सिनेमा में आ रहे बदलाव के साथ ही सलमान खान की फिल्मों में भी एक नया बदलाव नजर आता है. फिल्म ‘जय हो’ के बाद वह अपनी हर फिल्म में मनोरंजन के साथ कोई न कोई सामाजिक संदेश देते आ रहे हैं. इससे उनकी नई फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ भी अछूती नहीं है. ‘ट्यूबलाइट’ में इंसान के अपने यकीन की बात की गयी है. तो वहीं वह निजी जिंदगी में अपने एनजीओ ‘‘बीइंग ह्यूमन’ के तहत भी कई सामाजिक कार्य करते हुए गरीबों की मदद कर रहे हैं, मगर वह इन कामों को प्रचारित नहीं करते.
हाल ही में मुंबई के ‘‘ताज लैंड्स’’ होटल में हमने सलमान खान से एक्सक्लूसिव बातचीत की, जो कि इस प्रकार रही.
क्या आप स्टार कलाकार को फिल्म की सफलता की गारंटी मानते हैं?
जी नहीं. एक फिल्म की सफलता के लिए अच्छी कहानी और कहानी में इमोशन होना चाहिए. आप दर्शकों को ग्लैमर, एक्शन और मंहगी उड़ती हुई कारें दिखाकर मूर्ख नहीं बना सकते. इसलिए निर्माता के तौर पर जब मैं किसी फिल्म को बनाने का निर्णय लेता हूं तो मेरा सारा ध्यान उसकी कहानी पर होता है. मैं भी एक लेखक का बेटा हूं. फिल्म की कहानी अच्छी हो और फिल्म बकवास बनी हो तो भी चल जाती है, मगर फिल्म की कहानी बकवास हो और वह बहुत बेहतर ढंग से बनी हो, तो दो दिन में ही सिनेमा घर से बाहर हो जाती है. हमारी फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ में जबरदस्त इमोशन है.
‘ट्यूबलाइट’ आपके लिए दो भाईयों की कहानी है या युद्धबंदी को छुड़ाने की कहानी?
यह फिल्म दो भाईयों की प्रेम कहानी है. जिनको पता ही नहीं होता कि युद्ध में क्या होगा. यह दोनों भाई जगदलपुर नामक अपने छोटे से गांव में रहते हैं. जहां सब कुछ ठीक चल रहा है. पर इन्हें इस बात का एहसास ही नहीं है कि कभी यह दोनों अलग हो जाएंगे. यह पूरा गांव नष्ट हो जाएगा. और बड़े भाई लक्ष्मण ट्यूबलाइट है, उससे अपने भाई से अलग होना झेला नहीं जाएगा. खबरे आएंगी कि जंग शुरू हो गयी है. कुछ वहां के मरे हैं, कुछ यहां के मरे हैं. इसके अलावा कोई खबर नहीं आती. तो फिल्म में ट्यूबलाइट की कहानी है कि वह अपने भाई के बिना जिंदगी जी पाएगा या नहीं. उसका अपना एक संघर्ष है.
अपने भाई को दिमाग का उपयोग कर किस तरह से वापस लाए, इसकी कहानी है. क्योंकि वह शारीरिक रूप से कुछ नहीं कर सकता. बंदूक उठा नहीं सकता. तो लक्ष्मण उर्फ ट्यूबलाइट कैसे अपने दिमाग व सच्चे दिल के बल पर अपने भाई को वापस लेकर आता है. चीन युद्ध के समय कोई युद्धबंदी नहीं हुआ था, बल्कि सीज फायर हुआ था और सभी को उनके अपने देश वापस भेज दिया गया था.
फिल्म में इस बात पर रोशनी डाली गयी होगी कि युद्ध शुरू होने पर उस गांव व वहां रहने वालों पर क्या बीतती है?
जी हां. ऐसा भी है. जो सैनिक युद्ध के मैदान पर गया हुआ है, उसके भाईयों, उसकी मां पर क्या बीतती है. जंग में गोली किसी को पड़ती है, तो उसे कुछ पता ही नहीं चलता. पर हकीकत में गोली तो पूरे खानदान और मां की छाती पर पड़ती है. गोली पड़ने के बाद उसके परिवार को पूरी जिंदगी झेलना पड़ता है. ऐसा महज हमारी तरफ ही नहीं बल्कि दूसरी तरफ भी होता है.
‘जय हो’ से लेकर अब तक आपकी हर फिल्म में कोई संदेश होता है. उस पर लोगों से किस तरह की प्रतिकियाएं मिलती हैं?
मेरी हर फिल्म में अंडर करंट संदेश होता है. जैसे कि एक संवाद है, ‘‘स्वागत नहीं करोगे हमारा..’’ स्वागत करना हमारा कल्चर यानी कि हमारी संस्कृति का हिस्सा है. तो हमने इसी तरह से हर फिल्म में छोटी छोटी बातें की हैं. हमने बड़े बड़े संदेश देने के बारे में कभी नहीं सोचा. हमने ‘दबंग 2’ में एलआईसी पॉलिसी की बात की थी. हमने एलआईसी का विज्ञापन नही लिया था, पर यह हर इंसान के लिए जरुरी है, तो वह संदेश दिया. हम तो हमारी तरफ से लोगों को कुछ देने का प्रयास कर रहे हैं.
फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ में किस बात को मुखरता के साथ पेश किया गया है?
यह फिल्म एक यकीन की बात करती है. हम लोग बहुत जल्दी छोटी छोटी बातों पर यकीन खो देते हैं. जब हम कहते हैं कि मैंने अपना सर्वश्रेष्ठ दिया, पर काम नही हुआ. मैं कहता हूं कि यदि काम नहीं हुआ, तो इसके मायने हैं कि आपने अपना सर्वश्रेष्ठ नहीं दिया.
आपने बच्चों के लिए एक फिल्म ‘‘चिल्लर पार्टी’’ बनायी थी, जिसे पुरस्कार भी मिला था. पर उसके बाद बच्चों के लिए कोई फिल्म नहीं बनायी?
मेरी कौन सी फिल्म ऐसी है, जिसमें हीरो भले ही बड़े हों, पर वह फिल्म बच्चों की नही है. ‘पार्टनर’ में बच्चा था. फिर‘बजरंगी भाईजान’ में बच्ची ही हीरो थी. ‘ट्यूबलाइट’ में बच्चा है, इसके बाद आने वाली फिल्म में बच्ची है. यह जरुरी नहीं है कि जब फिल्म में बच्चें हों तभी वह बच्चों की फिल्म होगी. बच्चे भी फिल्म में बच्चों की बजाय अपने हीरो को देखना चाहते हैं. मेरी राय में फिल्म ऐसी होनी चाहिए, जिसे बच्चे भी अपने माता पिता के साथ जाकर देख सकें और इंज्वॉय कर सकें.
आप एक्शन और कॉमेडी दोनों करते हैं. पर खुद किसमें ज्यादा इंज्वॉय करते हैं?
सच कहूं तो दोनो ही बहुत भारी पड़ जाते हैं. एक्शन में बहुत मेहनत लगती है और कॉमेडी में मैं इतना माहिर हूं नहीं, इसलिए मुझे बहुत मेहनत करनी पड़ती है. यदि अच्छी कॉमिक टाइमिंग हमारी फिल्म इंडस्ट्री में किसी के पास है, तो वह गोविंदा के पास है. वह आउट स्टैंडिंग टैलेंटेड कलाकार हैं. बाकी तो अक्की यानी कि अक्षय कुमार भी अच्छी कॉमेडी कर लेता है.
मुझे टाइमिंग वगैरह पर थोड़ा ज्यादा मेहनत करनी पड़ती है. कभी कभी मेरी कॉमेडी पर लोगों को हंसी आ जाती है, कभी कभी गंभीर काम करता हूं, तो उस पर लोगों को हंसी आ जाती है. मेरे साथ तो ऐसा है कि हमने कॉमेडी कर ली, पर पता नहीं किस संवाद पर हंसेंगे या नहीं. सच में हमारे प्रशंसक व दर्शक ही तय करते हैं कि उन्हें क्या अच्छा लगता है, क्या नहीं. हम जैसे कलाकार समझ ही नहीं पाते.
कई बार हम कोई संवाद साधारण तौर पर बोल देते हैं, पर उस पर इतनी तालियां बजती है कि सोचना पड़ता है कि यह क्या हुआ? सच कह रहा हूं हमें पता ही नहीं चलता कि किस संवाद पर दर्शक किस तरह से प्रतिक्रिया देगा.
लंबे समय से आपने रोमांटिक फिल्में नहीं की?
चिंता न करें. दो रोमांटिक फिल्में कर रहा हूं पर अभी उनके नाम उजागर नहीं करना चाहता. वैसे हर फिल्म में रोमांस होता है. जब तक फिल्म में रोमांस न हो, वह फिल्म चलती नहीं है. ‘जय हो’ या ‘किक’ हो रोमांस था. ‘एक था टाइगर’ एक्शन फिल्म थी, पर उसमें भी रोमांस का तड़का था. ‘‘बजरंगी भाईजान’’ में भी रोमांस था. तो फिल्म में रोमांस होना बहुत जरुरी है.
लेकिन इन फिल्मों में रोमांस तो दोयम दर्जे पर रहा?
आपको ऐसा लगता है, मगर प्लॉट बहुत बड़ा है. बिना प्लॉट, कहानी व रोमांस के फिल्म नहीं चलती. आप शुद्ध रोमांस दिखा दो, कहानी न हो, तो वह फिल्म नहीं चलेगी.
पर क्या आज की तारीख में ‘मैने प्यार किया’ जैसी फिल्में…?
वह एक सफल फिल्म थी. उसको तीस वर्ष हो गए. आज की तारीख में वैसा रोमांस करुंगा, तो लोग मजाक उड़ाएंगे.
तीस वर्ष में रोमांस में क्या बदलाव आया?
धीरे धीरे समाज में बदलाव आया और उसी के साथ रोमांस बदलता गया. अब फास्ट फूड का जमाना है.
आपने 2014 में कनाडा में ‘डॉ कैबी’ फिल्म बनायी थी. अब कोई योजना है?
इस वक्त एक फिल्म कर रहा हूं.
कहीं पढ़ा कि आप ‘पापा द ग्रेट’ का रीमेक करना चाहते हैं?
अरे नहीं. मजाक कर रहा था.
आपके नृत्य की भी लोग काफी तारीफ करते हैं?
मेरे नृत्य की तारीफ इसलिए होती है, क्योंकि मैं अलग तरह का नृत्य करता हूं. मेरे नृत्य की तारीफ वह लोग करते हैं, जो नृत्य नहीं कर पाते हैं. जब मैं करता हूं, तो वह लोग उठकर उतना तो कर ही लेते हैं, जितना मैं करता हूं. मेरे गाने पर बेताला से बेताला, बुजुर्ग से बुजुर्ग और बच्चे भी उतना नाच लेता है, जितना मैं नाचता हूं.
फिल्म ‘‘ट्यूबलाइट’’ का ‘रेडियो…’ गाना बहुत लोकप्रिय हो रहा है?
इस गाने पर नृत्य की कदम ताल यानी कि स्टेप्स बहुत साधारण हैं, इसलिए लोग उसकी तारीफ कर रहे हैं. लेकिन मुश्किल वाला नृत्य अब रेमो डिसूजा की फिल्म में आएगा, लेकिन उसमें भी ऐसा करेंगे कि मैं डांसर लगूंगा, लेकिन उसमें भी डांस वैसा ही होगा, जिसे लोग कर पाएं.
कुछ कलाकार आपको अपना मेंटर मानते हैं?
देखिए, जब तक उस लड़के व लड़की में प्रतिभा न हो, तब तक कोई उन्हें फिल्म नहीं देता. दूसरी बात हमें भी प्रतिभाओं की जरुरत है. यह उनका बड़प्पन है कि वह मुझे अपना मेंटर मानते हैं. मैंने यह बात सूरज से सीखा कि जरुरत दोनों तरफ से होती है.
आप बीइंग ह्यूमन के तहत कुछ सिनेमाघर खोलने वाले थें?
नहीं! मैं सिनेमाघर नहीं खोलने वाला था. हमारे देश में कम सिनेमाघर हैं, तो मैंने कहा था कि ज्यादा सिनेमा घर खुलने चाहिए. जहां गांवों में आबादी ज्यादा है, वहां अंतिम घर से पांच मिनट की दूरी पर एक सिनेमा घर होना चाहिए. जहां टिकट दर कम हो. जिससे लोग पायरेसी की तरफ न झुकें और परिवार के साथ फिल्म देख सकें. मेरे दिमाग में यह ख्याल उस वक्त आया था, जब हम लोग ‘बजरंगी भाईजान’ की शूटिंग मंडवा कर रहे थें. तब हमें ‘डॉली की डोली’ देखने के लिए ढाई घंटे दूर जाना पड़ा था.