दर्द का रिश्ता: क्या हुआ अमृता के साथ

‘‘अरेअमृता, सभी लड़कियां दीवाली मनाने अपनेअपने घर चली गईं, तुम क्यों नहीं गईं? दीवाली की तो तुम्हारे औफिस में भी छुट्टी होती होगी?’’ पेइंगगैस्ट हाउस की मालकिन मालती सभी लड़कियों के घर जाने के बाद अमृता के कमरे में बत्ती जली देख कर उस के कमरे में जा कर चौंक कर बोलीं.

‘‘नहीं आंटी, बस ऐसे ही मन नहीं हुआ जाने का… कोई खास बात नहीं… मैस बंद हो गया है तो भी कोई बात नहीं, मैं बाहर खाना खा लूंगी. 1 हफ्ते के अंदर तो सभी लड़कियां आ ही जाएंगी… आप चिंता मत करिए,’’ अमृता ने बुझे मन से बात टालने के लिए कहा.

मगर अमृता का उदास चेहरा देख कर मालती भांप गईं कि कोई बात जरूर है, जिस ने इसे इतने बड़े त्योहार पर भी घर जाने से रोक लिया.

‘‘बेटा, साथ रहतेरहते हम सभी एक परिवार की तरह हो गए हैं. मैस बंद हो गया तो क्या… मैं अपने लिए तो खाना बनाऊंगी ही न और फिर अब मुझे तुम सब के साथ खाना खाने की आदत भी पड़ गई है. अकेले खाना मुझे अच्छा नहीं लगेगा, इसलिए हम दोनों साथ खाना खाएंगी. मैं तुम्हारी मां की तरह हूं… यदि तुम्हें उचित लगे तो मुझ से तुम कुछ भी मत छिपाओ… शायद मैं तुम्हारी कुछ मदद कर सकूं. मुझ से तुम्हारा इस तरह उदास रहना नहीं देखा जा रहा,’’ मालती ने उस के पास बैठते हुए उस की पीठ पर हाथ रख कर कहा तो उन का ममता भरा स्पर्श पा कर अमृता की आंखों में रुके आंसू बह निकले.

‘‘मेरी मां मुझे पैदा करते ही अकेला छोड़ चल बसी थीं, मेरी मौसी ही मेरी सौतेली मां हैं. घर पर रहती हूं तो वे मुझे कोसने का कभी

कोई मौका नहीं छोड़तीं कि पैदा होते ही मैं ने मां को खा लिया, यदि ऐसा नहीं होता तो उन्हें मुझे पालने के लिए अपनी बड़ी बहन की जगह नहीं लेनी पड़ती. उस जमाने में मातापिता का वर्चस्व ही सर्वोपरि होता था. मेरे नानानानी ने सोचा कि मौसी से अधिक अच्छी तरह और कौन मेरी देखभाल कर सकता है. पापा ने भी

यह सोच कर मौसी से विवाह कर लिया कि वे अपनी बहन की बेटी को अपनी बेटी की तरह पालेंगी, लेकिन इस के विपरीत उन्होंने अपना सारा आक्रोश मुझ पर ही निकालना शुरू कर दिया.

आप बताइए मैं अपनी मां की मृत्यु का कारण कैसे हो सकती हूं…? मेरा इस में क्या दोष है और यदि उन का विवाह मेरे पापा से हुआ तो उस में मेरी क्या गलती है? इसीलिए मेरे पापा ने मुझे होस्टल में रख कर ही पढ़ाया और मुझे वे कभी घर नहीं आने देना चाहते ताकि मुझे अकारण मौसी के व्यंग्यबाण न सहने पड़ें. जब उन का मन होता है, वे स्वयं मुझ से मिलने आ जाते हैं,’’ अमृता ने सुबकते हुए बिना किसी भूमिका के सब कह डाला.

मालती उस की बात सुन कर उसे अपने गले से लगाते हुए बोलीं, ‘‘मुझे बहुत दुख हुआ ये सब जान कर, लेकिन तुम दुखी मत हो… किसी भी चीज की जरूरत हो तो मुझे बताना,’’ कह वे चली गईं.

मालती के जाते ही अमृता सोच में पड़ गई कि कितना विरोधाभास है उस की मौसी और मालती आंटी के स्वभाव में. उस के मानसपटल पर 6 महीने पहले की घटना तैरने लगी. तबवह नौकरी के सिलसिले में पहली बार दिल्ली आई थी और एक पेइंगगैस्ट हाउस में रहना शुरू किया था. आते ही उसे वायरल बुखार ने अपनी चपेट में ले लिया. मैस में बना खाना उसे नहीं खाना था. फिर उस के अनुरोध  करने पर भी जब मैस चालक ने उसे उस की पसंद का खाना देने से इनकार कर दिया तो वह पास की दुकान पर ब्रैड लेने पहुंच गई. लेकिन जब दुकानदार ने ब्रैड नहीं है कहा तो वह बड़बड़ाई कि तबीयत ठीक नहीं है. लगता है मुझे मैस का तलाभुना खाना ही खाना पड़ेगा.

दुकान पर ही पास खड़ी मालती ने उस की बात सुन ली और फिर उस का हाथ छूते हुए बोलीं, ‘‘बेटा, तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं है, तुम्हें तो तेज बुखार है. मेरे घर चलो, पास में ही है. तुम्हें तुम्हारी पसंद का खाना बना कर खिलाऊंगी.’’

अनजान शहर में एक अनजान औरत से ऐसी आत्मीयता भरी बात सुन

कर वह हत्प्रभ रह गई. उसे वे पढ़ीलिखी और संभ्रांत परिवार की लग रही थीं, लेकिन प्रतिदिन इतनी वारदातें सुनने में आती हैं… एकदम से किसी पर भी विश्वास करना उसे ठीक नहीं लगा, इसलिए उस ने जवाब देते हुए कहा, ‘‘नहीं आंटी, मैं मैनेज कर लूंगी. आप परेशान न हों.’’

‘‘इस में परेशानी की कोई बात नहीं. तबीयत खराब हो तो खाना भी ठीक से मिलना जरूरी है वरना तबीयत और बिगड़ सकती है.’’

‘‘उन की बात बीच में ही काट कर दुकानदार बोला, ‘‘अरे, ये पास में ही तो रहती हैं. बहुत अच्छी हैं. मैं इन्हें 20 सालों से जानता हूं.’’

मालती के आत्मीयता भरे आमंत्रण पर दुकानदार के आश्वासन की मुहर लगते ही अमृता के नानुकुर करने की गुंजाइश ही नहीं रही. अत: बोली, ‘‘ठीक है,’’ और फिर उन के साथ उन के घर पहुंच गई.

एक बड़ी सी दोमंजिला कोठी के सामने जा कर दोनों रुक गईं. मालती उसे एक बड़े ड्राइंगरूम में ले गईं. सामने दीवार पर प्रौढ़ावस्था के पुरुष का माला पहने हुए बड़ा सा फोटो लगा था. उस ने अनुमान लगाया कि वह फोटो उन के पति का ही होगा.

मालती ने उसे दीवान पर आराम करने के लिए कहा और फिर अंदर जा कर तुरंत चाय बना लाईं. उस के साथ ब्रैडस्लाइस भी थे. अमृता को बहुत संकोच हो रहा था, उन्हें ये सब करते देख कर.

उस ने सकुचाते हुए पूछा, ‘‘आंटी, आप यहां अकेली रहती हैं?’’

‘‘हां, एक बेटा है… इंजीनियर है वह. पुणे में नौकरी करता है.’’

‘‘आंटी एक बात कहूं… यदि बुरा लगे तो प्लीज मुझे माफ कर दीजिएगा.’’

‘‘नहीं बेटा, बोलो क्या कहना चाहती हो? निस्संकोच कहो.’’

उन के उत्तर से अमृता की हिम्मत बढ़ गई. बोली, ‘‘आंटी, आप का इतना बड़ा घर

है, आप को अकेलापन भी लगता होगा, आप क्यों नहीं ऊपर की मंजिल पर कुछ कमरे हम जैसी लड़कियों को रहने के लिए दे देतीं?’’ आंटी प्लीज यह मत सोचिएगा कि मैं आप की स्थिति का फायदा उठाना चाहती हूं. छोटे मुंह बड़ी बात तो नहीं कह दी मैं ने?’’ इतना बोलते ही अमृता को अपराधभावना ने घेर लिया.

लेकिन तुरंत ही मालती के उत्तर से वह उस से बाहर आ गई. मालती बोली, ‘‘नहीं बेटा, तुम ने बहुत अच्छी सलाह दी है… इस से मेरा अकेलापन भी दूर हो जाएगा और यह मकान भी जरूरतमंदों के काम आ जाएगा.’’

‘‘सच आंटी?’’ उस ने खुशी जताते हुए कहा. फिर थोड़ी तटस्थ हो कर उन्हें और सोचने का मौका न देते हुए बोली, ‘‘तो फिर देर किस बात की… मैं शाम को ही अपनी रूममेट्स को ले कर आती हूं.’’

‘‘ठीक है, लेकिन अभी लंच कर के जाना और वादा करो कि जब तक तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं हो जाती, यहीं खाना खाओगी. मुझे भी कंपनी मिल जाएगी.’’

‘‘अब तो मुझे यहीं रहना है, बहुतबहुत धन्यवाद आंटी…’’ अमृता उन से लिपट कर भावातिरेक में और बहुत कुछ बोलना चाहती थी, लेकिन पहली मुलाकात में इतना अनौपचारिक होने में उसे संकोच हुआ और मालती की भी शायद यही स्थिति थी. लंच कर के शाम को फिर आने का वादा कर के वह चली गई.

शाम को अमृता अपने साथ 4 लड़कियों को ले कर मालती के घर पहुंच गई. मालती उन लोगों को देख कर बहुत खुश हुईं और फिर बोलीं, ‘‘ठीक है, मुझे 1 हफ्ते का समय दो ताकि ऊपर मैं किसी को बुला कर तुम लोगों के रहने का इंतजाम करा सकूं… जब तक मैस का इंतजाम नहीं होता, तुम लोग मेरी किचन में ही खाना खाना.’’

‘‘अरे वाह आंटी, लेकिन किसी को बुलाने की आवश्यकता क्या है? हम चारों ही मिल कर सारी व्यवस्था कर लेंगे. मैस जब तक नहीं बनेगा, हम आप को आप की किचन में खाना बना कर खिलाएंगे, हमें खाना बनाना आता है. आप जो चार्ज करेंगी हम दे देंगे…’’ दूसरी लड़की प्रियंका ने थोड़ा अनौपचारिक होते हुए कहा.

‘‘पैसे की तो मेरे पास कोई कमी नहीं है. बस थोड़ा अकेलापन रहता है… वह तुम लोगों के रहने से दूर हो जाएगा. लेकिन एक बात का ध्यान रखना मैं थोड़ी अनुशासनप्रिय हूं… टीचर थी न. बहुत ऊंची आवाज में म्यूजिक सुनना और लेट नाइट आनाजाना मुझे पसंद नहीं… कोई मजबूरी हो तो बात अलग है.’’

सारी बातें तय हो गईं और उस के बाद उन लड़कियों ने मिल कर ऊपर के 2 कमरों को व्यवस्थित किया. देखने से लग रहा था कि महीनों से उन कमरों की किसी ने खोजखबर नहीं ली है. ऊपर 5 कमरे थे. बाकी के कमरों में भी महीनेभर के अंदर ही और लड़कियां आ गई थीं.

यह सत्र की शुरुआत थी, इसलिए उन में से कुछ पढ़ने वाली लड़कियां थीं. मैस का

भी इंतजाम हो गया था, लेकिन मालती खाना अपने सुपरविजन में ही बनवाती थीं. कुल मिला कर 10 लड़कियां थीं. हरेक के खाने की पसंद का खयाल रखा जाता था.

कोई बीमार पड़ती तो उस के लिए अलग से खाना बनता था. सभी लड़कियां मालती के व्यवहार से बहुत खुश रहती थीं और जल्दी उन से घुलमिल गई थीं. उन्हें अपने घर की कमी नहीं महसूस होती थी. मालती भी अपना खाना मैस में ही खाती थीं.

एक बात सब ने महसूस की थी कि मालती का व्यवहार सामान्य औरतों से कुछ हट कर था. एक गहरी उदासी की परत उन के चेहरे पर छाई रहती थी. कभी किसी ने उन्हें खुल कर हंसते नहीं देखा था. लड़कियों का अनुमान था कि शायद पति की मृत्यु हो जाने और बेटे के दूर रहने पर बुझीबुझी रहती हैं.

अमृता के मोबाइल की घंटी बजी तो उस की विचारतंद्रा को झटका लगा. मालती का फोन था, उन्होंने डिनर के लिए उसे नीचे बुलाया था. वह तुरंत नीचे पहुंच गई और फिर सकुचाते हुए बोली, ‘‘सौरी आंटी, मुझे खाना बनाना चाहिए था… मैं आ ही रही थी. आप क्यों परेशान हुईं?’’

‘‘कोई बात नहीं, तुम्हारी मां होतीं तो क्या तुम्हें बना कर नहीं खिलातीं? आज के बाद मुझे अपनी मां ही समझो. वैसे भी तुम्हें एक प्यार करने वाली मां चाहिए और मुझे एक बेटी. फिर क्यों न हम दोनों मिल कर एकदूसरे के जीवन की इस कमी को पूरी कर दें?’’

अमृता उन की बात सुन कर अवाक रह गई. आज मालती बहुत खुश दिखाई दे रही थीं. उन का यह नया रूप देख कर वह हैरान हो रही थी. उसे कोई जवाब नहीं सूझ रहा था. अपने कमरे में आ कर भी वह मालती के कथन के बारे में ही सोचती रही. उस की स्थिति जानने के बाद मालती की उस के प्रति प्रतिक्रिया उसे असमंजस की स्थिति में डाल रही थीं.

दीवाली के अगले दिन अमृता के पापा उस से मिलने आए तो हमेशा की तरह उस के कमरे में न आ कर उसे नीचे ही मिलने के लिए बुलाया. वह नीचे ड्राइंगरूम के बाहर मालती की आवाज सुन कर ठिठक कर खड़ी हो गई.

मालती कह रही थीं, ‘‘मेरी मां भी मुझे पैदा करते ही चल बसी थीं… अमृता की मनोस्थिति को मुझ से अधिक और कौन समझ सकता है? मैं उस की मां का स्थान तो नहीं ले सकती, लेकिन उस के जीवन की इस कमी को तो कुछ हद तक उस की सास बन कर जरूर पूरा कर सकती हूं… अमृता जैसी लड़की मुझे बहू के रूप में मिल जाएगी तो मुझे बेटी की भी कमी नहीं खलेगी. मैं ने कल अपने बेटे रोहित से भी बात की थी, उस ने मेरी पसंद पर अपनी स्वीकृति की मुहर लगा दी है. किसी प्रकार का दबाव आप या आप की बेटी पर नहीं है. आप दोनों को ठीक लगे तो मैं बात आगे बढ़ाऊं.’’

यह सुन कर अमृता के पांव जमीन में जैसे जम से गए. उसे समझने में देर नहीं लगी कि उस दिन आंटी उस पर इतनी ममता क्यों उड़ेल रही थीं. अभी वह सोच ही रही थी कि मालती की नजर उस पर पड़ गई. वे बाहर आ कर उस का हाथ पकड़ कर अंदर ले गईं.

उस के चेहरे की लजीली मुसकान से वे समझ गईं कि उस ने उन की सारी बातें सुन ली हैं और उसे इस रिश्ते पर कोई आपत्ति नहीं है. अत: बोंली, ‘‘अभी तक तो तुम ने एक गैस्ट के तौर पर मेरे घर में रौनक की है, अब मेरी बहू बन कर मेरे बेटे की और मेरी जिंदगी में रौनक कर दो. तुम्हें मेरी बहू बनना था, इसीलिए उस दिन तुम मुझे दुकान पर मिली थी. अमृता भावातिरेक में उन के पांव छूने के लिए झुकी तो मालती ने उसे उठा कर अपने गले से लगा लिया.’’

अमृता बोली, ‘‘मैं ने मां को तो नहीं देखा, लेकिन होतीं तो आप जैसी हीं होतीं.’’

अमृता के पापा मूकदर्शक बने इस दर्द के रिश्ते को देख रहे थे. उन की आंखों से खुशी के आंसू बह निकले.

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