साल 2007 में धारावाहिक ‘क्योंकि सांस भी कभी बहू थी’ में कृष्णा तुलसी की भूमिका निभाकर चर्चित हुई अभिनेत्री मौनी रौय पश्चिम बंगाल के कूचबिहार की हैं. उन्हें बचपन से ही कुछ अलग करने की इच्छा थी, जिसमें उनके माता-पिता ने भरपूर सहयोग दिया. उनके दादाजी एक थिएटर आर्टिस्ट थे, जिनसे मौनी काफी प्रभावित थीं. धारावाहिक ‘नागिन’ उसकी सबसे सफल शो रहा, जिससे वह घर-घर में पहचानी गयी. मौनी का रुझान बचपन से स्केचिंग, पेंटिंग और डांस में रहा. वह एक प्रशिक्षित कत्थक डांसर हैं. यही वजह है कि उन्होंने कई डांस रियलिटी शो में भाग लिया और पुरस्कार भी जीता.
मौनी का फिल्मी सफर फिल्म ‘गोल्ड’ से शुरू हुआ, जिसमें उन्होंने अक्षय कुमार की पत्नी की भूमिका निभाई थी. अभी उनकी दूसरी फिल्म रोमियो, अकबर, वाल्टर (रौ) रिलीज पर है, जिसे लेकर वह बहुत खुश हैं. हंसमुख और विनम्र मौनी से बात हुई, पेश है कुछ अंश.
इस फिल्म को करने की खास वजह क्या है?
इसकी कहानी ने मुझे बहुत प्रेरित किया और मैं ऐसी फिल्म का हिस्सा बनना हमेशा से चाहती थी, क्योंकि ऐसे गुमनाम वीरों की कहानी को हमेशा कहने की जरुरत होती है, जिसे लोग नहीं जानते. हमारी सुरक्षा में लगे ऐसे वीरों की कहानी में शामिल होना मेरे लिए गर्व की बात है.
क्या कोई खास तैयारी करनी पड़ी ?
मैंने इस पर रिसर्च वर्क पूरी तरह से किया है और उनके काम को समझने की कोशिश की है. वे उस समय कैसे बात करते थे और उनकी चल चलन क्या थी आदि पर काम किया, बाकी निर्देशक रोब्बी ग्रेवाल ने काफी सहयोग दिया है.
टीवी से फिल्मों में आईं, दोनों में क्या फर्क महसूस करती हैं?
माध्यम अभिनय में कोई मायने नहीं रखता. फिल्म हो या टीवी दोनों में ही चरित्र के अनुसार अभिनय करना पड़ता है. टीवी से फिल्मों में आना मेरे लिए कोई बड़ी बात नहीं थी, क्योंकि मैं टीवी पर अच्छा काम कर रही थी, ऐसे में मुझे फिल्म ‘गोल्ड’ मिली और मैंने तब उसे करना ही बेहतर समझा और मैंने किया. मैंने कई बार सोचा कि मैं इस फिल्म के बाद दोबारा टीवी पर चली आउंगी, लेकिन फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’, रोमियो, अकबर, वाल्टर (रौ), ‘मेड इन चाइना’ आदि कई फिल्में मिली, तब मैंने इसमें ही रहना उचित समझा. पहले भी फिल्मों के औफर आते थे, पर उतनी अच्छी फिल्में नहीं मिल रही थी, जिससे मैं टीवी को छोड़ सकूं, क्योंकि टीवी मेरा घर है, जहां से मैंने अभिनय को सीखा है.
क्या आप फिल्मों का चयन करते समय अपने किरदार की अहमियत को भी देखती हैं?
हां अवश्य देखती हूं, क्योंकि कई बार एक छोटी सी भूमिका भी फिल्म के लिए काफी प्रभावशाली होती है और मैं ऐसी भूमिका में काम करना पसंद करती हूं.
फिल्म ‘ब्रह्मास्त्र’ में आप नकारात्मक भूमिका निभा रही हैं, क्या आपको नहीं लगता कि आप टाइपकास्ट की शिकार हो सकती हैं?
नकारात्मक चरित्र अगर आपको अच्छा और चुनौतीपूर्ण लगे, उसकी अहमियत फिल्म में है तो उसे करने में मुझे कोई समस्या नहीं, क्योंकि मुझे हर तरह की भूमिका निभाना पसंद है.
जौन अब्राहम के साथ काम करने के अनुभव क्या थे?
जौन एक अनुभवी कलाकार हैं. उनसे उनकी सादगी और काम करने के तरीके मुझे बहुत अच्छे लगे. जब आप एक बड़े कलाकार के साथ काम करते हैं, तो उनसे बहुत कुछ सीखने को मिलता है.
टीवी पर फिर से काम करना पसंद करेंगी?
समय मिले और अच्छी स्क्रिप्ट मिलने पर अवश्य काम करूंगी. अभी मेरी कई फिल्में आगे आने वाली है, जिसकी शूटिंग कर रही हूं.
कूचबिहार से मुंबई तक आप पहुंच चुकी हैं, इसे आप कैसे देखती हैं?
मैं अपनी जर्नी से बहुत खुश हूं. कूचविहार से दिल्ली और फिर मुंबई, ये सब बहुत मुश्किल था, क्योंकि एक दौर ऐसा था, जब मैं कुछ भी नहीं थी और एकता कपूर ने मुझे काम दिया, मुझपर विश्वास रखा. धारावाहिक ‘नागिन’ मेरी सबसे चर्चित और बड़ा शो रहा, जिसने मुझे पहचान दी और आज मैं यहां तक पहुंची हूं. इसके अलावा मेरा परिवार और मेरे दोस्त, जिन्होंने कभी मुझे नकारात्मक सोचने पर मजबूर नहीं किया और मुझे अच्छा काम मिलता गया. मैं आज भी हर दिन सुबह उठकर काम करना पसंद करती हूं.
क्या आपका कोई ड्रीम प्रोजेक्ट है?
मैं अपने दिल से चाहती हूं कि कोई हिस्टोरिकल, म्यूजिकल डांस वाली फिल्म बने, जिसमें मैं अभिनय के साथ-साथ कत्थक करूं.
क्या कोई सोशल वर्क आप करती हैं?
मैं सोशल वर्क करती हूं, लेकिन इतना जरुर कहना चाहती हूं कि हमारे देश में खासकर छोटे शहरों और गांव के लड़कों को एजुकेट करना बहुत जरुरी है, जहां वे महिलाओं का सम्मान करना सीखें. मैं एक छोटे शहर से हूं, जहां मैंने पुरुष प्रधान समाज को देखा है. लोग ‘बेटी बचाओं बेटी पढाओं’ का नारा लगाते रहते हैं, जबकि ये नारा ‘बेटों को पढाओं और ना समझे तो थप्पड़ लगाओं’ होना चाहिए.