उस ने नील की मां को फोन किया और स्पीकर का बटन दबा दिया जिस से दिया भी सुन सके.
‘‘रुचिजी, पूजा हो गई है और हम वहां से निकल रहे हैं.’’
‘‘कैसी हुई पूजा, धर्मानंदजी? आप साथ ही में थे न? दिया ने कुछ गड़बड़ी तो नहीं की?’’
‘‘कैसी बात कर रही हैं आप? मेरे साथ थी वह, क्या कर सकती थी?’’
‘‘आप के पास नहीं है क्या दिया?’’
‘‘अगर होती तो आप से ऐसे खुल कर बात कैसे कर सकता था?’’
‘‘कहां गई है?’’
‘‘जरा वाशरूम तक. मैं ने ही कहा जरा हाथमुंह धो कर आएगी तो फ्रैश फील करेगी. वहां तो उस का दम घुट रहा था.’’
‘‘यही तो धर्मानंदजी, क्या करूं, मैं तो बड़ी आफत में पड़ गई हूं. उधर…आप के पास तो फोन आया होगा नील का?’’ वे कुछ घबराए स्वर में बोल रही थीं. जब नील से फोन पर बात होती थी तब भी वे इसी स्वर में बोलने लगती थीं.
‘‘नहीं, रुचिजी, क्या हुआ? नील का तो कोई फोन नहीं आया मेरे पास. सब ठीक तो है?’’ धर्म ने भी घबराने का नाटक किया.
‘‘अरे वह नैन्सी प्रैगनैंट हो गई है. बच्चे को गिराना भी नहीं चाहती.’’
‘‘तो पाल लेगी अपनेआप, सिंगल मदर तो होती ही हैं यहां.’’
‘‘नहीं, पर वह चाहती है कि मैं पालूं बच्चे को. अगर मैं बच्चा पालती हूं तो वह नील से शादी कर लेगी वरना…’’
‘‘तो इस में आप को क्या मिलेगा?’’
‘‘मिलने की बात तो छोडि़ए, धर्मजी. मुझे तो इस लड़के ने कहीं का नहीं रखा. दिया का क्या करूं मैं?’’
‘‘हां, यह तो सोचना पड़ेगा. मैं तो समझता हूं कि रुचिजी, अब बहुत हो गया, अब तो इस के घर वालों को खबर कर ही देनी चाहिए.’’
‘‘मरवाओगे क्या? वे तो वैसे ही यहां आने के लिए तैयार बैठे हैं…और आप को पता है उन की परिस्थिति क्या चल रही है? वे तो हमें फाड़ ही खाएंगे…’’
‘‘दिया आ रही है, रुचिजी. मैं बाद में आप से बात करूंगा.’’
‘‘अरे कहीं मौलवौल में घुमाओ. बियाबान में क्या करेगी? कुछ खरीदना चाहे तो दिलवा देना. आज उसे पैसे नहीं दिए. वैसे पहले के भी होंगे ही उस के पर्स में, पूछ लेना…’’ नील की मां की नाटकीय आवाज सुनाई दी.
‘‘हां जी, देर हो जाए तो चिंता मत करिएगा.’’
‘‘चिंताविंता काहे की, मेरी तो मुसीबत बन गई है. समझ में नहीं आता और क्या पूजापाठ करवाऊं? ईश्वरानंदजी से भी मशवरा कर लेना.’’
‘‘हां जी-हां जी, जरूर. अभी रखता हूं, नमस्ते.’’
मोबाइल बंद कर के दिया की आंखों में आंखें डाल कर धर्मानंद बोला, ‘‘आई बात कुछ समझ में?’’
‘‘आई भी और नहीं भी आई, धर्मजी. जीवन कैसे मेरे प्रति इतना क्रूर हो सकता है? मेरा क्या कुसूर है? मैं कांप जाती हूं यह सोच कर कि मेरे घर वालों की क्या दशा होगी लेकिन मैं उन्हें सचाई बताने से भी डरती हूं. क्या करूं?’’
‘‘दिया, दरअसल मैं खुद यहां से निकल भागना चाहता हूं. मगर मैं यहां एक जगह फंसा हुआ हूं,’’ वह चुप हो गया.
दिया का दिल फिर धकधक करने लगा. कहीं कुछ उलटासीधा तो कर के नहीं बैठे हैं ये.
‘‘नहीं, मैं ने कुछ गलत नहीं किया है. मैं दरअसल यहां एमबीए कर रहा हूं और सैटल होना चाहता हूं पर अगर ईश्वरानंद को पता चल जाएगा तो वे मेरा पत्ता साफ करवा देंगे.’’
‘‘क्यों? उन्हें क्या तकलीफ है?’’ दिया ईश्वरानंद के नाम से चिढ़ी बैठी थी.
‘‘तकलीफ यह है कि मैं उन के बहुत सारे रहस्यों से वाकिफ हूं और अगर मैं ने उन का साथ छोड़ दिया तो उन्हें डर है कि मैं कहीं उन की पोलपट्टी न खोल दूं…’’
‘‘क्या आप को यह नहीं लगता कि ये सब गलत है?’’
‘‘हां, खूब लगता है.’’
‘‘फिर भी आप इन लोगों के साथी बने हुए हैं?’’
‘‘बस, इस में से निकलने का रास्ता ढूंढ़ रहा हूं.’’
‘‘सच बताइए, धर्म, मेरा पासपोर्ट आप के पास है न?’’
दिया ने धर्म पर अचानक ही अटैक कर दिया. धर्म का चेहरा उतर गया पर फिर संभल कर बोला, ‘‘हां, मेरे पास है पर आप को कैसे पता चला?’’
‘‘मैं ने आप की और नील की मां की सारी बात सुन ली थी उस दिन मंदिर में,’’ दिया ने सब सचसच कह दिया.
‘‘और…आप उस दिन से मुझे बरदाश्त कर रही हैं?’’
‘‘मैं तो नील और उस की मां को भी बरदाश्त कर रही हूं, धर्म. मैं इन सब दांवपेचों को न तो जानती थी और न ही समझती थी परंतु मेरी परिस्थिति ने मुझे जबरदस्ती इन सब पचड़ों में डाल दिया.’’
‘‘बहुत शर्मिंदा हूं मैं, दिया. पर मैं भी आप की तरह ही हूं. मुझे भी उछाला जा रहा है. एक फुटबाल सा बन गया हूं मैं. सच में ऊब गया हूं.’’
धर्म की आंखों में आंसू भरे हुए थे. दिया को लगा वह सच कह रहा था.
‘‘मैं नील के घर से भागना चाहती हूं, धर्म,’’ दिया ने अपने मन की व्यथा धर्म के समक्ष रख दी.
‘‘कहां जाओगी भाग कर?’’
‘‘नहीं मालूम, कुछ नहीं पता मुझे. वहां मेरा दम घुटता है. मैं इंडिया वापस जाना चाहती हूं,’’ दिया बिलखबिलख कर रोने लगी, ‘‘आप नहीं जानते, धर्म, मैं किस फैमिली से बिलौंग करती हूं. और मेरी ही वजह से मेरे पापा का क्या हाल हुआ है?’’
‘‘मैं सब जानता हूं, दिया. इनफैक्ट, मुझे आप के घर में हुई एकएक दुर्घटना का पता है, यह भी कि नील व उस की मां भी ये सब जानते हैं.’’
‘‘क्या? क्या जानते हैं ये लोग? क्या इन्हें मालूम है कि मेरे पापा की…’’ दिया चकरा गई.
‘‘हां, इन्हें सब पता है और इन्हें यह सब भी पता है जो आप को नहीं मालूम,’’ धर्म ने सपाट स्वर में कहा.
‘‘क्या, क्या नहीं पता है मुझे?’’ दिया अधीर हो उठी थी.
‘‘अब मैं आप से कुछ नहीं छिपा पाऊंगा, दिया. मेरा मन वैसे ही मुझे कचोट रहा है. मैं भी तो इस पाप में भागीदार हूं.’’
‘‘पर आप तो उस दिन नील की मां से कह रहे थे कि आप यहां थे नहीं, तब किसी रवि ने मेरी जन्मपत्री मिलाई थी.’’
‘‘ठीक कह रहा था, दिया. पर सब से ऊपर तो ईश्वरानंद बौस हैं न?’’
‘‘मतलब?’’
‘‘मतलब यह कि जब तक उस की मुहर नहीं लग जाती तब तक बात आगे कहां बढ़ती है. रवि भी तो इन का ही मोहरा है. उस ने भी जो किया या बताया होगा, ईश्वरानंदजी के आदेश पर ही न.’’
‘‘पर आप तो उस दिन नील की मां से कह रहे थे कि रवि आप का चेला है. आप उसे यह विद्या सिखा रहे हैं?’’
दिया चाहती थी कि जितनी जल्दी हो सके उसे ऐसा रास्ता दिखाई दे जाए जिस से वह इस अंधेरी खाई से निकल सके.
‘‘अच्छा, एक बात बताइए, धर्म. कहते हैं कि मेरे ग्रह नील पर बहुत भारी हैं और यदि वह मुझ से संबंध बनाता है तो बरबाद हो जाएगा. पर नैन्सी से उस के शारीरिक संबंध ग्रह देखने के बाद बने हैं क्या?’’
‘‘क्या बच्चों जैसी बात करती हैं? उस जरमन लड़की से वह ग्रह देखने के बाद संबंध स्थापित करता क्या?’’
‘‘तो उसे कैसे परमिशन दे दी उस की मां ने? बच्चों जैसी बात नहीं, धर्म, मूर्खों जैसी बात है. जिस लड़की को पूरी तरह ठोकपीट कर ढोलनगाड़े बजा कर लाए उस के ग्रहों के डर से अपने बेटे को बचा कर रखा जा रहा है और जिस लड़की के शायद बाप का भी पता न हो, वह नील की सर्वस्व है. क्या तमाशा है, धर्म?’’
आगे पढ़ें- तुम वैसे भी सोचो, पूरी दुनिया में ग्रह मिलाए जाते हैं क्या?…