33 सालों से हिंदी सिनेमा जगत पर राज कर रहे अभिनेता परेश रावल ने हर तरह के किरदार निभाएं, फिर चाहे वह खलनायक हो या कामेडी. हर तरह की भूमिका में वे फिट बैठे और आज भी अभिनय की इस कला को अपना सबसे मजबूत प्वाइंट मानते हैं. उन्होंने अपने अभिनय के बल पर ही दर्शकों का दिल जीता है. कभी ऐसा भी समय था जब उन्हें फिल्मों में काम मिलना मुश्किल था, लेकिन वे मायूस नहीं हुए और थिएटर की तरफ रुख किया. इसी थिएटर ने उन्हें अभिनय की मजबूती दी और एक समय ऐसा आया कि उनके पास फिल्मों की झड़ी लग गयी. वे किसी भी फिल्म को चुनते समय अपनी भूमिका और उसकी अहमियत पर अधिक ध्यान देते हैं, इसलिए उन्हें जो भी किरदार अलग दिखा वे करते गए. चरित्र अभिनेता होने के साथ-साथ ही उन्होंने कई लीड अभिनय भी किया है.

उन्हें साल 2014 में पद्मश्री से भी नवाजा गया है. अभिनय के अलावा वे कुछ नहीं जानते और यही उनका प्रोफेशन और पैशन दोनों है. उनके इस लम्बे सफर में साथ दिया उनकी पत्नी और अभिनेत्री स्वरुप संपत ने. जिससे उनके दो बेटे आदित्य और अनिरुद्ध हैं. उनके बच्चे भी फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े हैं. अभी परेश रावल फिल्म ‘संजू’ के प्रमोशन पर ध्यान दे रहे हैं, जिसमें वे संजय दत्त के पिता सुनील दत्त की भूमिका निभा रहे है, उनसे मिलकर बात करना रोचक था पेश है कुछ अंश.

फिल्म में सुनील दत्त की भूमिका निभाना कितना मुश्किल था? कितनी सावधानियां रखनी पड़ी?

ये आसान नहीं था, लेकिन अगर आपने उनके जैसा थोड़ा भी कर लिया तो बड़ी बात है. यह एक पिता और बेटे की कहानी है, जिसमें दिखाया गया है कि कैसे एक पिता अपने बेटे को इस कठिन परिस्थिति से बचाने की कोशिश करता है. इसी के साथ ही फिल्म में नर्गिस की बीमारी, राजनीतिक कैरियर आदि को भी दिखाया गया है.

ऐसी भूमिका करते समय ये ध्यान रखना पड़ता है कि कुछ भी गलत तरीके से पेश न हो जाय, जो बाद में समस्या बनें. आज कोई भी कुछ भी कर सकता है, जो खतरनाक हो सकता है.

कुछ लोग तो कहते हैं कि संजय दत्त पर फिल्म नहीं बननी चाहिए थी, आपकी क्या राय है?

मेरे हिसाब से ऐसी फिल्म बननी चाहिए, क्योंकि निर्देशक ने इस फिल्म के जरिये ये बताने की कोशिश की है कि ड्रग में आज के यूथ कभी न फसें. एक छोटी सी भूल आपको कहां ले जा सकती है, इसका अंदाजा लगाना मुश्किल होता है.

सुनील दत्त से आप कितने परिचित थे?

मैं सालों से उनको जानता था और वे मेरे अच्छे दोस्त थे. उनके अंदर प्यार, दया, करुणा सब कुछ था.

अभिनेता से राजनेता बनना किसी के लिए कितना मुश्किल होता है?

लोगों की उम्मीदें बढ़ जाती है और ये जायज भी है कि उन्होंने आपको नेता बनाया है और आप उनकी दुःख दर्द दूर करें. ऐसे में अगर आप काम न कर सके, तो काफी दर्दनाक होता है. काम अगर कर दिया तो उससे अधिक खुशी कुछ नहीं होती. मैंने भी बहुत कुछ नहीं किया, लेकिन आगे कभी फिर मौका मिला तो अवश्य करूंगा.

आप कभी इंडस्ट्री में टाइपकास्ट के शिकार हुए?

मैं हुआ था, पर धीरे-धीरे सबको समझ में आया कि मैं अलग भूमिका भी निभा सकता हूं. अभी तो इंडस्ट्री में बहुत बदलाव आया है, पहले तो जो विलेन की भूमिका निभाता था, उसे मरते दम तक वही भूमिका मिलती थी. इस बदलाव का श्रेय महेश भट्ट, केतन मेहता, राजकुमार संतोषी आदि सभी निर्देशकों को जाता है. जिन्होंने सभी कलाकारों को अलग-अलग भूमिकाएं दी.

अबतक की सबसे कठिन फिल्म आपकी कौन सी थी?

फिल्म ‘सरदार’ मेरी सबसे कठिन फिल्म थी, लेकिन स्टारडम फिल्म ‘हेराफेरी’ से मिला.

आजतक के किन-किन कलाकारों से आप प्रभावित हैं?

दोनों जेनरेशन को अगर मिला दिया जाय, तो मेरे समय में नसीरुद्दीन शाह, ओम पुरी थे. इस जेनरेशन में नवाजुद्दीन सिद्दीकी, राजकुमार राव, राजीव खंडेलवाल, सुशांत सिंह राजपूत, रणवीर कपूर, वरुण धवन आदि सभी हैं. आज के कलाकार अपने काम पर बहुत फोकस्ड रहते हैं. फिल्में ही नहीं, बल्कि वे फिल्म के व्यापार पर भी ध्यान देते हैं.

33 साल की इस जर्नी से आप कितने संतुष्ट हैं?

मैं बहुत संतुष्ट हूं. अभी भी काम कर रहा हूं. लोग मुझे कहते हैं कि मैंने कुछ खराब फिल्मों में भी काम किया है, पर वही फिल्में मेरा घर चलाते थे और उसके बाद मैंने सरदार पटेल जैसी फिल्में भी तो की हैं.

पहले और आज के फिल्मों के दौर को आप कैसे देखते हैं?

अभी लेखक, निर्देशक सब समय से काम करते हैं. पहले एक फिल्म को बनाने में सालों लग जाते थे. आज फिल्म की एनर्जी पर्दे पर दिखती है और ऐसे लोगों के साथ काम करने में मजा आता है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...