3 सखियां: भाग-6

पिछला भाग- 3 सखियां: भाग-5

लंबाचौड़ा, भूरी आंखें, घनी बरौनियां, घुंघराले बाल और जब वह अपनी टूटीफूटी अंगरेजी में बात करता है तो और भी प्यारा लगता है.’’ आभा उसे एकटक देखती रही. फिर बोली, ‘‘ओह, रितिका तेरा क्या होगा? तू तो बचकानी हरकत कर रही है. तेरे इस प्यार का क्या अंजाम होगा कुछ सोचा भी है? जब निरंजन को इस बारे में पता चलेगा तो वे क्या कहेंगे?’’

आगे पढ़ें- ऐंटोनियो के बिना मेरा जीना मुश्किल है. निरंजन जब…

‘‘पता नहीं, लेकिन मैं बस इतना जानती हूं कि ऐंटोनियो के बिना मेरा जीना मुश्किल है. निरंजन जब मेरे जीवन में आए तो वह महज एक समझौता था. वह शादी मैं ने सिर्फ पैसे के लिए की थी. लेकिन ऐंटोनियो के लिए मेरा प्यार एक जनून है, एक पागलपन है.’’

‘‘और तेरा ऐंटोनियो इस बारे में क्या कहता है?’’

‘‘वह भी मुझे जीजान से चाहता है. मुझ से शादी करना चाहता है.’’

‘‘शादी?’’ आभा चौंक पड़ी, ‘‘रितिका, शादी एक बहुत बड़ा कदम है. कहीं तू कुएं से निकल कर खाई में न गिर जाए. आखिर वह शख्स तेरे लिए अजनबी ही तो है. तू उस के बारे में कुछ भी तो नहीं जानती.’’ ‘‘जानती हूं. मैं ने सब पता लगा लिया है. ऐंटोनियो खानदानी रईस है. उस की रगों में शाही खून दौड़ रहा है. उस के पास बेशुमार दौलत है. इटली में रोम के पास ही एक टापू पर उस का महल है और वह अपने मातापिता का अकेला वारिस है. उस ने मुझे न्योता दिया है कि मैं इटली आऊं और उस के घर को देखूं, उस के परिवार से मिलूं.’’

‘‘और निरंजन का क्या होगा?’’

‘‘निरंजन को छोड़ना ही पड़ेगा. मैं ने तय कर लिया है कि मैं क्विक डाइवोर्स ले लूंगी जो फौरन मिल जाता है. फिर मैं इटली जाऊंगी और ऐंटोनियो से ब्याह कर लूंगी.’’ ‘‘देख रितिका जो भी करना जरा सोचसमझ कर करना और मुझ से वादा कर कि तू मुझे अपने बारे में खबर देती रहेगी.’’

‘‘अवश्य. तुझे नहीं बताऊंगी तो और किसे बताऊंगी? तू मेरी बैस्ट फ्रैंड है.’’ समय गुजरता रहा. आभा के यहां 2 प्यारेप्यारे बच्चे हो गए. वह अपनी घरगृहस्थी में पूरी तरह रम गई. अब उसे दम मारने की भी फुरसत नहीं थी. कभीकभी वह बुरी तरह थक जाती. जब राम घर आता तो वह शिकायत करती, ‘‘ओह, आज मेरा पैर बहुत दर्द कर रहा है पूरे 3 घंटे किचन में खड़ी रही.’’

‘‘ओहो, किस ने कहा था तुम्हें इतने सारे और्डर लेने को? लाओ मैं तुम्हारे पैर दबा दूं.’’

‘‘हटो कोई देखेगा तो कहेगा कि मैं अपने पति से पैर दबवा रही हूं.’’ क्या हुआ? आज बराबरी का युग है. तुम मेरे पैर दबाओगी तो मुझे भी तुम्हारे पैर दबाने पड़ेंगे.’’ क्या राम जैसे पुरुष भी इस संसार में होते हैं? उस ने सोचा. यदि राम ने उस की भावनाओं को न समझा होता, यदि वह उस के प्रति संवेदनशील न हुआ होता तो क्या आभा अपने सगेसंबंधियों से दूर अमेरिका में इतने दिनों रह पाती? पर राम के साथ ये चंद साल पलक झपकते बीत गए थे. एक दिन वह किचन में खड़ी खाना बना रही थी. उस ने चूल्हे पर कड़ाही चढ़ा कर उस में तेल उड़ेल दिया और अपनी एक सहेली से फोन पर बातें करने लगी. तेल गरम हो गया तो अचानक उस में आग लग गई. रसोईघर की छत तक लपटें उठने लगीं. लकड़ी की छत धूधू कर के जलने लगी और स्मोक अलार्म बजने लगा. आभा की चीख निकल गई. वह अपने बच्चों को ले कर घर से बाहर भागी. उस ने राम को फोन किया तो फौरन वह घर आया. फिर दमकल की गाडि़यां आईं और आग पर काबू पा लया गया.

‘‘बस बहुत हुआ,’’ राम ने उसे झिड़का, ‘‘अब तुम्हारा घरेलू व्यापार बंद. इस के चलते हमारा आशियाना जल कर खाक हो गया होता. शुक्र है कि घर जलने से बच गया.’’

‘‘और मेरे पास इतने सारे जो और्डर हैं उन का क्या होगा?’’

‘‘वे सब कैंसल…और एक खुशखबरी है तुम्हारे लिए.’’

‘‘वह क्या?’’

‘‘मेरा प्रमोशन हो गया. अब मैं अपनी कंपनी का वाइस प्रैसिडैंट हूं.’’

‘‘अरे वाह. यह तो बड़ी अच्छी खबर है.’’

‘‘हां. इस का मतलब है कि अब तुम्हें इतनी मेहनत करने की जरूरत नहीं. यह काम बंद करो और जरा बच्चों पर ध्यान दो. वे बड़े हो रहे हैं.’’ ‘‘ठीक है. पर अब किचन की मरम्मत कराने का उपाय करो नहीं तो वहां खाना बनाना मुश्किल होगा.’’

ये भी पढ़ें- संयोगिता पुराण: भाग-3

‘‘वह सब छोड़ो. आज हम होटल में खाना खाऐंगे और अब हम नए घर में शिफ्ट होंगे. तुम्हारे लिए नई कार आएगी.’’ ‘‘सच? ओह राम तुम कितने अच्छे हो,’’ वह पति के गले से झूल गई, ‘‘पर पहले अपने लिए नई गाड़ी ले लो. तुम्हारी कार एकदम खटारा हो रही है.’’

‘‘नहीं, पहले मेमसाहब की गाड़ी खरीदी जाएगी.’’

‘‘लेकिन वाइस प्रैसिडैंट तो तुम बने हो.’’

‘‘वह ओहदा, रुतबा सब बाहर वालों के लिए. उन के लिए मैं मिस्टर राम कुमार हूं. अपनी कंपनी का कर्ताधर्ता. घर में तो तुम्हारा राज चलता है…मुझे यह बात कहने में जरा भी संकोच नहीं होता कि मेरी नकेल तुम्हारे हाथों में है. अगर तुम इस घर की बागडोर को कस कर नहीं पकड़तीं तो सब बिखर जाता. मैं भलीभांति जानता हूं कि इस घरपरिवार को सहेज कर रखने का और बच्चों की सही परवरिश का श्रेय तुम्हें ही जाता है. तुम सही अर्थों में मेरी सहधर्मिणी साबित हुईं और तुम्हारे इस सहयोग के लिए मैं हमेशा तुम्हारा आभारी रहूंगा.’’ आभा का तनमन पति के प्यार की ऊष्मा से ओतप्रोत हो गया. साल पर साल गुजरते गए.

एक दिन राम ने दफ्तर से लौट कर उस से कहा, ‘‘तुम्हारे लिए एक खुशखबरी है.’’

‘‘एक और प्रमोशन?’’ आभा चहकी.

‘‘नहीं, तुम तो जानती हो कि हम हिंदुस्तानियों को योग्य होने पर भी कंपनी का प्रैसिडैंट नहीं बनाया जाता. इस मामले में अमेरिकन बड़े घाघ होते हैं. खुशखबरी यह है कि हम इंडिया वापस जा रहे हैं.’’

‘‘अरे अचानक?’’

‘‘हां बहुत दिन वनवास काट लिया. अब अपनों के बीच दिन गुजारने की इच्छा हो रही है. मैं ने तय कर लिया है कि मैं रिटायरमैंट ले लूंगा. इतने दिनों अपने लिए खटता रहा अब दूसरों के लिए काम करूंगा.’’

‘‘क्या मतलब?’’

‘‘मतलब यह कि अब मैं अपने देशवासियों के लिए काम करूंगा. समाजसेवा. क्या समझीं? हमारे बच्चे बड़े हो गए हैं. अच्छा पढ़लिख रहे हैं. उन के बारे में हमें चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं. हम उन्हें यहां छोड़ कर वापस घर जाएंगे. मेरे गांव में अपनी पुश्तैनी जमीन है, एक जीर्णशीर्ण घर है, वहां बस जाएंगे. मैं सोच रहा हूं कि उस जमीन में बच्चों के लिए एक छोटा सा प्राइमरी स्कूल खोल देंगे. मुझे हमेशा पढ़ाने का शौक रहा है. मैं उन्हें पढ़ाऊंगा.’’

‘‘और मैं क्या करूंगी?’’

‘‘तुम उन बच्चों के लिए दोपहर का खाना बना कर भेजना. मैं विद्यादान करूंगा, तुम अन्नदान करना. इस से बढ़ कर पुण्य का काम और कोई नहीं है. क्यों, क्या कहती हो?’’

आगे पढ़ें- फिर एक दिन आभा को अचानक फेसबुक पर रितिका की खबर मिली…

ये भी पढ़ें- छैल-छबीली: भाग-1

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें