Relationship Tips : सासबहू के बनतेबिगड़ते रिश्ते, मौडर्न सोच से कम होंगे झगड़े

Relationship Tips : सास और बहू का बेहद नजदीकी रिश्ता होते हुए भी सदियों से विवादित रहा है. तब भी जब महिलाएं अशिक्षित होती थीं खासकर सास की पीढ़ी अधिक शिक्षित नहीं होती थी और आज भी जबकि दोनों पीढि़यां शिक्षित हैं और कहींकहीं तो दोनों ही उच्चशिक्षित हैं. फिर क्या कारण बन जाते हैं इस प्यारे रिश्ते के बिगड़ते समीकरण के संयुक्त परिवारों में जहां सास और बहू दोनों साथ रह रही हैं वहां अगर सासबहू की अनबन रहती है तो पूरे घर में अशांति का माहौल रहता है. सासबहू के रिश्ते का तनाव बहूबेटे की जिंदगी की खुशियों को भी लील जाता है. कभीकभी तो बेटेबहू का रिश्ता इस तनाव के कारण तलाक के कगार तक पहुंच जाता है.

हालांकि, भारत की महिलाओं का एक छोटा हिस्सा तेजी से बदला है और साथ ही बदली है उन की मानसिकता. उस हिस्से की सासें अब नई पीढ़ी की बहुओं के साथ एडजैस्टमैंट बैठाने की कोशिश करने लगी हैं. सास को बहू अब आराम देने वाली नहीं बल्कि उस का हाथ बंटाने वाली लगने लगी है. यह बदलाव सुखद है. नई पीढ़ी की बहुओं के लिए सासों की बदलती सोच सुखद भविष्य का आगाज है. फिर भी हर वर्ग की पूरी सामाजिक सोच को बदलने में अभी वक्त लगेगा.

ऐसे बिगड़ते हैं रिश्तों के समीकरण

भले ही आज की सास बहू से खाना पकाने व घर के दूसरे कामों की जिम्मेदारी निभाने की उम्मीद नहीं करती. बहू पर कोई बंधन नहीं लगाती और न ही उस के व्यक्तिगत मसलों में हस्तक्षेप करती है. पर फिर भी कुछ कारण ऐसे बन जाते हैं जो अधिकतर घरों में इस प्यारे रिश्ते को बहुत सहज नहीं होने देते. अभी भी बहुत कुछ बदलने की जरूरत है क्योंकि आज भी कहीं सास तो कहीं बहू भारी है.

वे कारण जो शिक्षित होते हुए भी इन 2 रिश्तों के समीकरण बिगाड़ते हैं-

आज की बहू उच्चशिक्षित होने के साथसाथ आत्मनिर्भर भी है. मायके से मजबूत भी है क्योंकि अधिकतर 1 या 2 ही बच्चे हैं. अधिकतर लड़कियां इकलौती हैं, जिस के कारण वे सास से क्या किसी से भी दब कर नहीं चलतीं.

आज के समय में लड़की के मातापिता सास व ससुराल से क्या पति से भी बिना कारण समझौता करने की पारंपरिक शिक्षा नहीं देते जो सही भी है.

बहुओं को आज के समय में खाना बनाना न आना एक स्वाभाविक सी बात है और बनाना आना आश्चर्य की.

गेंद अब सास के पाले से निकल कर बहू के पाले में चली गई.

बहू नई टैक्नोलौजी की अभ्यस्त है, इसलिए बेटा उसे अधिक तवज्जो देता है जो सास को थोड़ा उपेक्षित सा कर देता है.

सास शिक्षित होते हुए भी और नए जमाने के अनुसार खुद को बदलने का दावा करने के बावजूद बहू के इस बदले हुए आधुनिक, आत्मविशासी व बिंदा सरूप को सहजता से स्वीकार नहीं कर पा रही है.

पतिपत्नी के बंधे हुए पारंपरिक रिश्ते से उतर कर बहूबेटे के दोस्ताने रिश्ते को कई सासों को स्वीकार करना मुश्किल हो रहा है.

बहू के बजाय बेटे को घर संभालना पड़े तो सास की पारंपरिक सोच उसे कचोटती है.

बहू की आधुनिक जीवनशैली त्रस्त करती है.

सास सोचती है वह तो अपनी सास का विकल्प बनी पर उस का कोई विकल्प नहीं आया.

ये कुछ ऐसे कारण हैं जो आज की सासबहू दोनों शिक्षित पीढ़ी के बीच अलगाव व तनाव का कारण बन रहे हैं. फलस्वरूप विचारों व भावनाओं की टकराहट दोनों तरफ से होती है. दोनों के बीच शीत युद्ध प्रारंभ हो जाता है. बेटे व पति से दोनों शिकायतें कर अपने पक्ष में करने की कोशिश करने लगती हैं, जिस से बेटेबहू के रिश्तों के बीच धीरेधीरे अव्यक्त तनाव पसरने लगता है क्योंकि बेटा अपनी मां के प्रति भी कठोर नहीं हो सकता, जिस से पत्नी नाराज रहती है. छोटीछोटी बातें चिनगारी भड़काने का काम करती हैं, जिस की परिणति कभीकभी बेटेबहू को कोर्ट की दहलीज तक पहुंचा कर होती है.

सासबहू का रिश्ता

‘यूनिवर्सिटी आफ कैंब्रिज’ की सीनियर प्रोफैसर राइटर और नोचिकित्सक डा. टेरी आप्टर ने अपनी किताब, ‘व्हाट डू यू वांट फ्रौम मी’ के लिए की गई अपनी रिसर्च में पाया कि 50त्न मामलों में सासबहू का रिश्ता खराब होता है. 55त्न बुजुर्ग महिलाओं ने स्वीकार किया कि वे खुद को बहू के साथ असहज और तनावग्रस्त पाती हैं. जबकि करीब दोतिहाई महिलाओं ने महसूस किया कि उन्हें उन की बहू ने अपने ही घर में अलगथलग कर दिया.

नई पीढ़ी की बहुओं की सोच

नई पीढ़ी की लड़कियों की सोच बहुत बदल गई है. वे पारंपरिक बहू की परिधि में खुद को किसी तरह भी फिट नहीं करना चाहतीं. उन की सोच कुछकुछ पाश्चात्य हो चुकी है. उन्हें ढोंग व दिखावा पसंद नहीं है. वे विवाह पश्चात अपने घर को अपनी तरह से संवारना चाहती हैं. वे अपने जीवन में किसी की भी दखलंदाजी पसंद नहीं है. उन के लिए उन का परिवार, उन के बच्चे व पति हैं. बेटी ही बहू बनती है. आज बेटियों को पालनेपोषने का तरीका बहुत बदल गया है. लड़कियां आज विवाह, ससुराल, सासससुर के बारे में अधिक नहीं सोचतीं. उन के लिए उन का कैरियर, खुद के विचार व व्यक्तित्व प्राथमिकता में रहते हैं.

सास की सोच

सास की पारंपरिक सामाजिक तसवीर बेहद नैगेटिव है. समाजशास्त्री रितु सारस्वत के अनुसार, सास की इमेज के प्रति ये ऐसे जमे हुए विचार हैं, जो इतनी आसानी से मिटाए नहीं जा सकते. आज की शिक्षित सास ने बहू के रूप में एक पारंपरिक सास को निभाया है. बहुत कुछ अच्छाबुरा झेला है. बड़ेबड़े परिवार निभाए हैं. नौकरी करते हुए या बिना नौकरी किए ढेर सारा काम किया है. बहुत अदबकायदे में रही है. लेकिन एक ही जैनरेशन में सास और बहू की स्थिति में इतना फर्क आ गया. बहू का रूप इतना बदल गया कि खुद को बहुत बदलने के बावजूद सास के लिए बहू का यह नया रूप आत्मसात करना आसान नहीं हो रहा है, जिस के कारण न चाहते हुए भी दोनों के रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं.

सास का डर

सासबहू के तनावपूर्ण रिश्ते का सब से बड़ा कारण है- सास में ‘पावर इनसिक्युरिटी’ का होना. सास बेटे की शादी होने के बाद इस चिंता में पड़ जाती है कि कहीं मेहनत से तैयार किया हुआ उन का बसाबसाया साम्राज्य छिन न जाए. जो सासें इस इनसिक्युरिटी के भाव से ग्रस्त रहती हैं, उन के अपनी बहू से रिश्ते अधिकतर खराब रहते हैं क्योंकि बहू उन के इस भाव को पोषित नहीं करती. लेकिन जिन मांओं ने इस पर विजय पा ली, उन के संबंध अपनी बहू से सहज व खुशहाल रहते हैं. अकसर सास को बहू से एक अच्छी बहू न होने की शिकायत रहती है. वैस्ट वर्जीनिया की डाक्टर क्रिस्टी ने बहुओं के नजरिए से किए गए अपने अध्यन में पाया कि बहू को बहुत अच्छा लगता है जब सास उसे बेटी कहती है और मां सा बरताव करती है, जब सास बहू को अपने घर का हिस्सा समझ कर, पति से उस के रिश्ता मजबूत करने में सहयोग करती है. ऐसी सासबहू का रिश्ता हमेशा खूबसूरत होता है.

मां की अहम भूमिका

विवाह से पहले बेटा अपनी मां के ही सब से नजदीक होता है. विवाह के बाद बेटे की प्राथमिकता में बदलाव आता है. जहां सास चाहती है कि बेटा तो विवाह के बाद उस का रहे ही अपितु बहू भी उस की हो जाए. यह सुंदर भाव व अभिलाषा है. हर मां ऐसा चाहती है. लेकिन इस के लिए कुछ बातों का पहले ही दिन से बहुत ध्यान रखने की जरूरत होती है:

सब से पहले तो बहू को अपनी अल्हड़ सी बेटी के रूप में स्वीकार करने की जरूरत है. उस की हर उपलब्धि पर खुशियों व तारीफ के पुल बांधे जाएं व हर गलती को मुसकराकर प्यार से टाल दिया जाए क्योंकि एक सुकुमार लाडली सी बेटी विवाह होते ही बहू की जिम्मेदारी के खोल में नहीं सिमट सकती.

सास और बहू के बीच जलन

यह बात थोड़ी अजीब लगती है क्योंकि दोनों का रिश्ता अच्छा हो या बुरा होता तो मांबेटी का ही है. लेकिन इन दोनों के बीच जलन कहां, किस रूप में जन्म ले ले, कहा नहीं जा सकता. लड़के ने अपनी मां को ज्यादा पूछा, उन के लिए बिना पत्नी को बताए कुछ खरीद लाये, किसी मसले पर उनसे सलाह मांग कर उन्हें तवज्जो दे, मां के बनाए खाने की अधिक तारीफ कर दी, पत्नी को मां से खाना बनाना व गृहस्थी चलाने के गुर सीखने की सलाह दे डाली तो बहू के दिल में सास के प्रति जिद्द व जलन के भाव आ जाते हैं. वहीं सास भी इन्हीं सब कारणों से बहू के प्रति ईष्यालु हो सकती है.

सास के जमाने में बहू के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियां बहुत थीं. आज की लड़की के लिए अदबकायदे व जिम्मेदारियों के माने बदल गए हैं. उस के बदले हुए तरीके को सहर्ष स्वीकार करें. बेमन से स्वीकार करने पर रिश्ता हमेशा भार बना रहेगा. सासबहू के बीच की सहजता खत्म होगी तो इस का असर बेटेबहू के रिश्ते पर पड़ेगा.

बेटा तो अपना ही है. अगर कभी पक्ष लेने की जरूरत पड़े तो बहू का लें वरना उन दोनों के बीच तटस्थ बने रहिए.

बहू के मातपिता भाईबहन को पूरा आदर, प्यार व सम्मान दें. लडकियां अपने मायके वालों से बहुत भावुकता से जुड़ी रहती हैं और यह स्वाभाविक भी है. उन की अवहेलना वे बिलकुल भी बरदाश्त नहीं कर पातीं.

नौकरीपेशा बहू अपने मायके वालों पर खूब खर्च करे तो उसे उतना ही अधिकार है अपनी कमाई पर जितना बेटे को. बेटा जब आप पर खर्च करता है तो खुशी होती है. लेकिन जब बहू अपने मायके वालों पर खर्च करती है तो ससुराल वालों को अकसर खल जाता है.

पहले बहुत सारे भाईबहन होते थे. बहू जरूरत पड़ने पर भी अपने घर वालों के काम नहीं आ पाती थी तो चल जाता था. लेकिन आजकल 1-2 बच्चे हैं, इसलिए बहू को अपने मातापिता की देखभाल करने संबंधी निर्णय का न केवल खुले दिल से स्वागत करें बल्कि उस का साथ भी दें.

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