कैल्शियम की कमी से न्यू मौम्स में बैकपैन की समस्या

बहुत बार नई माताओं को शिकायत होती है कि बच्चों को डिलीवर करने के लिए लगाए गए एप्पीडुअरल इंजेक्शन से उन्हें लगातार पीठ में दर्द होता है. इस बारे में गुरुग्राम के कोलंबिया एशिया होस्पिटल के स्पाइन स्पेशलिस्ट और कंसलटेंट डॉक्टर अरुण भनोट का कहना है कि महिलाओं में लेट प्रेग्रेंसी और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान कैल्शियम की कमी और गलत पोस्चर के कारण अकसर उन्हें बैक पैन की समस्या होती है. क्योंकि इंजेक्शन का असर तो कुछ घंटों व कुछ दिनों के बाद कम होकर बैकपेन खुद ब खुद ठीक हो जाता है.

प्रसव से पहले या प्रसव के दौरान लगाए जाने वाले एप्पीडुअरल इंजेक्शन जो मां को कम दर्द के साथ बच्चे को जन्म देने में मदद करने के लिए पैन किलर मेडिसिन के रूप में लगाया जाता है. इससे कुछ महिलाओं को पीठ के निचले हिस्से में दिक्कत हो सकती है. इस जगह पर कैथेटर एप्पीडुअरल इंजेक्शन लगाने के कुछ घंटों व कुछ दिनों बाद तक दर्द रहता है. बता दें कि जब बच्चा अपनी मां के गर्भ में बढ़ता है , खासकर गर्भावस्ता के आखरी 3 महीनों के दौरान , उसे अपनी हड्डियों को विकसित करने के लिए कैल्शियम की बहुत ज्यादा जरूरत होती है. यदि इस दौरान मां को पर्याप्त कैल्शियम नहीं मिलता है, तो बच्चा मां की हड्डियों से इसकी जरूरत को पूरा करता है. जब मां की हड्डियों से कैल्शियम बच्चे में जाने के बाद मां को पीठ में दर्द का अनुभव होता है. यहां तक कि जो महिलाएं ब्रेस्टफीडिंग करवाती हैं उनमें कैल्शियम की कमी और गलत पोस्चर के कारण भी पीठ दर्द की समस्या होती है.

ब्रेस्टफीडिंग वह समय होता है जब बच्चा दूध पीना शुरू करता है और अगर मां कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा नहीं लेती है तो उसमें कैल्शियम की कमी हो जाती है. इसलिए गर्भवस्था के दौरान और बच्चे के जन्म के बाद महिला के लिए पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम लेना बहुत जरूरी होता है. आमतौर पर गर्भवती महिलाओं को भोजन और सुप्प्लिमेंट से कैल्शियम मिलता है.

इसके अलावा गर्भावस्था के दौरान महिलाएं ज्यादा एस्ट्रोजन का प्रोडक्शन करती हैं. बता दें कि एस्ट्रोजन वह हॉरमोन होता है, जो हड्डियों की रक्षा करता है और गर्भावस्था के दौरान बोन मास की जो हानि होती है वो आमतौर पर प्रसव के बाद या मां द्वारा अपने बच्चे को ब्रेस्टफीडिंग को बंद करने के बाद कई महीनों के अंदर रिस्टोर हो जाती है. डॉक्टर भनोट ने नई माताओं की काउंसलिंग के महत्व पर जोर दिया है. खासकर के उन महिलाओं को ज्यादा काउंसलिंग की जरूरत होती है जिनको ब्रेस्टफीडिंग करवाना है. क्योंकि ऐसी महिलाओं में लंबे समय तक बैठने से पीठ में खिचाव आ सकता है. गर्भावस्था के दौरान मां को हड्डियों के कमजोर होने और ओस्टोपोरोसिस का सबसे ज्यादा खतरा होता है. वृद्ध महिलाओं के विपरीत गर्भवती महिलाओं में बोन मास को ज्यादा हानि होती है . क्योंकि जो बच्चा उनके पेट में पल रहा होता है उसे अपनी हड्डियों के ढांचे के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है. इसके अलावा महिला को भी अपनी हड्डियों का निर्माण करने के लिए कैल्शियम की जरूरत होती है, और अगर पर्याप्त रूप से महिला को कैल्शियम मिलता है तो उन्हें ओस्टोपोरोसिस से बचने में मदद मिलती है.

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इसके अलावा कई महिलाओं को ब्रेस्टफीडिंग करवाने के सही पोस्चर के बारे में पता नहीं होता है और गलत जानकारी के कारण उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. डाक्टर भनोट का कहना है कि नई माताओं को ब्रेस्टफीडिंग करवाने के लिए सही पोस्चर की जानकारी होनी चाहिए, ताकि वे ब्रेस्टफीडिंग के लिए सही पोस्चर को अपनाकर पीठ दर्द से बच सकें. क्योंकि प्रेग्रेंसी और ब्रेस्टफीडिंग दोनों ही उनके लिए बड़ा चैलेंज जो होती हैं.

जानते हैं गर्भावस्था और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान हड्डियों को कैसे स्वस्थ रखें-

1 कैल्शियम रिच डाइट लें

गर्भावस्था या ब्रेस्टफीडिंग करवाने वाली महिलाओं को हर दिन 1000 मिलीग्राम कैल्शियम का सेवन करना चाहिए. गर्भवती युवा महिला को एक दिन में 1300 मिलीग्राम कैल्शियम लेना चाहिए. कैल्शियम कम फैट वाले डेयरी प्रोडक्ट्स जैसे कि दूध , दही, पनीर, पत्तेदार सब्जियों , टोफू, बादाम , मकई, संतरे के रस , अनाज और ब्रेड में भरपूर मात्रा में मिलता है. इसलिए ब्रेस्टफीडिंग और गर्भवती महिला को इन चीजों को जरूर अपनी डाइट में शामिल करना चाहिए.

2 रेगुलर एक्सरसाइज करें

उन्हें नियमित रूप से वेट बियरिंग और रेज़िस्टेन्स जैसी एक्टिविटी करने के लिए डाक्टर से कंसल्ट करना जरूरी होता है, क्योंकि इनसे मसल्स को स्ट्रैंथ मिलती है. वॉकिंग, सीढ़ियां चढ़ना और डांस करने के साथ साथ वेट लिफ्टिंग भी हड्डियों को मजबूत बनाने का काम करती हैं. लेकिन कोई भी एक्सरसाइज करने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें. ताकि मां और बच्चा दोनों सुरक्षित रहें.

3 अपनाएं हैल्थी लाइफस्टाइल

हैल्थी लाइफस्टाइल को अपनाना बहुत जरूरी है. इसके लिए अच्छा खाएं व स्मोकिंग की हैबिट से दूर रहें. क्योंकि स्मोकिंग मां और बच्चे के लिए हानिकारक होती है. और हड्डियों के लिए भी अच्छी नहीं होती है. इसके अलावा ये हार्ट और फेफड़ों को भी नुकसान पहुंचाती है. गर्भवती और ब्रेस्टफीडिंग करवाने वाली महिलाओं को शराब से भी दूरी बना कर रखनी चाहिए , क्योंकि ज्यादा शराब के सेवन से हड्डियां खराब होती हैं.

4 सफेद तिल है फायदेमंद

तिल के लड्डू तो सबको पसंद होते हैं , लेकिन क्या आप जानती हैं कि सफेद तिल न्यूट्रिएंट्स से भरपूर होता है. इसमें कैल्शियम, मैग्नीशियम और विटामिन्स भरपूर मात्रा में होते हैं. अगर शरीर में कैल्शियम की कमी हो गई है तो इसे सफेद तिल से पूरी करके हड्डियों को मजबूत बनाया जा सकता है. तो हुआ न सफेद तिल फायदेमंद.

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5 सोयाबीन दे आपको मजबूती

क्या आप जानते हैं कि सोयाबीन प्रोटीन और कैल्शियम का बेहतरीन स्रोत होता है. एक रिसर्च में यह साबित हुआ है कि सोयाबीन के सेवन से हड्डियों को मजबूती मिलने के साथ साथ मेनोपोज़ के बाद भी महिलाओं की हड्डियां स्ट्रोंग बनती हैं. इसलिए जितना हो सके सोयाबीन को अपनी डाइट में शामिल करें. तो फिर प्रेग्रेंसी और ब्रेस्टफीडिंग के दौरान अपनी डाइट में कैल्शियम की मात्रा को बढ़ाकर खुद का व अपने बच्चे का खास ध्यान रखें.

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