FILM REVIEW: बेहतरीन कहानी का सत्यानाश हैं ’14 फेरे’

रेटिंगः डेढ़ स्टार

निर्माताः जी स्टूडियो

निर्देशकः देवांशु सिंह

कलाकारःविक्रांत मैसे, कृति खरबंदा, गौहर खान, जमील खान, विनीत कुमार, अंकिता दुबे, यामिनी दास,  सोनाक्षी बत्रा, सुमित सूरी, प्रियांशु सिंह व अन्य

अवधिः एक घंटा 52 मिनट

ओटीटी प्लेटफार्मः जी 5

शादियों का मौसम चल रहा है. इसी मौसम में नवोदित निर्देशक देवांशु सिंह भी शादी के साथ थिएटर कलाकारों के घाल मेल पर एक फिल्म ‘‘14 फेरे’’लेकर आए हैं, जिसमें अति पुराने घिसे पिटे फिल्मी फार्मूले व घटिया क्लायमेक्स के अलावा कुछ नही है. निर्देशक ने एक बेहतरीन कॉसेप्ट व पारिवारिक फिल्म का बंटाधार करने में कोई कसर बाकी नही रखी है.

कहानीः

दिल्ली के एक कॉलेज की रैगिंग में जहानाबाद बिहार निवासी राजपूत लड़के संजय सिंह( विक्रांत मैसी) और जयपुर की जाटनी अदिति ( कृति खरबंदा) एक दूसरे से टकराते हैं.  जल्द ही दोनों एक दूसरे के प्यार में पड़ जाते हैं. संजय सिंह और अदिति एक साथ कालेज के नाटकों में अभिनय करते हैं. दोनों अलग अलग जाति से हैं. लेकिन दिल मिल गए है. वहीं संजय सिंह और अदिति घर से भागकर या माता पिता की मर्जी के विपरीत शादी नही करना चाहते. वह चाहते हैं कि माता पिता की रजामंदी के साथ उनका विवाह हो. दोनों अपने प्यार के लिए परिवार को कुर्बान नही करना चाहते.

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ऐसी स्थिति में संजय व अदिति एक योजना बनाते हैं और रंगमंच कलाकारों (जमील खान और गौहर खान ) को अपने पिता व माता बनाकर एक दूसरे के परिवार वालों से मिलवाते हैं. तय होता है कि पहले अदिति अपना सरनेम राजपूत वाला रखकर संजय के घर जाकर उससे शादी करेगी.  फिर संजय उन्ही नकली मां बाप को लेकर अदिति के घर जाकर उससे शादी करेगा.  कुल मिलाकर अपनी शादी के लिए दोनों सात की बजाय 14 फेरे लेंगें. पर बाद में क्या होता है, यह फिल्म देखने पर पता चलता है.

लेखन व निर्देशनः

फिल्म का कॉसेप्ट बहुत अच्छा है, मगर कमजोर पटकथा व निर्देशन फिल्म को ले डूबा. फिल्म की गति काफी धीमी है. कुछ ह्यूमर के पल हैं. मगर क्लामेक्स तक पहुंचते ही दर्शक कह उठता है कि कहां फंसा दिया. कुछ दृश्य तो ‘दिलवाले दुल्हनियां ले जाएंगे’से उठाकर रख दिए गए हैं. फिल्म में अंतर जातीय विवाह, ऑनर किलिंग, दहेज के मुद्दे भी सही तरह से नही पेश किए गए.

अभिनयः

अदिति के किरदार में कृति खंरबंदा का अभिनय ठीक ठाक है. पिछली फिल्मों के मुकाबले उनके अभिनय की धार कमजोर हुई है. विक्रांत मैसे ने बेहतरीन अभिनय यिका है, मगर उन्हे किरदार व फिमें चुनने में सावधानी बरतने कर जरुरत है. विक्रांत मैसे को मीडियोकर पटकथाओे से दूरी बनानी चाहिए. संजय सिंह की मां के किरदार में यामिनी दास अपना प्रभाव छोड़ जाती हैं. जमील खान ने कमाल का अभिनय किया है. गौहर खान जमती नही है.

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