सुशांत रोजाना की तरह कोरियर की डिलीवरी देने जा रहा था कि तभी उस का मोबाइल फोन बज उठा. उस ने झल्ला कर मोटरसाइकिल रोकी, लेकिन नंबर देखते ही उस की आंखों में चमक आ गई. उस की मंगेतर सोनी का फोन था. उस ने जल्दी से रिसीव किया, ‘‘कैसी हो मेरी जान?’’

‘तुम्हारे इंतजार में पागल हूं…’ दूसरी ओर से आवाज आई.

उन दोनों के बीच प्यारभरी बातें होने लगीं, पर सुशांत को जल्दी से जल्दी अगले कस्टमर के यहां पहुंचना था, इसलिए उस ने यह बात सोनी को बता कर फोन काट दिया.

दिए गए पते पर जा कर सुशांत ने डोरबैल बजाई. थोड़ी देर में एक औरत ने दरवाजा खोला.

‘‘मानसीजी का घर यही है मैडम?’’ सुशांत ने पूछा.

‘‘हां, मैं ही हूं. अंदर आ जाओ,’’ उस औरत ने कहा.

सुशांत ड्राइंगरूम में बैठ कर अपने कागजात तैयार करने लगा. मानसी भीतर चली गई.

अपने दोस्तों के बीच माइक्रोस्कोप नाम से मशहूर सुशांत ने इतनी ही देर में अंदाजा लगा लिया कि वह औरत उम्र में तकरीबन 40-41 साल की होगी. उस के बदन की बनावट तो खैर मस्त थी ही.

सुशांत ने कागजात तैयार कर लिए. तब तक मानसी भी आ गई. उस के हाथ में कोई डब्बा था.

सुशांत ने कागजपैन उस की ओर बढ़ाया और बोला, ‘‘मैडम, यहां दस्तखत कर दीजिए.’’

‘‘हां कर दूंगी, मगर पहले यह देखो…’’ मानसी ने वह डब्बा सुशांत को दे कर कहा, ‘‘यह मोबाइल फोन मैं ने इसी कंपनी से मंगाया था. अब इस

में बारबार हैंग होने की समस्या आ

रही है.’’

सुशांत चाहता तो मानसी को वह मोबाइल फोन रिटर्न करने की सलाह दे सकता था, उस की नौकरी के लिहाज से उसे करना भी यही चाहिए था, लेकिन अपना असर जमाने के मकसद से उस ने मोबाइल फोन ले कर छानबीन सी शुरू कर दी, ‘‘यह आप ने कब मंगाया था मैडम?’’

‘‘15 दिन हुए होंगे.’’

उन दोनों के बीच इसी तरह की बातें होने लगीं. सुशांत कनखियों से मानसी के बड़े गले के ब्लाउज के खुले हिस्सों को देख रहा था. उसे देर लगती देख कर मानसी चाय बनाने अंदर रसोईघर में चली गई.

सुशांत को यकीन हो गया था कि घर में मानसी के अलावा कोई और नहीं है. लड़कियों से छेड़छाड़ के कई मामलों में थाने में बैठ चुके 25 साला सुशांत की आदत अपना रिश्ता तय होने के बाद भी नहीं बदल सकी थी. उसे एक तरह से लत थी. ऐसी कोई हरकत करना, फिर उस पर बवाल होना, पुलिस थानों के चक्कर लगाना…

सुशांत ने बाहर आसपास देखा और मोबाइल फोन टेबल पर रख कर अंदर की ओर बढ़ गया. खुले नल और बरतनों की आवाज को पकड़ते हुए वह रसोईघर तक आसानी से चला गया.

मानसी उसे देख कर चौंक उठी, ‘‘तुम यहां क्या कर रहे हो?’’

कोई जवाब देने के बजाय सुशांत ने मानसी का हाथ पकड़ कर उसे खींचा और गले से लगा लिया.

मानसी ने उस की आंखों में देखा और धीरे से बोली, ‘‘देखो, मेरी तबीयत ठीक नहीं है.’’

मानसी की इस बात ने तो जैसे सुशांत को उस की मनमानी का टिकट दिला दिया. उस के होंठ मानसी की गरदन पर चिपक गए. नाम के लिए मानसी का नानुकर करना किसी रजामंदी से कम नहीं था.

कुछ पल वहां बिताने के बाद सुशांत मानसी को गोद में उठा कर पास के कमरे में ले आया और बिस्तर पर धकेल दिया.

मानसी अपने हटते परदों से बेपरवाह सी बस सुशांत को घूरघूर कर देखे जा रही थी. सुशांत को महसूस हो गया था कि शायद मानसी का कहना सही है कि उस की तबीयत ठीक नहीं है, क्योंकि उस का शरीर थोड़ा गरम था. लेकिन उस ने इस की फिक्र नहीं की.

थोड़ी देर में चादर के बननेबिगड़ने का दौर शुरू हो गया. रसोईघर में चढ़ी चाय उफनतेउफनते सूख गई. खुले नल ने टंकी का सारा पानी बहा दिया. घंटाभर कैसे गुजर गया, शायद दीवार पर लगी घड़ी भी नहीं जान सकी.

कमरे में उठा तूफान जब थमा तो पसीने से लथपथ 2 जिस्म एकदूसरे के बगल में निढाल पड़े हांफ रहे थे. तभी कमरे में रखा वायरलैस फोन बज उठा.

मानसी ने काल रिसीव की, ‘‘हां बेटा, आज भी बुखार हो गया है… डाक्टर शाम को आएंगे… जरा अपनी नानी को फोन देना…’’

मानसी ने कुछ देर तक बातें करने के बाद फोन काट दिया. सुशांत आराम से लेटा सीलिंग फैन को ताक रहा था.

‘‘कपड़े पहनो और निकलो यहां से अब… धंधे वाली का कोठा नहीं है जो काम खत्म कर के आराम से पसर गए,’’ मानसी ने अपनी पैंटी पहनते हुए थोड़ा गुस्से में कहा और पलंग से उतर कर अपने बाकी कपड़े उठाने लगी.

सुशांत ने उसे आंख मारी और बोला, ‘‘एक बार और पास आ जाता तो अच्छा होता.’’

‘‘कोई जरूरत नहीं. तुम्हारे लिए एक बार ही बहुत है,’’ मानसी ने अजीब से लहजे में कहा.

यह सुन कर सुशांत मुसकरा कर उठा और अपने कपड़े पहनने लगा.

‘‘अगले महीने मेरी भी शादी होने वाली है, लेकिन जिंदगी बस एक के ही साथ रोज जिस्म घिसने में बरबाद हो जाती है, इसलिए बस यह सब कभीकभार…’’ सुशांत ने कहा.

सुशांत की बात सुन कर मानसी का चेहरा नफरत से भर उठा. वह अपने पूरे कपड़े पहन चुकी थी. उस ने आंचल सीने पर डाला और बैठक में से कोरियर के कागजात दस्तखत कर के ले आई.

‘‘ये रहे तुम्हारे कागजात…’’ मानसी सुशांत से बोली, ‘‘जानते हो, कुछ मर्द तुम्हारी ही तरह घटिया होते हैं. मेरे पति भी बिलकुल ऐसे ही थे.’’

अब तक सबकुछ ठीकठाक देख रहे सुशांत का चेहरा अपने लिए घटिया शब्द सुन कर असहज हो गया.

मानसी ताना मारते हुए कह पड़ी, ‘‘क्या हुआ? बुरा लगा तुम्हें? जिस लड़की से शादी रचाने जा रहा है, उस की वफा को ऐसे बेशर्म बन कर मेरे साथ अपने नीचे से बहाने में बुरा नहीं लगा क्या? पर मुझ से घटिया शब्द सुन कर बुरा लग रहा है?’’

‘‘देखिए मैडम, आप ने भी तो…’’ सुशांत ने अपनी बात रखनी चाही.

इस पर मानसी गुर्रा उठी, ‘‘हांहां, मैं सो गई तेरे नीचे. तुझे अपने नीचे भी दबा लिया, लेकिन बस इसलिए क्योंकि मुझ को तुझे भी वही देना था जो मेरा पति मुझे दे गया था… मरने से पहले…’’

सुशांत अब हैरान सा उसे देखे जा रहा था.

मानसी जैसे किसी अजीब से जोश में कहती रही, ‘‘मेरा पति अपने औफिस की औरतों के साथ सोता था. वह मुझे धोखा देता था. उस ने मुझे एड्स दे दिया और आज वही मैं ने तुझे भी… जा, खूब सो नईनई औरतों के साथ… तू भी मरना सड़सड़ कर, जैसे मैं मरूंगी…

‘‘मैं अब किसी भी मर्द को अपनी टांगों के बीच आने से मना नहीं करती… धोखेबाज मर्दों से यह मेरा बदला है जो हमेशा जारी रहेगा,’’ कहतेकहते मानसी फूटफूट कर रोने लगी.

सुशांत के कानों में जैसे धमाके होते चले गए. वह सन्न खड़ा रह गया, लेकिन अब क्या हो सकता था…

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