मां आखिर मां ही होती है, उसकी जगह शायद कोई नहीं ले सकता. और अगर उसे अपनी बेटी को एक हादसे की वजह से खोना पड़े, तो शायद वह किसी भी हद तक जा सकती है. ऐसी ही संवेदनशील विषय पर आधारित फिल्म मातृ-द मदर एक ‘रेप रिवेंज थ्रिलर’ फिल्म है. जिसे रेप की राजधानी दिल्ली से प्रेरित होकर बनाया गया है. इसके निर्देशक अश्तर सईद है.
फिल्म में मुख्य भूमिका अभिनेत्री रवीना टंडन ने निभाया है. पूरी फिल्म में रवीना शुरू से लेकर अंत तक छाई रहीं. उनके साथ एक हादसा हो जाने के बाद किस तरह वह अपने आप को सम्हालती है और कैसे पति का सहयोग न होने के बावजूद बदला लेती है, उसे बहुत ही बारीकी से दर्शाया है. यह फिल्म पुरुष मानसिकता की ओर भी इशारा करती है, जो हर समस्या का जिम्मेदार महिला को ही मानता है. पूरी फिल्म में रवीना के इस मानसिक आघात को जिसमें गुस्सा, दुःख, दर्द, आंसू आदि सभी भाव को बहुत ही सरीके से दिखया गया है.
रवीना की अब तक की सभी फिल्मों में शायद ये एक अलग और खास फिल्म है. जिसे सजीव करने के लिए उन्होंने खूब मेहनत की है. फिल्म के सभी पात्र किसी न किसी रूप में कहानी को सपोर्ट करते हुए दिखे. खासकर उनकी सहेली की भूमिका निभा रही दिव्या जगदाले ने खूब अभिनय किया है.
कहानी
दिल्ली में रहने वाली विद्या चौहान (रवीना टंडन) एक स्कूल टीचर है, जिसकी एक टीनएजर बेटी टिया (अलीशा खान) है. स्कूल में वार्षिक उत्सव होता है, जिसका उद्घाटन मुख्य मंत्री गोवर्धन मलिक (शैलेन्द्र गोयल) करता है और टिया को बेहतरीन प्रदर्शन के लिए अवॉर्ड देता है. जहां उसका बेटा अपनी दोस्तों के साथ दर्शकों के बीच में होता है. स्कूल के वार्षिक उत्सव खत्म होने के बाद आनंदित टिया और उसकी मां गाड़ी से घर लौट रहे होते हैं, वे सड़क जाम में फंस कर रास्ता बदल लेते हैं. ऐसे में मुख्य मंत्री का बेटा अपूर्वा मलिक (मधुर मित्तल) अपने दोस्तों के साथ उनका पीछा करता है.
गलत, अनजान रास्ता और इन लड़कों को देखकर विद्या घबरा जाती है और एक दुर्घटना की शिकार हो जाती है. ऐसे में वे लड़के उन्हें उठाकर ले जाते हैं और गैंग रेप होता है. जिसमें टिया का मर्डर भी हो जाता है. सभी लड़के उन्हें लेकर मरा हुआ समझ कर सुनसान जगह पर फेंक देते हैं, लेकिन विद्या बच जाती है. उसका पति रवि चौहान (रुशद राणा) उसे ही दोषी मान उसे छोड़ देता है.
विद्या अपनी सहेली का सहारा लेती है. उसकी सहेली और विद्या कानून का सहारा लेकर अपराधी को सजा देने की कोशिश करते है, पर मुख्या मंत्री का बेटा होने की वजह से वह भी पीछे हट जाता है. ऐसे में विद्या खुद बदला ऐसे लेती है कि पुलिस जानकर भी उसे पकड़ नहीं पाती. इस तरह कहानी काफी उतार चढ़ाव के बाद अंजाम तक पहुंचती है.
शुरुआत में फिल्म की रफ्तार कुछ धीमी थी, बाद में अच्छी लगी. विलेन के किरदार में अपूर्वा मलिक ने अच्छा अभिनय किया है. फिल्मो में गाने कुछ खास नहीं हैं, क्योंकि उसकी कोई जरुरत भी नहीं थी. निर्देशक फिल्म की स्क्रिप्ट को थोड़ी और ‘क्रिस्पी’ बनाते तो शायद ये और अच्छी फिल्म बन सकती थी. बहरहाल रवीना को इस ‘स्ट्रॉन्ग’ भूमिका में देखा जा सकता है. इसे ‘थ्री स्टार’ दिया जा सकता है.