वह डिवोर्सी है. यह बात सारे स्टाफ को पता थी. मुझे तो इंटरव्यू के समय ही पता चल गया था. एक बड़े प्राइवेट कालेज में हमारा साक्षात्कार एकसाथ था. मेरे पास पुस्तकालय विज्ञान में डिगरी थी. उस के पास मास्टर डिगरी. कालेज की साक्षात्कार कमेटी में प्राचार्य महोदया जो कालेज की मालकिन, अध्यक्ष सभी कुछ वही एकमात्र थीं. हमें बताया गया था कि कमेटी इंटरव्यू लेगी, मगर जब कमरे के अंदर पहुंचे तो वही थीं यानी पूरी कमेटी स्नेहा ही थीं. उन्होंने हमारे भरे हुए फार्म और डिगरियां देखीं. फिर मुझ से कहा, ‘‘आप शादीशुदा हैं.’’ ‘‘जी.’’
‘‘बी. लिब. हैं?’’ ‘‘जी,’’ मैं ने कहा.
फिर उन्होंने मेरे पास खड़ी उस अति सुंदर व गोरी लड़की से पूछा, ‘‘आप की मास्टर डिगरी है? एम.लिब. हैं आप मुक्ति?’’ ‘‘जी,’’ उस ने कहा. लेकिन उस के जी कहने में मेरे जैसी दीनता नहीं थी.
‘‘आप डिवोर्सी हैं?’’ ‘‘जी,’’ उस ने बेझिझक कहा.
‘‘पूछ सकती हूं क्यों?’’ ‘‘व्यक्तिगत मैटर,’’ उस ने जवाब देना उचित नहीं समझा.
‘‘ओके,’’ कालेज की मालकिन, जो अध्यक्ष व प्राचार्य भी थीं, ने कहा. ‘‘तो आप आज से लाइब्रेरियन की पोस्ट संभालेंगी और कार्तिक आप सहायक लाइब्रेरियन. और हां अटैंडैंट की पोस्ट इस वर्ष नहीं है. आप दोनों को ही सब कुछ संभालना है.’’
‘‘जी,’’ हम दोनों के मुंह से एकसाथ निकला. इस प्राइवेट कालेज में मेरा वेतन क्व15 हजार मासिक था. और मेरी सीनियर मुक्ति का क्व20 हजार. मुक्ति अब मेरे लिए मुक्तिजी थी क्योंकि वे मुझ से बड़ी पोस्ट पर थीं.
मुक्ति के बाहर जाते ही मैं भी बाहर निकलने ही वाला था कि प्राचार्य महोदया ने मुझे रोकते हुए कहा, ‘‘कार्तिक डिवोर्सी है… संभल कर… भूखी शेरनी कच्चा खा जाती है शिकार को,’’ कह वे जोर से हंसती हुई आगे बोलीं, ‘‘मजाक कर रही थी, आप जा सकते हैं.’’ विशाल लाइब्रेरी कक्ष. काम बहुत ज्यादा नहीं रहता था. मैं मुक्तिजी के साथ ही काम करता था, बल्कि उन के अधीनस्थ था. मुझे उन के डिवोर्सी होने से हमदर्दी थी. दुख था… इतनी सुंदर स्त्री… कैसा बेवकूफ पति है, जिस ने इसे डिवोर्स दे दिया. लेकिन मुक्तिजी के चेहरे पर कोई दुख नहीं था. वे खूब खुश रहतीं. हरदम हंसीमजाक करती रहतीं. पहले तो उन्होंने मुझ से अपने नाम के आगे जी लगवाना बंद करवाया, ‘‘आप की उम्र 30 वर्ष है और मेरी 29. एक साल छोटी हूं आप से. यह जी लगाना बंद करिए, केवल मुक्ति कहा करिए.’’
‘‘लेकिन आप सीनियर हैं.’’ ‘‘यह कौन सी फौज या पुलिस की नौकरी है. इतने अनुशासन की जरूरत नहीं है. हम साथ काम करते हैं. दोस्तों की तरह बात करें तो ज्यादा सहज रहेगा मेरे लिए.’’
मैं उन की बात से सहमत था. इन 8 महीनों में हम एकदूसरे से बहुतघुल मिल गए थे. विद्यालय के काम में एकदूसरे की मदद कर दिया करते थे. अपनी हर बात एकदूसरे को बता दिया करते थे. उन्होंने अपने जीवन को ले कर, परिवार को ले कर कभी कोई शिकायत नहीं की और न ही मुझ से कभी मेरे परिवार के बारे में पूछा. वे सिर्फ इतना पूछतीं, ‘‘और घर में सब ठीक हैं?’’
उन के हंसीमजाक से मुझे कई बार लगता कि वे अपने अंदर के दर्द को छिपाने के लिए दिखावे की हंसी हंसती हैं. लेकिन मुझे बहुत समय बाद भी ऐसा कुछ नजर नहीं आया उन में. कोई दर्द, तकलीफ, परेशानी नहीं और मैं हद से ज्यादा जानने को उत्सुक था कि उन के पति ने उन्हें तलाक क्यों दिया? हम लंच साथ करते. चाय साथ पीते. इधरउधर की बातें भी दोस्तों की तरह मिल कर करते. कालेज के काम से भी कई बार साथ बाहर जाना होता.
‘‘आप से एक बात पूछूं मुक्ति?’’ एक दोपहर लंच के समय मैं ने कहा. ‘‘मेरे डिवोर्स के बारे में?’’ उन्होंने सहज भाव से कहा.
फिर हंसते हुए बोलीं, ‘‘एक पुरुष को स्त्री के बारे में जानने की उत्सुकता रहती ही है, पूछिए.’’ ‘‘आप इतनी सुंदर हैं. सिर से ले कर पैरों तक आप में कोई कमी नहीं. व्यावहारिक भी हैं. पढी़लिखी भी हैं. फिर आप के पति ने आप को तलाक कैसे दे दिया?’’
उन्होंने सहज भाव से कहा, ‘‘सुंदरता का डिवोर्स से कोई तालमेल नहीं होता. और दूसरी बात यह कि तलाक मेरे पति ने नहीं, मैं ने दिया है उन्हें.’’
अब मैं विस्मय में था, ‘‘आप ने? क्या आप के पति शराबी, जुआरी टाइप व्यक्ति हैं?’’ ‘‘हैं नहीं थे. अब वे मेरे पति नहीं हैं. नहीं, वे शराबी, कबाबी, जुआरी टाइप नहीं थे.’’
‘‘तो किसी दूसरी औरत से …’’ मेरी बात बीच ही में काटते हुए उन्होंने कहा, ‘‘नहीं.’’
‘‘तो दहेज की मांग?’’ ‘‘नहीं,’’ मुक्ति ने कहा.
‘‘तो आप की पसंद से शादी नहीं हुई थी?’’ ‘‘नहीं, हमारी लव मैरिज थी,’’ मुक्ति ने बिलकुल सहज भाव से कहा. कहते हुए उन के चेहरे पर हलका सा भी तनाव नहीं था. अब मेरे पास पूछने को कुछ नहीं था. सिवा इस के कि फिर डिवोर्स की वजह? लेकिन मैं ने दूसरी बात पूछी, ‘‘आप के मातापिता को चिंता रहती होगी.’’
‘‘रहती तो होगी,’’ मुक्ति ने लापरवाही से कहा, ‘‘हर मांबाप को रहती है. लेकिन उतनी नहीं, बल्कि उन का यह कहना है कि अपनी पसंद की शादी की थी. अब भुगतो. फिर उन्हें शायद अच्छा लगा हो कि बेटी ने बगावत की. विद्रोह असफल हुआ. बेटी हार कर घर वापस आ गई. जैसा कि सहज मानवीय प्रकृति होती है. बेटी घर पर है तो घर भी देखती है और अपना कमा भी लेती है. एक भाई है जो अपने परिवार के साथ दिल्ली में रहता है.’’ अब मुझे पूछना था क्योंकि मुख्य प्रश्न यही था, ‘‘फिर डिवोर्स की वजह?’’ उस ने उलटा मुझ से प्रश्न किया, ‘‘पुरुष क्यों डिवोर्स देते हैं अपनी पत्नी को?’’
मैं कुछ देर चुप रहा. फिर कुछ सोचते हुए कहा, ‘‘शायद उन्हें किसी दूसरी स्त्री से प्रेम
हो जाता होगा इसलिए.’’ ‘‘बस यही एक वजह है.’’
‘‘दूसरी कोई वजह हो तो मुझे नहीं मालूम,’’ मैं ने कहा. फिर मेरे मन में अनायास ही खयाल आया कि कहीं ऐसा तो नहीं कि मुक्ति को किसी और से प्यार हो गया हो शादी के बाद. हो सकता है कि बड़े घर में शादी हुई हो. सोचा होगा तलाक में लंबी रकम हासिल कर के आराम से अपने प्रेमी से विवाह… लेकिन नहीं, इतने समय में तो कोई नहीं दिखा ऐसा और न ही कभी मुक्ति ने बताया… न कोई उस से मिलने आया.
मुक्ति ने मुझे विचारों में खोया देख कर कहा, ‘‘ऐसा कुछ नहीं है कार्तिक जैसा आप सोच रहे हैं.’’ ‘‘मैं क्या सोच रहा हूं?’’ मुझे लगा कि मेरे मन की बात पकड़ ली मुक्ति ने. मैं हड़बड़ा गया.
उन्होंने हंसते हुए कहा, ‘‘मुझे किसी दूसरे पुरुष से प्रेम नहीं हुआ. जैसा कि आजकल महिलाएं करती हैं. तलाक लो… तगड़ा मुआवजा मांगो. मेरा भूतपूर्व पति सरकारी अस्पताल में लोअर डिवीजन क्लर्क था. था से मतलब वह जिंदा है, लेकिन मेरा पति नहीं है.’’ मैं समझ नहीं पा रहा था कि फिर तलाक की क्या वजह हो सकती थी?
‘‘समाज डिवोर्सी स्त्री के बारे में क्या सोचता है?’’ मैं ने पूछा. ‘‘कौन सा समाज? मुझे क्या लेनादेना समाज से? समाज का काम है बातें बनाना. समाज अपना काम बखूबी कर रहा है और मैं अपना जीवन अपने तरीके से जी रही हूं,’’ उन्होंने समाज को ठेंगा दिखाने वाले अंदाज में कहा.
‘‘लेकिन कोई तो वजह होगी तलाक की… इतना बड़ा फैसला… शादी 7 जन्मों का बंधन होता है,’’ मैं ने कहा. ‘‘शादी 7 जन्मों का बंधन… आप पुरुष लोग कब तक 7 जन्मों की आड़ ले कर हम औरतों को बांध कर रखेंगे? ये औरतों को बेवकूफ बनाने की बात है,’’ मुक्ति ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा.
‘‘आप तो नारीवादी विचारधारा की हैं.’’ ‘‘नहीं, मैं बिलकुल भी पुरुषविरोधी विचारधारा की नहीं हूं.’’
लंच समाप्त हो चुका था. मैं ने उठते हुए पूछा, ‘‘मुक्ति, शादीशुदा रही हैं आप… अपनी शारीरिक इच्छाएं कैसे…’’ मुझे लगा कि प्रश्न मर्यादा लांघ रहा है. अत: मैं बीच ही में चुप हो गया.
लेकिन उन्होंने मेरी बात का उत्तर अपने हाथ की मध्यमा और तर्जनी उंगली उठा कर दिया और फिर नारी सुलभ हया से अपना चेहरा झुका लिया.
शाम को हम अपनेअपने घर निकल जाते. कालेज की बस हमें हमारे स्टौप पर छोड़ देती. पहले उन का घर पड़ता था. वे हंसते हुए बाय कहते हुए उतर जातीं. उन्होंने मुझ से कभी अपने घर आने को नहीं कहा. मुझे जाना भी नहीं चाहिए. पता नहीं एक डिवोर्सी महिला के घर जाने पर उस के पासपड़ोस के लोग, उस के मातापिता क्या सोचें? कहीं मुझे उस का नया प्रेमी न समझ बैठें. फिर प्राचार्य महोदया ने कहा भी था भले ही मजाक में कि भूखी शेरनी है बच के रहना. कच्चा खा जाएगी.
मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा. इन 8 महीनों में व्यावहारिकता के नाते मैं तो उन्हें अपने घर आमंत्रित कर सकता हूं. अत: दूसरे दिन मैं ने कहा, ‘‘कभी हमारे घर आइए.’’ ‘‘औपचारिकता निभाने की कोई जरूरत नहीं है. आप से दिन भर मिलना होता है. आप के घर के लोगों को मैं जानती भी नहीं. उन से मिल कर क्या करूंगी? फिर मेरे डिवोर्सी होने का पता चलेगा तो तुम्हारी पत्नी के मन में शक बैठ सकता है कि कहीं मेरा आप से…’’ मुक्ति ने बात अधूरी छोड़ दी.
उसे मैं ने यह कह कर पूरा किया, ‘‘वह ऐसा क्यों सोचेगी?’’ ‘‘सोचने में क्या जाता है? सोच सकती है. क्यों बेचारी के दिमाग में खलल डालना. मुझे और आप को कोई यहां परमानैंट नौकरी तो करनी नहीं है. न ही कालेज वालों ने हमें रखना है. दूसरी अच्छी जौब मिली तो मैं भी छोड़ दूंगी… आप का परिवार है, आप को घर चलाने के लिए ज्यादा रुपयों की जरूरत है. आप भी कोई न कोई नौकरी तलाश ही रहे होंगे.’’
‘‘हां, मैं ने पीएससी का फार्म भरा है.’’ ‘‘और मैं ने भी सैंट्रल स्कूल में.’’
‘‘आप बिलकुल स्पष्ट बोलती हैं.’’ ‘‘सही बात को बोलने में हरज कैसा?’’
‘‘फिर आप ने तलाक की वजह क्यों नहीं बताई?’’
‘‘चलो, अब बता देती हूं. मैं और विनय एकदूसरे से प्यार करते थे, बल्कि वह मेरा ज्यादा दीवाना था. घर से भाग कर शादी की. दोनों के घर वालों ने अपनाने से इनकार कर दिया. समाज अलगअलग था दोनों का. लेकिन विनय के पास सरकारी नौकरी थी, तो कोई दिक्कत नहीं हुई. व्यक्ति आर्थिक रूप से सक्षम हो तो बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है.’’ ‘‘पता नहीं मेरी दीवाने पति को शादी की रात क्या सूझी कि उस ने एक फालतू प्रश्न उठाया कि मुक्ति, अब हम नई जिंदगी शुरू करने वाले हैं. अच्छा होगा कि हम विवाह से पूर्व के संबंधों के बारे में एकदूसरे को सचसच बता दें. इस से संबंधों में प्रेम, विश्वास और ईमानदारी बढ़ेगी.
‘‘और फिर उस ने विवाह से पूर्व के अपने संबंधों के बारे में बताया. एक रिश्ते की भाभी से और एक कालेज की प्रेमिका से संबंध होना स्वीकार किया. उस ने यह भी स्वीकारा कि जब मेरे साथ प्रेम में था तब भी उस के एक विवाहित स्त्री से संबंध थे. वह कई बार वेश्यागमन भी कर चुका है. उस के बताने में शर्म बिलकुल नहीं थी. बल्कि गर्व ज्यादा था. फिर उस ने कहा कि अब तुम बताओ?’’ ‘‘मैं ने कुछ याद किया. फिर कहा, ‘‘बहुत पहले की बात है. उस समय मेरी उम्र 16 साल रही होगी और मेरे साथ पढ़ने वाले लड़के की 16 या ज्यादा से ज्यादा 17. एक दिन मेरे घर में कोई नहीं था. वह आया तो था पढ़ाई के काम से, लेकिन उसे न जाने क्या सूझी कि उस ने मुझे चूमना शुरू कर दिया. ‘‘हम दोनों एकदूसरे को पसंद करते थे. मैं मना नहीं कर पाई. तापमान इतना बढ़ चुका था शरीर का कि लौटना संभव नहीं था. मैं स्वयं आग में पिघलना चाहती थी. मैं पिघली और शरीर का सारा भार फूल सा हलका हो गया.
‘‘मेरे पति विनय के चेहरे का रंग ही बदल गया. उस के चेहरे पर अनेक भाव आ जा रहे थे, जिन में कठोरता, धिक्कार और भी न जाने क्याक्या था. उस ने कहा कि इस से अच्छा था कि तुम मुझे न ही बताती. मैं ने एक ऐसी लड़की से प्यार किया, जिस का कौमार्य पहले ही भंग हो चुका है वो भी उस की इच्छा से.
जिस लड़की के पीछे मैं ने सब कुछ छोड़ा, घर, परिवार, जाति, समाज, वही चरित्रहीन निकली.’’
‘‘मैं ने गुस्से में कहा कि यह तुम क्या कह रहे हो? जब तुम ये सब करते चरित्रहीन नहीं हुए तो मैं कैसे हो गई? मैं ने भी तुम्हारे लिए अपना सब कुछ छोड़ा है. फिर तुम ने ही अतीत के बारे में पूछा. वह अतीत जिस से तुम्हारा कोई वास्ता नहीं. उस समय तो मैं तुम्हें जानती तक नहीं थी. तुम ने तो उस समय भी चरित्रहीनता दिखाई जब तुम मेरे प्रेम में डूबे हुए थे.’’ ‘‘मेरी बात सुन कर वह बोला कि मेरी बात और है. मैं पुरुष हूं.’’
‘‘मैं ने कहा कि तुम करो तो पुरुषत्व और मैं करूं तो चरित्रहीनता… मेरा शरीर है… मेरी मरजी है, मेरी स्वीकारोक्ति थी. तुम ने पूछा इसलिए मैं ने बताया.’’ ‘‘इस पर उस का कहना था कि शादी से पहले बता देती.’’
‘‘मैं ने जवाब दिया कि तुम पूछते तो जरूर बताती.’’
‘‘इस के बाद वह मुझ से खिंचाखिंचा सा रहने लगा. जब देखो उस का मुंह लटका रहता. उस का मूड उखड़ा रहता.’’ ‘‘कई दिन बीत गए. एक दिन मैं ने उस से कहा कि इस में इतना तनाव लेने की क्या जरूरत है? हम अलग हो जाते हैं. डिवोर्स ले लेते हैं.’’
‘‘इस पर उस ने कहा कि शादी के 1 महीने बाद ही तलाक… मजाक है क्या?
लोग क्या सोचेंगे?’’ ‘‘मेरा जवाब था कि लोग गए भाड़ में. मैं ऐसे आदमी के साथ नहीं रहना चाहती जो अपने संबंध गर्व से बताए और पत्नी के बताने पर ऐसा जाहिर करे जैसे उस ने कोई बहुत बड़ा गुनाह कर दिया हो. सच सुनने की हिम्मत नहीं थी तो पूछा क्यों? अपना सच बताया क्यों?’’
‘‘वह अभिमान से बोला कि मैं तो पुरुष हूं. लोग तुम्हें डिवोर्सी कहेंगे.’’ ‘‘मेरा कहना था कि मेरे बारे में इतना सोचने की जरूरत नहीं. लोग कहेंगे तो तुम्हारे बारे में भी. लेकिन मर्द होने के अहं में तुम्हें कोई फर्क नहीं पड़ेगा. मेरे बारे में उलटासीधा कह कर तुम लौट जाओगे अपने घर वापस. तुम्हारी धूमधाम से शादी हो जाएगी और मुझे लोग वही कहेंगे जो तुम कह रहे हो. कहते रहें. मैं दोगले खोखले व्यक्ति के साथ नहीं रहना चाहती. सारी जिंदगी घुट कर जीने से अच्छा है कि हम एकदूसरे से मुक्त हो कर अपने जीवन को अपनेअपने तरीके से जीएं. मेरे लिए संबंध टूटने का अर्थ जीवन खत्म होना नहीं है और मैं डिवोर्सी हो गई.’’
मैं मुक्ति के सच को सुन कर एक ओर हैरान भी था तो दूसरी ओर उस के सच से प्रभावित भी. लेकिन फिर भी मैं ने उस से कहा, ‘‘मुक्ति, औरतों को कुछ बातें छिपा कर ही रखना चाहिए. उन्हें उजागर न करना ही बेहतर रहता है.’’
उस ने गुस्से से मेरी तरफ देख कर कहा, ‘‘छिपा कर गुनाह रखा जाता है. मैं ने कोई अपराध नहीं किया था. जब उस ने नहीं छिपाया, तो मैं क्यों छिपाती, क्योंकि मैं औरत हूं. मैं ऐसे पुरुषों को पसंद नहीं करती जो स्त्री के लिए अलग और अपने लिए अलग मानदंड तय करें. मेरे शरीर का एक अंग मेरा सर्वांग नहीं है. ‘‘मेरे पास अपना स्वाभिमान है… शिक्षा है… मेरा अपना वजूद है. अपनी स्वेच्छा से अपने शरीर को अपनी पसंद के व्यक्ति को एक बार सौंपने का अर्थ यदि पुरुष की नजर में चरित्रहीनता है तो हम क्या वेश्याओं से गएगुजरे हो गए… और वे पुरुष क्या हुए जो अपने रिश्ते की महिलाओं से ले कर वेश्याओं तक से संबंध बनाए हैं वे मर्द हो गए… नहीं चाहिए मुझे ऐसा पाखंडी पति.’’
मुक्ति की बात ठीक ही थी. हम दोनों के संबंध नौकरी करते तक मधुर रहे. वह सच्ची थी. सच कहने का हौसला था उस में. कोई भी आवेदन करते समय आवेदन के कौलम में क्यों पूछा जाता है विवाहित, अविवाहित, तलाकशुदा, विधवा. किसी एक पर निशान लगाइए. नौकरी से इन सब बातों का क्या लेनादेना? नौकरी का फार्म भरवा रहे हैं या शादी का? मुझे मालूम था कि मुक्ति को कहीं अच्छी जगह नौकरी मिल चुकी होगी. और आवेदन के कौलम में उस ने डिवोर्सी भरा होगा बिना किसी झिझक के.
और सारे विभाग में उस के डिवोर्सी होने की चर्चा भी होने लगी होगी. लोग तरहतरह से उस के बारे में बातें करने लगे होंगे. लेकिन मुक्ति जैसी महिलाओं को इन बातों से कोई फर्क नहीं पड़ता. जब व्यक्ति सच बोलता है, तो डरता नहीं है और न ही किसी की परवाह करता है. मुक्ति भी उन्हीं में से एक है.