कोरोना वायरस पेंडेमिक का ब्रेस्ट कैंसर पर प्रभाव

कोरोना संक्रमण  और लॉक डाउन ने अप्रत्यक्ष रूप से कई लोगों की सेहत को नुकसान पहुंचाया है. संक्रमण होने की संभावना के डर से लोगों ने नियमित जांच के लिए हॉस्पिटल और डिस्पेंसरी जाने से परहेज किया है, जिसकी वजह से दूसरी बीमारियों का खतरा लगातार बढ़ता जा रहा है. इस बारें में  आदित्य बिड़ला हॉस्पिटल के ब्रैस्ट सर्जन डॉ, दीपाली गोंजारी कहती है कि ब्रेस्ट कैंसर भी ऐसी ही एक बीमारी है जो पूरी दुनिया के लोगों के लिए, खास तौर पर महिलाओं के लिए बड़ी चिंता का विषय है. इस महामारी के चलते भारत में ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है और ऐसी परिस्थिति में मरीजों की जान बचाने के लिए शुरुआती दौर में जाँच और उपचार की अहमियत काफी बढ़ गई है.

इस महामारी का सबसे बुरा असर यह हुआ है कि आज ज्यादातर लोग नियमित शारीरिक जांच से परहेज करने लगे हैं, जिसमें मैमोग्राम जैसे आवश्यक स्वास्थ्य जांच भी शामिल है. दरअसल मेमोग्राम ब्रेस्ट का एक्स-रे है, जिसकी मदद से ब्रेस्ट कैंसर के शुरुआती लक्षणों की पहचान की जाती है. शुरुआत में इस बीमारी का पता लगाए जाने पर उस मरीज के ठीक होने की संभावना भी काफी अधिक होती है. आजकल कई अत्याधुनिक तरीकों से ब्रेस्ट कैंसर का इलाज किया जाता है और मरीज इलाज के इन तरीकों का फायदा उठा सकते हैं.

खुद से करें जाँच 

हालांकि रूटीन चेकअप के तौर पर मैमोग्राम कराना बेहद जरूरी होता हैं, लेकिन खुद से जांच करना भी महत्वपूर्ण है. खुद से जांच करने के लिए  ब्रेस्ट का खुद से अवलोकन करने और स्पर्श के जरिए भी पता लगाया जा सकता है, जिसमें ब्रेस्ट में होने वाले किसी भी बदलाव का पता लगाने के सबसे आसान तरीका है.  अगर ब्रेस्ट में किसी भी तरह के रैशेस, दर्द, गांठ, सिकुड़न, सूजन, डिम्पल बनना, ब्रैस्ट का बेढंगापन आदि लक्षण नजर आए, तो तुरंत डॉक्टर की सलाह लें.

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बदल गए है इलाज के तरीके 

शुरुआती चरण में पता लगाना ही कैंसर की रोकथाम का सबसे कारगर तरीका होता है. इस हालात को देखते हुए डॉक्टरों ने टेली-कंसल्टेशन की शुरुआत की है. इसकी मदद से अब मरीज को कोरोनावायरस के संपर्क में आने का खतरा नहीं रहता है और रेग्यूलर फॉलो-अप करना आसान हो जाता है.पहली बार डॉक्टर से परामर्श के लिए वे टेली-कंसल्टेशन का उपयोग कर सकते हैं, जहां मरीज को उचित इमेजिंग और आगे की कार्यवाही का सुझाव दिया जा सकता है.इसके बाद मरीज बायोप्सी की जांच के साथ-साथ इस बीमारी से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जांच के रिपोर्टों के साथ डॉक्टर के पास परामर्श के लिए जा  सकते हैं. मरीजों को कोरोनावायरस के संपर्क में आने के डर की वजह से डॉक्टर के पास परामर्श के लिए जाने से परहेज नहीं करना चाहिए. टेली-कंसल्टेशन की वजह से  मरीजों को अस्पताल के कई चक्कर लगाने से भी छुटकारा मिल जाता है. अस्पतालों द्वारा भी कई नियम और हायजिन के तरीके अपनाए गए हैं, जिससे व्यक्तिगत या शारीरिक परामर्श की जरूरत पड़ने पर भी संक्रमण के जोखिम से बचा जा सकें

न करें नज़रंदाज़ 

इसके आगे डॉ. दीपाली कहती है कि किसी भी तरह के संक्रमण के इलाज को सबसे अधिक प्राथमिकता दी जानी चाहिए और परिस्थितियों को गंभीर होने से बचाने के लिए पर्याप्त उपाय किए जाने चाहिए. लोगों को इस बारे में शिक्षित करना बेहद जरूरी है ताकि वे गैर-कोविड बीमारियों को नजरअंदाज न करें. साथ ही किसी भी प्रकार की देरी इलाज में न हो, इसका भी ध्यान रखें.  इसके अलावा, अस्पतालों में गैर-कोविड बीमारियों की बिना रुकावट जांच को जारी रखना और अस्पतालों में ओपीडी (OPD) में सुरक्षा के बारे में लोगों को जानकारी रखने की भी जरुरत है.

इलाज की अत्याधुनिक तकनीक

अस्पताल ने मरीजों के इलाज के लिए नए ज़माने के अत्याधुनिक तकनीकों को अपनाया है, जिसमें नए ज़माने के अनुरूप पूर्वानुमान परीक्षण (प्रॉग्नास्टिक ऐनलाइज़) की सुविधा मौजूद है, जिससे बेहद सटीक तरीके से प्रारंभिक चरण में ही ब्रेस्ट कैंसर के जोखिम का अनुमान लगाने में मदद मिलती है. इस तरह ट्यूमर बायोलॉजी के आधार पर मामले को कम और उच्च जोखिम के तौर पर वर्गीकरण किया जाता है.

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हालांकि कोरोनो वायरस एक ख़तरनाक महामारी है, लेकिन इसकी वजह से आपको अपने संपूर्ण स्वास्थ्य को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए. अपनी सेहत की नियमित जांच और परामर्श से समझौता भी न करें. कैंसर के इलाज में देरी होने से उसका प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है. ये सही है कि अस्पतालों में अपॉइंटमेंट लेने के बाद डॉक्टर से परामर्श के लिए जाते समय आपको पूरी सावधानी बरतने की जरुरत है, ताकि आप संक्रमण के शिकार न हो.

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