3 सखियां: भाग-3

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आभा, शालिनी और रितिका पक्की सहेलियां थीं. स्कूल के दिनों से ही उन का साथ था. तीनों सहेलियां खुले विचारों वाली थीं. जिंदगी से जुड़ी हर बात ये सहेलियां एकदूसरे से शेयर करती थीं. इत्तफाक से तीनों की शादी ऐसे लड़कों से हुई जो अमेरिका में सैटल थे. शादी के बाद जब तीनों सहेलियां अमेरिका पहुंचीं तो वहां भी अपनी दोस्ती बिखरने नहीं दी. वहां आपस में होती बातचीत से पता चला कि उन सहेलियों के विचार तो लगभग एकजैसे थे पर उन के पतियों के विचारों में भिन्नता थी.

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कुछदिन बाद आभा ने शालिनी को फिर फोन लगाया. लेकिन जब कई बार फोन करने पर भी शालिनी ने फोन नहीं उठाया, तो आभा के मन में खलबली मच गई. अपनी सखी के लिए तरहतरह की दुश्चिंताएं उस के मन में उठने लगीं. आखिरकार एक दिन शालिनी ने फोन उठाया.

‘‘अरी कहां मर गई थी तू?’’ आभा झुंझलाई, ‘‘मैं 2 घंटे से तुझे फोन लगा रही हूं.’’

‘‘मैं यहीं पड़ोस में  गई थी. आज हम लोगों के क्लब की मीटिंग थी.’’

‘‘अरे वाह, तू ने कोई क्लब जौइन कर लिया है क्या? इस का मतलब तू घर से बाहर निकलने लगी है. चलो देरसवेर तुझे कुछ अक्ल तो आई. अब बता यह कैसा क्लब है?’’

‘‘यह एक पीडि़त स्त्रियों का क्लब है.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘यह क्लब उन स्त्रियों के लिए है जिन के पति उन्हें मारतेपीटते हैं या उन्हें अन्य तरीकों से प्रताडि़त करते हैं. हम सब महीने में एक बार मिलती हैं और एकदूसरे को अपने दुखड़े सुनाती हैं. एकदूसरे को ढाढ़स भी बंधाती हैं, एकदूसरे से सलाहमशविरा भी करती हैं और अपनी परेशानियों का समाधान खोजती हैं.’’

‘‘शालिनी, तुझे यह सब करने की क्या जरूरत पड़ गई?’’ आभा चकित हुई, ‘‘क्या तू उन पीडि़त औरतों में से एक है?’’

‘‘हां.’’

‘‘मुझे विश्वास नहीं होता. क्या तेरा पति तुझ पर हाथ भी उठाता है?’’

‘‘हां,’’ शालिनी फफक उठी, ‘‘उन्होंने मुझे कई बार मारा है. छोटीछोटी बात को ले कर भी उन का हाथ मुझ पर उठ जाता है. कौफी ठंडी हुई तो या लंच पैक करने में देरी हुई तो एक थप्पड़. कपड़े धुल कर तैयार नहीं मिले तो एक धौल. एक रोज हम शौपिंग मौल गए थे तो मेरे माथे और बदन पर पड़े नील के निशान देख कर एक अमेरिकन युवती चुपके से मेरे पास आई. उस ने मुझे अपना कार्ड दिया और कहा कि वह पीडि़त स्त्रियों का एक क्लब चलाती है. उस ने आग्रह किया कि मैं उस के क्लब की मीटिंग में आऊं. उस ने यहां तक कहा कि वह मुझे आ कर ले जाएगी और वापस छोड़ भी देगी. इत्तफाक से पार्थ उस समय अपने सैलफोन पर बातें कर रहे थे, इसलिए उन की निगाह हम पर नहीं पड़ी. नहीं तो घर लौट कर वे मुझे और मारते. उन्होंने सख्त ताकीद की है कि मैं बाहर बिना वजह किसी से बातचीत न करूं और न किसी से कोई संपर्क रखूं.’’

‘‘शालिनी तू किस मिट्टी की बनी है?’’ आभा ने बिफर कर कहा, ‘‘तू ये सब क्यों बरदाश्त कर रही है बता तो? क्या तुझ में जरा भी स्वाभिमान नहीं है? क्या तू पढ़ीलिखी और सबल नहीं है? क्या तेरे भेजे में थोड़ी सी भी अक्ल नहीं है? क्या तू इतना भी नहीं जानती कि औरतों पर हाथ उठाना एक जुर्म है. पुलिस में रिपोर्ट लिखाने भर की देर है, तेरे पतिदेव सलाखों के पीछे होंगे.’’

‘‘जानती हूं पर इस से फायदा?’’

‘‘बेवकूफों की तरह बात न कर. फायदा यह होगा कि तेरे मियां को उन के किए की सजा मिलेगी. उन की अक्ल ठिकाने आ जाएगी. उन्हें झक मार कर अपना रवैया बदलना होगा. तुझे नई जिंदगी मिलेगी.’’

‘‘ऐसा कुछ नहीं होगा. एक बार वे सजा काट कर आएंगे तो फिर वही सिलसिला शुरू होगा. उन का स्वभाव बदलने वाला नहीं है. और अगर उन्हें सजा हुई तो मेरा क्या होगा? मेरा गुजारा कैसे होगा? न मेरे पास कोई नौकरी है और न मेरे में कोई काबिलीयत है. हाथ में एक दमड़ी भी नहीं है. पिताजी ने जो डौलर घर से चलते समय थमाए थे वे खर्च हो गए. मैं अकेली कैसे निर्वाह करूंगी, यह सोच कर ही कलेजा कांपता है.’’

‘‘अकेली क्यों है तू, तेरे साथ हम सब हैं. तेरा परिवार है, नारी कल्याण केंद्र है, सोशल वर्कर हैं जो तुझे हर तरह की मदद पहुंचाएंगे. अच्छा यह बता क्या तू ने अपने मातापिता से इस बारे में बात की है?’’

‘‘नहीं. मेरे मातापिता मेरे बारे में जानेंगे तो रोरो कर मर जाएंगे. मैं ने उन से सिर्फ इतना ही कहा है कि मुझे अपना वैवाहिक जीवन रास नहीं आया. मैं घर लौटना चाहती हूं.’’

‘‘तब वे क्या बोले?’’

‘‘वे क्या कहते. उन्होंने मुझे एक लंबा लैक्चर पिला दिया. तुम तो जानती ही हो कि वे कितने रूढिवादी हैं. वे बोले कि बेटी हरेक के वैवाहिक जीवन में कुछ न कुछ कठिनाइयां आती हैं. तुझे अपने पति से तालमेल बैठाना होगा. अपनी जिंदगी से समझौता करना ही होगा. हिंदू नारी का यही धर्म है. और जरा सोच, अगर तू ने तलाक लिया तो हम तेरी दूसरी शादी कैसे कर पाएंगे? पहली शादी ही इतनी मुश्किल से हुई. और बड़ी बहन तलाकशुदा हो कर घर में बैठी रही तो समाज क्या कहेगा? तेरी छोटी बहनों की शादी कैसे हो पाएगी? वगैरहवगैरह…’’

‘‘ओहो, तुम्हारे मम्मीपापा तो बड़े दकियानूसी निकले. मैं उन से बात करूंगी.’’

‘‘नहीं आभा, इस से कुछ हासिल नहीं होगा. मेरे मातापिता तो पहले से ही अपनी समस्याओं से परेशान हैं. पिताजी रिटायर हो चुके हैं और दिल के मरीज भी हैं. मैं उन को अपना दुखड़ा सुना कर दुखी नहीं करना चाहती और खोटे सिक्के की तरह घर लौट कर उन पर बोझ नहीं बनना चाहती. यह मेरी समस्या है, मैं ही इस से निबटूंगी.’’

‘‘ठीक है, पर मुझ से एक वादा कर. तू मुझे बराबर फोन कर के अपनी खोजखबर देती रहेगी.’’

‘‘अवश्य.’’

शालिनी की बातें याद कर आभा मन ही मन उफनती रही. शालिनी ने यह क्यों कहा कि वह अपने मातापिता पर बोझ नहीं बनना चाहती? क्या हम लड़कियां अपने मातापिता पर बोझ होती हैं? उस ने कुढ़ कर सोचा. जब से आभा ने होश संभाला तब से वह हमेशा सुनती आई थी कि बेटियां पराया धन हैं, दूसरे की अमानत हैं, 2 दिन की मेहमान हैं, वगैरहवगैरह. सुनसुन कर वह चिढ़ती थी. पर नहीं, वह तो अपने मांबाप की आंखों का तारा थी. उन की बेहद लाडली बिटिया थी. उन्होंने कभी उस में और उस के भाई में भेदभाव नहीं किया. आभा को याद आया कि कैसे जब वह स्कूल से लौटती थी, तो अपनी मां को घर में न पा कर रोने बैठ जाती थी. रूठ जाती थी और खाना भी न खाती थी. उस की मां लौटतीं तो उस का मनुहार करतीं, उसे अपनी गोद में बैठा कर उस के मुंह में कौर देतीं तब जा कर वह खाना खाती थी. मांबाप से बिछड़ने पर उसे असहाय पीड़ा हुई थी. उसे हमेशा घर की याद सताती रहती थी.

बेटियां ससुराल जा कर भी अपने मायके से जीवनपर्यंत जुड़ी रहती हैं. उन का जी अपने मांबाप के लिए कलपता रहता है. मांबाप जब बूढ़े और लाचार हो जाते हैं, तो अकसर बेटियां ही उन की सारसंभाल करती हैं. वे संवेदनशील होती हैं, स्नेहमयी होती हैं. तिस पर भी वे पराया धन मानी जाती हैं. और बेटे, वे बड़े हो कर चाहे मांबाप की बात न सुनें, उन्हे मांबाप का सहारा, उन के बुढ़ापे की लाठी आदि विशेषणों से नवाजा जाता है.

आभा को अचानक याद आया कि 2 दिन बाद शालिनी का जन्मदिन था. उस ने एक मोबाइल फोन खरीद कर उसे तोहफा भेज दिया. फिर कुछ दिन बाद उसी मोबाइल से उस के पास फोन आया तो उस ने फोन उठाया.

‘‘हैलो, आप आभाजी बोल रही हैं?’’ एक अनजान पुरुष स्वर सुनाई दिया.

‘‘हां मैं बोल रही हूं. कहिए आप कौन?’’

‘‘मैं शालिनी का पति पार्थ बोल रहा हूं. यह मोबाइल गिफ्ट आप ने भेजा है?’’

‘‘हां, क्यों?’’

‘‘मैं इसे वापस कर रहा हूं. आइंदा आप हमें कोई चीज नहीं भेजेंगी.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘इसलिए कि मुझे आप की और शालिनी की दोस्ती पसंद नहीं. मुझे पता चला है कि आप मेरी पत्नी को बिना वजह मेरे खिलाफ भड़का रही हैं, उसे बरगला रही हैं. बेहतर होगा कि आप हमारे व्यक्तिगत मामलों में दखल न दें.

आगे पढ़ें- आप जैसी स्त्रियों से मेरी पत्नी की निकटता मुझे गवारा नहीं…

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