
विनय सर की बात सुन कर सासससुर को तो जैसे सांप सूंघ गया. उन्होंने ऐसी चुप्पी लगाई कि आधे घंटे तक इंतजार के बाद भी विनय सर कोई उत्तर न पा सके और चुपचाप उठ कर चले गए. उस के बाद घर का माहौल अजीब सा हो गया. सासससुर ने उस से बातचीत करनी बंद कर दी. एक दिन जब ग्रीष्मा स्कूल से लौटी तो सासससुर का आपसी वार्त्तालाप उस के कानों में पड़ा. ‘‘देखो तो हम ने हमेशा इसे अपनी बेटी समझा और आज इस ने हमें ही बेसहारा करने की ठान ली. बेटे के जाते ही इस ने रंगरलियां मनानी शुरू कर दीं और ऊपर से लड़का भी छोटी जाति का. हम ब्राह्मण. क्या इज्जत रह जाएगी समाज में हमारी? कैसे सब को मुंह दिखाएंगे? इस ने तो हमें कहीं का नहीं छोड़ा..सही ही कहा जाता है कि बहू कभी अपनी नहीं हो सकती,’’ कहते हुए सास ससुर के सामने रो रही थीं.
सासससुर की यह मनोदशा देख ग्रीष्मा का मन जारजार रोने को हो चला. वह सोचने लगी कि यह क्या तूफान ला दिया सर ने उस की जिंदगी में. सासससुर शायद अपने भविष्य को ले कर चिंतित हो उठे थे. सच भी है वृद्धावस्था में असुरक्षा की भावना के कारण इंसान अपनी वास्तविक उम्र से अधिक का दिखने लगता है. वहीं बेटेबहू और नातीपोतों के भरेपूरे परिवार में रहने वाला इंसान अपनी उम्र से कम का ही लगता है.
किसी तरह रात काट कर वह स्कूल पहुंची. बिना कुछ सोचे सीधी सर के कैबिन में पहुंची और बोली, ‘‘कभीकभी इंसान अच्छा करने चलता है और कर उस का बुरा देता है. वही आप ने मेरे साथ किया है.’’
‘‘क्या हुआ?’’ सर ने उत्सुकतावश पूछा. ‘‘सब गड़गड़ हो गया है. शाम को आप कौफी हाउस में मिलिए. वहां बताती हूं.’’
स्कूल की छुट्टी के बाद कौफी हाउस में उस ने सारी बात सर को बता दी. सर कुछ देर गंभीरतापूर्वक सोचते रहे फिर बोले, ‘‘मैं शाम को घर आता हूं.’’
‘‘आप आएंगे तो वे और अधिक क्रोधित हो जाएंगे…उन्हें आप की जाति से भी तो समस्या है…’’ ‘‘अरे कुछ नहीं होगा, मुझ पर भरोसा रखो, अभी तुम जाओ.’’
लगभग 7 बजे विनय सर घर आए तो हमेशा हंस कर उन का स्वागतसत्कार करने वाले सासससुर आज उन के साथ अजनबियों सा व्यवहार कर रहे थे जैसे वे कोई बहुत बड़े अपराधी हों. पर विनय सर ने सदा की भांति उन के पांव छुए और कुछ औपचारिक बातचीत के बाद बाबूजी का हाथ अपने हाथ में ले कर बोले, ‘‘बाबूजी, क्या मैं आप का बेटा नहीं बन सकता? यदि आप अपनी बहू को बेटी बना कर इतना प्यार दे सकते हो कि वह अपने से पहले आप के बारे में सोचे, तो क्या मैं जिंदगी भर के लिए आप की बेटी का सहयोगी नहीं बन सकता? मैं मानता हूं कि मेरी जाति आप की जाति से भिन्न है, परंतु क्या जाति ही सब कुछ है बाबूजी? मैं और आप की बहू मिल कर इस घर की सारी जिम्मेदारियां उठाएंगे.’’ ‘‘वह अपनी मरजी की मालिक है. हम ने उसे कब रोका है? उस की जिंदगी उसे कैसे बितानी है, इस का निर्णय लेने के लिए वह पूरी तरह स्वतंत्र है,’’ ससुर ने अपनी बात रखते हुए कठोर स्वर में कहा और कमरे में चल गए.
‘‘बहू और कुणाल के जाने से हम तो बिलकुल अकेले हो जाएंगे. इस बुढ़ापे में हमारा क्या होगा? बेटा तो पहले ही साथ छोड़ गया और अब बहू भी…’’ कह कर सासूमां तो सर के सामने ही फूटफूट कर रोने लगीं. विनय सर मां के पास जा कर बोले, ‘‘मां आप ने यह कैसे सोच लिया कि मैं आप की बहू और पोते को ले कर अलग रहूंगा. मैं तो यहीं आप सब के साथ इसी घर में रहूंगा. आप की बहू ने तो सर्वप्रथम यही शर्त रखी थी कि मांबाबूजी उस की जिम्मेदारी हैं और वह उन्हें अकेला नहीं छोड़ सकती. मैं तो आप सब के जीवन का हिस्सा भर बनना चाहता हूं.
‘‘मैं सिर्फ आप की बेटी की जिम्मेदारियों में उस का हाथ बंटाना चाहता हूं. मुझ पर भरोसा रखिए. आजीवन आप को निराश नहीं करूंगा. यदि आप मुझे अपनाते हैं तो मुझे एकसाथ कई रिश्ते जीने को मिलेंगे. मेरा भी एक भरापूरा पूरिवार होगा. मेरा इस संसार में कोई नहीं है. कभीकभी अकेलापन काटने को दौड़ता है. मैं तो आप का बेटा बन कर रहना चाहता हूं. आप के जीवन की समस्त परेशानियों को अपने ऊपर ले कर आप का जीवन खुशियों से भर देना चाहता हूं. परंतु यह सब होगा तभी जब आप और बाबूजी की अनुमति होगी,’’ कह कर विनय सर बाहर चले गए. कुछ विचार करते हुए ससुर विश्वनाथ अपनी पत्नी से बोले, ‘‘मुझे लगता है हमें इन दोनों की शादी करा देनी चाहिए.’’
‘‘कैसी बातें करते हो? हम ब्राह्मण और वह नीची जाति का… नहीं, मुझे तो कुछ ठीक नहीं लग रहा,’’ सास कुछ उत्तेजित स्वर में बोलीं.
‘‘जाति को खुद से चिपका कर क्या मिलेगा हमें? ऊंचीनीची जाति से क्या फर्क पड़ता है हमें? हमारा तो बुढ़ापा अच्छा कटना चाहिए. बेचारी बहू कब तक दे पाएगी हमारा साथ. दोनों कमाएंगे और मिल कर जिम्मेदारियां उठाएंगे तभी तो हम चैन से रह पाएंगे.’’
‘‘यह बात तो आप की सही है… हमें जाति से क्या करना. इंसान तो विनय अच्छा ही है. हमें मातापिता सा मान भी देता है,’’ सास ने भी अपने पति के सुर में सुर मिलाते हुए कहा. अगले दिन रविवार था, सुबहसुबह ही विश्वनाथ ने विनय को फोन कर के बुला लिया. जैसे ही विनय आए औपचारिक वार्त्तालाप के बाद वे बोले, ‘‘बेटा, हम ने तुम्हें गलत समझा. शायद हम स्वार्थी हो गए थे. क्या करें बेटा बुढ़ापा ऐसी चीज है जो आदमी को स्वार्थी बना देती है.
‘‘वृद्ध सब से पहले अपनी सुरक्षा और हितों के बारे में सोचने लगते हैं. हम ने भी अपनी बेटे जैसी बहू के भविष्य के बारे में न सोच कर सिर्फ और सिर्फ अपने बारे में ही सोचा, जबकि उस ने सदा पहले हमारे बारे में सोचा. कौन कहता है कि बहू कभी बेटी नहीं हो सकती? मेरी बहू तो मिसाल है उन लोगों के लिए जो बहू और बेटी में फर्क करते हैं. ‘‘इस घर की बहू होने के बाद भी उस ने सदा बेटे की ही भांति सारे फर्ज निभाए हैं.
आज तक उस ने बस दुख ही दुख देखा है और आज जब तुम उस की झोली में खुशियां डालना चाहते हो, उस की जिम्मेदारियां बांटना चाहते हो, तो हम उस के मातापिता ही उस के बैरी हो गए. बस मेरी बेटी को सदा खुश रखना,’’ कह कर विश्वनाथ जी ने विनय सर के आगे हाथ जोड़ दिए.
परदे की ओट में खड़ी ग्रीष्मा सासससुर का यह बदला रूप देख कर हैरान थी. पर अंत भला तो सब भला सोच दौड़ कर अपने सासससुर के गले लग गई. ‘‘हम आप को कभी निराश नहीं करेंगे,’’ कह कर विनय सर और ग्रीष्मा ने झुक कर दोनों के जब पैर छुए तो विश्वनाथ और उन की पत्नी ने खुश हो कर अपने आशीष भरे हाथ उन की पीठ पर रख दिए.
अचानक ग्रीष्मा ने घड़ी पर नजर डाली. 8 बज रहे थे. वह एकदम उठ गई और बोली, ‘‘सर, अब मुझे चलना होगा. मांबाबूजी इंतजार कर रहे होंगे,’’ कह कर वह कौफी हाउस से बाहर आ स्कूटी स्टार्ट कर घर चल दी. घर आ कर ग्रीष्मा सीधे अपने कमरे में गई और खुद को फिर आईने में देख सोचने लगी कि क्या हो रहा है उसे? कहीं उसे प्यार तो नहीं हो गया… पर नहीं वह एक विधवा है… मांबाबूजी और कुणाल की जिम्मेदारी है उस पर…वह ये सब क्यों भूल गई…सोचतेसोचते उस का सिर दर्द करने लगा तो कपड़े बदल कर सो गई.
अगले दिन जैसे ही स्कूल पहुंची तो विनय सर सामने ही मिल गए. उसे देखते ही बोले, ‘‘मैम, फ्री हो कर मेरे कैबिन में आइएगा, आप से कुछ काम है.’’ ‘‘जी सर,’’ कह कर वह तेज कदमों से स्टाफरूम की ओर बढ़ गई.
जब वह सर के कैबिन में पहुंची तो विनय सर बोले, ‘‘मैडम कल शिक्षा विभाग की एक मीटिंग है, जिस में आप को मेरे साथ चलना होगा.’’ ‘‘सर मैं… मैं तो बहुत जूनियर हूं… और टीचर्स…’’ न जाने क्यों वह सर के साथ जाने से बचना चाहती थी.
‘‘यह तो मेरी इच्छा है कि मैं किसे ले जाऊं, आप को बस मेरे साथ चलना है.’’ ‘‘जी, सर,’’ कह कर वह स्टाफरूम में आ गई और सोचने लगी कि यह सब क्या हो रहा है… कहीं विनय सर को मुझ से… मुझे विनय सर से… तभी फ्री टाइम समाप्त होने की घंटी बजी और वह अपनी कक्षा में आ गई. आज उस का मन बच्चों को पढ़ाने में भी नहीं लगा. दिलदिमाग पर सर का जादू जो छाया था.
अगले दिन मीटिंग से वापस आते समय विनय सर ने गाड़ी फिर कौफी हाउस के बाहर रोक दी. बोले, ‘‘चलिए कौफी पी कर चलते हैं.’’ उन का ऐसा जादू था कि ग्रीष्मा चाह कर भी मना न कर सकी.
कौफी पीतपीते विनय सर उस की आंखों में आंखें डाल कर बोले, ‘‘ग्रीष्मा, आप ने अपने भविष्य के बारे में कुछ सोचा है?’’ ‘‘क्या मतलब सर… मैं कुछ समझी नहीं…’’ अचकचाते स्वर में समझ कर भी नासमझ बनते हुए उस ने कहा.
‘‘जो हो गया है उसे भूल कर नए सिरे से जिंदगी शुरू करने के बारे में सोचिए…मैं आप का हर कदम पर साथ देने को तैयार हूं. यदि आप को मेरा साथ पसंद हो तो…’’ सपाट स्वर में विनय सर ने अपनी बात ग्रीष्मा के सामने रख दी. कुछ देर तक विचार करने के बाद ग्रीष्मा बोली, ‘‘सर, बुरा न मानें तो एक बात पूंछू? आप ने अभी तक विवाह क्यों नहीं किया?’’
‘‘आप का प्रश्न एकदम सही है. मैडम ऐसा नहीं है कि मैं विवाह करना नहीं चाहता था, परंतु पहले तो मैं अपने कैरियर को बनाने में लगा रहा और फिर कोई लड़की अपने अनुकूल नहीं मिली. दरअसल, हमारे समाज में लड़कियों को उच्चशिक्षित नहीं किया जाता. अल्पायु में ही उन की शादी कर दी जाती है. मुझे शिक्षित लड़की ही चाहिए थी. बस इसी जद्दोजहद में मैं आज तक अविवाहित ही हूं. बस यही है मेरी कहानी.’’ सर की बातें सुन कर ग्रीष्मा सोचने लगी कि सर की जाति के बारे में तो कभी सोचा ही नहीं. मांबाबूजी तो बड़े ही रूढि़वादी हैं. पर किया भी क्या जा सकता है…प्यार कोई जाति देख कर तो किया नहीं जा सकता. वह तो बस हो जाता है, क्योंकि प्यार में दिमाग नहीं दिल काम करता है.
ग्रीष्मा अपने विचारों में डूबी हुई थी कि अचानक विनय सर बोले, ‘‘अरे मैडम कहां खो गईं?’’
‘‘सर मैं आप की बात को समझ रही हूं और मानती भी हूं कि आप ने मेरे अंदर जीने की इच्छा जाग्रत कर दी है. आप ने मेरे खोए आत्मविश्वास को लौटाया है. जब आप के साथ होती हूं तो मुझे भी यह दुनिया बड़ी हसीन लगती है…मुझे आप का साथ भी पसंद है… पर मेरे साथ बहुत सारी मजबूरियां हैं… मैं अकेली नहीं हूं मेरा बेटा और सासससुर भी हैं, जिन का इस संसार में मेरे सिवा कोई नहीं है… उन का एकमात्र सहारा मैं ही हूं.’’ ‘‘तो उन का सहारा कौन छीन रहा है मैम? उन से अलग होने को कौन कह रहा है? मैं तो स्वयं ही अकेला हूं. आगेपीछे कोई नहीं है. मैं अभी अधिक तो कुछ नहीं कह सकता, परंतु हां यह वादा अवश्य करता हूं कि आप को और आप के परिवार के किसी भी सदस्य को कभी कोई कमी नहीं होने दूंगा.’’
‘‘जी, मैं इस बारे में सोचूंगी,’’ कह कर वह उठ खड़ी हुई. अगले दिन रविवार था. वह नाश्ता तैयार कर रही थी, तभी ससुर ने आवाज लगाई, ‘‘बहू देखो तुम से कोई मिलने आया है? हाथ पोंछते हुए जब ग्रीष्मा किचन से आई तो सामने विनय सर को देख एक बार को तो हड़बड़ा ही गई. फिर कुछ संयत हो सासससुर से बोली, ‘‘मांबाबूजी ये हमारे प्रिंसिपल हैं विनय सर और सर ये मेरे मातापिता.’’
विनय सर ने आगे बढ़ कर दोनों के पांव छू लिए. ससुरजी बोले, ‘‘अच्छा ये वही सर हैं जिन के बारे में तू अकसर चर्चा करती रहती है. अरे बेटा बहुत तारीफ करती है यह आप की.’’ विनय सर बिना कोई उत्तर दिए मुसकराते रहे.
ससुरजी बोले, ‘‘आज बिटिया ने नाश्ते में आलू के परांठे बनाए हैं. चलिए आप भी हमारे साथ नाश्ता करिए.’’ ‘‘जी बिलकुल मुझे खुशबू आ गई थी इसलिए मैं भी खाने आ गया,’’ कह ग्रीष्मा की ओर मुसकरा कर देखते हुए विनय सर सामने रखा नाश्ता करने लगे. कुछ देर बाद फिर बोले, ‘‘मैम कल एक जरूरी मीटिंग है. आप 2 दिन से नहीं आ रही थीं तो मैं ने सोचा आप का हालचाल भी पूछ लूं और सूचना भी दे दूं. अब मैं चलता हूं, और वे चले गए.’’
विनय सर के जाने के बाद सास बोलीं, ‘‘बड़े अच्छे, सौम्य और विनम्र हैं तुम्हारे सर.’’ ‘‘हां मां आप बिलकुल सही कह रही हैं. सर बहुत अच्छे और सुलझे हुए इंसान हैं. आप को पता है जब से सर आए हैं हमारे स्कूल का माहौल ही बदल गया है.’’
इस के बाद तो अकसर रविवार को विनय सर घर आने लगे थे. कुणाल भी अंकलअंकल कह कर उन से चिपक जाता. कई बार वे परिवार के सभी सदस्यों को अपनी गाड़ी में घुमाने भी ले जाते थे. लगभग 6 माह बाद एक दिन शाम को विनय सर घर आए और औपचारिक बातचीत के बाद ससुर से बोले, ‘‘अंकल, मैं आप से आप की बहू का हाथ मांगना चाहता हूं.’’
आगे पढें- विनय सर की बात सुन कर…
संगीता को यह एहसास था कि आज जो दिन में घटा है, उस के कारण शाम को रवि से झगड़ा होगा और वह इस के लिए मानसिक रूप से तैयार थी. लेकिन जब औफिस से लौटे रवि ने मुसकराते हुए घर में कदम रखा तो वह उलझन में पड़ गई.
‘‘आज मैं बहुत खुश हूं. तुम्हारा मूड हो तो खाना बाहर खाया जा सकता है,’’ रवि ने उसे हाथ से पकड़ कर अपने पास बैठा लिया.
‘‘किस कारण इतना खुश नजर आ रहे हो?’’ संगीता ने खिंचे से स्वर में पूछा.
‘‘आज मेरे नए बौस उमेश साहब ने मुझे अपने कैबिन में बुला कर मेरे साथ दोस्ताना अंदाज में बहुत देर तक बातें कीं. उन की वाइफ से तो आज दोपहर में तुम मिली ही थीं. उन्हें एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने मैं ही ले गया था. मेरे दोस्त विपिन के पिताजी उस स्कूल के चेयरमैन को जानते हैं. उन की सिफारिश से बौस की वाइफ को वहां टीचर की जौब मिल जाएगी. बौस मेरे काम से भी बहुत खुश हैं. लगता है इस बार मुझे प्रमोशन जरूर मिल जाएगी,’’ रवि ने एक ही सांस में संगीता को सारी बात बता डाली.
संगीता ने उस की भावी प्रमोशन के प्रति कोई प्रतिक्रिया जाहिर करने के बजाय वार्त्तालाप को नई दिशा में मोड़ दिया, ‘‘प्रौपर्टी डीलर ने कल शाम जो किराए का मकान बताया था, तुम उसे देखने कब चलोगे?’’
‘‘कभी नहीं,’’ रवि एकदम चिड़ उठा.
‘‘2 दिन से घर के सारे लोग बाहर गए हुए हैं और ये 2 दिन हम ने बहुत हंसीखुशी से गुजारे हैं. कल सुबह सब लौट आएंगे और रातदिन का झगड़ा फिर शुरू हो जाएगा. तुम समझते क्यों नहीं हो कि यहां से अलग हुए बिना हम कभी खुश नहीं रह पाएंगे…हम अभी उस मकान को देखने चल रहे हैं,’’ कह संगीता उठ खड़ी हुई.
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‘‘मुझे इस घर को छोड़ कर कहीं नहीं जाना है. अगर तुम में जरा सी भी बुद्धी है तो अपनी बहन और जीजा के बहकावे में आना छोड़ दो,’’ गुस्से के कारण रवि का स्वर ऊंचा हो गया था.
‘‘मुझे कोई नहीं बहका रहा है. मैं ने 9 महीने इस घर के नर्क में गुजार कर देख लिए हैं. मुझे अलग किराए के मकान में जाना ही है,’’ संगीता रवि से भी ज्यादा जोर से चिल्ला पड़ी.
‘‘इस घर को नर्क बनाने में सब से ज्यादा जिम्मेदार तुम ही हो…पर तुम से बहस करने की ताकत अब मुझ में नहीं रही है,’’ कह रवि उठ कर कपड़े बदलने शयनकक्ष में चला गया और संगीता मुंह फुलाए वहीं बैठी रही.
उन का बाहर खाना खाने का कार्यक्रम तो बना ही नहीं, बल्कि घर में भी दोनों ने खाना अलगअलग और बेमन से खाया. घर में अकेले होने का कोई फायदा वे आपसी प्यार की जड़ें मजबूत करने के लिए नहीं उठा पाए. रात को 12 बजे तक टीवी देखने के बाद जब संगीता शयनकक्ष में आई तो रवि गहरी नींद में सो रहा था.
अपने मन में गहरी शिकायत और गुस्से के भाव समेटे वह उस की तरफ पीठ कर के लेट गई.
किराए के मकान में जाने के लिए रवि पर दबाव बनाए रखने को संगीता अगली सुबह भी उस से सीधे मुंह नहीं बोली. रवि नाश्ता करने के लिए रुका नहीं. नाराजगी से भरा खाली पेट घर से निकल गया और अपना लंच बौक्स भी मेज पर छोड़ गया.
करीब 10 बजे उमाकांत अपनी पत्नी आरती, बड़े बेटे राजेश, बड़ी बहू अंजु और 5 वर्षीय पोते समीर के साथ घर लौटे. वे सब उन के छोटे भाई के बेटे की शादी में शामिल होने के लिए 2 दिनों के लिए गांव गए थे.
फैली हुई रसोई को देख कर आरती ने संगीता से कुछ तीखे शब्द बोले तो दोनों के बीच फौरन ही झगड़ा शुरू हो गया. अंजु ने बीचबचाव की कोशिश की तो संगीता ने उसे भी कड़वी बातें सुनाते हुए झगड़े की चपेट में ले लिया.
इन लोगों के घर पहुंचने के सिर्फ घंटे भर के अंदर ही संगीता लड़भिड़ कर अपने कमरे में बंद हो गई थी. उस की सास ने उसे लंच करने के लिए बुलाया पर वह कमरे से बाहर नहीं निकली.
‘‘यह संगीता रवि भैया को घर से अलग किए बिना न खुद चैन से रहेगी, न किसी और को रहने देगी, मम्मी,’’ अंजु की इस टिप्पणी से उस के सासससुर और पति पूरी तरह सहमत थे.
‘‘इस की बहन और मां इसे भड़काना छोड़ दें तो सब ठीक हो जाए,’’ उमाकांत की विवशता और दुख उन की आवाज में साफ झलक रहा था.
‘‘रवि भी बेकार में ही घर से कभी अलग न होने की जिद पर अड़ा हुआ है. शायद किराए के घर में जा कर संगीता बदल जाए और इन दोनों की विवाहित जिंदगी हंसीखुशी बीतने लगे,’’ आरती ने आशा व्यक्त की.
‘‘किराए के घर में जा कर बदल तो वह जाएगी ही पर रवि को यह अच्छी तरह मालूम है कि उस के घर पर उस की बड़ी साली और सास का राज हो जाएगा और वह इन दोनों को बिलकुल पसंद नहीं करता है. बड़े गलत घर में रिश्ता हो गया उस बेचारे का,’’ उमाकांत के इस जवाब को सुन कर आरती की आंखों में आंसू भर आए तो सब ने इस विषय पर आगे कोई बात करना मुनासिब नहीं समझा.
शाम को औफिस से आ कर रवि उस से पिछले दिन घटी घटना को ले कर झगड़ा करेगा, संगीता की यह आशंका उस शाम भी निर्मूल साबित हुई. रवि परेशान सा घर में घुसा तो जरूर पर उस की परेशानी का कारण कोई और था.
‘‘मुझे अस्थाई तौर पर मुंबई हैड औफिस जाने का आदेश मिला है. मेरी प्रमोशन वहीं से हो जाएगी पर शायद यहां दिल्ली वापस आना संभव न हो पाए,’’ उस के मुंह से यह खबर सुन कर सब से ज्यादा परेशान संगीता हुई.
‘‘प्रमोशन के बाद कहां जाना पड़ेगा आप को?’’ उस ने चिंतित लहजे में पूछा.
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‘‘अभी कुछ पता नहीं. हमारी कंपनी की कुछ शाखाएं तो ऐसी घटिया जगह हैं, जहां न अच्छा खानापीना मिलता है और न अस्पताल, स्कूल जैसी सुविधाएं ढंग की हैं,’’ रवि के इस जवाब को सुन कर उस का चेहरा और ज्यादा उतर गया.
‘‘तब आप प्रमोशन लेने से इनकार कर दो,’’ संगीता एकदम चिड़ उठी, ‘‘मुझे दिल्ली छोड़ कर धक्के खाने कहीं और नहीं जाना है.’’
‘‘तुम पागल हो गई हो क्या? मैं अपनी प्रमोशन कैसे छोड़ सकता हूं?’’ रवि गुस्सा हो उठा.
‘‘तब इधरउधर धक्के खाने आप अकेले जाना. मैं अपने घर वालों से दूर कहीं नहीं जाऊंगी,’’ अपना फैसला सुना कर नाराज नजर आती संगीता अपने कमरे में घुस गई.
आगामी शनिवार को रवि हवाईजहाज से मुंबई चला गया. उस के घर छोड़ने से पहले ही अपनी अटैची ले कर संगीता मायके चली गई थी.
रवि के मुंबई चले जाने से संगीता की किराए के अलग घर में रहने की योजना लंगड़ा गई. उस के भैयाभाभी तो पहले ही से ऐसा कदम उठाए जाने के हक में नहीं थे. उस की दीदी और मां रवि की गैरमौजूदगी में उसे अलग मकान दिलाने का हौसला अपने अंदर पैदा नहीं कर पाईं.
विवाहित लड़की का ससुराल वालों से लड़झगड़ कर अपने भाईभाभी के पास आ कर रहना आसान नहीं होता, यह कड़वा सच संगीता को जल्द ही समझ में आने लगा. कंपनी के गैस्टहाउस में रह रहा रवि उसे अपने पास रहने को बुला नहीं सकता था और संगीता ने अपनी ससुराल वालों से संबंध इतने खराब कर रखे थे कि वे उसे रवि की गैरमौजूगी में बुलाना नहीं चाहते थे.
सब से पहले संगीता के संबंध अपनी भाभी से बिगड़ने शुरू हुए. घर के कामों में हाथ बंटाने को ले कर उन के बीच झड़पें शुरू हुईं और फिर भाभी को अपनी ननद की घर में मौजूदगी बुरी तरह खलने लगी.
संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी की तो उन का बेटा उन से झगड़ा करने लगा. तब संगीता की बड़ी बहन और जीजा को झगड़े में कूदना पड़ा. फिर टैंशन बढ़ती चली गई.
‘‘हमारे घर की सुखशांति खराब करने का संगीता को कोई अधिकार नहीं है, मां. इसे या तो रवि के पास जा कर रहना चाहिए या फिर अपनी ससुराल में. अब और ज्यादा इस की इस घर में मौजूदगी मैं बरदाश्त नहीं करूंगा,’’ अपने बेटे की इस चेतावनी को सुन कर संगीता की मां ने घर में काफी क्लेश किया पर ऐसा करने के बाद उन की बेटी का घर में आदरसम्मान बिलकुल समाप्त हो गया.
बहू के साथ अपने संबंध बिगाड़ना उन के हित में नहीं था, इसलिए संगीता की मां ने अपनी बेटी की तरफदारी करना बंद कर दिया. उन में आए बदलाव को नोट कर के संगीता उन से नाराज रहने लगी थी.
संगीता की बड़ी बहन को भी अपने इकलौते भाई को नाराज करने में अपना हित नजर नहीं आया था. रवि की प्रमोशन हो जाने की खबर मिलते ही उस ने अपनी छोटी बहन को सलाह दी, ‘‘संगीता, तुझे रवि के साथ जा कर ही रहना पड़ेगा. भैया के साथ अपने संबंध इतने ज्यादा मत बिगाड़ कि उस के घर के दरवाजे तेरे लिए सदा के लिए बंद हो जाएं. जब तक रवि के पास जाने की सुविधा नहीं हो जाती, तू अपनी ससुराल में जा कर रह.’’
‘‘तुम सब मेरा यों साथ छोड़ दोगे, ऐसी उम्मीद मुझे बिलकुल नहीं थी. तुम लोगों के बहकावे में आ कर ही मैं ने अपनी ससुराल वालों से संबंध बिगाड़े हैं, यह मत भूलो, दीदी,’’ संगीता के इस आरोप को सुन कर उस की बड़ी बहन इतनी नाराज हुई कि दोनों के बीच बोलचाल न के बराबर रह गई.
रवि के लिए संगीता को मुंबई बुलाना संभव नहीं था. संगीता को बिन बुलाए ससुराल लौटने की शर्मिंदगी से हालात ने बचाया.
दरअसल, रवि को मुंबई गए करीब 2 महीने बीते थे जब एक शाम उस के सहयोगी मित्र अरुण ने संगीता को आ कर बताया, ‘‘आज हमारे बौस उमेश साहब के मुंह से बातोंबातों में एक काम की बात निकल गई, संगीता… रवि के दिल्ली लौटने की बात बन सकती है.’’
‘‘कैसे?’’ संगीता ने फौरन पूछा.
अनुंकपा के आधार पर उस की पोस्टिंग यहां हो सकती है.’’
‘‘मैं कुछ समझी नहीं?’’ संगीता के चेहरे पर उलझन के भाव उभरे.
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‘‘मैं पूरी बात विस्तार से समझाता हूं. देखो, अगर रवि यह अर्जी दे कि दिल के रोगी पिता की देखभाल के लिए उस का उन के पास रहना जरूरी है तो उमेश साहब के अनुसार उस का तबादला दिल्ली किया जा सकता है.’’
‘‘लेकिन रवि के बड़े भैयाभाभी भी तो मेरे सासससुर के पास रहते हैं. इस कारण क्या रवि की अर्जी नामंजूर नहीं हो जाएगी?’’
‘‘उन का तो अपना फ्लैट है न?’’
‘‘वह तो है.’’
‘‘अगर वे अपने फ्लैट में शिफ्ट हो जाएं तो रवि की अर्जी को नामंजूर करने का यह कारण समाप्त हो जाएगा.’’
‘‘यह बात तो ठीक है.’’
‘‘तब आप अपने जेठजेठानी को उन के फ्लैट में जाने को फटाफट राजी कर के उमेश साहब से मिलने आ जाओ,’’ ऐसी सलाह दे कर अरुण ने विदा ली.
संगीता ने उसी वक्त रवि को फोन मिलाया.
‘‘तुम जा कर भैयाभाभी से मिलो, संगीता. मैं भी उन से फोन पर बात करूंगा,’’ रवि सारी बात सुन कर बहुत खुश हो उठा था.
संगीता को झिझक तो बड़ी हुई पर अपने भावी फायदे की बात सोच कर वह अपनी ससुराल जाने को 15 मिनट में तैयार हो गई.
रवि के बड़े भाई ने उस की सारी बात सुन कर गंभीर लहजे में जवाब दिया, ‘‘संगीता, इस से ज्यादा खुशी की बात और क्या हो सकती है कि रवि का तबादला दिल्ली में हो जाए पर मुझे अपने फ्लैट को किराए पर मजबूरन चढ़ाना पढ़ेगा. उस की मासिक किस्त मैं उसी किराए से भर पाऊंगा.’’
रवि और संगीता के बीच फोन पर 2 दिनों तक दसियों बार बातें हुईं और अंत में उन्हें बड़े भैया के फ्लैट की किस्त रवि की पगार से चुकाने का निर्णय मजबूरन लेना पड़ा.
सप्ताह भर के अंदर बड़े भैया का परिवार अपने फ्लैट में पहुंच गया और संगीता अपना सूटकेस ले कर ससुराल लौट आई.
रवि ने कूरियर से अपनी अर्जी संगीता को भिजवा दी. उसे इस अर्जी को रवि के बौस उमेश साहब तक पहुंचाना था. संगीता ने फोन कर के उन से मिलने का समय मांगा तो उन्होंने उसे रविवार की सुबह अपने घर आने को कहा.
‘‘क्या मैं आप से औफिस में नहीं मिल सकती हूं, सर?’’ संगीता इन शब्दों को बड़ी कठिनाई से अपने मुख ने निकाल पाई.
‘‘मैं तुम्हें औफिस में ज्यादा वक्त नहीं दे पाऊंगा, संगीता. मैं घर पर सारे कागजात तसल्ली से चैक कर लूंगा. मैं नहीं चाहता हूं कि कहीं कोई कमी रह जाए. यह मेरी भी दिली इच्छा है कि रवि जैसा मेहनती और विश्वसनीय इनसान वापस मेरे विभाग में लौट आए. क्या तुम्हें मेरे घर आने पर कोई ऐतराज है?’’
‘‘न… नो, सर. मैं रविवार की सुबह आप के घर आ जाऊंगी,’’ कहते हुए संगीता का पूरा शरीर ठंडे पसीने से नहा गया था.
उस के साथ उमेश साहब के घर चलने के लिए हर कोई तैयार था पर संगीता सारे कागज ले कर वहां अकेली पहुंची. उन के घर में कदम रखते हुए वह शर्म के मारे खुद को जमीन में गड़ता महसूस कर रही थी.
उमेश साहब की पत्नी शिखा का सामना करने की कल्पना करते ही उस का शरीर कांप उठता था. रवि के मुंबई जाने से कुछ दिन पूर्व ही वह शिखा से पहली बार मिली थी. उस मुलाकात में जो घटा था, उसे याद करते ही उस का दिल किया कि वह उलटी भाग जाए. लेकिन अपना काम कराने के लिए उसे उमेश साहब के घर की दहलीज लांघनी ही पड़ी.
अचानक उस दिन का घटना चक्र उस की आंखों के सामने घूम गया.
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उस दिन रवि शिखा को एक स्कूल में इंटरव्यू दिलाने ले जा रहा था. रवि का बैंक उस स्कूल के पास ही था. उसे बैंक में कुछ पर्सनल काम कराने थे. जितनी देर में शिखा स्कूल में इंटरव्यू देगी, उतनी देर में वह बैंक के काम करा लेगा, ऐसा सोच कर रवि कुछ जरूरी कागज लेने शिखा के साथ अपने घर आया था.
संगीता उस दिन अपनी मां से मिलने गई हुई थी. वह उस वक्त लौटी जब शिखा एक गिलास ठंडा पानी पी कर उन के घर से अकेली स्कूल जा रही थी.
वह शिखा को पहचानती नहीं थी, क्योंकि उमेश साहब ने कुछ हफ्ते पहले ही अपना पदभार संभाला था.
‘‘कौन हो तुम? मेरे घर में किसलिए आना हुआ?’’ संगीता ने बड़े खराब ढंग से शिखा से पूछा था.
‘‘रवि और मेरे पति एक ही औफिस में काम करते हैं. मेरा नाम शिखा है,’’ संगीता के गलत व्यवहार को नजरअंदाज करते हुए शिखा मुसकरा उठी थी.
‘‘मेरे घर में तुम्हें मेरी गैरमौजूदगी में आने की कोई जरूरत नहीं है… अपने पति को धोखा देना है तो कोई और शिकार ढूंढ़ो…मेरे पति के साथ इश्क लड़ाने की कोशिश की तो मैं तुम्हारे घर आ कर तुम्हारी बेइज्जती करूंगी,’’ उसे यों अपमानित कर के संगीता अपने घर में घुस गई थी.
तब उसे रोज लगता था कि रवि उस के साथ उस के गलत व्यवहार को ले कर जरूर झगड़ा करेगा पर शिखा ने रवि को उस दिन की घटना के बारे में कुछ बताया ही नहीं था. अब रवि की दिल्ली में बदली कराने के लिए उसे शिखा के पति की सहायता चाहिए थी. अपने गलत व्यवहार को याद कर के संगीता शिखा के सामने पड़ने से बचना चाहती थी पर ऐसा हो नहीं सका.
उन के ड्राइंगरूम में कदम रखते ही संगीता का सामना शिखा से हो गया.
‘‘मैं अकारण अपने घर आए मेहमान का अपमान नहीं करती हूं. तुम बैठो, वे नहा रहे हैं,’’ उसे यह जानकारी दे कर शिखा घर के भीतर चल दी.
‘‘प्लीज, आप 1 मिनट मेरी बात सुन लीजिए,’’ संगीता ने उसे अंदर जाने से रोका.
‘‘कहो,’’ अपने होंठों पर मुसकान सजा कर शिखा उस की तरफ देखने लगी.
‘‘मैं…मैं उस दिन के अपने खराब व्यवहार के लिए क्षमा मांगती हूं,’’ संगीता को अपना गला सूखता लगा.
‘‘क्षमा तो मैं तुम्हें कर दूंगी पर पहले मेरे एक सवाल का जवाब दो…यह ठीक है कि तुम मुझे नहीं जानती थीं पर अपने पति को तुम ने चरित्रहीन क्यों माना?’’ शिखा ने चुभते स्वर में पूछा.
‘‘उस दिन मुझ से बड़ी भूल हुई…वे चरित्रहीन नहीं हैं,’’ संगीता ने दबे स्वर में जवाब दिया.
‘‘मेरी पूछताछ का भी यही नतीजा निकला था. फिर तुम ने हम दोनों पर शक क्यों किया था?’’
‘‘उन दिनों मैं काफी परेशान चल रही थी…मुझे माफ कर…’’
‘‘सौरी, संगीता. तुम माफी के लायक नहीं हो. तुम्हारी उस दिन की बदतमीजी की चर्चा मैं ने आज तक किसी से नहीं की है पर अब मैं सारी बात अपने पति को जरूर बताऊंगी.’’
‘‘प्लीज, आप उन से कुछ न कहें.’’
‘‘मेरी नजरों में तुम कैसी भी सहायता पाने की पात्रता नहीं रखती हो. मुझे कई लोगों ने बताया है कि तुम्हारे खराब व्यवहार से रवि और तुम्हारे ससुराल वाले बहुत परेशान हैं. अपने किए का फल सब को भोगना ही पड़ता है, सो तुम भी भोगो.
शिखा को फिर से घर के भीतरी भाग की तरफ जाने को तैयार देख संगीता ने उस के सामने हाथ जोड़ दिए, ‘‘मैं आप से वादा करती हूं कि मैं अपने व्यवहार को पूरी तरह बदल दूंगी…अपनी मां और बहन का कोई भी हस्तक्षेप अब मुझे अपनी विवाहित जिंदगी में स्वीकार नहीं होगा…मेंरे अकेलेपन और उदासी ने मुझे अपनी भूल का एहसास बड़ी गहराई से करा दिया है.’’
‘‘तब रवि जरूर वापस आएगा… हंसीखुशी से रहने की नई शुरुआत के लिए तुम्हें मेरी शुभकामनाएं संगीता…आज से तुम मुझे अपनी बड़ी बहन मानोगी तो मुझे बड़ी खुशी होगी.’’
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‘‘थैंक यू, दीदी,’’ भावविभोर हो इस बार संगीता उन के गले लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी.
उमेश साहब के प्रयास से 4 दिन बाद रवि के दिल्ली तबादला होने के आदेश निकल गए. इस खबर को सुन कर संगीता अपनी सास के गले लग कर खुशी के आंसू बहाने लगी थी.
उसी दिन शाम को रवि के बड़े भैया उमेश साहब का धन्यवाद प्रकट करने उन के घर काजू की बर्फी के डिब्बे के साथ पहुंचे.
‘‘अब तो सब ठीक हो गया न राजेश?’’
‘‘सब बढि़या हो गया, सर. कुछ दिनों में रवि बड़ी पोस्ट पर यहीं आ जाएगा. संगीता का व्यवहार अब सब के साथ अच्छा है. अपनी मां और बहन के साथ उस की फोन पर न के बराबर बातें होती हैं. बस, एक बात जरा ठीक नहीं है, सर.’’
‘‘कौन सी, राजेश?’’
‘‘सर, संयुक्त परिवार में मैं और मेरा परिवार बहुत खुश थे. अपने फ्लैट में हमें बड़ा अकेलापन सा महसूस होता है,’’ राजेश का स्वर उदास हो गया.
‘‘अपने छोटे भाई के वैवाहिक जीवन को खुशियों से भरने के लिए यह कीमत तुम खुशीखुशी चुका दो, राजेश. अपने फ्लैट की किस्त के नाम पर तुम रवि से हर महीने क्व10 हजार लेने कभी बंद मत करना. यह अतिरिक्त खर्चा ही संगीता के दिमाग में किराए के मकान में जाने का कीड़ा पैदा नहीं होने देगा.’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं, सर. वैसे रवि से रुपए ले कर मैं नियमित रूप से बैंक में जमा कराऊंगा. भविष्य में इस मकान को तोड़ कर नए सिरे से बढि़या और ज्यादा बड़ा दोमंजिला मकान बनाने में यह पैसा काम आएगा. तब मैं अपना फ्लैट बेच दूंगा और हम दोनों भाई फिर से साथ रहने लगेंगे,’’ राजेश भावुक हो उठा.
‘‘पिछले दिनों रवि को मुंबई भेजने और तुम्हारे फ्लैट की किस्त उस से लेने की हम दोनों के बीच जो खिचड़ी पकी है, उस की भनक किसी को कभी नहीं लगनी चाहिए,’’ उमेश साहब ने उसे मुसकराते हुए आगाह किया.
‘‘ऐसा कभी नहीं होगा, सर. आप मेरी तरफ से शिखा मैडम को भी धन्यवाद देना. उन्होंने रवि के विवाहित जीवन में सुधार लाने का बीड़ा न उठाया होता तो हमारा संयुक्त परिवार बिखर जाता.’’
‘‘अंत भला तो सब भला,’’ उमेश साहब की इस बात ने राजेश के चेहरे को फूल सा खिला दिया था.
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