Fictional Story: शाम के 5 बज रहे थे. अगस्त का महीना था. कल से लगातार बारिश हो रही थी. बारिश के बाद सबकुछ धुलाधुला सा लग रहा था, दूरदूर तक जितने पेड़पौधे दिख रहे थे, सब चमक से गए थे. वैसे तो विकास के नाम पर जितने पेड़ काट दिए गए हैं, उन्हें याद कर के अंतरा का मन दुखी हो उठता. उसे लगता कितने साल लग गए होंगे एक नन्हे से पौधे को इतना बड़ा पेड़ बनने में.
कितनी धूपछांव, ताप, शीत देखे होंगे इन पेड़ों ने, पर मैट्रो बनने की प्रक्रिया में उस के सब पेड़ खत्म होते जा रहे हैं. इस रास्ते का हर पेड़ उसे अपना लगता. 3 साल से मैट्रो का काम शुरू हुआ है. अंतरा मुंबई के घोड़बंदर रोड पर स्थित एक सोसाइटी ‘तरंगिनी’ के अपने इस चौथी फ्लोर के फ्लैट की बालकनी में खड़ी यही सब सोच रही थी.
40 साल की खूबसूरत अंतरा इस समय ढीला सा कुरता और लेगिंग पहने थी, लंबे बालों को ऊपर लपेट कर बांधा हुआ था, हां, चेहरा उदास था. शादी के बाद इस घर में आते ही अंतरा ने इस थ्री बैडरूम फ्लैट की बालकनी को भी कई पौधों से सजाया था, गमले वह खुद अपनी पसंद से खरीद लाई थी. उस के मायके आगरा में उन के घर में एक बड़ा सा आंगन था जहां उस के पापा ने एक कोने में काफी पेड़ लगा रखे थे. बागबानी उस ने उन्हीं से सीखी थी. पर उस के पति सोमेश, सास शशि और ससुर रवि सब ने मिल कर उसे टोक दिया था, ‘‘तुम ने तो सारी बालकनी में पौधे भर दिए.
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