गर्भधारण करना हर महिला के जीवन का बहुत खास पल होता है. इस दौरान शरीर में बहुत से बदलाव भी होते हैं. इसीलिए कहा जाता है कि शरीर को इन बदलावों के लिए तैयार करना जरूरी है. स्वास्थ्य को लेकर सचेत रहने से यह समझना आसान हो जाता है कि एक स्वस्थ बच्चे को जन्म देने के लिए गर्भधारण से पहले और गर्भधारण के दौरान आपको क्या करना चाहिए. बात अगर टाइप 1 या 2 डायबिटीज से पीड़ित महिलाओं की हो, तो यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है.
मदरहुड अस्पताल, गुड़गांव की मेडिकल डायरेक्टर, गायनोकॉलोजी एंड आब्सटेट्रिक्स डॉ. प्रीति अग्रवाल, कहती हैं कि अगर आप भी टाइप 1 या 2 डायबिटीज से पीड़ित हैं और मां बनने की तैयारी कर रही हैं तो अपने डॉक्टर से और किसी सर्टिफाइड न्यूट्रशनिस्ट से चर्चा अवश्य कर लें. इससे आपको ब्लड शुगर लेवल नियंत्रित रखने और पोषणयुक्त एवं आपकी जीवनशैली के अनुकूल डाइट प्लान बनाने में मदद मिल सकती है. सही डाइट प्लान रखना और रोज निश्चित समय पर भोजन करने से आप बहुत ज्यादा या बहुत कम ब्लड शुगर लेवल की समस्या से बची रह सकती हैं.
एक और बात, गर्भावस्था के दौरान पेट में पल रहे बच्चे को ध्यान में रखते हुए आपको दो लोगों की खुराक लेनी है, ऐसा सोचकर आपको सच में दोगुना खाने की जरूरत कतई नहीं होती है. गर्भावस्था के दौरान बस आपको 300 कैलोरी की अतिरिक्त जरूरत होती है. ज्यादा खाने के बजाय पोषण से युक्त भोजन पर ध्यान देना चाहिए.
गर्भावस्था के दौरान ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखना क्यों जरूरी है और इसे कैसे नियंत्रण में रखा जा सकता है, इसे समझने का प्रयास करते हैं.
क्यों जरूरी है ब्लड शुगर लेवल को सही रखना?
गर्भावस्था से पहले और गर्भधारण के शुरुआती दिनों में खून में ग्लूकोज लेवल ज्यादा होने से गर्भपात और शिशु में जन्मजात परेशानियों का खतरा बढ़ जाता है. गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों में और डिलीवरी से ठीक पहले ग्लूकोज लेवल ज्यादा होने से बच्चे का आकार एवं वजन सामान्य से ज्यादा हो सकता है, जिससे सामान्य प्रसव मुश्किल हो जाता है और ऑपरेशन करना पड़ सकता है.
डायबिटीज की शिकार महिलाओं में गर्भावस्था के दौरान हाइपरटेंशन की आशंका ज्यादा रहती है. साथ ही गर्भावस्था के आखिरी हफ्तों में एमनियोटिक फ्लूड की मात्रा शरीर में बढ़ जाती है. ब्लड ग्लूकोज लेवल ज्यादा होने पर प्रसव से पहले ही गर्भ में बच्चे की मौत का खतरा बढ़ जाता है.
ब्लड शुगर लेवल को सही रखने के लिए संपूर्णता में कदम उठाने की जरूरत होती है. इसमें पोषणयुक्त डाइट, सही मात्रा में आहार, व्यायाम तथा समय पर सप्लीमेंट एवं दवा लेने जैसे कदम शामिल हैं.
क्या खाएं? सुनिश्चित करें कि आप निम्न आहार का सेवन करते हुए संतुलित मात्रा में पोषणयुक्त भोजन ग्रहण कर रही हैं
विभिन्न प्रकार की सब्जियां
-अनाज
-ताजा मौसमी फल
-लो-फैट डेयरी प्रोडक्ट
-लीन मीट एवं मछली
-हेल्दी फैट्स
आपको सही मात्रा में आहार ग्रहण करते हुए और थोड़ी-थोड़ी देर में भोजन करते हुए दिनभर ब्लड शुगर लेवल को नियंत्रित रखने के लिए रणनीति बनाकर चलना चाहिए.
तीन बार भोजन और तीन बार स्नैक्स के नियमित शेड्यूल का पालन करना कारगर रणनीति हो सकती है. सुनिश्चित करें कि हर बार भोजन में प्रोटीन एवं कार्बोहाइड्रेट की कम से कम एक-एक सर्विंग और खूब सारी सब्जियां शामिल हों. इसके अतिरिक्त, यह भी सुनिश्चित करें कि आपको गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी सभी पोषक तत्वों जैसे फोलिक एसिड, आयरन, विटामिन डी और कैल्शियम की पर्याप्त मात्रा मिल रही है.
क्या नहीं करना है?
-किसी भी रूप में एल्कोहल और तंबाकू के सेवन से बचना चाहिए, क्योंकि इससे गर्भपात एवं गंभीर -एल्कोहल सिंड्रोम का खतरा बढ़ जाता है.
-अधपका मीट न खाएं और कच्ची या अधपकी सब्जियों से भी परहेज करें.
-अनपॉश्च्यूराइज्ड मिल्क प्रोडक्ट, जूस और सॉफ्ट पनीर न खाएं.
-200 मिलीग्राम से ज्यादा कैफीन एक दिन में कतई न पिएं.
-मिठाई कम खाएं, क्योंकि इससे ब्लड शुगर लेवल बढ़ने का खतरा रहता है.
-गर्भावस्था के दौरान आर्टिफिशियल स्वीटनर से भी बचना चाहिए.
गर्भावस्था के दौरान ब्लड शुगर नियंत्रित रखने के लिए जरूरी कदम-
-टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित ऐसी महिलाएं जो डाइट या दवा से ब्लड ग्लूकोज नियंत्रित रख रही होती हैं, उन्हें भी गर्भावस्था के दौरान कई बार इंसुलिन की जरूरत पड़ जाती है. गर्भावस्था के दौरान बहुत कम महिलाएं ही टाइप 2 डायबिटीज को दवाओं से नियंत्रण में रख पाती हैं. ज्यादातर महिलाओं को इस दौरान इंसुलिन थेरेपी अपनानी पड़ती है.
-गर्भावस्था के दौरान शरीर में इंलुसिन रजिस्टेंस बढ़ जाती है, इसलिए टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित ज्यादातर महिलाओं को इंसुलिन की मात्रा बढ़ानी पड़ती है. विशेष रूप से गर्भावस्था की तीसरी तिमाही यानी 26 से 40 हफ्ते के दौरान ऐसा होता है.
-ब्लड ग्लूकोज लेवल को नियंत्रित रखने के लिए डॉक्टर से नियमित तौर पर कंसल्ट करते रहना चाहिए, जिससे मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य पर नजर रहे. डॉक्टर को समय-समय पर ब्लड ग्लूकोज लेवल जांचने और इंसुलिन की मात्रा में बदलाव की आवश्यकता पड़ सकती है.
-इनके अतिरिक्त, ब्लड शुगर लेवल और वजन को नियंत्रण में रखने के लिए व्यायाम अच्छा तरीका है. कईमहिलाएं जो गर्भावस्था से पहले व्यायाम कर रही होती हैं, उनके लिए गर्भधारण के बाद भी हल्का व्यायाम करते रहना आसान होता है. आमतौर पर गर्भावस्था के दौरान तेज कदमों से चलने जैसे हल्के व्यायाम करने की सलाह दी जाती है. जिन्होंने कभी व्यायाम नहीं किया है, उन्हें गर्भावस्था के दौरान व्यायाम शुरू करने से पहले डॉक्टर से सलाह ले लेनी चाहिए. जैसे-जैसे दिन आगे बढ़ते हैं या मुश्किल बढ़ती है, व्यायाम के तरीके और समय में बदलाव करना पड़ता है.