दिल्लगी बन गई दिल की लगी: क्यों शर्मिंदा थी साफिया

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दिल्लगी बन गई दिल की लगी: भाग 4- क्यों शर्मिंदा थी साफिया

परवेज अपनी कोशिश में लगे रहे आखिर उन्हें दुबई की एक अच्छी कंपनी में शानदार जौब मिल गई. वह साफिया बेगम को लाने उन के मायके गए. साफिया के भाई उन से बड़ी बदतमीजी से पेश आए. उन्होंने परवेज को साफिया से मिलने भी नहीं दिया और घर से निकाल दिया. भाइयों ने कुछ अरसे तो साफिया बेगम को अच्छे से खूब लाड़प्यार से रखा, फिर उन की आंखें बदलने लगीं.

मांबाप के मरते ही हालात और बुरे हो गए. भाभियां उन से जुबान चलाने लगीं. उन्हें मनहूस कह कर पुकारने लगीं. एक दिन घर में भाभियों का साफिया से झगड़ा हुआ. भाई वहां होते हुए भी तटस्थ रहे. बीवियों ने साफिया को तमाचे भी मारे.

इसे साफिया बरदाश्त नहीं कर सकीं. अपना सामान समेटा और बच्चे को ले कर कराची का रुख कर गईं. फिर हमारे मुहल्ले में एक कमरा किराए पर ले कर रहने लगीं. गुजारे के लिए वह सिलाईकढ़ाई करने लगीं. जल्द ही उन का काम अच्छा चलने लगा.

उन्हें अब अपनी गलती पर खूब पछतावा हो रहा था. वह समझ गई थीं कि बिना पति के औरत की कद्र नहीं रहती. उन्हें यह शिकायत थी कि दुबई जाते वक्त परवेज ने उसे नहीं पूछा. उसे यह पता ही नहीं चला कि परवेज उन्हें लेने आया था. पर गलती उन के भाइयों की थी, जिन्होंने परवेज को उन से मिलने तक नहीं दिया बल्कि बदतमीजी कर उसे घर से निकाल दिया.

दुबई आने के बाद वह फिर से साफिया के मायके गए. वहां पता चला कि भाइयों ने उसे निकाल दिया. तब उन्होंने साफिया को तमाम जगहों पर खोजा. इतना ही नहीं उन्होंने अखबार तक में इश्तहार निकलवाया पर साफिया का कहीं पता नहीं लगा.

परवेज ने थक के तलाश बंद कर दी और जो कुछ दुबई से कमा कर लाए, उस से एक बिजनैस शुरू कर दिया. रातदिन की मेहनत और ईमानदारी से बिजनैस खूब फैल गया. उन के एक अच्छे दोस्त ने उन की बहुत मदद की. उसी की बहन शमा से परवेज ने दूसरी शादी कर ली.

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कराची में एक टेक्सटाइल मिल खरीद ली और बीवी और बेटे समेत कराची शिफ्ट हो गए. यहीं एक शानदार कोठी ले कर चैन से रहने लगे. उन की बीवी बहुत अच्छी समझदार व प्यार करने वाली थी. परवेज ने उसे सब कुछ बता दिया था. परवेज को साफिया याद आती तो वह बेचैन हो जाते क्योंकि वह उन की मोहब्बत थीं.

इतने अरसे के बाद साफिया को सामने देख कर वह हैरान हो गए. अब वह खुद पर काबू न रख सके. दूसरे दिन वह साफिया के घर पहुंच गए. साफिया अपने किए पर शर्मिंदा थीं. वह क्या गिला करतीं. उन्हें सब मालूम हो चुका था. परवेज ने कहा, ‘‘पुरानी बातें दोहराने से कोई फायदा नहीं है. मैं ने तुम्हें लाने की, तुम्हें ढूंढने की बड़ी कोशिश की थी, पर सारी कोशिशें नाकाम रहीं. तुम्हारे भाइयों ने मेरे साथ बड़ा बुरा सलूक किया था. मजबूरन मैं ने दूसरी शादी कर ली. क्या अब भी तुम मुझे कसूरवार ठहराओगी. अब चलो हमारे साथ चल कर रहो.’’

‘‘सच, इस में आप की कोई गलती नहीं है. मैं आप के साथ कैसे रह सकती हूं. आप की बीवी एतराज करेगी और फिर मुझे मंसूर से भी पूछना पड़ेगा, वह राजी होता है या नहीं.’’

‘‘कुछ सोचना नहीं है. फराज की मां को कोई एतराज नहीं होगा. मैं ने बात कर ली है उन से. तुम कल मंसूर के साथ तैयार रहना, मैं लेने आऊंगा.’’

शाम को जब मंसूर घर आया तो साफिया ने उसे सब कुछ बता दिया. पहले तो वह आपे से बाहर हो गया, पर जब साफिया ने उसे समझाया कि भूल उसी की थी, परवेज तो बेकसूर है. मां के बहुत मिन्नत करने पर मंसूर साथ जाने को राजी हो गया.

दूसरे दिन सुबह ही परवेज अपनी बीवी व फराज के साथ पहुंच गए. बहुत मोहब्बत से सब मंसूर व साफिया से मिले. उन्हें मिन्नत कर के अपने साथ घर ले गए. उन दोनों के लिए पहले से ही शानदार कमरे तैयार थे. परवेज ने मंसूर से कहा कि वह फौरन अपनी जौब छोड़ दे और फराज के साथ दफ्तर का काम संभाले. मंसूर तैयार न था, पर बाप ने उस के आगे हाथ जोड़ दिए. इतने अरसे के बाद बाप की चाहत मिली तो वह इनकार नहीं कर सका.

अगले हफ्ते मैं फराज से मिलने दफ्तर गई तो देखा कि फराज की कुरसी पर मंसूर बैठा था. फराज एक छोटी टेबल पर था. मुझे देखते ही मंसूर उठ कर चला गया.

फराज ने कहा, ‘‘शीना तुम हमारे लिए बहुत लकी हो, तुम्हारी मंगनी पर ही मुझे मेरी मां और भाई मिला.’’

इस के बाद मुझे फराज ने सारी कहानी सुनाई. मैं ये सब सुन कर भौचक्का रह गई. क्या किस्मत के खेल हैं, जिस कुरसी की वजह से मैं ने फराज पर डोरे डाले थे आज उसी कुरसी पर मंसूर बैठा था, जिस का प्यार मैं ने ठुकरा दिया था. 2 महीने बाद मेरी शादी थी. अब मुझे ये सोच कर डर लग रहा था कि मैं एक ही घर में मंसूर के साथ कैसे रहूंगी. अगर फराज को इस बात की भनक भी लग गई तो गजब हो जाएगा. वह तो मंसूर से बेहद प्यार करता है.

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शादी हो कर मैं फराज की आलीशान कोठी में पहुंच गई. अब मेरा मंसूर से रातदिन का सामना था. मैं उसे इग्नोर नहीं कर सकती थी. हालांकि मेरे दिल में कोई चोर न था पर मैं मंसूर के दिल का हाल खूब समझ रही थी. क्योंकि उस के दिल में मेरी मोहब्बत एक नासूर बन कर पल रही थी.

रिसैप्शन पार्टी के दूसरे दिन जब फराज मेहमानों को छोड़ने स्टेशन गए थे तो मंसूर ने मुझे बुलाया. मुझे बैठने को कह कर गंभीर लहजे में कहने लगा,  ‘‘जानता हूं, हम दोनों एक मुश्किल सूरतेहाल से गुजर रहे हैं. मैं ने इस बारे में बहुत सोचा और इस नतीजे पर पहुंचा कि मुझे मंजर से हट जाना चाहिए. अब तुम मेरे भाई की अमानत हो. मैं तुम्हारे बारे में कोई गलत बात नहीं सोचना चाहता.

‘‘पर इस दिल का क्या करूं, जहां आज भी तुम्हारी तसवीर सजी हुई है. इस से पहले कि कभी कोई ऐसी बात हो जाए कि मैं अपनी ही नजरों में गिर जाऊं. मैं 2 दिनों में कतर की तरफ निकल जाऊंगा. वहां मेरा एक दोस्त अच्छी नौकरी बता रहा है.

‘‘मेरे जाने के बाद तुम सुकून से जिंदगी गुजारना. ये मेरी बदनसीबी है कि लंबे समय के बाद बाप का प्यार मिला पर तुम्हारे सुकून की खातिर ये नए रिश्ते ये बेपनाह प्यार ये दौलत ये दफ्तर सब छोड़ना पड़ेगा. मेरी अम्मी और अब्बा नहीं मानेंगे पर मैं मिन्नत कर के उन्हें मना लूंगा. मोहब्बत की खातिर मुझे इतनी कुर्बानी तो देनी पड़ेगी.

‘‘भले ही मेरी जिंदगी बरबाद हो जाए पर मेरी दुआ है कि तुम हमेशा खुश रहो, आबाद रहो. मेरे भाई को खूब खुश रखना. एक इल्तजा है कि अब ऐसा मजाक किसी और बदनसीब से नहीं करना, वरना मेरी तरह वह भी सारी उम्र का रोगी बन जाएगा.

‘‘मैं बरसों के बाद मिलने वाली खुशी को अधूरा छोड़ कर पराए देश चला जाऊंगा. अगर मुझ से कोई गुस्ताखी हुई हो तो दीवाना समझ कर माफ कर देना.’’ इतना कह कर वह खामोश हो गया. कुछ पल तो मैं सुन्न सी बैठी रही फिर उठ कर कमरे से बाहर आ गई. मेरे पास कहने को कुछ न था. मेरी शरारत ने मंसूर की जिंदगी तबाह कर दी. मैं उसे किस मुंह से रोकती. अब सिवाय पछतावे के कुछ हासिल नहीं है. अब मैं इस अहसास के साथ जिंदगी बसर करूंगी कि मेरी वजह से एक मासूम शख्स बनवास लेने पर मजबूर हो गया. काश! मैं ने वो दिल्लगी न की होती.

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दिल्लगी बन गई दिल की लगी: भाग 3- क्यों शर्मिंदा थी साफिया

सैलरी मिलने पर मैं ने कुछ नए कपड़े खरीदे. उन्हें सिलवाने के लिए मैं साफिया खाला के घर गई. क्योंकि मैं उन्हीं से कपड़े सिलवाती थी. जब मैं उन के घर गई तो खाला पड़ोस में गई थीं.

मंसूर ने मुझे बिठा लिया और कोल्डड्रिंक पेश करते हुए बोला, ‘‘अच्छा हुआ तुम आ गई. मैं तुम्हारे इंस्टीट्यूट के चक्कर काटकाट कर परेशान हो गया. तुम से एक जरूरी बात करनी थी.’’

‘‘कैसी जरूरी बात?’’ मैं चौंकते हुए बोली, ‘‘मैं ने फराज के यहां जौब कर ली है.’’

‘‘दरअसल, बात यह है कि अम्मी मेरी शादी करना चाह रही हैं. उन्होंने मुझ से मेरी पसंद पूछी है. तुम से पूछे बगैर भला मैं उन्हें तुम्हारा नाम कैसे बता देता.’’ वह बोला, ‘‘क्या तुम मुझ से शादी करोगी? तुम कहो तो, मैं अम्मी को तुम्हारे घर भेजूं?’’

उस की यह बात सुनते ही मैं एकदम घबरा गई. मैं ने जल्दी से कहा, ‘‘ये तुम क्या कह रहे हो मंसूर? मैं ने कभी तुम्हें इस नजर से देखा ही नहीं.’’

‘‘फिर वह सब क्या था? वह लगावट और प्यार, मीठे अंदाज में बातें करना, मुझ से चूडि़यां मंगवाना, पहनना, मेरे साथ चलना?’’ वह चौंकते हुए बोला, ‘‘क्या तुम मुझे बेवकूफ बना रही थी?’’

‘‘माफ करना मंसूर, मैं ने तुम्हें बेवकूफ नहीं बनाया, मैं तुम्हें केवल अपना दोस्त समझती हूं.’’

‘‘दोस्ती का नाम ले कर तुम मुझ से आसानी से दामन नहीं छुड़ा सकतीं. तुम्हारे रवैये से साफ जाहिर था कि तुम मुझे पसंद करती हो. अगर ऐसा न था तो तुम मुझे पहले ही दिन रोक देती. बात इतनी आगे न बढ़ती?’’

‘‘हां, ये मुझ से गलती हो गई, मुझे माफ कर दो. मेरे दिल में तुम्हारे लिए ऐसा कोई जज्बा नहीं है. अब इस बात को यहीं खत्म कर दो. तुम भी कोई अच्छी सी लड़की देख कर उस से शादी कर लो. थोड़े दिनों में सब भूल जाओगे.’’ मेरी बात सुन कर उस का चेहरा धुआंधुआं हो गया.

वह मुरझाए लहजे में बोला, ‘‘यह तुम्हारे लिए एक खेल हो सकता है पर मेरे लिए जिंदगी और मौत का सवाल है. तुम्हें भूलना मेरे लिए नामुमकिन है.’’

उसी समय साफिया खाला भी आ गईं. मुझे देख कर वह बहुत खुश हुईं. उन्होंने मुझे नौकरी की मुबारकबाद दी, उन्होंने खुशीखुशी सीने के लिए मेरे कपड़े ले लिए और फिर मैं घर आ गई.

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मंसूर की बातें सुन कर मैं परेशान हो गई. मैं ने सोचा भी न था कि मेरा मजाक, एक छोटी सी शरारत किसी की जिंदगी का रोग बन जाएगी. मैं ने अपने जेहन में जिस जीवन साथी की तसवीर बनाई थी, मंसूर उस में फिट नहीं बैठता था. मेरा आइडियल एक खूबसूरत, हैंडसम व अमीर शख्स था, जिस के साथ मैं ऐशभरी जिंदगी गुजार सकूं. अचानक जेहन की स्क्रीन पर एक नाम चमका फराज. हां, वह मेरा मनपसंद साथी हो सकता है.

दूसरे दिन से ही मैं ने अपने मंसूबे पर काम करना शुरू कर दिया. खूबसूरत तो मैं थी ही अब मैं ने बन संवर कर औफिस जाना शुरू कर दिया था. उस दिन मैं हलका गुलाबी सूट और मैचिंग की चूडि़यां और ज्वैलरी पहन कर औफिस गई. फराज मुझे एक लम्हा देखता रहा फिर पूछा, ‘‘क्या आज कोई खास बात है?’’

मैं ने अदा से सिर झटकते हुए कहा, ‘‘हां, मुझे अपनी सहेली की बर्थडे पार्टी में जाना है.’’

उस ने मुझे देखते हुए कहा, ‘‘अच्छी लग रही हो. ऐसे ही रहा करो.’’ फिर मुझे कुछ लेटर टाइप करने को दे दिए. उस दिन जब मैं दोबारा उस के केबिन में गई तो उस ने साथ बिठा कर चाय पिलवाई. मैं धीरे से मुसकुरा दी, किरन ने मुझे फराज के बारे में बताया था कि वह इंतहाई मजबूत कैरेक्टर का बंदा है. कई लड़कियां उस पर मरती थीं, पर उस ने किसी को लिफ्ट नहीं दी. पर मेरा प्लान कामयाबी की मंजिल तय करने लगा था.

कुछ दिनों बाद किरन खास तौर पर मुझ से मिलने घर आई. वह बहाने से मुझे फराज के घर ले गई. उस की महल जैसी कोठी देख कर मैं दंग रह गई. उस के अम्मीअब्बा बहुत प्यार से मिले.

किरन मुझे घर छोड़ने आई तो बोली, ‘‘शीना, तुम ने फराज पर क्या जादू कर दिया? जो बंदा अभी शादी नहीं करना चाहता था, अब वह जल्दी शादी करना चाहता है और पता है तुम उस की पसंद हो. क्या तुम भी उसे पसंद करती हो? बता दो मैं उस की वालिदा के साथ तुम्हारा रिश्ता मांगने तुम्हारे घर आ जाऊं.’’

मैं सिर नीचा कर के धीरे से मुसकरा दी. किरन ने खुश हो कर मुझे गले लगा लिया. 2-3 दिन बाद साफिया खाला हमारे घर आईं. बेहद परेशान थीं.

पूछने पर कहने लगीं, ‘‘क्या बताऊं बेटा मैं मंसूर की वजह से बहुत दुखी हूं. उस ने अजीब हाल बना लिया है. न ढंग से खातपीता है और न किसी से मिलताजुलता है. हंसी तो जैसे उस से रुठ गई है. चुपचाप कमरे में पड़ा रहता है. न जाने क्या रोग लग गया है, उसे तुम जरा उस से पूछो तो कि बात क्या है.’’

मैं उन्हें क्या कहती कि परेशानी की वजह मैं ही हूं. दूसरे दिन किरन और फराज के अम्मीअब्बा रिश्ता ले कर घर आए. फराज के बारे में सारी जानकारी दी. मैं सोच भी नहीं सकती थी कि मेरा ख्वाब इतनी जल्दी पूरा हो जाएगा. मेरे अब्बा फराज के वालिद को अच्छी तरह जानते थे उन्होंने रिश्ता कुबूल कर लिया. फिर सारे मामलात तेजी से तय हो गए. उन्होंने खबर दी कि अगले इतवार को वह लोग तारीख तय करने आएंगे, साथ ही अंगूठी भी पहना देंगे.

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इतवार को किरन, फराज के अम्मीअब्बा आए. अम्मी ने शानदार इंतेजाम किया था. अपनी मदद के लिए साफिया खाला को उन्होंने बुला लिया था. खाने के बाद फराज की अम्मी ने हीरे की बहुत खूबसूरत अंगूठी पहनाई. उस वक्त साफिया खाला भी हौल में आ गईं.

साफिया खाला की नजर ज्यों ही फराज के वालिद पर पड़ी, वह पत्थर के बुत की तरह खड़ी रह गईं. फराज के वालिद का भी यही हाल था. हमें समझ न आया कि माजरा क्या है. जो दोनों इस तरह हैरान व परेशान हैं? साफिया खाला फौरन किचन में चली गईं. फराज के वालिद परवेज खान भी जल्दी ही उठे और वो सब निकल गए.

यहां कहानी में एक ऐसा मोड़ आया जिस ने मुझे हिला कर रख दिया. दरअसल साफिया खाला फराज के वालिद परवेज खान की पहली बीवी थीं. जब शादी हुई परवेज खान लाहौर में थे और एक फर्म में अच्छी पोस्ट पर काम करते थे. शुरू के चंद साल बड़े अच्छे गुजरे. मंसूर की पैदाइश के कुछ अरसे बाद फर्म बंद हो गई और परवेज खान की नौकरी चली गई. इस के बाद वह काफी अरसे तक रोजगार ढूंढते रहे.

उन्हें कोई जौब नहीं मिली, इस बीच सारी जमापूंजी भी खत्म हो गई. पेट का दोजख भरने को एक प्राइवेट फर्म में क्लर्क की नौकरी कर ली. इतनी कम तनख्वाह में गुजारा मुश्किल था. साफिया बेगम इस गरीबी की आदी न थीं. वह दौलतमंद बाप की बेटी थीं. शौहर की गरीबी की हालत में वह अपने बाप के घर चली गईं. परवेज खां रोकते रह गए पर वह नहीं मानीं. परवेज खान को भी गुस्सा आ गया उन्होंने तय कर लिया कि जब तक अच्छा कमाएंगे नहीं बीवी को नहीं लाएंगे.

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दिल्लगी बन गई दिल की लगी: भाग 2- क्यों शर्मिंदा थी साफिया

मन मार कर मैं मंगनी में पहुंची. जब मैं अपनी कार से उतर रही थी. मैं ने मंसूर को देखा. मेरे दिमाग में बिजली सी चमकी. मैं चेहरे पर वही दिखावे का प्यार लिए मंसूर के पास जा पहुंची. मैं ने उस से कहा, ‘‘प्लीज मंसूर, मेरा एक काम कर दो.’’

‘‘तुम एक नहीं सौ काम बोलो, बंदा हाजिर है.’’ उस ने आशिकाना अंदाज में कहा.

‘‘मेरे पास अंगूरी रंग की चूडि़यां नहीं थीं. अम्मी ने मुझे बाजार जाने नहीं दिया. अभी मंगनी में वक्त है, तुम मुझे बाजार से मेरे सूट के कलर की चूडि़यां ला दो.’’ मैं ने कहा.

मैं पैसे निकालने लगी, पर उस ने मना कर दिया. मेरे सूट को गौर से देखते हुए कहा, ‘‘मैं चूडि़यां तो ला दूंगा, पर एक शर्त पर.’’

‘‘कैसी शर्त?’’ मैं ने पूछा.

‘‘वह मैं चूडि़यां लाने के बाद ही बताऊंगा.’’ इतना कह कर वह फौरन मोटरसाइकिल ले कर चला गया. मैं अंदर आ कर किरण से मिली. हमारे सभी दोस्त थे, मैं बातों में लग गई कि कानों में हल्की सी आवाज आई, ‘‘शीना.’’

मैं ने मुड़ कर देखा मंसूर था. मैं फौरन उस के पास गई. वहां से दूर हट कर उस ने चूडि़यों का पैकेट मेरे हाथों पर रख दिया. परफेक्ट मैचिंग की बेहद खूबसूरत चूडि़यां लाया था.

जैसे ही मैं चूडि़यां पहनने लगी, उस ने मेरे हाथ से चूडि़यां लेते हुए कहा, ‘‘इन्हें मैं पहनाऊंगा, यही तो मेरी शर्त थी.’’

कुछ कहने की गुंजाइश न थी. उस ने बड़े प्यार से चूडि़यां पहनाईं. मैं उस की आंखों की चमक से डर गई. मैं ने उस से मीठे लहजे में मिन्नत की, ‘‘देखो मंसूर, तुम्हारे साथ मोटरसाइकिल पर जाना या कहीं बैठना ठीक नहीं है. किसी जानने वाले ने देख लिया तो मेरी मुसीबत आ जाएगी. आइंदा मुझे मोटरसाइकिल पर बैठने को मत कहना.’’

‘‘ठीक है, पर तुम अम्मी से मिलने मेरे घर आती रहोगी.’’ उस ने कहा.

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मेरे पास सिवाय वादा करने के और कोई रास्ता नहीं था. मैं ने किरण को मजे ले कर सारा किस्सा सुनाया. वह नाराज हो कर बोली, ‘‘किसी के दिल के साथ इस तरह खेलना अच्छी बात नहीं है. क्या तुम उस गरीब से शादी करोगी? नहीं न. जानती है, यह खेल उस की जान का रोग बन जाएगा. इतनी आसानी से वह तुम्हें नहीं छोड़ेगा.’’

मैं ने किरण को यकीन दिलाया कि आगे से ध्यान रखूंगी. मुझे किरण की बात सही लग रही थी, पर मैं अपनी फितरत से मजबूर थी. मुझे इस खेल में मजा आ रहा था. कोई मुझे सराहे, मुझे चाहे, मेरे लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाए. यह बात भला किसे बुरी लग सकती है.

अपना वादा निभाने के लिए मैं 2 सूट ले कर उस की अम्मी के पास सिलाने गई. मैं ने कहा, ‘‘खाला, मैं ये 2 सूट सिलवाने आई हूं.’’

उसी वक्त मंसूर कमरे से बाहर आ गया. मुझे देख कर वह खुश हो गया. कहने लगा, ‘‘अब अम्मी ने सिलाई का काम बंद कर दिया है. पर ये तुम्हारे सूट हैं, इसलिए जरूर सिलेंगी.’’

उस ने चाहतभरी नजर मुझ पर डाली. खाला ने जल्दी से कहा, ‘‘मेरी बेटी के सूट मैं खूब अच्छे से सीऊंगी, मंसूर जाओ, जल्दी से बेटी के लिए गरम समोसे और जलेबी ले आओ. तब तक मैं चाय बनाती हूं.’’

मेरे ना करने पर भी मंसूर चला गया. हम ने साथ बैठ कर मजे से समोसेजलेबी खाई और चाय पी. मंसूर मुझे देखता रहा. मेरी खातिरदारी करता रहा. जब मैं वापस आने लगी तो वह मुझे दरवाजे तक छोड़ने भी आया. उस ने धीमे से कहा, ‘‘शीना, कल इंस्टीट्यूट के बाहर मैं तुम्हारा इंतजार करूंगा, मुझे तुम से एक जरूरी बात करनी है.’’

जिस अंदाज में उस ने मुझ से यह बात कही थी मैं चौंक गई. मैं ने कहा, ‘‘मंसूर वह कौन सी जरूरी बात है जो तुम यहां नहीं कर सकते?’’

‘‘नहीं, यहां मुमकिन नहीं है, तुम परेशान न हो, मैं लंबी बात नहीं करूंगा.’’

दूसरे दिन मैं अपने वक्त पर इंस्टीट्यूट से निकली तो मंसूर इंतजार करते हुए मुझे बाहर मिला. उस ने मुझ से रेस्टोरेंट में चलने के लिए कहा तो मैं ने रेस्टोरेंट में जाने से मना कर दिया. वह मुझे एक करीबी पार्क में ले गया. वहां सन्नाटा था. वहां पहुंच कर उस ने एक पैकेट मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा, ‘‘कल मुझे पहली सैलरी मिली. ये गिफ्ट तुम्हारे लिए है.’’

मैं ने कहा, ‘‘मेरे तुम्हारे बीच ऐसा कोई रिश्ता नहीं है कि मैं ये गिफ्ट ले लूं.’’

‘‘रिश्ता भी बन जाएगा. फिलहाल इसे स्वीकार कर लो.’’ वह बोला.

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मैं ने पैकेट रख लिया. जब मैं अपने घर की तरफ मुड़ी तो उस ने मेरी तरफ अपनेपन की तरह देखते हुए कहा, ‘‘मुझे उस दिन का इंतजार है जब तुम जिद कर के हक जताते हुए मुझ से तोहफे मांगा करोगी.’’

मुझे यूं लगा जैसे किसी ने मेरे कानों में पिघला हुआ सीसा डाल दिया है. यानी वह मुझ से शादी करने के ख्वाब देख रहा था. दिल तो चाहा कि उस का गिफ्ट उस के मुंह पर मार दूं, मगर मैं चुपचाप गिफ्ट लिए घर आ गई. कमरा बंद कर के मैं बिस्तर पर लेट गई. सोचने लगी कि मैं ने मजाकजाक में एक जंजाल पीछे लगा लिया. लेकिन अब इस से छुटकारा पाना बहुत जरूरी था.

मंसूर के दिल में ये बात बैठ गई है तो वह अपनी मां को रिश्ता ले कर भी भेज सकता है. रिश्ता आने पर मेरी अम्मी और अब्बू जो भी फैसला करें पर मेरे इनकार से मंसूर और साफिया खाला के दिल जरूर टूट जाएंगे. अब मुझे महसूस हो रहा था कि मुझे मंसूर को इस तरह बढ़ावा नहीं देना चाहिए था. मेरे प्यार मेरे व्यवहार से ही वह मेरी तरफ आकर्षित हुआ, वरना पहले तो उस से केवल हायहैलो ही होती थी.

मेरा कंप्यूटर का कोर्स भी 2 दिन में पूरा होने वाला था. इसलिए मैं ने किरण को फोन किया कि वह अपने दोस्त फराज से मेरी जौब की बात करे. उस के वालिद की 2-3 कंपनियां हैं. उस में कहीं मुझे रख ले.

किरण ने कहा, ‘‘फराज मेरा दोस्त ही नहीं कजिन भी है. एक हफ्ते में मैं तुम्हें औफिस में सेट कर दूंगी.’’

उसी की बात से मुझे थोड़ी तसल्ली हुई. पता नहीं क्यों मेरे मेरे दिमाग में बारबार फराज का खयाल आने लगा. मैं अब जौब करना चाहती थी, पर घर का माहौल ऐसा था कि वह जौब नहीं करने देते. मैं ने बड़ी मुश्किल से अपनी अम्मी से जौब करने की इजाजत ली.

मेरे वालिद फराज के वालिद व उन के कारोबार को जानते थे. 3 दिन बाद मुझे कंपनी से अपाइंटमेंट लेटर मिल गया. फराज का औफिस किलीकटन पर था. मैं ने रिसेप्शन पर अपने बारे में बताया तो मुझे फौरन ही बुलाया गया. फराज बेहद स्मार्ट और खूबसूरत था. उस ने इंटरकाम के जरिए एक लड़की को बुलाया और कहा, ‘‘मिस शीना, ये मिस तबंदा हैं. ये जौब से रिजाइन कर रही हैं इन्हीं की जगह पर आप यहां मेरी प्राइवेट सेक्रेटरी का काम करेंगी. मिस तबंदा आप इन्हें काम के बारे में सब बातें अच्छे से समझा दीजिए.’’

वह मुझे ले कर बाहर आ गई. उस ने बताया कि मेरी शादी हो गई और मैं दुबई जा रही हूं. उस ने मुझे अच्छे से सारा काम समझा दिया. वह दिन भर मेरे साथ रही, मुझे गाइड करती रही. दूसरे रोज भी वह मेरे साथ रही. उस के बाद मैं ने बखूबी सारा काम संभाल लिया. मुझे एक केबिन मिला था. मेरी टेबल पर कंप्यूटर भी था, जो मुझे अच्छे से आता था और अपनी काबीलियत के बल पर मैं जल्द ही अच्छे से एडजस्ट हो गई.

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इस बीच मेरी फराज से 2-3 मुलाकातें हुईं. उस के औफिस का रास्ता मेरे केबिन से हो कर गुजरता था. वह केवल काम से काम रखने वाला शख्स था. किसी से ज्यादा बात नहीं करता. काम होने पर ही केबिन में बुलाता था. अब उस ने मुझे अपने बिजनेस लेटर्स टाइप करने को दे दिए.

महीना खत्म होने पर मुझे अच्छीखासी सैलरी मिली. मैं खुश हो गई. मुझे फराज बहुत पसंद आया. वह मेरी ख्वाहिश के मुताबिक खूबसूरत होने के साथसाथ दौलतमंद भी था. धीरेधीरे मेरे हुस्न मेरी अदाओं से वह मेरी तरफ आसक्त होने लगा. फराज के वालिद कभीकभार ही औफिस आते थे, वह मुझ से बड़े प्यार से बात करते थे.

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दिल्लगी बन गई दिल की लगी: भाग 1- क्यों शर्मिंदा थी साफिया

मैं बचपन से आजादखयाल, शोख व चंचल थी. हंसीमजाक, छेड़छाड़ और शरारत करना मेरा शौक था. हमारा  परिवार काफी खुशहाल था. पैसे की कोई कमी नहीं थी. घर से मुझे जेब खर्च के लिए अच्छीखासी रकम मिलती थी. मेरा अच्छा रहनसहन देख कर लोग जल्द ही मुझे तवज्जो देने लगे थे.

कालेज में मैं जल्द ही बहुत पापुलर हो गई. अच्छेअच्छे लड़के मुझ से दोस्ती करने आने लगे. मेरी ऐसी आदत थी कि मैं हर एक से दोस्ती कर लेती थी. किसी का दिल तोड़ना मुझे अच्छा नहीं लगता था. मैं सब के साथ घुलमिल कर खुश रहती थी.  सभी दोस्तों के साथ हंसतेखेलते 3 साल गुजर गए. मेरी ग्रैजुएशन की पढ़ाई पूरी हो गई.

मैं पोस्ट गै्रजुएशन करना चाहती थी, पर आगे पढ़ने की इजाजत अम्मी ने नहीं दी. उन्होंने कहा, ‘‘बेटा अब तुम घर पर रह कर घर के कामकाज सीखो. जल्द ही अच्छा लड़का देख कर तुम्हारी शादी कर देंगे.’’

एक दिन मैं दोपहर के समय शौपिंग कर के लौट रही थी, तभी रास्ते में औटो खराब हो गया. मैं दूसरे औटो के आने का इंतजार करने लगी. जब कोई औटो नहीं मिला तो सामान उठा कर मैं पैदल ही घर के लिए चल पड़ी.

मैं थोड़ी दूर चली थी कि अचानक मंसूर आ गया. मुझे देख कर वह रुक गया. मुझे पसीने से भीगा देख कर बोला, ‘‘इतनी तेज धूप में सामान लिए पैदल कहां जा रही हो?’’

मैं ने कहा, ‘‘औटोरिक्शा खराब हो गया था, इसलिए पैदल ही घर जा रही हूं.’’

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‘‘लाओ सामान मुझे दो. मैं पहुंचाए देता हूं.’’ उस ने कहा.

मैं ने आवाज में मोहब्बत भर कर कहा, ‘‘आप को हमारी इतनी फिक्र कब से होने लगी.’’

उस ने मुझे हैरानी से देखा तो मैं ने रोमांटिक होते हुए कहा, ‘‘आप को देख लिया, यही काफी है. सामान रहने दो.’’

इस के बाद उस ने मुझे कुछ उलझन भरी नजरों से देखा. उस के बाद मेरे हाथ से सामान ले कर साथ चलने लगा. घर पहुंचने पर वह बरामदे में सामान रख कर जाने लगा तो मैं ने कहा, ‘‘शुक्रिया, आओ बैठो, चाय पी कर जाना.’’

‘‘नहीं, रहने दो. फिर कभी पी लूंगा.’’ कह कर वह चला गया.

मंसूर हमारे मोहल्ले की एक गरीब औरत साफिया का एकलौता बेटा था. मोहल्ले के सभी लोग साफिया को खाला कहते थे. साफिया खाला के बारे में हम बस इतना जानते थे कि वह सिलाई कर के गुजरबसर करती हैं. आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने मंसूर को अच्छी तालीम दिलवाई थी. अब वह नौकरी की तलाश में था.

खाला को उम्मीद थी कि मंसूर की नौकरी लगने के बाद उस के बुरे दिन दूर हो जाएंगे. आज मैं ने मजाक में उस के दिल में गलतफहमी डाल दी थी. मेरी दोस्त किरण यूनिवसिर्टी में पढ़ रही थी. उस का घराना लखपति था, बाप के कारखाने थे, पर उसे एक लड़के जमील से मोहब्बत हो गई थी, जबकि जमील ने उस की मोहब्बत को कबूल नहीं किया था.

उस ने कहा था, ‘‘आज जज्बात और मोहब्बत के जोश में आ कर तुम मुझ से शादी कर लोगी. तुम्हारे मांबाप हरगिज मुझे कबूल नहीं करेंगे और मेरी गरीबी से तुम जल्द ही तंग आ जाओगी, क्योंकि तुम जिस तरह ऐशोइशरत में रहती हो, वह तुम्हारी आदत बन चुकी है. इसलिए बेहतर है कि तुम मुझे भूल जाओ और मुझे मेरी मंजिल तलाश करने दो.’’

किरण अपनी नाकाम मोहब्बत की कहानी मुझे सुनाती रहती थी. इस के अलावा फराज और मीना भी. घर के कामकाज निपटाने के बाद मैं खाली हो जाती तो मेरा मन नहीं लगता था. किरण, मीना, फराज मेरे अच्छे दोस्त थे. यह सभी अमीर घरानों से ताल्लुक रखते थे. जब मुझे पता चला कि फराज के बाप की कई कंपनियां हैं तो मैं ने किरण से कहा कि वह फराज से बात कर के कहीं मेरी भी नौकरी लगवा दे.

किरण ने मुझे कंप्यूटर का कोर्स करने की सलाह दी. कोर्स पूरा होने के बाद वह फराज से बात कर लेगी. मैं ने कंप्यूटर कोर्स करने के बारे में अम्मी से बात की. वह मना कर रही थीं, पर मैं ने उन्हें मना लिया और एक अच्छे कंप्यूटर इंस्टीट्यूट में दाखिला ले लिया.

एक दिन मैं जब इंस्टीट्यूट से लौट रही थी तो मुझे मंसूर मिल गया. वह मोटरसाइकिल पर था. उस दिन वह अच्छे और महंगे कपडे़ पहने था. उस ने मोटरसाइकिल रोक कर मुझ से कहा, ‘‘आओ मोटरसाइकिल पर बैठ जाओ, मैं तुम्हें घर छोड़ देता हूं.’’

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‘‘इंकार कर के क्यों गरीब का दिल तोड़ती हो.’’ कह कर उस ने बेतकल्लुफी से मेरा हाथ पकड़ कर मुझे पीछे बैठने पर मजबूर कर दिया. मैं अंदर ही अंदर गुस्सा हुई. मंसूर के इस व्यवहार से मुझे लगा कि उस दिन जो मैं ने इस से मुसकरा कर बात की थी, कहीं उस का इस ने गलत मायने तो नहीं निकाल लिया.

अब मुझे अपनी शरारत और दिखावे की मोहब्बत बहुत बुरी लग रही थी. मैं ने मन ही मन सोच लिया कि अब मैं मंसूर को जरा भी लिफ्ट नहीं दूंगी, वरना यह मेरे पीछे ही पड़ जाएगा.

रास्ते में मंसूर ने मुझे बताया कि उस की एक अच्छी कंपनी में नौकरी लग गई है. यह मोटरसाइकिल उसे कंपनी से ही मिली है. मोटरसाइकिल एक स्टाल के सामने रोक कर उस ने कहा, ‘‘आओ, एकएक कोल्डड्रिंक हो जाए.’’

वहां कुछ अन्य लोग खड़े थे. मैं इंकार कर के उन सब के सामने तमाशा नहीं बनना चाहती थी, इसलिए उस के साथ चली गई. मैं ने उसे जौब की मुबारकबाद दी तो उस ने कहा, ‘‘जौब की मुझे सख्त जरूरत थी. अम्मी बीमार रहती हैं और अब वह अकेले रहतेरहते तंग आ गई हैं. उन्हें किसी के साथ की जरूरत है.’’

यह कह कर मंसूर ने प्यार से मुझे देखा. मैं परेशान हो गई. घर पहुंच कर मैं ने बहुत सोचा. पहले दिन शरारत में मैं ने मंसूर से जो प्यार जताया था, यह उसी का नतीजा था. वह मुझे अपनी मोहब्बत समझ बैठा था. मेरे जमीर ने मुझे चेताया, ‘‘अगर मोहब्बत जताई है तो उसे निभाओ. अब उस का दिल न तोडो. साथ निभाओ.’’

मैं ने सोचा कि मैं जिस तरह की ऐशोआराम की जिंदगी की आदी हूं, लगीबंधी तनख्वाह और छोटे से घर में खुश नहीं रह सकती. माना कि मंसूर एक अच्छा लड़का है, पर उस के पास इतना पैसा नहीं है कि उस के साथ मैं खुश रह सकूंगी. इसलिए मैं ने मन ही मन तय किया कि मैं मंसूर को नहीं अपनाऊंगी.

दिन गुजरते रहे. काफी दिनों तक मंसूर मुझे नजर नहीं आया. बात मेरे दिमाग से निकल गई. मेरी सहेली किरण की मंगनी थी. उस ने बडे़ प्यार से मुझे बुलाया. उस की मंगनी में ग्रुप के सभी दोस्त आने वाले थे. मैं ने अंगूरी कलर का नया सूट पहना था, जो मुझ पर खूब फब रहा था. उसी रंग की ज्वैलरी पहन कर मैं और ज्यादा खूबसूरत लग रही थी, पर मेरे पास अंगूरी रंग की चूडि़यां नहीं थीं. जिस की वजह से सारा शृंगार अधूरा लग रहा था.

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