‘मैं ने तो तुम से हमेशा ही मुहब्बत की है, तुम्हारे मना करने से हकीकत नहीं बदलेगी…’ पतिपत्नी का रिश्ता कुछ इस तरह का हो तो ही संबंध लंबे समय तक खुशनुमा रह सकते हैं. पतिपत्नी में विवाद होने पर भी मुहब्बत और निर्भरता कम नहीं होती. ‘तुम ने मेरे लिए क्या किया?’ या ‘तुम ने मेरे साथ ऐसे क्यों किया?’ कहने से पतिपत्नी का प्यार कम नहीं होता.

अफसोस यह है कि आज पतिपत्नी के बीच तर्क व शिक्षा के सीमेंट के पुल बनने के बाद भी उन तत्त्वों की कमी नहीं है, जो पुलों में मोटे छेद बनाने में लगे हैं और जिन में फंस कर पतिपत्नी एक की मुहब्बत को नकार कर शून्य बना देते हैं. औरतों की सुरक्षा और उन के सशक्तीकरण के नाम पर बन रहे कानून और पहले के बने कानूनों का फैलता दायरा पतिपत्नी के संभावित प्रगाढ़ प्रेम की सीमेंट को रेतीला बना रहा है.

आज के युग में कोई लड़का खुद को लड़की पर नहीं थोपता और न ही लड़की लड़के के गले में बंदूक की नाल के बल पर बांधी जाती है. हर विवाह खुशियों का जखीरा होता है जिस में पूरा परिवार शामिल होता है. हैसियत से ज्यादा खर्च किया जाता है और वर वधू को यह एहसास दिलाया जाता है कि उन के बंधन को हमेशा तरोताजा देखने में कितने लोग उत्सुक हैं. फिर भी उन मामलों की कमी नहीं है जिन में लाल या कढ़े हुए जोड़ों में चमचमाती लड़कियां कुछ दिनों के बाद अदालतों में काले कोटों के बीच या पुलिस स्टेशनों में खाकी वरदियों के बीच दिखने लगती हैं.

पतिपत्नी का संबंध असल में तो कुछ ऐसा है-

‘हमारा अंदाज कुछ ऐसा है, जब हम बोलते हैं तो फुहारों की तरह बरस जाते हैं

और जब चुप रहते हैं तो सन्नाटे से वे तरस जाते हैं…’

पर कानून उस बरसने को तूफान बना रहा है और चुप्पी को जीवनपर्यंत की सजा दे रहा है. यह अफसोस है कि जिस कानून को संबंधों को मजबूत करना था, विवादों को हल करना था, समस्याओं को दूर करने की कोशिश करना था, हदों की लाइनें खींचना था वह अब सिर्फ और सिर्फ अलग रहना सिखा रहा है.

‘किसी के साथ हमेशा रहना चाहते हो, तो उस से थोड़ा दूरदूर रहो’ को बदल कर औरतों की सुरक्षा के कानूनों ने ‘किसी के साथ हमेशा रहना आखिर क्यों जरूरी है, उस से सदा के लिए दूर रहो’ बना डाला है.

कठिनाई यह है कि देश के विकास के नारों और गौरक्षा, सीमा रक्षा, नौकरी रक्षा में उलझे नेताओं को परिवार रक्षा का खयाल तक नहीं है और उन्हें नहीं मालूम कि किस तरह पतिपत्नी अलगाव के बाद एक दुखी व तनाव की जिंदगी जीते हैं. जिस कठिनाई को वे पहले असहनीय मानते थे उस से वे उस आग में कूद जाते हैं, जो पूरे जीवन को राख बना देती है. अफसोस यह आग कानून हमेशा जलाए ही नहीं रखता, हर गली के कोने पर इस का अलाव रख दिया गया है.

‘जो ले जाओ (ए कानून) मेरी नींद सुखचैन उफ भी कैसे करेंगे हम,

अब तो ख्वाब भी गए, चैन भी गया

जीने को जिंदा लाश बची है और बस तनहाई साथ में है…’

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