबाप, भाईबहन यह तय करने लगें कि हमें क्या पढ़ना चाहिए, किस से शादी करनी चाहिए और किस उम्र में क्या काम करना चाहिए, तो सैल्फ इंडिपेंडैंट बनने का सपना दम तोड़ने लगता है. तब सवाल उठता है, क्या विद्रोह करना गलत है?
परिवार का प्यार या कंट्रोलिंग रवैया?
भारत में अकसर पेरैंट्स बच्चों की भलाई के नाम पर उन के जीवन के हर फैसले में दखल देते हैं. बेटियों के मामले में यह और भी गहरा हो जाता है, ‘अब शादी कर लो’, ‘घर के काम सीखो’, ‘बहुत पढ़लिख लिया, अब बस करो’, ‘नौकरी की क्या जरूरत है, अच्छा लड़का मिल रहा है तो शादी कर लो.’
ये बातें सिर्फ सलाह नहीं बल्कि जड़ें जमा चुकी एक सोच होती है जो मानती है कि एक लड़की की जिंदगी का उद्देश्य सिर्फ शादी और परिवार होता है.
सुमन कहती है, ‘मेरी मां चाहती हैं कि मैं जल्दी से शादी कर लूं और घरगृहस्थी संभालूं.’ वे कहती हैं, ‘लड़कियों की पढ़ाई की क्या जरूरत है, जितना सीख लिया बहुत है.
‘लेकिन मैं चाहती हूं कि मैं पढ़ाई करूं, जौब करूं, खुद कमा सकूं, अपने सपनों को पूरा करूं. हमें हर बात पर लड़ना पड़ता है. उन की नजर में मेरी जिंदगी का रास्ता और है जबकि मेरी नजर में और. ऐसे में सवाल उठता है, क्या मैं गलत हूं?’
जवाब है- नहीं, तुम गलत नहीं.
अगर आप अपने लिए कुछ बनाना चाहते हैं, अपनी पहचान बनाना चाहते हैं, तो यह विद्रोह नहीं, हक है. लेकिन यह लड़ाई आसान नहीं होती. इस में आंसू भी आते हैं, ताने सुनने पड़ते हैं और अकेलापन भी लगता है. फिर भी, यह लड़ाई जरूरी है.
आगे की कहानी पढ़ने के लिए सब्सक्राइब करें
डिजिटल

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- गृहशोभा मैगजीन का सारा कंटेंट
- 2000+ फूड रेसिपीज
- 6000+ कहानियां
- 2000+ ब्यूटी, फैशन टिप्स
24 प्रिंट मैगजीन + डिजिटल फ्री

गृहशोभा सब्सक्रिप्शन से जुड़ेें और पाएं
- 24 प्रिंट मैगजीन के साथ मोबाइल पर फ्री
- डिजिटल के सभी फायदे