family story in hindi
family story in hindi
सईद मास्साब की तमाम मसरूफियतें धीरेधीरे कम होने लगीं. महफिल, मजलिसों, जलसों में कभीकभी ही बुलाया जाने लगा. कहां चौबीस घंटों में सिर्फ 6 घंटे नींद के लिए होते थे, कहां अब पूरा दिन ही नींद के लिए मिल गया. पहली बीवी भी एक साल बाद रिटायर्ड हो कर घर पर रहने लगी. हमेशा बोलते रहने की उन की आदत सईद मास्साब को घर पर टिकने न देती. बाकी तीनों बीवियां नौकरी की वजह से शाम को ही खाली रहती थीं.
एक शाम में तीनों के पास जाना अब
उन के लिए संभव नहीं होता, तो
उन्होंने दिन बांट लिए. सईद मास्साब ने इतनी चालाकी से चारों बीवियों के लिए टाइम बांटा था कि किसी को भी शक नहीं हुआ. लेकिन रिटायरमैंट के बाद हर बीवी यह उम्मीद करने लगी कि अब तो वे रिटायर्ड हो गए हैं, अब उन्हें पूरे वक्त उन के पास रहना चाहिए. अगर वे अभी भी अपना पूरा वक्त उसे नहीं देते हैं तो दिन के बाकी के वक्त में वे रहते कहां हैं?
खोजबीन और जासूसी शुरू हुई तो सालों तक छिपाया गया सईद मास्साब का झूठ नमक के ढेर की तरह भरभरा कर गिर गया. सईद मास्साब बेनकाब. चारों बीवियों के पैरोंतले से जमीन खिसक गई. सारी पिछली बातें, खर्च की रकम का हिसाब लगातेलगाते चारों कमाऊ बीवियों ने उन पर उन्हें कंगाल कर के खुद ऐश करने की तोहमत लगा दी. सईद मास्साब का जीना हराम हो गया. अखबारों और मीडिया ने प्याज के छिलकों की तरह उन के दबेछिपे किरदार की एकएक परत उतार कर रख दी. रुसवाइयों की आंधी सईद मास्साब के बुढ़ापे के दिनों को दागदार कर गई.
उस दिन जोरदार बिजली कड़क रही थी. मूसलाधार बारिश हो रही थी कि अचानक सईद मास्साब के पेट में तेज दर्द उठा. चारों बीवियों में से किसी ने भी सईद मास्साब को अपने पास पनाह नहीं दी. डाक्टर ने चैक किया, अंतडि़यों का कैंसर. मास्साब की आंखों के सामने अंधेरा छा गया. औपरेशन होना था. प्राइवेट अस्पताल में अकेले बैड पर लेटे सईद मास्साब मौत और जिंदगी से जूझते रहे थे. दूर तक फैली खामोशी. नर्स वक्त पर दवाइंजैक्शन लगा जाती. पूरा दिन अपनों से घिरे रहने वाले मास्साब अकेलेपन का अवसाद झेल रहे थे.
तीनों बीवियों ने अपनेअपने ढंग से उन पर अपनी जिंदगी बरबाद करने
की तोहमत लगा कर उन से किनारा
कर लिया.
पूरे 2 महीने सईद मास्साब जिंदगी और मौत के बीच झूलते रहे.
भाई ने खिदमत की. तबीयत कुछ संभली तो लोकलाज के लिए रफीका मैडम न चाहते हुए भी उन्हें अपने घर ले गईं. दवा, परहेजी खानापीना और कीमोथेरैपी के लिए खर्च होने वाली मोटी रकम को ले कर रफीका मैडम हमेशा ताने देतीं, ‘अपनी कमाई तो तीनतीन बीवियों पर लुटा दी. अब जब कंगाल हो गए तो मुझे लूटने आए हैं. शादी तो कर ली मुझ से, मगर मां के खिताब से हमेशा महरूम रखा.
‘तीनतीन बार एबौर्शन करवा दिया मेरा. फिर मैं क्यों करूं खिदमत आप की? वैसे भी, मैं 8 घंटे कालेज में रहती हूं. नर्स रख भी ली तो मैं पराई औरत के भरोसे घर नहीं छोड़ सकती. सरपरस्ती तो मिली नहीं आप की, जो थोड़ाबहुत सरमाया जरूरत के लिए रखा है, वह भी चोरी चला जाएगा. बेहतर होगा आप अपनी दूसरी बीवियों के पास चले जाएं. आखिर उन का भी तो कोईर् फर्ज बनता है शौहर के लिए.
दूसरी बीवी जुलेखा के पास पहुंचे तो वह उन्हें देख कर नाकमुंह सिकोड़ने लगी. वह रिटायरमैंट के पैसों और अपने दिए गए पैसों का हिसाब मांगते हुए उन का खाना खराब करती रही. सईद मास्साब तीसरी बीवी के पास जा नहीं सकते थे क्योंकि तीसरी बीवी आयरीन ने सईद मास्साब की तीनतीन बीवियों की खबर मिलते ही संबंधविच्छेद कर लिया था और खुला (मुसलिम औरत के द्वारा खुद पति से मांगी गई तलाक) के लिए नोटिस भेज दिया था. वह सईद मास्साब से आधी उम्र की थी, साथ ही, अपने अब्बू की जायदाद की अकेली वारिस थी. सईद मास्साब ने उसे मां बनने से महरूम रखा था. इसलिए वह सईद मास्साब से तलाक ले कर दूसरे निकाह के मंसूबे बनाने लगी.
सईद मास्साब की पहली बीवी को जब उन के तीन और निकाह किए जाने की खबर मिली तो सदमा बरदाश्त नहीं कर पाई. रात को बिस्तर पर सोई, तो फिर उठ न सकी.
सईद मास्साब के लिए बीवियों ने तो दरवाजे बंद कर लिए. छोटा भाई, जो उन का स्कूल चला रहा था, उन्हें अपने घर ले आया. बरामदे में लोहे का पलंग डाल कर लिटा दिया. प्लास्टिक के स्टूल पर दवाइयां रख दीं. उस की बीवी भी नौकरीपेशा थी. सुबह के नाश्ते के साथ दवाइयां ले कर सईद मास्साब दिनभर अकेले बिस्तर पर दर्द सहते हुए पड़े रहते. हर 5वें मिनट पर 2 सिम वाले मोबाइल पर कौल रिसीव करने वाले सईद मास्साब कैंसर की बीमारी के साथसाथ डिप्रैशन का शिकार होने लगे.
सिर के बाल झड़ने लगे. कीमोथेरैपी भी वक्त पर नहीं होती थी. पेट में तेज दर्द रहता था. अब खाना भी नहीं पचता था. मोती जैसे चमकते दांत एकएक कर के गिरने लगे थे. चेहरा बेनूर, बेरौनक हो गया था. लाखों के बैंकबैलेंस और तमाम दूसरी जायदाद के मालिक सईद मास्साब पूरी जिंदगी में अपना सच्चा हमदर्द नहीं खरीद सके. डाक्टर तो हर बार कहते, ‘बस, 2-4 महीने के मेहमान हैं. लेकिन पता नहीं कौन सी डोर थी जो सईद मास्साब को सांसों के साथ बांधे हुए थी.
हालांकि छोटे भाई ने गिरती हालत को देख कर उन के लिए एक नर्स का इंतजाम कर दिया था, फिर भी लंबे समय तक लेटे रहने की वजह से बैडसोर हो गए. तीमारदारी की लापरवाही से बैडसोर के जख्मों में कीड़े बिलबिलाने लगे. कीड़ों को देख कर नर्स ने उन की खिदमत करने से साफ मना कर दिया और काम छोड़ कर चली गई. मास्साब पूरी रात दर्द से चीखते. छोटा भाई अपने परिवार के साथ एसी की ठंडी हवा में सुख की नींद सोता, लेकिन मास्साब पंखे की गरम, लपटभरी हवा में जानलेवा दर्द सहते खुले सहन में पड़े रहते.
शहर के नामी सईद मास्साब गुमनामी की अंधेरी गली के बाश्ंिदे हो गए. पीठ के जख्म और पेट की अंतडि़़यों का दर्द उन के इर्दगिर्द आहों, कराहों और आंसुओं का सैलाब उठाता रहता. बहुत मजबूर और कमजोर सईद मास्साब टौयलेट के लिए भी नहीं उठ पाते थे. अब उन के पलंग के इर्दगिर्द मक्खियों के झुंड भिनभिनाने लगे थे.
उन की दूसरी बीवी जुलेखा कभीकभी देखने आती तो दूर से ही मुंह पर दुपट्टा लपेटे दूर कुरसी डाल कर कुछ देर बैठती, फिर बिना कुछ कहेसुने चुपचाप उठ कर चली जाती.
सईद मास्साब का लंबाचौड़ा जिस्म सूख कर लकड़ी जैसा होता चला जा रहा था. आलमारी में पड़े उन के ढेर सारे ईनाम, उन के कीमती कपड़े, सबकुछ जहां के तहां पड़े उन के आलीशान दिनों के साक्षी बन कर उन की विवशता की खिल्ली उड़ाते.
सईद मास्साब ने 2 बीवियों के साथसाथ भाई के लिए भी अपने पैसों से मकान बनवा दिया था. भाई के लिए ली गई गाड़ी, लौकर में सोने की गिन्नियां, बीघों में फैला स्कूल सब मास्साब की बेबसी पर ठहाका मार कर हंसते. बुरे वक्त में अपनों की बेरुखी रिश्तों के सीने पर खुदगरजी मूसल ले कर चढ़ जाती. मौकापरस्ती रिश्तों के मुंह पर कालिख मल देती.
वक्त और हालात की झुलसा देने वाली गरमी राहतों की यादों के मुंह में अंगारे ठूंसने लगती. मास्साब की कराहें उन के बीते दिनों के कहकहों पर संगीनें तानने लगतीं. मास्साब के बैडसोर के कीड़े उन के हाथों की सदाकत की रेखाओं को कुतरकुतर कर मिटाने लगे थे. अड़ोसपड़ोस की नींद मास्साब की दर्दनाक चीखों से उचटने लगी थीं. एक दिन महल्ले के माईक पर आवाज गूंजी, ‘सईद मास्साब दुनिया छोड़ गए हैं.’
कफन तैयार, डोला तैयार…बेजान जिस्म को कब्रिस्तान तक ले जाने के लिए महल्ले वाले, दोस्त, रिश्तेदार तो थे पर वे नहीं थे जिन के साथ सईद मास्साब ने अपनी जिंदगी के एकएक लमहे को बांटा था. इसलाम में एक से ज्यादा शादियों की छूट ने इंसानी जिंदगियों को हवस की कठपुतलियां बना कर रख दिया. सही गलत के बीच झूलती कई जिंदगियां… दरबदर फिरती जिंदगियां.
इस बार मायके गई तो छोटी बहन ने समाज की खासखास खबरों के जखीरे में से यह खबर सुनाई, ‘‘बाजी, आप के सईद मास्साब की मृत्यु हो गई.’’
‘‘कब? कैसे?’’
पिछले महीने की 10 तारीख को. बड़ी तकलीफ थी उन्हें आखिरी दिनों में. पीठ में बैडसोर हो गए थे. न लेट पाते थे न सो पाते थे. रातरातभर रोतेरोते अपनी मौत का इंतजार करते पूरे डेढ़ साल बिताए थे उन्होंने.
इस दर्दनाक मौत की खबर ने मुझे रुला दिया. मैं ने आंसू पोंछते हुए पूछा, ‘‘लेकिन उन की तो 4-4 बीवियां, 6 बच्चे और एक छोटा भाई भी तो था न?’’
‘‘बाजी, जब बुरे दिन आते हैं न, तो साया भी साथ छोड़ देता है. उन की पहली बीवी तो 3 साल पहले ही
दुनिया से चली गई थी. दूसरी, तीसरी, चौथी बीवियों ने झांक कर भी नहीं
देखा. आखिरी वक्त में भाई ही भाई के काम आया.’’
यह सुन कर मुझे दिली तकलीफ पहुंची.
सईद मास्साब 10वीं क्लास में अंजुमन स्कूल में मेरे इंग्लिश के टीचर थे. लंबेचौड़े सांवले रंग के मास्साब के फोटोजैनिक चेहरे पर मोटे फ्रेम के चश्मे के नीचे बड़ीबड़ी आंखों में चमक हमेशा सजी रहती. अपने हेयरस्टाइल आर ड्रैसिंग सैंस के लिए स्टूडैंट्स के बीच बेहद लोकप्रिय थे वे. लड़कियां अकसर आपस में शर्त लगातीं, ‘देखना, सईद मास्साब आज कुरतापजामा के साथ कोल्हापुरी चप्पल पहन कर आएंगे.’ सुन कर दूसरी लड़की झट बात काटती हुई कहती, ‘नहीं, आज मास्साब जरूर पैंटशर्ट के साथ बूट पहन कर आएंगे.’ कोईर् कहती, ‘नहीं, मास्साब आज सलवारकुरते के साथ काली अचकन और राजस्थानी जूतियां पहन कर आएंगे चर्र…चूं करने वाली.’
जो लड़की शर्र्त हार जाती वह इंटरवल में पूरे ग्रुप को गोलगप्पे खिलाती. मास्साब इतने खुशमिजाज थे कि दर्दीली पोयम पढ़ाते वक्त भी उन के होंठों पर मुसकान की लकीर दिखाई पड़ती. लेकिन जब हम डिक्शनरी में वर्डमीनिंग देखते और गाइड में उस का अनुवाद पढ़ते तो मास्साब की मुसकान के पीछे छिपे गूढ़ अर्थ को समझने में महीनों सिर खपाते रहते.
‘मास्साब, आज मैं घर से बटुआ लाना भूल गई. घर वापस जाने के लिए रिकशे के पैसे नहीं…’ कोई लड़की कहती.
‘कोई बात नहीं, ये लीजिए 5 रुपए, ठीक से जाइएगा, समझीं,’ कहते हुए अपने पर्स की जिप खोलने लगते.
‘मास्साब, मेरे अब्बू के गैरेजमालिक की मां मर गई. मेरे अब्बू को तनख्वाह नहीं मिल सकी, इसलिए फीस नहीं ला सका.’ कोई लड़का हकलाते हुए यह कहता तो मास्साब कौपियों से सिर उठाए बिना, उस की सूरत देखे बगैर ही कहते, ‘कोई बात नहीं, मैं भर दूंगा, आप की फीस. नाम क्या है?’
‘फैयाज मंसूरी.’
‘ठीक है, जब अब्बू को तनख्वाह मिले तब ले आना,’ कह कर मास्साब चपरासी को बुला कर उस लड़के की फीस औफिस में उसी वक्त जा कर जमा करने के लिए नोट थमा देते. लेकिन पूरे साल लड़के के अब्बू को न तो तनख्वाह मिलती, न मास्साब को कभी अपने दिए गए पैसे याद रहते.
इंग्लिश के अच्छे टीचर के अलावा सईद मास्साब स्कूल की कल्चरल, स्पोर्ट्स और सोशल ऐक्टिविटीज में हमेशा आगे रहते. नौजवान खून में ऊंचे ओहदे की बुलंदियां छू लेने के लिए मेहनतकशी को हथियार बनाने की पुख्ता सोच उन के हर काम के लिए तत्पर रहने वाले किरदार से साफ झलकती. साइंस एग्जीबिशन में अपने मौडल ले कर दूसरे स्कूल जाना है बच्चों को, तो सईद मास्साब बस के इंतजाम से ले कर मौडल्स पैक करने, उन के डिटेल्स को टाइप कराने तक के पूरे काम अपने सिर ले लेते.
बच्चों को किसी टुर्नामैंट में जाना है तो सईद मास्साब बच्चों के स्पोर्ट्स ड्रैस, किट्स, फर्स्टएड बौक्स खरीदते हुए घर आने में लेट हो जाते तो मुंह फुला कर बैठी बीवी की तानाकशी भी झेलते. ‘पिं्रसिपल के बराबर तनख्वाह मिलती तो भी सब्र आ जाता. चौबीसों घंटे, घरबार, बच्चे सौदासुलूफ को भूले… आप बस, अंजुमन स्कूल के ही हो कर रह गए हैं. घर, बच्चों का तो खयाल ही नहीं.’
जुलाई के महीने में एक नई टीचर ने जौइन किया था. वह कुंआरी थी. कुछ महीनों के बाद पता चला उस की शादी तय हो गई. स्कूल में वह हाथ भरभर कर हरी रेशमी चूडि़यां और कुहनी तक मेहंदी लगा कर आईर् थी.
सालभर भी नहीं गुजरा, दुबई गए उस के शौहर ने दुबई से स्काईप पर ही टीचर को तलाक कह दिया तीन बार. रोतीबिलखती टीचर को सईद मास्साब जैसे हमदर्द का ही कंधा मिला पूरे स्कूल में दर्द का पहाड़ पिघलाने के लिए.
स्टाफरूम में अब सईद मास्साब को देख कर कानाफूसी शुरू होने लगी. ‘सुना है सईद सर जुलेखा मैडम से निकाह करने वाले हैं.’
‘तभी तो उन्हें रोज स्कूल से घर लाते, ले जाते हैं. कमाने वाली औरत पर ही सईद मास्साब पूरी हमदर्दी लुटाते हैं.’
‘क्या कह रहीं है आप?’ नसरीन मैडम चौंकी. ‘हां, सच कह रही हूं,’ आयशा मैडम बोली, ‘देखिए उन की पहली बीवी सरकारी स्कूल में टीचर हैं. दोनों की कमाई है. घर में हर तरह का ऐशोआराम है. अब मजहब के नाम पर बेसहारा को सहारा देने के बहाने सईद मास्साब को फिर एक कमाऊ औरत मिल गई है. और दूसरी बीवी पर खर्च तो करना नहीं पड़ेगा, बल्कि जरूरत पर जुलेखा मैडम उन के अकाउंट में पैसे डाल देगी.’
मुझे नजमा मैडम ने स्टाफरूम में मेरी क्लास की नोटबुक लाने भेजा था, तभी टीचर्स की ये बातें मेरे कानों में पड़़ीं तो सहज विश्वास नहीं हुआ. आता भी कैसे? हमारे बालमन पर सईद मास्साब की छवि आदर्श टीचर की छपी हुई थी.
मैं ने 12वीं पास कर ली. मेरी 2 छोटी बहनें, उस के बाद एक भाई है. मेरे अब्बू की मनिहारी की दुकान है. घर की खस्ता माली हालत ने मुझे एक प्राइवेट स्कूल में नर्सरी की टीचर बना दिया. उन्हीं दिनों मेरी स्कूल में लीव वैकैंसी पर नई टीचर आयरीन सहर ने जौइन किया. घुंघराले बालों वाली छरहरे बदन की भोले से चेहरे पर खड़ी नाक और सुडौल जिस्म वाली यह टीचर इतनी कमाल की आर्टिस्ट थी कि मिनटों में शिक्षापयोगी सहायक सामग्री बना कर क्लासरूम के शीशे वाली अलमारी में सजा देती. हम दोनों हमउम्र थे, इसलिए हाफटाइम में दोनों टिफिन के साथसाथ दिल की बातें भी शेयर करते. कुछ महीनों के बाद मैं ने गौर किया कि वह अपने पहनावे और जिस्मानी खूबसूरती के लिए बतलाए गए टिप्स पर संजीदगी से अमल करती और उस के फायदे बतला कर मुझे भी वैसा करने को कहती.
एक दिन वह स्कूल में नौर्मल दिनों से कहीं ज्यादा सजधज कर आईर् थी. मिलते ही चहकने लगी, ‘आज मेरा बौयफ्रैंड मुझे पिक करने आ रहा है,’ आयरीन ने बताया.
छुट्टी के बाद मुझे हैडमिस्ट्रैस ने बुलवा लिया. छुट्टी के आधे घंटे बाद मैं अपना बैग ले कर सड़क की तरफ बढ़ने लगी. तभी सामने का दृश्य देख कर आश्चर्यचकित रह गई. आयरीन जिन की मोटरसाइकिल पर बैठ रही थी, वे सईद मास्साब थे.
रेलवे अधिकारी की एकलौती बेटी के साथ मोहब्बत की पींगे बढ़ा कर सईद मास्साब ने पहले उस के साथ कोर्टमैरिज की, फिर उस के दादादादी के पास कर्नाटक जा कर निकाह किया और ससुराल वालों के चहेते दामाद बन गए. आयरीन के अब्बू ने शहर से दूर नए विकसित इलाके में एक आलीशान डुप्लैकस घर खरीदा था. आयरीन उन्हीं के साथ रह रही थी.
लाखों की आबादी वाले शहर और 30 किलोमीटर से ज्यादा के क्षेत्रफल वाले शहर के आखिरी छोरों पर रहने वालों को सईद मास्साब की असलियत का पता कैसे चलता? मीठी बातों के चलते नौकरीपेशा दामाद की छानबीन करने की जरूरत ही नहीं समझी रेलवे अधिकारी ने. दक्षिण भारत में बेटी की शादी में लगने वाले लाखों के दहेज और कई तोले सोना देने से वे बच गए थे, यही क्या कम था. कहां मिलते हैं ऐसे नेक लड़के आजकल के जमाने में. जब आयरीन के अम्मीअब्बू ने सईद मास्साब के बारे में कुछ जानने की जरूरत नहीं समझी, तो मैं ने भी कुछ बतलाने की पहल नहीं की.
आयरीन की मुसकराहट अब खिलखिलाहट में बदल गई थी. अब सईद मास्साब ने उस के लिए कार खरीद दी तो वह शीशे चढ़ा कर खुद ड्राइव कर के स्कूल आने लगी. ‘बहुतबहुत प्यार करते हैं मुझे मेरे हस्बैंड. स्कूल के बाद शाम तक मेरे साथ ही रहते हैं. रात को कोचिंग क्लास पढ़ाते हैं. देररात को 30-40 किलोमीटर आनाजाना मुश्किल होता है, इसलिए शहर में ही रुक जाते हैं.’
यह सुन कर मुझे तरस आता आयरीन के भोलेपन पर. कितनी खूबसूरती से छली जाती हैं ये पढ़ीलिखी बेवकूफ औरतें? लोभी, फरेबी और मक्कार मर्द की शहद टपकती जबान से निकली कोरी जज्बाती बातों में आ कर अपना सबकुछ लुटा बैठती हैं.
सईद मास्साब ने शहर की 3 दिशाओं में 3 गृहस्थियां बसा ली थीं. दिन के चौबीस घंटों को इतनी खूबसूरती से बांटा कि किसी भी बीवी को शिकवाशिकायत तो दूर, उन के किरदार पर शक करने की गुंजाइश ही नहीं बचती. मुसलिम औरत शौहर की हर बात पत्थर की लकीर की तरह सच मान कर नेक बीवियां बने रहने की मृगतृष्णा में फंसी मास्साब की तीनों बीवियां मास्साब की ईमानदारी के प्रति पूरी तरह से संतुष्ट थीं.
मैं ने नौकरी के साथसाथ बीए की पढ़ाई पूरी कर के एमए उर्दू में ऐडमिशन ले लिया. कालेज 12 बजे लगता था. मैं स्कूल से सीधे कालेज जाने लगी. अब्बू की मौत के बाद उन की नौकरी भाई को मिल गई थी. घर के हालात सुधरने लगे थे.
रफीका मैडम एमए क्लास की लैक्चरर अलीगढ़ यूनिवर्सिटी की डिगरी होल्डर थीं. लंबीचौड़ी, मामूली शक्लोसूरत की तेजतर्रार रफीका मैडम को एक दिन मैं ने मौल से बाहर निकलते देखा. उन के पीछे सईद मास्साब दोनों हाथों में बड़ेबड़े प्लास्टिक बैग संभालते हुए सड़क के किनारे खड़ी कार की तरफ बढ़ रहे थे. मैं उन के बाजू से निकल गई, मगर दोनों ने मुझे पहचाना नहीं, क्योंकि मैं ने परदा कर रखा था.
अधेड़ उम्र की कमाऊ, कुंआरी लैक्चरर सईद मास्साब का नया शिकार थी. शहर से दूर यूनिवर्सिटी कैंपस में रफीका मैडम बिलकुल अकेली रहती थीं. यूनिवर्सिटी कैंपस में सिक्योरिटी इतनी सख्त थी कि परिंदा पर भी नहीं मार सकता था. सईद मास्साब का रफीका मैडम के शौहर की हैसियत से आईडैंटिटी कार्ड बन गया था, इसलिए उन का बेरोकटोक मैडम के पास आनाजाना होता रहता.
सईद मास्साब बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. उन के व्यक्तित्व का आकर्षण सब को बांध लेता था. लेकिन जेहन और मेहनत के साथ चापलूसी ने पहले उन्हें राज्य शिक्षा परिषद का इंस्टैटिव अवार्ड दिलवाया. फिर 2 साल बाद ही उन का नाम नैशनल अवार्ड के लिए चुन लिया गया. सईद मास्साब ने अलगअलग वक्त में एकएक कर के सभी बीवियों और बच्चों को अपनी कामयाबी के जश्न में शामिल कर के दिल खोल कर खुशियां मनाईं.
लेकिन रफीका मैडम की प्रतिक्रिया नकारात्मक रही. वे मुंहफुला कर बोलीं, उर्दू डिपार्टमैंट में रीडर की पोस्ट खाली है, मगर आप अपनी कामयाबी व शोहरत के नशे में इतने चूर हैं कि बीवी की तरक्की का खयाल ही जेहन में नहीं आता. यह नहीं कि अपने रसूख का फायदा उठा कर मेरी पोस्ंिटग करवा दें.
‘मेरे खयाल से रीडर पोस्ट के लिए आप का ऐक्सपीरियंस कम है,’ मास्साब ने सहज भाव से कह दिया.
‘अच्छा तो आप को जो खिताब मिले हैं, वे आप की काबिलीयत की वजह से मिले हैं या चमचागीरी की वजह से मिले हैं, क्या मैं नहीं जानती. और आप ने भी तो नैशनल अवार्ड के लिए मोटी रकम… खैर, इस जमाने में पैसे से क्या नहीं खरीदा जाता. यूनिवर्सिटी के वाइसचांसलर से ले कर चपरासी तक बिकते हैं. मगर मेरी तरक्की की बात तो आप सोच ही नहीं सकते,’ बड़ा बुरा सा मुंह बना कर व्यंग्य से बोलीं रफीका मैडम.
रफीका मैडम सईद मास्साब के कंधे को सीढि़यां बना कर आसमान में छेद करना चाहती थीं.
‘आप गलत कह रही हैं. मैं समाज के उन लोगों में से हूं जो मुसलमान औरतों की खुदमुख्तारी की पैरवी करते हैं. मैं भला आप की तरक्की क्यों नहीं चाहूंगा.’ मास्साब ने बात संभालने की कोशिश की लेकिन रफीका मैडम तो जैसे खार खाए बैठी थीं, चिढ़ कर बोलीं, ‘बस, रहने दीजिए, रहने दीजिए बनावटी बातें. आप मेरे लिए कुछ नहीं करेंगे. मुझे ही स्टेट एजुकेशन मिनिस्टर से मिलना पड़ेगा. आप मेरे लिए कुछ भी नहीं करेंगे, इतना मैं समझ गई हूं.’
‘क्या समझ गई हैं आप? आप समझती हैं कि मिनिस्टर इतना बड़ा बेवकूफ होगा कि आप के तजरबे की प्रोफाइल देखे बगैर आप को रीडर बना देगा. हंसीखेल है क्या. उसे भी सरकार को जवाब देना होता है. और बाई द वे, रीडर का चुनाव वाइसचासंलर एजुकेशन बोर्ड के साथ मिल कर करता है. बड़ी तीसमारखां समझती हैं अपनेआप को. हम भी देखते हैं कब तक बनती हैं आप रीडर,’ मर्दाना अहं सिर चढ़ कर बोलने लगा, ‘पैर की जूती पैर में ही रहे तो ठीक लगती है. लैक्चररशिप मिल गई तो समझती हैं बड़ा भारी तीर मार लिया. शरीफ बीवियां शौहरों की बराबरी नहीं करतीं. जरा सी छूट क्या मिल गई, लगी मर्दों के कद से कद मिलाने,’ मास्साब ने रफीका मैडम को लताड़ा.
‘माइंड योर लैंग्वेज. काबिलीयत के बल पर लैक्चरर बनी हूं. आप की तरह मिठाइयों के डब्बे और तोहफों की चमचागीरी के बलबूते पर नहीं. और हां, मैं कमाऊ औरत हूं. आप के ऊपर डिपैंड नहीं हूं जो आप की ऊलजलूल बातें बरदाश्त कर लूं. जाइए आप, मैं अकेले भी रह सकती हूं,’ रफीका मैडम का नारीत्व और आत्मनिर्भरता का दंभ सिर चढ़ कर बोलने लगा.
‘तो ठीक है, रह लो अकेली,’ कह कर सईद मास्साब गुस्से से जूते पहन कर निकल गए उन के घर से.
सईद मास्साब की पहली और दूसरी बीवियों की बेटियां शादी के लायक हो गई थीं. उन्होंने जानबूझ कर दूसरे शहरों में रिश्ता किया और वहीं ले जा कर बेटियों का निकाह कर दिया.
बेवजह दिखावा या शोशा न करने की दलील दे कर केवल बीवियों के मायके वालों को जबरदस्त दावतें खिला कर रुखसत कर दिया.
तीसरी बीवी आयरीन निसंतान थी. खर्चीले इलाज से पता चला कि प्रजनन करने वाली गर्भाशय कि एक नली बंद है. मास्साब ने तीनों बीवियों की कमाई और जमा पूंजी से शहर से दूर 10 एकड़ जमीन खरीद कर सीनियर सैकंडरी स्कूल की तामीर का काम शुरू कर दिया. उन का लाखों का अलगअलग बैंकों में बैंकबैलेंस, शेयर, सोने की गिन्नियां लौकर्स में महफूज थीं.
सईद मास्साब का रिटायरमैंट भी गुपचुप तरीके से हो गया. खानदान में कैजुअल्टी हो गई है, हमारा जश्न मनाना इंसानियत के खिलाफ है,’ कह कर मास्साब ने बड़ी खूबसूरती से रिटायरमैंट के फंड्स का बंटवारा रोकने की सोचीसमझी प्लानिंग के तहत सारे मंसूबे हल कर दिए. तीनों बीवियों, बच्चों को अपनी बीमा पौलिसीज और जमा धनराशि से दूर रखने के लिए अपनी जायदाद का किसी को वारिस नहीं बनवाया. हां, छोटे भाई के नाम वसीयत कर के अपनी पूरी जायदाद का मालिकाना हक उसे दे दिया.