दुर्घटना: क्या हुआ था समीर और शालिनी के साथ

समीर रोज की तरह घर से निकला और कुछ दूर खड़ी शालिनी को अपनी कार में बिठा लिया. दोनों एक निजी शिक्षा संस्थान में होटल मैनेजमेंट का कोर्स कर रहे थे. साथ पढ़ते थे इस कारण मित्रता भी हो गई थी.

कार अपनी रफ्तार से दौड़ रही थी कि अचानक चौराहे के पास जमा भीड़ के कारण समीर को ब्रेक लगाने पड़े. उतर कर देखा तो एक आदमी घायल पड़ा था. लोग तरहतरह की बातें और बहस तो कर रहे थे लेकिन कुछ करने की पहल किसी ने नहीं की थी. खून बहुत बह रहा था.

‘‘मैं देखती हूं, शायद कोई अस्पताल पहुंचा दे,’’ शालिनी ने भीड़ के अंदर घुसते हुए कहा.

‘‘आप लोग कुछ करते क्यों नहीं,’’ शालिनी ने क्रोध से कहा, ‘‘कितना खून बह रहा है. बेचारा, मर जाएगा.’’

‘‘आप ही क्यों नहीं कुछ करतीं,’’ एक युवक ने कहा, ‘‘हमें पुलिस के लफड़े में नहीं पड़ना.’’

‘‘तो यहां क्यों खड़े हैं,’’ शालिनी ने प्रताड़ना दी, ‘‘अपने घर जाइए.’’

‘‘चले जाएंगे, तुम्हारा क्या बिगाड़ रहे हैं,’’ युवक ने धृष्टता से कहा और चल दिया.

धीरेधीरे भीड़ छंटने लगी और शालिनी अपनेआप को लाचार समझने लगी.

‘‘समीर, इसे अस्पताल पहुंचाना होगा,’’ शालिनी ने कहा.

‘‘बेकार में झंझट मोल मत लो,’’ समीर ने कहा, ‘‘पुलिस को फोन कर के चलना ठीक रहेगा. क्लास के लिए भी तो देर हो रही है.’’

‘‘नहीं, समीर, ऐसा है तो तुम जाओ,’’ शालिनी ने सिर हिलाते हुए कहा, ‘‘पुलिस को फोन कर देना. तब तक मैं यहां खड़ी हूं.’’

समीर समझ गया कि शालिनी को इंसानियत का दौरा पड़ गया है. उसे अकेला छोड़ कर चले जाना कायरता होगी.

‘‘चलो, इसे कार में डालते हैं,’’ समीर ने कहा, ‘‘किसी की मदद लेनी होगी क्योंकि तुम्हारे बस का नहीं है इसे उठाना.’’

बचेखुचे कुछ लोगों में से 2 आदमी बेमन से मदद करने को तैयार हुए. उन्होंने बड़ी कठिनाई से उसे उठा कर कार की पिछली सीट पर लिटाया और जाने लगे.

समीर ने उन्हें रोकते हुए कहा, ‘‘भाई साहब, जरा अपना नाम, पता व फोन नंबर तो देते जाइए.’’

‘‘आज के लिए इतना काफी है,’’ कह कर दोनों चल दिए. अब कोई दर्शक नहीं था.

कुछ ही दूरी पर नर्सिंगहोम था. वहां पहुंच कर समीर ने दुर्घटना की जानकारी दी और घायल आदमी का इलाज करने को कहा. नर्सिंगहोम ह्वह्य आशा के विपरीत घायल को हाथोंहाथ लिया और तुरंत आपरेशन थिएटर में पहुंचा दिया.

नर्सिंगहोम के सुपुर्द कर के जैसे ही दोनों जाने लगे कि एक डाक्टर ने उन्हें रोक लिया.

‘‘खेद है, अभी आप नहीं जा सकते,’’ डाक्टर ने कहा, ‘‘पुलिस के आने तक आप को इंतजार करना पड़ेगा क्योंकि पुलिस के सामने आप को अपना बयान देना होगा.’’

‘‘लेकिन हम ने तो कुछ नहीं किया,’’ शालिनी ने चिढ़ कर कहा, ‘‘इस आदमी को केवल यहां पहुंचाने की गलती की है.’’

‘‘आप ठीक कहती हैं,’’ डाक्टर मुसकराया, ‘‘लेकिन हमें तो कानून के हिसाब से चलना पड़ता है. थोड़ा रुकिए, पुलिस आती ही होगी. आप ने अपना काम किया और हम अपना काम कर रहे हैं… इंसानियत के नाते.’’

मजबूर हो कर दोनों को रुकना पड़ा. आज तो क्लास नहीं कर पाएंगे.

कुछ ही देर में 2 पुलिस वाले आ गए. पूरे विस्तार से जानकारी ली. नाम, पता, फोन नंबर व आप

से रिश्ता भी डायरी में लिखा.

‘‘आप घायल को जानते हैं?’’ इंस्पेक्टर ने पूछा.

‘‘जी नहीं,’’ समीर ने कहा, ‘‘पहले कभी नहीं देखा.’’

‘‘दुर्घटना के बारे में और क्या जानते हैं?’’

‘‘कुछ नहीं,’’ शालिनी ने कहा, ‘‘यह सड़क पर घायल पड़ा था. भीड़ तो जमा थी पर कोई कुछ कर नहीं रहा था. हम लोगों ने इसे उठा कर यहां पहुंचा दिया, बस.’’

‘‘यह तो आप ने बहुत अच्छा किया,’’ इंस्पेक्टर मुसकराया, ‘‘कौन करता है किसी अनजान के लिए.’’

‘‘हम जा सकते हैं?’’ समीर ने धीरज खो कर पूछा.

‘‘अभी नहीं,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘अपने बयान को पढि़ए और फिर अपनी चिडि़या बिठाइए.’’

‘‘चिडि़या?’’ शालिनी ने आश्चर्य से पूछा.

‘‘मेरा मतलब हस्ताक्षर से है,’’ इंस्पेक्टर हंसा.

उसी समय नर्स ने बाहर आ कर घायल के पास से जो कुछ मिला था इंस्पेक्टर के सामने रख दिया. इंस्पेक्टर ने गहराई से सामान को देखा. शायद नाम, पता आदि मिले तो इस के रिश्तेदारों को खबर दी जा सकती है.

घायल का नाम सुमेर स्ंिह था और वह इलाज के लिए पास के गांव से आया था. रुक्मणी देवी अस्पताल की परची थी. वहां फोन किया, अधिक जानकारी नहीं मिली. गांव के 2-3 फोन नंबर थे. इंस्पेक्टर ने फोन लगाया. 2 जगह तो घंटी बजती रही. किसी ने नहीं उठाया. तीसरी जगह फोन करने पर बहुत देर बाद किसी ने उठाया.

‘‘हैलो,’’ उधर से एक महिला ने कहा.

‘‘मैं इंस्पेक्टर भूपलाल दिल्ली से बोल रहा हूं,’’ इंस्पेक्टर ने रोब से कहा.

महिला के स्वर में डर था, ‘‘जी, ये तो घर में नहीं हैं. थोड़ी देर बाद फोन कीजिए.’’

‘‘कोई बात नहीं,’’ कह कर इंस्पेक्टर ने पूछा, ‘‘आप किसी सुमेर स्ंिह को जानती हैं?’’

‘‘सुमेर सिंह?…ओह, सुमेर, हां, मेरे गांव का है. 8-10 मकान छोड़ कर रहता है,’’ महिला ने कहा, ‘‘सुना है, इलाज के लिए दिल्ली गया है.’’

‘‘वह बहुत गंभीर रूप से घायल है,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘उस के घर से किसी को बुलाइए.’’

‘‘वह तो अकेला रहता है,’’ महिला ने कहा, ‘‘उस की घरवाली तो छोड़ कर चली गई है.’’

‘‘तो कोई और रिश्तेदार होगा,’’ इंस्पेक्टर ने कहा.

‘‘हां, चाचावाचा हैं,’’ महिला ने कहा.

‘‘तो उन्हीं को बुलाओ,’’ इंस्पेक्टर ने कड़क कर कहा, ‘‘मैं 15 मिनट बाद फिर फोन करूंगा.’’

इंस्पेक्टर ने समीर और शालिनी को रोक रखा था. देर तो हो ही गइर््र थी, इन्हें अब यह भी कौतूहल था कि बेचारा बचेगा भी या नहीं.

नर्सिंगहोम की कैंटीन में चायनाश्ते के बाद इंस्पेक्टर ने फिर फोन मिलाया.

‘‘जी सर,’’ उधर से आवाज आई.

‘‘कौन बोल रहा है? सुमेर का चाचा?’’ इंस्पेक्टर ने कड़क स्वर में पूछा.

‘‘जी, मैं चाचा तो हूं, लेकिन सगा नहीं,’’ चाचा ने सहम कर कहा.

‘‘ठीक है, तुम कुछ तो हो,’’ इंस्पेक्टर ने कहा, ‘‘यहां नर्सिंगहोम का पता लिखो और फौरन बस पकड़ कर चले आओ. सुमेर स्ंिह घायल है.’’

‘‘तो हम क्या करेंगे?’’ चाचा ने हकला कर कहा.

‘‘तुम तीमारदारी करोगे और इलाज का खर्च उठाओगे,’’ इंस्पेक्टर ने डांट कर कहा, ‘‘अगर नहीं आए तो अंदर कर दूंगा.’’

इंस्पेक्टर की घुड़की खा कर चाचा और उस का बेटा 2 घंटे के भीतर पहुंच गए. वे सुमेर स्ंिह की गंभीर हालत देख कर डर गए.

‘‘हमें क्या करना है?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘तुरंत खून की 2 बोतलों का इंतजाम करो,’’ नर्स ने कहा, ‘‘यह दवाएं लिख दी हैं. इन्हें ले कर आओ. हां, देर मत करना…और हां, यह फार्म है, इस पर अपने हस्ताक्षर कर दो.’’

‘‘मैं क्यों दस्तखत करूं?’’ चाचा ने पूछा.

‘‘अरे, कोई तो जिम्मेदारी लेगा,’’ नर्स ने डांट कर कहा, ‘‘जल्दी करो.’’

‘‘पहले दवा ले आते हैं,’’ चाचा ने कहा और अपने बेटे के साथ चला गया.

इस के बाद वे लौट कर नहीं आए. फोन करने पर पता लगा उन के घर पर ताला लगा है.

इधर समय निकलता देख नर्स ने समीर से कहा, ‘‘आप ही कोई बंदोबस्त कीजिए.’’

शालिनी और समीर दोनों उलझन में पड़ गए. अचानक घायल को बेसहारा देख पीछा छुड़ाने का मन नहीं हुआ. पास ही रेडक्रास का ब्लड बैंक था. दोनों ने अपनेअपने पर्स निकाले और रुपए गिने. दवाओं के पैसे भी देने थे. फिलहाल काम चल जाएगा. नर्स को अस्पताल से खून व दवा देने का आदेश दे कर ब्लड बैंक चले गए.

ब्लड बैंक ने खून देने से पहले इन दोनों के खून की जांच की और रक्तदान करने के लिए कहा. यह दान उन्होंने खुशी से दिया और अस्पताल पहुंच गए.

‘‘अब कैसी हालत है सुमेर स्ंिह की?’’ शालिनी ने नर्स से पूछा.

‘‘बचने की उम्मीद कम है.’’

नर्स ने कहा.

सुन कर दोनों को बहुत बुरा लगा. कुछ देर बैठे और फिर घर चले गए.

अगले दिन समीर को शालिनी ने फोन किया, ‘‘क्या उसे देखने जाओगे?’’

‘‘कोई फैसला नहीं ले पा रहा हूं,’’ समीर ने कहा, ‘‘पता नहीं क्या मुसीबत मोल ले ली.’’

‘‘अगर जाओ तो मुझे बता देना, कुछ अच्छा नहीं लग रहा है.’’

समीर कुछ पहले आ गया और नर्सिंगहोम के सामने रुका. अंदर जाए या नहीं? बेचारा.

‘‘सिस्टर, कैसा है मरीज?’’ समीर ने पूछा.

नर्स ने सिर हिलाया और मुंह बिचका दिया.

फोन करने पर शालिनी ने कहा, ‘‘तुम वहीं रुको, मैं आ रही हूं.’’

अनजान ही सही, इतना कुछ करने के बाद थोड़ाबहुत लगाव तो हो ही जाता है. शालिनी आई और ताजा जानकारी इस तरह से ली मानो मरीज कोई परिचित था. लगभग 1 घंटे बाद नर्स ने सूचना दी कि सुमेर स्ंिह को डाक्टर बचा नहीं सके. उस के अंतिम संस्कार का प्रबंध करें. लाश को कुछ घंटे ही रखा जा सकता था. दोनों स्तब्ध रह गए. ऐसा काम तो उन्होंने आज तक नहीं किया था. दोनों बहुत दुखी थे.

नर्सिंगहोम से एक ऐसी संस्था कापता लिया जो लावारिस लाशों का दाहसंस्कार किया करती है. फोन कर के समीर ने सारी जिम्मेदारी संस्था को सौंप दी.

उदासी ऐसी थी कि आज कोर्स में जाने का मन नहीं हुआ. एक रेस्तरां में बैठ कर दोनों ने कौफी का आर्डर दिया.

दोनों के मुंह उदासी से लटके हुए थे. मरने वाले सुमेर सिंह से न कोई रिश्ता था न ही कोई संबंध, लेकिन ऐसा लग रहा था मानो कोई आत्मीय जन अब इस दुनिया में नहीं रहा.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें