नजरिया बदलने की जरूरत है

अपने इकलौते युवा बेटे को एक असमय दुर्घटना में खो देने वाले वर्मा दम्पत्ति हर समय जोश और जिंदादिली से भरपूर नजर आते हैं. छोटे बड़े किसी भी समारोह में पहुंचकर वे अपने हरफनमौला स्वभाव के कारण वातावरण को खुशनुमा बना देते हैं. उनसे मिलकर हर इंसान सकारात्मकता से भर उठता है. अपने दिवंगत बेटे को याद करते हुए श्रीमती गीता वर्मा कहती हैं,”उसे जाना था सो चला गया, उसके बारे में ही सोचते रहेंगे तो जीना ही दूभर हो जाएगा….. तनाव.. अकेलेपन और फिर डिप्रेशन को गले लगाने से तो अच्छा है कि हम जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाएं ताकि हमारा जीवन तो सुचारू ढंग से चलता रहे.”

गीता जी के पति राजन वर्मा बैंक के रीजनल मैनेजर पद से रिटायर हुए हैं वे कहते हैं,”बेटा ही तो गया है हम तो अभी इसी धरती पर हैं, जो चला गया उसे लेकर बैठे रहने से तो जिंदगी नहीं चलने वाली , जिंदगी तो चलने का नाम है और वह हर हाल में अपनी डगर पर निर्बाध गति से चलती ही रहती है, हां बेटे के जाने के बाद एक पल को ऐसा लगा था मानो अब सब खत्म हो गया…..उसके बारे में सोचते सोचते कभी कभी तो हमें इतना तनाव हो जाता था कि रातों को नींद नहीं आती थी, घर में खाना नहीं बनता था और यदि किसी तरह बन गया तो खाने की इच्छा ही नहीं होती थी और उस खाने को यूं ही फेंक दिया जाता था….इसी तरह दिन गुजर रहे थे. फिर एक दिन लगा कि इंसान का जन्म बहुत मुश्किल से मिलता है और एक हम है कि अपनी इस खूबसूरत जिंदगी को यूं ही बर्बाद कर रहे हैं….इस तरह तो एक दिन बीमार होकर बेड पर आ जाएंगे. बस उस दिन दुःख, अवसाद, और तनाव को हटाकर हम यथार्थ में आ गए और फिर तो लगा कि अभी तो बहुत कुछ करना शेष है. और उसी दिन से हमारा जीवन को देखने का नजरिया बदल गया.”
अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए गीता जी कहतीं है,”विभू के रहते कभी हमें अपने बारे में सोचने का अवसर ही नहीं मिला, अब तो राजन भी अपनी नौकरी से रिटायर हो गए हैं. अब हम दोनों ने अपनी बागवानी, कुकिंग, और संगीत की हॉबी को तराशना प्रारम्भ कर दिया. 65 वर्ष की उम्र में हमने एक संगीत क्लास ज्वाइन की है, एक संगीत संस्थान से भी जुड़ गए हैं जिसके माध्यम से हम संगीत के स्टेज और फेसबुक लाइव प्रोग्राम्स करते हैं”

“घर बाहर के सभी कार्य हम पति पत्नी मिलकर करते हैं, अब तो सुबह होकर कब रात हो जाती है हमें पता ही नहीं चलता.अरे भई जिंदगी एक बार मिली इसे खूबसूरती से जीने में ही इसकी सार्थकता है.” राजन खुलकर हंसते हुए कहते हैं.

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एक सफल कोचिंग संस्थान की मालकिन और अपने संस्थान में 25 लोगों को रोजगार देने वाली सफल महिला रोमा जी की उम्र उस समय 40 वर्ष की थी जब दिल का दौरा पड़ने से असमय उनके पति की मृत्यु हो गयी.वे कहतीं हैं,”उनके जाने के बाद लगा था कि ईश्वर ने उन्हें भी क्यों नहीं उठा लिया. कुछ माह तक तो जिंदगी बड़ी बेरंग और नीरस लगती रही. कोई संतान भी नहीं थी जिसके सहारे मैं जीवन काटने का सोचती. सच कहूं तो उस समय मुझे अपने से ज्यादा बदनसीब कोई दूसरा नजर ही नहीं आता था. फिर लगा कि इस संसार में अपनी मर्जी से जीना मरना नहीं होता और फिर जब जीना ही है तो घुटघुट कर और रो रोकर जीने की अपेक्षा शान से जीना चाहिए. अपने आपसे कड़ा संघर्ष करने के बाद अपने नकारात्मक विचारों पर मैंने विजय प्राप्त कर ली. शादी से पूर्व मैं अध्यापन कार्य से जुड़ी थी सो मैंने उसे ही पुनर्जीवित करने का विचार किया और स्वयं को अपडेट करने में जुट गई. कुछ समय बाद एक कोचिंग संस्थान से जुड़ी और दो वर्ष बाद अपना ही कोचिंग संस्थान खोल लिया. सामान्य विद्यार्थियों के अतिरिक्त मैं गरीब तबके के जरूरतमन्द छात्रों को निःशुल्क कोचिंग देती हूँ….यकीन मानिए अब समय कहाँ निकल जाता है मुझे ही पता नहीं चलता….जब मेरे संस्थान का कोई बच्चा किसी परीक्षा को पास करता है तो उससे मिलने वाला सुख अनिवर्चनीय होता है.”

वास्तव में अकेलापन कोई समस्या नहीं है बल्कि हमारे ही नकारात्मक विचारों से उत्सर्जित तरंगों द्वारा निर्मित एक अहसास, मनोभाव और विचार है. मनोवैज्ञानिक काउंसलर कीर्ति वर्मा कहतीं हैं, “इसकी शुरूआत तनाव से होती है और जब यह तनाव निरन्तर मन मस्तिष्क पर हावी रहता है तो इंसान तनावग्रस्त होकर अकेलेपन का शिकार हो जाता है…..और जब यह स्थिति लंबे समय तक रहती है तो फिर डिप्रेशन या अवसाद होने लगता है. इसलिए आवश्यक है कि हमें अपने ऊपर तनाव और अकेलेपन को हावी नहीं होने देना चाहिए. जैसे ही किसी भी कारण से तनाव से मन घिरने लगे तो उसे झिटककर आगे बढ़ने का प्रयास करना ही इससे बचने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है. अक्सर लोग कहते हैं कि ,”जीवन एक संघर्ष अथवा कांटों का ताज है परन्तु 60 वर्षीया मृदुल आंटी को तो जीवन सदैव रंग बिरंगे फूलों से भरा एक गुलदस्ता ही प्रतीत होता है जिसमें गुलाब के कांटे हैं तो रजनीगंधा के फूलों की मखमली पत्तियां भी बस हमें उन्हें देखने का नजरिया भर बदलना है. सेंट्रल स्कूल के प्राचार्य पद से रिटायर, बेहद मिलनसार, खुशमिजाज,

हरफनमौला, चुस्त दुरुस्त, फैशनेबल आंटी को देखकर हर कोई यही सोचता था कि उनके जीवन में तो दुःख का साया भी नहीं हो सकता पर अपने अतीत के बारे में बताते हुए वे कहतीं हैं कि , “जब उनका बेटा मात्र 5 साल का था तो पति के दूसरी औरत से अफेयर के चलते पति को तलाक देना पड़ा फिर पूरा जीवन बेटे की परवरिश और स्कूल में चला गया. बेटा विदेश पढ़ने गया तो वहीं की एक लड़की से विवाह करके सैटल हो गया. स्कूल से रिटायर होने के बाद बेटे की जिद के कारण एकाध बार उसके पास गई भी परन्तु उनकी और मेरी जीवन शैली में बहुत अंतर है वहां मुझे मेरा अस्तित्व ही गुम हुआ जान पड़ता है इसलिए मैं अब यहीं रह रही हूं. एक प्राइवेट स्कूल में नौकरी करती हूँ और खूब देशाटन करते हुए अपना जीवन यापन कर रही हूँ. अकेलापन जैसा कोई शब्द मेरी डिक्शनरी में है ही नहीं और न इसे लेकर मुझे कभी कोई तनाव होता है….मेरे लिए इस जिंदगी से अधिक खूबसूरत कोई चीज हो ही नहीं सकती.’

कभी कभी कुछ लोग सब कुछ होते हुए भी अपने आप को अकेला महसूस करते हैं, वे अपने आप में ही खोए रहते हैं और अक्सर अनेकों बीमारियों को गले लगा लेते हैं. मध्यमवर्गीय परिवार में पली बढ़ी अंतर्मुखी प्रवृत्ति की भावना का विवाह एक अतिसम्पन्न परिवार में हुआ. बहुत प्रयास करने के बाद भी वहां सामंजस्य नहीं बैठा पाने के कारण वह तनावग्रस्त रहने लगी. वह कहती है,”मेरे घर में जहां मनचाही ड्रेस मिलने पर, मनचाहा खाना बन जाने पर या कहीं घूमने जाने जैसी छोटी छोटी खुशियों को सेलिब्रेट किया जाता था वहीं यहां हर समय बिजनेस और सम्पत्ति की बातें….. खुशी या खुश होने जैसे किसी शब्द से तो यहां किसी का परिचय ही नहीं था. यहां सेलेब्रेशन का तात्पर्य ही होटल की बड़ी बड़ी पार्टियां हैं जहां सजधजकर कठपुतली की भांति बैठे रहो. स्वयं को अभिव्यक्त न कर पाने के कारण मैं अंदर ही अंदर घुटने लगी थी जिससे मैं तनावग्रस्त रहने लगी…उन दिनों मुझे अपना जीवन निरुद्देश्य और बेकार लगने लगा था. एक दिन अपनी अंतरंग सखी के कहने पर मैंने अपना कालिज टाइम के शौक लेखन को फिर से प्रारंभ कर दिया ….बस उसके बाद से तो मेरे जीवन को मानो दिशा ही मिल गयी….सारा तनाव छूमंतर हो गया . आज मैं कुछ पत्रिकाओं की नियमित लेखिका हूं. जीवन मूल्यों पर आधारित दो पुस्तकों का प्रकाशन भी हो चुका है. अब मेरा जिंदगी के प्रति नजरिया ही बदल गया है, किसी पत्रिका या पेपर में छपने वाला आर्टिकल या कहानी मुझे असीम खुशी प्रदान करती है. मेरी जिंदगी से तनाव या अकेलेपन का नामोनिशान ही गुम हो चुका है.”

भोपाल के सिटी इलाके में रहने वाले अनमोल गुप्ता जी सहायक संचालक कृषि के पद से रिटायर हैं और अब एक नर्सरी के मालिक और आर्गेनिक ग्रीन संस्था के अध्यक्ष भी . ऑर्गेनिक सब्जियों की होम डिलीवरी करने के साथ साथ नर्सरी में आने वाले प्रत्येक ग्राहक को वे प्रत्येक पौधे को लगाने और देखभाल के तरीके बताते हैं और लोगों की डिमांड पर होम विजिट भी करते हैं. सुबह 8 बजे से लेकर रात्रि 10 बजे तक वे बेहद व्यस्त रहते हैं. सप्ताह का हर दिन गांवों में उगाई जाने वाली ऑर्गेनिक सब्जियों की देखरेख के लिए निर्धारित है.उनका इकलौता बेटा बहू दोनों मुंबई में सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं…. पत्नी का 2 वर्ष पूर्व देहांत हो गया तो बेटा जबर्दस्ती अपने साथ मुंबई ले गया. वे कहते हैं,”वहां दो माह में ही मैं तनावग्रस्त रहने लगा. उन दोनों के ऑफिस चले जाने के बाद होनेवाले अकेलेपन से मैं परेशान रहने लगा. मुझे लगने लगा कि यदि मैं और अधिक यहां रहा तो अवश्य डिप्रेशन में चला जाऊंगा..जिंदगी भर किसानों और खेतों के साथ रहने वाला मैं वहां की महानगरीय फ्लैट कल्चर में एडजस्ट ही नहीं हो पा रहा था. एक दिन उचित अवसर देखकर यही सच्चाई मैंने अपने बेटे बहू को बताई बड़ी मुश्किल से वे मेरी परेशानी को समझ पाए और वापस भोपाल भेजने को राजी हुए. यहां आकर लगा मानो मैं स्वर्ग में आ गया हूं. कृषि के क्षेत्र में आजीवन कार्य किया है अतः इसी में पूरी तरह से रम गया हूं. अब कब दिन रात होते हैं मुझे ही पता नहीं चलता. जीवन को तो उद्देश्य मिल ही गया है साथ ही मन में समाज के लिए कुछ कर पाने का संतोष भी है.”

इन लोंगों से मिलकर लगता है कि मानो जिंदगी में तनाव और अकेलेपन जैसी कोई समस्या है ही नहीं हमें सिर्फ अपने सोचने की दिशा को परिवर्तित करना है. अपने दिलो दिमाग में नकारात्मकता को किसी भी कीमत पर प्रवेश नहीं देना चाहिए बल्कि सृजनात्मकता और सकारात्मकता में निरन्तर वृद्धि करते रहना चाहिए. कभी कभी बच्चों के बहुत दूर चले जाने, किसी प्रियजन की असमय मृत्यु हो जाने, कठिन परिश्रम के बाद भी सफलता न मिल पाने पर जीवन के प्रवाह में अकेलापन, नैराश्य और खालीपन का आ जाना स्वाभाविक सी बात है परन्तु इससे बहुत अधिक समय तक प्रभावित होना स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है. मनोवैज्ञानिकों और डॉक्टरों के अनुसार अकेलेपन से बी पी, शुगर, अनिद्रा जैसी बीमारियों के साथ साथ याददाश्त भी कमजोर होने लगती है. बेव एम डी के अनुसार अकेलेपन के कारण 26 प्रतिशत तक मृत्यु की और 32 प्रतिशत स्ट्रोक की आशंका बढ़ जाती है.इसलिए आवश्यक है कि जैसे ही यह खालीपन आपके मन मस्तिष्क में जगह बनाने लगे तो सचेत होकर स्वयं को सकारात्मक दिशा में लगा देना चाहिए ताकि समस्या और अधिक गम्भीर न हो.

-नजरिया बदलना है जरूरी

जीवन को देखने का नजरिया बदलें. अपनी ही स्थिति पर हरदम दुःखी होते रहने की अपेक्षा अपने से कमतर लोंगों को देखने की आदत डालें….आप पाएंगे कि आपसे अधिक सुखी इस संसार में कोई दूसरा है ही नहीं. सोनी टी वी के सुप्रसिद्ध धारावाहिक कौन बनेगा करोड़पति में एक खिलाड़ी के द्वारा दी गयी सुखी इंसान की परिभाषा सौ प्रतिशत सही है कि,” हाथ पैर और दिल दिमाग से मैं पूरी तरह फिट हूं इसलिए मैं स्वयं को इस संसार का सर्वाधिक सुखी इंसान मानता हूं.”वास्तव मैं दुख और सुख जीवन के दो पहलू हैं जिसमें कभी एक पहलू कमजोर होता है तो कभी दूसरा.

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-दोस्तों और परिवार से मिलें

कोरोना ने हमें दोस्तों और परिवार की अहमियत को बखूबी समझा दिया है इसलिए जब भी समय मिले अपने परिवार और सदस्यों के साथ वक़्त अवश्य बिताएं. अपनी दोस्त मंडली के साथ घूमने जाएं, उन्हें भोजन पर बुलाएं, गेम खेले परन्तु केवल उन्हीं दोस्तों के साथ जिनसे मिलकर आपको खुशी मिलती हो.

-फिट रहना है जरूरी

हम सदियों से सुनते आए हैं कि निरोगी काया इस जीवन का सबसे बड़ा सुख है. कोरोना जैसी महामारी के बाद से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मज़बूत करना अत्यंत आवश्यक हो गया है और इसके लिए आवश्यक है कि आप प्रतिदिन कम से कम 40 मिनट स्वयं को दें. इस अवधि में आप इच्छानुसार वॉकिंग, जिमिंग, योगा अथवा व्यायाम करें.

-आहार भी हो पौष्टिक

अक्सर देखा जाता है कि अकेला इंसान अपने लिये भोजन बनाने में आलस्य करता है अथवा एक टाइम बनाकर दो या तीन टाइम तक बासी खाना खाया जाता है. ऐसा करने की अपेक्षा हरदम पौष्टिक और ताजा भोजन खाने का प्रयास किया जाना चाहिए.

-नकारात्मक लोंगों से दूरी बनाएं

नकारात्मकता जहां आपके सोचने समझने की शक्ति को क्षीण करके मन मस्तिष्क को तनावग्रस्त कर देती है वहीं सकारात्मकता असीम ऊर्जा का संचार करके मनुष्य की रचनात्मक शक्ति में वृद्धि करती है. इसके लिए आवश्यक है कि आप नकारात्मक लोंगों से दूरी बनाकर रखें क्योंकि ये लोग निराशा से भरे होते हैं और अपनी इसी विचारधारा की तरंगें वे आपके पास छोड़ जाते हैं जिससे आप भी प्रभावित हो जाते हैं. एक गृहिणी अनीता कहतीं हैं,”मैं निगेटिव लोगों से 2 फ़ीट की दूरी बनाकर रखती हूं क्योकि ये लोग जब भी मिलते हैं मेरे अच्छे खासे दिमाग में अपना कचरा छोड़ जाते हैं.”

-छोटी छोटी खुशियों को सेलिब्रेट करें

जीवन के प्रति सदैव सकारात्मकता से भरपूर रहने वाले एक अधिकारी मनोज जी कहते हैं,”मेरे लिए हर नया दिन एक उत्सव जैसा होता है.मेरी मीटिंग के सफल हो जाने पर, मनचाही मूवी देख लेने पर, दी गयी समय सीमा में कार्य पूर्ण हो जाने पर, या सप्ताहांत का अवकाश मुझे असीम खुशी देता है क्योंकि मेरी नजर में खुश होना या खुशी मनाना एक अहसास है जिसके लिए किसी बड़ी घटना, कार्य या बहुत पैसे का होना आवश्यक नहीं है. वे कहते हैं जब आप इन छोटी छोटी बातों से खुश होना सीख लेते हैं तो तनाव आपके आसपास तक नहीं फटक सकता.

-खुशी देना सीखें

किसी सहेली की कोई रेसिपी, कहानी या आर्टिकल के प्रकाशित होने पर या किसी की विवाह या जन्मदिन की वर्षगांठ पर मैसेज के स्थान पर फोन कॉल करके बधाई देना आपको सकारात्मकता से भर देगा. किसी भूखे को खाना खिलाना, गार्ड या मेड को गरमागरम चाय पिलाने से उसके चेहरे पर आई खुशी आपको अपरिमित ऊर्जा से भर देती है.

-जीवन को सरलतम तरीके से जियें

कुछ लोग जाति, धर्म और सम्पदा के कारण बेवजह का अहंकार पालकर अपने जीवन को दुरूह बना लेते हैं. इसकी अपेक्षा आप जीवन को जितने सरलतम तरीके से जिएंगे जीवन आपको उतना ही खूबसूरत प्रतीत होगा. लोगों से किसीभी मुद्दे पर स्वयम को सही साबित करने के लिए बेवजह की बहस और विवाद से बचें क्योंकि बहसें सदैव निरर्थक और अंतहीन होतीं हैं.

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-उद्देश्यपरक जीवन जियें

अपनी हॉबीज को तराशकर स्वयम को प्रतिदिन एक टास्क दें मसलन आज आप नए पौधे लगाएंगी, कोई नई धुन या गाना सीखेंगी, या कोई नई रेसिपी ट्राय करेंगी, कोई नई मूवी देखेंगी. इसके अतिरिक्त उम्र कोई भी हो आप नया सीखने को सदैव तत्पर रहें क्योंकि किसी भी प्रकार की नकारात्मकता को दूर करने के लिए व्यस्तता ही सर्वोत्तम दवाई है.

-पत्र पत्रिकाएं पढ़ें

जैसा कि सर्वविदित है पत्र पत्रिकाएं इंसान की सबसे अच्छी मित्र होतीं हैं परन्तु सोशल मीडिया, टी वी और मोबाइल के अधिकतम प्रयोग के कारण हम निरन्तर इनसे दूर होते जा रहे हैं, किताबें हमें नई जानकारियां तो देती ही हैं साथ ही नकारात्मक विचारों से भी दूर रखतीं हैं. और इस प्रकार अपने नजरिये और सोचने की दिशा में थोड़ा सा परिवर्तन करके हम अपने इस बेशकीमती जीवन को और अधिक खूबसूरत बना सकते हैं.

आपके बिहेवियर पर निर्भर बच्चे का भविष्य

एक विज्ञापन में सास के द्वारा अपना चश्मा न मिलने की बात पूछने पर बहू कहती है, ‘‘जगह पर तो रखती नहीं हैं और फिर दिन भर बकबक करती रहती हैं.’’

अगले ही पल मां जब अपने बेटे से पूछती है कि लंचबौक्स बैग में रख लिया तो बेटा जवाब देता है, ‘‘क्यों बकबक कर रही हो रख लिया न.’’

मां का पारा एकदम हाई हो जाता है और फिर बेटे को एक चांटा मारते हुए कहती है, ‘‘आजकल स्कूल से बहुत उलटासीधा बोलना सीख रहा है.’’

बच्चा अपना बैग उठा कर बाहर जातेजाते कहता है, ‘‘यह मैं ने स्कूल से नहीं, बल्कि आप से अभीअभी सीखा है.’’  मां अपने बेटे का चेहरा देखती रह जाती है. इस उदाहरण से स्पष्ट है कि बच्चे जो देखते हैं वही सीखते हैं, क्योंकि बच्चे भोले और नादान होते हैं और उन में अनुसरण की प्रवृत्ति पाई जाती है. आप के द्वारा पति के घर वालों के प्रति किया गया व्यवहार बच्चे अब नोटिस कर रहे हैं और कल वे यही व्यवहार अपनी ससुराल वालों के प्रति भी करेंगे. अपने परिवार वालों के प्रति आप के द्वारा किए जाने वाले व्यवहार को हो सकता है आज आप के पति इग्नोर कर रहे हों पर यह आवश्यक नहीं कि आप के बच्चे का जीवनसाथी भी ऐसा कर पाएगा. ऐसी स्थिति में कई बार वैवाहिक संबंध टूटने के कगार पर आ जाता है. इसलिए आवश्यक है कि आप अपने बच्चों के सामने आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें ताकि उन के द्वारा किया गया व्यवहार घर में कभी कलह का कारण न बने.

न करें भेदभाव:

इस बार गरमी की छुट्टियों में रीना की ननद और बहन दोनों का ही उस के पास आने का प्रोग्राम था. रीना जब अपने दोनों बच्चों के साथ मौल घूमने गई तो सोचा सब को देने के लिए कपड़े भी खरीद लिए जाएं. बूआ के परिवार के लिए सस्ते और मौसी के परिवार के लिए महंगे कपड़े देख कर उस की 14 वर्षीय बेटी पूछ ही बैठी, ‘‘मां, बूआ के लिए ऐसे कपड़े क्यों लिए?’’

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‘‘अरे वे लोग तो गांव में रहते हैं. उन के लिए महंगे और ब्रैंडेड लेने से क्या लाभ? मौसी दिल्ली में रहती हैं और वे लोग हमेशा ब्रैंडेड कपड़े ही पहनते हैं, तो फिर उन के लिए उसी हिसाब के लेने पड़ेंगे न.’’

रीना की बेटी को मां का यह व्यवहार पसंद नहीं आया.  न तोड़ें पति का विश्वास: विवाहोपरांत पति अपनी पत्नी से अपने परिवार वालों के प्रति पूरी ईमानदारी बरतने की उम्मीद करता है. ऐसे में आप का भी दायित्व बनता है कि आप अपने पति के विश्वास पर खरी उतरें. केवल पति से प्यार करने के स्थान पर उस के पूरे परिवार से प्यार और अपनेपन का व्यवहार करें.  रीमा अपनी बीमार ननद को जब अपने पास ले कर आई तो बारबार उन की बीमारी के चलते उन्हें हौस्पिटलाइज करवाना पड़ता.

यह देख कर रीमा की मां ने एक दिन उसे समझाया, ‘‘देख बेटा वे शुरू से जिस माहौल में रही हैं उसी में रह पाएंगी. बेहतर है कि तुम इन्हें अपनी ससुराल में जेठानी के पास छोड़ दो और प्रति माह खर्चे के लिए निश्चित रकम भेजती रहो.’’

इस पर रीमा बोली, ‘‘मां, आज विपिन की जगह मेरी बहन होती तो भी क्या आप मुझे यही सलाह देतीं?’’ यह सुन कर उस की मां निरुत्तर हो गईं और फिर कभी इस प्रकार की बात नहीं की.

पतिपत्नी के रिश्ते की तो इमारत ही विश्वास की नींव पर टिकी होती है, इसलिए अपने प्रयासों से इसे निरंतर अधिक मजबूती प्रदान करने की कोशिश करते रहना चाहिए.

आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करें:

सोशल मीडिया पर एक संदेश पढ़ने को मिला, जिस में एक पिता अपने बेटे को एक तसवीर दिखाते हुए कहते हैं, ‘‘यह हमारा फैमिली फोटो है.’’

8 वर्षीय बालक भोलेपन से पूछता है, ‘‘इस में मेरे दादादादी तो हैं ही नहीं, क्या वे हमारे फैमिली मैंबर नहीं हैं?’’

पिता के न कहने पर बच्चा बड़े ही अचरज और मासूमियत से कहता है, ‘‘उफ, तो कुछ सालों बाद आप भी हमारी फैमिली के मैंबर नहीं होंगे.’’

यह सुन कर बच्चे के मातापिता दोनों चौंक उठते हैं. उन्हें अपनी गलती का एहसास होता है. इस से साफ जाहिर होता है कि बच्चे जो भी आज देख रहे हैं वे कल आप के साथ वही व्यवहार करने वाले हैं. इसलिए मायके और ससुराल में किसी भी प्रकार का भेदभाव का व्यवहार कर के अपने बच्चों को वह रास्ता न दिखाएं जो आप को ही आगे चल कर पसंद न आए.

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पारदर्शिता रखें:

दूसरों की बुराई करना, अपमान करना, ससुराल के प्रति अपनी जिम्मेदारी न निभाना, मायके के प्रति अधिक लगाव रखना जैसी बातें पतिपत्नी के रिश्ते को तो कमजोर बनाती ही हैं, अपरोक्षरूप से बच्चों पर भी नकारात्मक प्रभाव छोड़ती हैं, इसलिए आवश्यक है कि रिश्तों में सदैव पारदर्शिता रखी जाए. मेरी बहन और उस के पति ने विवाह के बाद एकदूसरे से वादा किया कि दोनों के मातापिता की जिम्मेदारी उन दोनों की है और उसे वे मिल कर उठाएंगे, चाहे हालात कैसी भी हों. वे पीछे नहीं हटेंगे.

आज उन के विवाह को 10 वर्ष होने वाले हैं. आज तक उन में मायके और ससुराल को ले कर कभी कोई मतभेद नहीं हुआ. जिम्मेदारी महसूस करें: अकसर देखा जाता है कि पति अपने परिवार की जिम्मेदारी को महसूस करते हुए परिवार की आर्थिक मदद करना चाहता है और पत्नी को यह तनिक भी रास नहीं आता. ऐसे में या तो घर महाभारत का मैदान बन जाता है या फिर पति पत्नी से छिपा कर मदद करता है. यदि ससुराल में कोई परेशानी है, तो आप पति का जिम्मेदारी उठाने में पूरा साथ दे कर सच्चे मानों में हम सफर बनें. इस से पति के साथसाथ आप को भी सुकून का एहसास होगा.

बुराई करने से बचें:

रजनी की सास जब भी उस के पास आती हैं, रजनी हर समय उन्हें कोसती है, ‘‘जब देखो तब आ जाती हैं, कितनी गंदगी कर देती हैं, ढंग से रहना तक नहीं आता.’’  उस की किशोर बेटी यह सब देखती और सुनती है, इसलिए उसे अपनी दादी का आना कतई पसंद नहीं आता.

ससुराल पक्ष के परिवार वालों के आने पर उन के क्रियाकलापों पर अनावश्यक टीकाटिप्पणी या बुराई न करें, क्योंकि आप की बातें सुन कर उन के प्रति बच्चे वही धारणा बना लेंगे. इस के अतिरिक्त मायके में ससुराल की और ससुराल में सदैव मायके की अच्छी बातों की ही चर्चा करें. नकारात्मक बातें करने से बचें ताकि दोनों पक्षों के संबंधों में कभी खटास उत्पन्न न हो.

जिस प्रकार एक पत्नी का दायित्व है कि वह अपनी ससुराल और मायके में किसी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार न करे उसी प्रकार पति का भी दायित्व है कि वह अपनी पत्नी के घर वालों को भी पर्याप्त मानसम्मान दे और यदि पत्नी के मायके में कोई समस्या हो तो उसे भी हल करने में वही योगदान दे, जिस की अपेक्षा आप अपनी पत्नी से करते हैं, क्योंकि कई बार देखने में आता है कि यदि लड़की अपनी मायके के प्रति कोई जिम्मेदारी पूर्ण करना चाहती है, तो वह उस की ससुराल वालों को पसंद नहीं आता. इसलिए पतिपत्नी दोनों की ही जिम्मेदारी है कि वे अपनी ससुराल के प्रति किसी भी प्रकार का भेदभावपूर्ण व्यवहार न रखें. यह सही है कि जहां चार बरतन होते हैं आपस में टकराते ही हैं, परंतु उन्हें संभाल कर रखना भी आप का ही दायित्व है. बच्चों के सुखद भविष्य और अपने खुशहाल गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक है कि बच्चों के सामने कोई ऐसा उदाहरण प्रस्तुत न किया जाए जिस पर अमल कर के वे अपने भविष्य को ही दुखदाई बना लें.

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