Serial Story: अपने अपने शिखर (भाग-3)

पिछला भाग- अपने अपने शिखर: भाग-2

‘‘देख साखी, मैं सीरियसली बात कर रही हूं और तू बात को हवा में उड़ा रही है. सचसच बोल, कोई है?’’

‘‘है तो पर बताऊंगी नहीं.’’

‘‘क्यों?’’

‘‘क्योंकि तुम अपने बारे में तो कुछ बताओगी नहीं.’’

‘‘कोई हो तो बताऊं.’’

‘‘तो समझ मेरा भी कोई नहीं.’’ फिर थोड़ी सी चुप्पी के बाद बोली, ‘‘अच्छा बताती हूं.’’

‘‘सच?’’

‘‘हां सच. आनन वर्मा को जानती है?’’ साखी ने पूछा.

‘‘वही आनन, जो अपने साथ बायो की कोचिंग में था, जो तुम्हें चाहता था.’’

‘‘चाहता तो वह दोनों को था, लेकिन तुम से डरता था तुम्हारे पापा के पद के कारण. आजकल यहीं है. मैडिकल में हो नहीं पाया तो बी फार्मा कर रहा है. कभीकभी मिलने आता है. मैं भी एकाध बार गई हूं उस के घर. उस के मांबाप मुझे बहुत चाहते हैं. उस के लिए मेरे दिल में भी सौफ्ट कौर्नर है.’’

‘‘तो फिर?’’

‘‘फिर क्या? मेरी लव स्टोरी यहीं खत्म. यहां पढ़ाई से फुरसत नहीं. तुम क्या समझती हो, यहां बौलीवुड की तर्ज पर मैं प्रेम कहानी तैयार कर रही हूं?’’

‘‘देखो साखी, तुम मेरी बात को हमेशा हवा में उड़ा देती हो.’’

‘‘देखो भई, मैं ने अपनी शादी का काम अपने मम्मीपापा पर छोड़ दिया है. जिस दिन वे मुझ से सुपर लड़का ढूंढ़ कर मुझे बता देंगे, मैं जा कर चुपचाप मंडप में बैठ जाऊंगी. लेकिन मैं जानती हूं कि वे अपनी बिरादरी में सुपर लड़का नहीं ढूंढ़ पाएंगे और इंटरकास्ट मैरिज तो मेरे परिवार में किसी के गले ही नहीं उतर सकती. वैसे एक बात बताऊं सांची, अब मेरी विवाह में कोई खास रुचि बची नहीं है. क्या मिलता है विवाह से? थोड़ी सी खुशी और बदले में झंझटों का झमेला. अगर सब ठीक हुआ तो जिंदगी ठीकठाक कट जाती है वरना पूरी जिंदगी ऐडजस्टमैंट करतेकरते गुजार दो, घुटते हुए. नहीं करो तो बस एक ही गम रहता है कि शादी नहीं हुई. अब तुम बताओ अपनी प्रेम कहानी, लेकिन कमरे में चल कर. यहां खड़ेखड़े थकान होने लगी है.’’

वे कमरे में आ गईं और अधलेटी हो कर बतियाने लगीं.

‘‘साखी, तुम तो जानती हो कि मुझे कभी अकेला नहीं छोड़ा जाता है. जिस चीज की जरूरत हो, हाजिर. अगर कभी बाजार से पेनपैंसिल, किताबकौपी खरीदने का मौका भी मिला तो एक चपरासी अंगरक्षक की तरह साथ में रहता है. अभी तक ऐसा कोई टकराया ही नहीं, जो मुझ से खुल कर कुछ कहे और मुझे भी अभी तक कुछकुछ हुआ नहीं.’’

‘‘तो फिर आज शादी की परिचर्चा क्यों की जा रही है?’’

‘‘इसलिए कि आजकल मेरी शादी के प्रस्ताव बहुत आ रहे हैं. एक से बढ़ कर एक. मेरी बिरादरी में अच्छे रिश्तों की कोई कमी नहीं. कोई बड़ा व्यवसायी है, तो कोई प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार का होनहार. कोई छोटा अधिकारी है, तो कोई बड़ा अधिकारी. मेरे पापा जब से दिल्ली ट्रांसफर हुए हैं, तब से चर्चे कुछ ज्यादा ही हैं. पापा प्रिफर करते हैं कि आईएएस मिले और शायद यह उन के लिए मुश्किल नहीं,’’ सांची ने बिना झिझक के बताया. साखी चुपचाप उस का मुंह देखती रही.

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कुछ महीने बाद साखी को एक भारीभरकम निमंत्रण पत्र मिला, जो सांची के पिता द्वारा भेजा गया था. उस की शादी प्रशांत राय, आईएएस से दिल्ली के एक पंचसितारा होटल में होने जा रही थी. लेकिन शादी की तारीख वाले दिन साखी का पोस्ट ग्रैजुएशन मैडिकल ऐंट्रैंस ऐग्जामिनेशन था, इसलिए चाह कर भी वह शादी में न जा सकी.

जन्मदिन जीवन का खास दिन लगता है. हर साल आता है और चला जाता है. उस के बाद जीवन फिर उसी ढर्रे पर चलने लगता है. लेकिन साखी का पिछला जन्मदिन ऐसा नहीं था. उस दिन वर्षों से पड़ी उस के मन की एक गांठ खुल गई थी. डाक्टर होने के नाते वह अकसर जिस बात को ले कर शंकित रहती थी, परेशान हो उठती थी, उस का समाधान हो गया था. उस के बाद वह सामान्य नहीं रह पाई. बहुत से विचार उस के मस्तिष्क में घुमड़ते रहते थे. पूरा साल ऐसे ही व्यतीत हुआ.

जन्मदिन के अवसर पर साखी सीमित  लोगों को आमंत्रित करती थी, जिस में उस के विभाग में काम करने वाले डाक्टर्स व अन्य काम करने वाले लोग होते थे. उस बार उस ने मेट्रेन मारिया को आमंत्रित कर लिया था. मेट्रेन मारिया उम्रदराज और अनुभवी थीं. मिशन के दूसरे अस्पताल से तरक्की पा कर आई थीं. दीना उन का ही इकलौता बेटा था. कोई स्थायी नौकरी न मिलने के कारण दीना अपनी मां के साथ आया था और छोटेमोटे फंक्शन में कुक का काम कर लेता था. अच्छा कुक होने की तारीफ सुन कर खानपान का जिम्मा दीना को दिया गया था.

अतिथियों के जाने के बाद दीना और उस के सहायक बचा हुआ खाना व सामान समेट रहे थे. मेट्रेन मारिया को दीना के साथ वापस जाना था, इसलिए वे रुकी थीं. गार्डन के एक कोने में पड़ी कुरसियों पर मेट्रेन मारिया और साखी बैठी थीं. समय बिताने के लिए औपचारिक बातचीत में साखी ने ऐसे ही पूछ लिया, ‘‘मेट्रेन आप कहांकहां रहीं?’’

मेट्रेन मारिया ने कई जगहों के नाम गिनाए. उन में रावनवाड़ा का नाम भी आया. साखी चौंकना पड़ी. साखी का चौंकना मेट्रेन मारिया नहीं देख पाईं. उन्होंने अपना चश्मा उतार लिया था और उंगलियों से अपनी पलकें बंद कर के सहला रही थीं.

‘‘रावनवाड़ा, कब?’’ साखी के मुंह से निकल गया था.

‘‘आप रावनवाड़ा जानती हैं? वह तो कोई मशहूर जगह नहीं.’’

‘‘हां, नाम सुना है, क्योंकि मेरी एक क्लासमेट वहीं की थी,’’ साखी ने सामान्य होते हुए कहा. मेट्रेन ने जो कालाखंड बताया उस में साखी के जन्म का वर्ष भी था. साखी ने शरीर में सनसनी सी महसूस की और सचेत हो कर पूछा, ‘‘मेट्रेन, आप को तो बहुत तजरबा है. नर्स की नौकरी में आप ने बहुतों के दुखसुख और बहुत से जन्म और मृत्यु देखे होंगे. बहुतों के दुखसुख भी बांटे होंगे. कोई ऐसा वाकेआ जरूर होगा, जो आप के जेहन में बस गया होगा.’’

मेट्रेन मारिया कुछ देर को चुप रहीं, जैसे कुछ सोच रही हों. फिर दोनों हाथ उठा कर धीमे स्वर में बोलीं, ‘‘डाक्टर, मेरे इन हाथों से ऐसा कुछ हुआ है, जिस से एक ऐसी मां की गोद भरी है, जो हमेशा खाली रहने वाली थी. लेकिन जो कुछ मैं ने किया, वह मेरे पेशे के खिलाफ था और मुझे वह बात किसी से कहनी नहीं चाहिए. कम से कम एक डाक्टर के सामने तो बिलकुल ही नहीं.’’ इतना कह कर वे चुप हो गईं. साखी उन के चेहरे के भाव अंधेरे में पढ़ नहीं पा रही थी.

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