दूसरा पत्र: क्या था पत्र में खास?

लेखिका- मनजीत शर्मा ‘मीरा’

विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में, दिन का अंतिम पीरियड प्रारंभ होने ही वाला था कि अचानक माहौल में तनाव छा गया. स्पीड पोस्ट से डाकिया सभी 58 छात्रछात्राओं व प्रोफैसरों के नाम एक पत्र ले कर आया था. तनाव की वजह पत्र का मजमून था. कुछ छात्रों ने वह लिफाफा खोल कर अभी पढ़ा ही था कि प्रोफैसर मजूमदार ने धड़धड़ाते हुए कक्षा में प्रवेश किया. उन के हाथ में भी उसी प्रकार का एक लिफाफा था. आते ही उन्होंने घोषणा की, ‘‘प्लीज, डोंट ओपन द ऐनवलप.’’

अफरातफरी में उन्होंने छात्रछात्राओं से वे लिफाफे लगभग छीनने की मुद्रा में लेने शुरू कर दिए, ‘‘प्लीज, रिटर्न मी दिस नौनसैंस.’’ वे अत्यधिक तनाव में नजर आ रहे थे, लेकिन तब तक 8-10 छात्र उस  पत्र को पढ़ चुके थे.

अत्यंत परिष्कृत अंगरेजी में लिखे गए उस पत्र में बेहद घृणात्मक टिप्पणियां छात्रछात्राओं के आपसी संबंधों पर की गई थीं और कुछ छात्राओं के विभागाध्यक्ष डाक्टर अमितोज प्रसाद, कुलपति डाक्टर माधवविष्णु प्रभाकर और प्रोफैसर मजूमदार से सीधेसीधे जोड़ कर उन के अवैध संबंधों का दावा किया गया था. पत्र लेखक ने अपनी कल्पनाओं के सहारे कुछ सुनीसुनाई अफवाहों के आधार पर सभी के चरित्र पर कीचड़ उछालने की भरपूर कोशिश की थी. हिंदी साहित्य की स्नातकोत्तर कक्षा में इस समय 50 छात्रछात्राओं के साथ कुल 6 प्राध्यापकों सहित विभागाध्यक्ष व कुलपति को सम्मिलित करते हुए 58 पत्र बांटे गए थे. 7 छात्र व 5 छात्राएं आज अनुपस्थित थे जिन के नाम के पत्र उन के साथियों के पास थे.

सभी पत्र ले कर प्रोफैसर मजूमदार कुलपति के कक्ष में चले गए जहां अन्य सभी प्रोफैसर्स पहले से ही उपस्थित थे. इधर छात्रछात्राओं में अटकलबाजी का दौर चल रहा था. प्रोफैसर मजूमदार के जाते ही परिमल ने एक लिफाफा हवा में लहराया, ‘‘कम औन बौयज ऐंड गर्ल्स, आई गौट इट,’’ उस ने अनुपस्थित छात्रों के नाम आए पत्रों में से एक लिफाफा छिपा लिया था. सभी छात्रछात्राएं उस के चारों ओर घेरा बना कर खड़े हो गए. वह छात्र यूनियन का अध्यक्ष था, अत: भाषण देने वाली शैली में उस ने पत्र पढ़ना शुरू किया, ‘‘विश्वविद्यालय में इन दिनों इश्क की पढ़ाई भी चल रही है…’’ इतना पढ़ कर वह चुप हो गया क्योंकि आगे की भाषा अत्यंत अशोभनीय थी.

एक हाथ से दूसरे हाथ में पहुंचता हुआ वह पत्र सभी ने पढ़ा. कुछ छात्राओं के नाम कुलपति, विभागाध्यक्ष और प्राध्यापकों से जोड़े गए थे. तो कुछ छात्रछात्राओं के आपसी संबंधों पर भद्दी भाषा में छींटाकशी की गई थी. इन में से कुछ छात्रछात्राएं ऐसे थे जिन के बारे में पहले से ही अफवाहें गरम थीं जबकि कुछ ऐसे जोड़े बनाए गए थे जिन पर सहज विश्वास नहीं होता था, लेकिन पत्र में उन के अवैध संबंधों का सिलसिलेवार ब्यौरा था.

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पत्र ऐसी अंगरेजी में लिखा गया था जिसे पूर्णत: समझना हिंदी साहित्य के विद्यार्थियों के लिए मुश्किल था परंतु पत्र का मुख्य मुद्दा सभी समझ चुके थे. कुछ छात्रछात्राएं, जिन के नाम इस पत्र में छींटाकशी में शामिल नहीं थे, वे प्रसन्न हो कर इस के मजे ले रहे थे तो कुछ छात्राएं अपना नाम जोड़े जाने को ले कर बेहद नाराज थीं. जिन छात्रों के साथ उन के नाम अवैध संबंधों को ले कर उछाले गए थे वे भी उत्तेजित थे क्योंकि पत्र के लेखक ने उन की भावी संभावनाओं को खत्म कर दिया था. सभी एकदूसरे को शक की नजरों से देखने लगे थे.

कुछ छात्राएं जिन्होंने पिछले माह हुए सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लिया था उन का नाम विभागाध्यक्ष अमिजोत प्रसाद के साथ जोड़ा गया था क्योंकि उन के कैबिन

में ही उस कार्यक्रम के संबंध में जरूरी बैठकें होती थीं और वे सीधे तौर पर कार्यक्रम के आयोजन से जुड़े थे. यह कार्यक्रम अत्यंत सफल रहा था और उन छात्राओं ने साफसाफ उन लोगों पर इस दुष्प्रचार का आरोप लगाया जिन्हें इस कार्यक्रम के आयोजन से दूर रखा गया था.

छात्र राजनीति करने वाले परिमल और नवीन पर ऐसा पत्र लिखने के सीधे आरोप लगाए गए. इस से माहौल में अत्यंत तनाव फैल गया. परिमल और नवीन का तर्क था कि यदि यह पत्र उन्होंने लिखा होता तो उन का नाम इस पत्र में शामिल नहीं होता, जबकि उन छात्राओं का कहना था कि ऐसा एक साजिश के तहत किया गया है ताकि उन पर इस का शक नहीं किया जा सके. एकदूसरे पर छींटाकशी, आरोप और प्रत्यारोप का दौर इस से पहले कि झगड़े का रूप लेता यह तय किया गया कि कुलपति और विभागाध्यक्ष से अपील की जाए कि मामले की जांच पुलिस से करवाई जाए. पुलिस जब अपने हथकंडों का इस्तेमाल करेगी तो सचाई खुद ही सामने आ जाएगी.

कुलपति के कमरे का माहौल पहले ही तनावपूर्ण था. उन का और विभागाध्यक्ष का नाम भी छात्राओं के यौन शोषण में शामिल किया गया था. पत्र लिखने वाले ने दावा किया था कि पत्र की प्रतिलिपि राज्यपाल और यूजीसी के सभी सदस्यों को भेजी गई है. सब से शर्मनाक था कुलपति डाक्टर  माधवविष्णु पर छात्राओं से अवैध संबंधों का आरोप. वे राज्य के ही नहीं, देश के भी एक प्रतिष्ठित बुद्धिजीवी, सम्मानित साहित्यकार और समाजसेवी थे. उन की उपलब्धियों पर पूरे विश्वविद्यालय को गर्व था.

जिन छात्राओं के साथ उन का नाम जोड़ा गया था वे उम्र में उन की अपनी बेटियों जैसी थीं. आरोप इतने गंभीर और चरित्रहनन वाले थे कि उन्हें महज किसी का घटिया मजाक समझ कर ठंडे बस्ते में नहीं डाला जा सकता था. छात्राएं इतनी उत्तेजित थीं कि यदि पत्र लिखने वाले का पता चल जाता तो संभवत: उस का बचना मुश्किल था.

आरोपप्रत्यारोप का यह दौर कुलपति के कमरे में भी जारी रहा. विरोधी गुट के छात्र नेता परिमल पर प्रत्यक्ष आरोप लगा रहे थे कि वे सीधे तौर पर यदि इस में शामिल नहीं है तो कम से कम यह हुआ उसे के इशारे पर है. सब से ज्यादा गुस्से में संध्या थी. वह छात्र राजनीति में विरोधी गुट के मदन की समर्थक थी और उस का नाम दूसरी बार इस तरह के अवैध संबंधों की सूची में शामिल किया गया था.

दरअसल, एक माह पहले भी एक पत्र कुलपति के कार्यालय में प्राप्त हुआ था, जिस में संध्या का नाम विभागाध्यक्ष अमितोज के साथ जोड़ा गया था. तब कुलपति ने पत्र लिखने वाले का पता न चलने पर इसे एक घटिया आरोप मान कर ठंडे बस्ते में डाल दिया था. और अब यह दूसरा पत्र था. इस बार पत्र लेखक ने कई और नामों को भी इस में शामिल कर लिया था.

स्पष्ट था कि पहले पत्र में उस ने जो आरोप लगाए थे उन्हें पूरा प्रचार न मिल पाने से वह असंतुष्ट था और इस बार ज्यादा छात्रछात्राओं के नामों को सम्मिलित करने के पीछे उस का उद्देश्य यही था कि मामले को दबाया न जा सके और इसे भरपूर प्रचार मिले.

वह अपने उद्देश्य में इस बार पूरी तरह सफल रहा था क्योंकि हिंदी विभाग से उस पत्र की प्रतिलिपियां अन्य विभागों में भी जल्दी ही पहुंच गईं. शरारती छात्रों ने सूचनापट्ट पर भी उस की एक प्रतिलिपि लगवा दी.

कुलपति महोदय ने बड़ी मुश्किल से दोनों पक्षों को चुप कराया और आश्वासन दिया कि वे दोषी को ढूंढ़ने के लिए हर संभव प्रयास करेंगे. यदि पता चल गया तो उस का मुंह काला कर उसे पूरे शहर में घुमाएंगे. सभी छात्राओं ने तैश में कहा, ‘‘आप पुलिस को या सीबीआई को यह मामला क्यों नहीं सौंप देते, वे खुद पता कर लेंगे.’’

संध्या को डर था कि कहीं यह पत्र भी पहले पत्र की तरह ठंडे बस्ते में ही न डाल दिया जाए. विभागाध्यक्ष व कुलपति इस प्रस्ताव से सहमत नहीं थे. कुलपति महोदय ने ही कहा, ‘‘हम ने इस बात पर भी विचार किया है, लेकिन इस से एक तो यह बात मीडिया में फैल जाएगी और विश्वविद्यालय की बदनामी होगी. दूसरा पुलिस छात्राओं को पूछताछ के बहाने परेशान करेगी और यह बात उन के घर वालों तक भी पहुंच जाएगी जो कि उचित नहीं होगा.’’

‘‘फिर पता कैसे चलेगा कि यह गंदी हरकत की किस ने है?’’ मदन ने तैश में आ कर कहा, ‘‘पहले भी एक पत्र आया था, जिस में 2 छात्राओं का नाम डाक्टर अमितोज से जोड़ा गया था. तब भी आप ने यही कहा था कि हम पता लगाएंगे, लेकिन आज तक कुछ पता नहीं चला.’’

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‘‘उसे रोका नहीं गया तो अगली बार हो सकता है वह इस से भी आगे बढ़ जाए,’’ सोनाली ने लगभग चीखते हुए कहा. उस का अगले माह विवाह तय था और उस का नाम आनंद से जोड़ते हुए लिखा गया था कि अकसर वह शहर के पिकनिक स्पौटों पर उस के साथ देखी गई है.

डाक्टर अमितोज ने उसे मुश्किल से शांत कराया तो वह फफकफफक कर रो पड़ी, ‘‘आनंद के साथ कभी मैं यूनिवर्सिटी के बाहर भी नहीं गई.’’

‘‘तो इस में रोने की क्या बात है, अब चली जा. अभी तो 1 महीना पड़ा है शादी में,’’ कमल जिस का नाम इस पत्र में शामिल नहीं था, मदन के कान में फुसफुसाया.

‘‘चुप रह, मरवाएगा क्या’’ उस ने एक चपत उस के सिर पर जमा दी,‘‘ अगर झूठा शक भी पड़ गया न तो अभी तेरी हड्डीपसली एक हो जाएगी, बेवकूफ.’’

‘‘गुरु, कितनी बेइज्ज्ती की बात है, मेरा नाम किसी के साथ नहीं जोड़ा गया. कम से कम उस काली कांता के साथ ही जोड़ देते.’’

‘‘अबे, जिस का नाम उस के साथ जुड़ा था उस ने भी उस की खूबसूरती से तंग आ कर तलाक ले लिया.

‘‘शुक्र है, आत्महत्या नहीं की,’’ और फिर ठहाका मार कर दोनों देर तक उस का मजाक उड़ाते रहे.

कांता एक 25 वर्षीय युवा तलाकशुदा छात्रा थी जो उन्हीं के साथ हिंदी साहित्य में एमए कर रही थी. सभी के लिए उस की पहचान सिर्फ काली कांता थी. अपनी शक्लसूरत को ले कर उस में काफी हीनभावना थी. इसलिए वह सब से कटीकटी रहती थी. किसी ने न तो इस मुद्दे पर उस की सलाह ली और न ही वह बाकी लड़कियों की तरह खुद इस में शरीक हुई. अगर होती तो ऐसे ही व्यंग्यबाणों की शिकार बनती रहती.

‘‘इस बार ऐसा नहीं होगा,‘‘ डाक्टर अमितोज ने खड़े होते हुए कहा, ‘‘पुलिस और सीबीआई की सहायता के बिना भी दोषी का पता लगाया जा सकता है. आप लोग कुछ वक्त दीजिए हमें. बजाय आपस में लड़नेझगड़ने के आप भी अपनी आंखें और कान खुले रखिए. दोषी आप लोगों के बीच में ही है.’’

‘‘हां, जिस तरह से उस ने नाम जोड़े हैं उस से पता चलता है कि वह काफी कुछ जानता है,’’ अभी तक चुपचाप बैठे साहिल  ने कहा तो कुछ उस की तरफ गुस्से में देखने लगे और कुछ बरबस होठों पर आ गई हंसी को रोकने की चेष्टा करने लगे.

‘‘मेरा मतलब था वह हम सभी लोगों से पूरी तरह परिचित है,’’ साहिल ने अपनी सफाई दी. उस का नाम इस सूची में तो शामिल नहीं था परंतु सभी जानते थे कि वह हर किसी लड़की से दोस्ती करने को हमेशा लालायित रहता था.

‘‘कहीं, यही तो नहीं है?’’ कमल फिर मदन के कान में फुसफुसाया.

‘‘अबे, यह ढंग से हिंदी नहीं लिख पाता, ऐसी अंगरेजी कहां से लिखेगा,’’ मदन बोला.

‘‘गुरु, अंगरेजी तो किसी से भी लिखवाई जा सकती है और मुझे तो लगता है इंटरनैट की किसी गौसिप वैबसाइट से चुराई गई है यह भाषा,’’ कमल ने सफाई दी.

‘‘अबे, उसे माउस पकड़ना भी नहीं आता अभी तक और इंटरनैट देखना तो दूर की बात है,’’ मदन ने उसे चुप रहने का इशारा किया, ‘‘पर गुरु…’’  कमल के पास अभी और भी तर्क थे साहिल को दोषी साबित करने के.

‘‘अच्छा आप लोग अपनी कक्षाओं में चलिए,’’ कुलपति महोदय ने आदेश दिया तो सभी बाहर निकल आए.

बाहर आ कर भी तनाव खत्म नहीं हुआ. सभी छात्रों ने कैंटीन में अपनी एक हंगामी मीटिंग की. सभी का मत था कि दोषी हमारे बीच का ही कोई छात्र है, लेकिन है कौन? इस बारे में एकएक कर सभी नामों पर विचार हुआ लेकिन नतीजा कुछ न निकला. अंत में तय हुआ कि कल से सभी कक्षाओं का तब तक बहिष्कार किया जाए जब तक कि दोषी को पकड़ा नहीं जाता. दूसरे विभाग के छात्रछात्राएं भी अब इस खोज में शामिल हो गए थे.

उन में से कुछ को वाकई में छात्राओं से सहानुभूति थी तो कुछ यों ही मजे ले रहे थे, लेकिन इतना स्पष्ट था कि यह मामला अब जल्दी शांत होने वाला नहीं था. सब से पहले यह तय हुआ कि मुख्य डाकघर से पता किया जाए कि वे पत्र किस ने स्पीड पोस्ट कराए हैं. परिमल, कमल व मदन ने यह जिम्मेदारी ली कि वे मुख्य डाकघर जा कर यह पता लगाने की कोशिश करेंगे कि दोषी कौन है.

अगले दिन जब वे मुख्य डाकघर पहुंचे तो पता चला कि इस बाबत पूछने के लिए दो लड़कियां पहले ही आ चुकी हैं.

‘‘वही होगी संध्या,’’ मदन फुसफुसाया.

‘‘अबे, उसी की तो सारी शरारत है, सबकुछ उस की जानकारी में ही हुआ है.’’

‘‘वह कैसे हो सकती है?’’ परिमल  बोला, ‘‘वह जो इतना तैश खा रही थी न… वह सब दिखावा था.’’

‘‘लेकिन गुरु, उस का तो नाम खुद ही सूची में है,’’ मदन बोला.

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‘‘यही तो तरीके होते हैं डबल क्रौस करने के,’’ परिमल बोला, ‘‘एक तरफ अपना नाम डाक्टर अमितोज से जोड़ कर अपनी दबीढकी भावनाएं जाहिर कर दीं, दूसरी तरफ दूसरों को बदनाम भी कर दिया.’’

डाकघर की काउंटर क्लर्क ने जब यह बताया कि उन दोनों लड़कियों में से एक ने नजर का चश्मा लगाया हुआ था और दूसरी के बाल कटे हुए थे तो तीनों को अति प्रसन्नता हुई, क्योंकि संध्या के न तो बाल कटे हुए थे और न ही वह नजर का चश्मा लगाती थी.

‘‘देखा मैं ने कहा था न कि संध्या नहीं हो सकती, वह क्यों पूछने आएगी. वे जरूर सोनाली और दीपिका होंगी क्योंकि वे दोनों ही इस में सब से ज्यादा इनोसैंट हैं. दीपिका तो बेचारी किताबों के अलावा किसी को देखती तक नहीं और सोनाली की अगले माह ही शादी है.’’

‘‘हां, मुझे अच्छी तरह उन लड़कों के चेहरे याद हैं,’’ काउंटर क्लर्क बोली, ‘‘चूंकि वे सभी लिफाफे महाविद्यालय में एक ही पते पर जाने थे अत: मैं ने ही उन्हें सलाह दी थी कि इन सभी को अलगअलग लिफाफों में पोस्ट करने के बजाय इस का सिर्फ एक लिफाफा बनाने से डाक व्यय कम लगेगा. इस पर उन में से एक लड़का जो थोड़ा सांवले रंग का था, भड़क उठा. कहने लगा, ‘‘आप को पता है ये कितने गोपनीय पत्र हैं, हम पैसे चुका रहे हैं इसलिए आप अपनी सलाह अपने पास रखिए.’’

मुझे उस का बोलने का लहजा बहुत अखरा, मैं उस की मां की उम्र की हूं परंतु वह बहुत ही बदतमीज किस्म का लड़का था, जबकि उस के साथ आया गोरा लड़का जिस ने नजर का चश्मा लगाया हुआ था बहुत शालीन था. उस ने मुझ से माफी मांगते हुए जल्दी काम करने की प्रार्थना की. गुस्से में वह सांवला लड़का बाहर दरवाजे पर चला गया जहां उन का तीसरा साथी खड़ा था. उस का चेहरा मैं देख नहीं सकी क्योंकि काउंटर की तरफ उस की पीठ थी, लेकिन मैं इतना विश्वास के साथ कह सकती हूं कि वे 3 थे, जिन में से 2 को मैं अब भी पहचान सकती हूं.’’

यह जानकारी एक बहुत बड़ी सफलता थी क्योंकि इस से जांच का दायरा मात्र उन छात्रों तक सीमित हो गया जो नजर का चश्मा लगाते थे और सांवले रंग के थे. परिमल स्वयं नजर का चश्मा लगाता था लेकिन वह नहीं हो सकता था क्योंकि डाकखाने की क्लर्क से उस ने खुद बात की थी. विपक्ष का नेता मदन भी सांवले रंग का था, लेकिन वह भी साथ था. महाविद्यालय

के हिंदी विभाग में 50 छात्रछात्राओं में से 32 छात्र और 18 छात्राएं थीं और मात्र 12 छात्र नजर का चश्मा लगाते थे. परिमल को अगर छोड़ दिया जाए तो मात्र 11 छात्र बचते थे.

जब यह जानकारी हिंदी विभाग  में पहुंची तो नजर का चश्मा लगाने वाले सभी छात्र संदेहास्पद हो गए. आरोपप्रत्यारोप का माहौल फिर गरम हो गया. नजर का चश्मा लगाने वालों की पहचान परेड उस क्लर्क के सामने कराई जाए. संध्या और सभी छात्राएं इस सूची को लिए फिर विभागाध्यक्ष डाक्टर अमितोज के कमरे में विरोध प्रदर्शन के लिए पहुंच गईं, ‘‘सर, अब यह साफ हो चुका है कि इन 11 में से ही कोई है जिस ने यह गंदी हरकत की है. आप इन सभी को निर्देश दें कि वे पहचान परेड में शामिल हों.’’

डाक्टर अमिजोत ने मुश्किल से उन्हें शांत कराया और आश्वासन दिया कि वे इन सभी को ऐसा करने के लिए कहेंगे हालांकि उन्होंने साथसाथ यह मत भी जाहिर कर दिया कि यह सारा काम किसी शातिर दिमाग की उपज है और वे खुद इन पत्रों को डाकखाने जा कर पोस्ट करने की बेवकूफी नहीं कर सकता.

आनंद, जिस का नाम सोनाली से जोड़ा गया था और जो नजर का चश्मा लगाता था, ने इस पहचान परेड में शामिल होने से साफ इनकार कर दिया, ‘‘मैं कोई अपराधी हूं जो इस तरह पहचान परेड कराऊं.’’

उस के इस इनकार ने फिर माहौल गरमा दिया. संध्या इस बात पर उस से उलझ पड़ी और तूतड़ाक से नौबत हाथापाई तक आ गई. आनंद ने सीधेसीधे संध्या पर आरोप जड़ दिया, ‘‘सारा तेरा किया धरा है. डाक्टर अमितोज के साथ तेरे जो संबंध हैं न, उन्हें कौन नहीं जानता. उसी मुद्दे से ध्यान हटाने के लिए तू ने औरों को भी बदनाम किया है ताकि वे लोग तुझ पर छींटाकशी न कर सकें. तू सोनाली की हितैषी नहीं है बल्कि उसे भी अपनी श्रेणी में ला कर अपने मुद्दे से सभी का ध्यान हटाना चाहती है.’’

परिमल ने उस समय तो बीचबचाव कर मामला सुलझा दिया, परंतु सरेआम की गई इस टिप्पणी ने संध्या को अंदर तक आहत कर दिया. कुछ छात्रों का मानना था कि आनंद के आरोप में सचाई भी हो सकती है.

‘‘यार, तेरी बात में दम है. सब जानते हैं कि जब से यह पत्र आया है सब से ज्यादा यही फुदक रही है,’’ संध्या के जाते ही परिमल ने आनंद को गले लगा लिया और कहने लगा कि पहला पत्र जिस में केवल संध्या और डाक्टर अमितोज का नाम था वह किसी और ने लिखा था. उस से इस की जो बदनामी हुई उसी से ध्यान बंटाने के लिए इस ने इस पत्र में औरों को घसीटा है ताकि लगे कि हमाम में सभी नंगे हैं. परिमल ने संध्या को बदनाम करने के लिए इस जलते अलाव या की वजह से उस के छात्राओं के काफी वोट जो कट जाते थे.

जो छात्र पहचान परेड कराने के लिए तैयार थे वे जब डाकखाने पहुंचे तो डाकखाने का स्टाफ इस समूह को देख कर आशंकित हो गया. उन्होंने उस महिलाकर्मी को इस पहचान परेड के लिए मना कर दिया. वह महिलाकर्मी खुद भी बहुत डरीसहमी थी, उसे नहीं पता था कि मुद्दा क्या है. उस ने तो अपनी तरफ से साधारण सी बात समझ कर जानकारी दी थी.

काफी देर तक डाकखाने के कर्मियों और छात्रों में बहस होती रही. उन का तर्क था कि वे इस झगड़े में क्यों पड़ें. वह महिलाकर्मी यदि किसी की पहचान कर लेती है तो वह छात्र उसे नुकसान भी तो पहुंचा सकता है. छात्रों ने जब दबाव बनाया तो उस ने सहकर्मियों की सलाह मान कर सरसरी निगाह छात्रों पर डालते हुए सभी को क्लीन चिट दे दी. स्पष्ट था वह इस झगड़े में नहीं पड़ना चाहती थी. वह सच बोल रही है या झूठ इस का फैसला नहीं किया जा सकता था.

बात जहां से शुरू हुई थी फिर से वहीं पहुंच गई थी. अटकलों का बाजार पुन: गरम हो चुका था. यह मांग फिर उठने लगी थी कि इस मामले में कुलपति हस्तक्षेप करें और मामला पुलिस या सीबीआई को दे दिया जाए. सभी जानते थे कि हर अपराध के पीछे एक मोटिव होता है.

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हिंदी विभाग से बाहर का कोई छात्र ऐसा नहीं कर सकता था क्योंकि एक तो इतने सारे छात्रछात्राओं को बदनाम करने के पीछे उस का कोई उद्देश्य नहीं हो सकता था. दूसरे जो जोड़े बनाए गए थे वे बहुत ही गोपनीय जानकारी पर आधारित थे और कइयों के बारे में ऊपरी सतह पर कुछ भी दिखाई नहीं देता था, लेकिन उन में से अधिकांश के तल में कुछ न कुछ सुगबुगाहट चल रही थी.

अब तो अन्य विभागों के छात्रछात्राएं भी इस में रुचि लेने लगे थे, लेकिन यह निश्चित था कि ‘मास्टर माइंड’ इन्हीं 50 छात्रछात्राओं में से कोई एक था. 6 प्रोफैसर्स में से भी कोई हो सकता था परंतु इस की संभावना कम ही थी क्योंकि सभी प्रोफैसर्स अपनीअपनी फेवरेट छात्राओं के साथ अपने गुरुशिष्या के संबंधों पर परम संतुष्ट थे.

अचानक एक तीसरा पत्र डाक्टर अमितोज के नाम साधारण डाक से प्राप्त हुआ. यह पत्र भी अंगरेजी में था और इस में सारे घटनाक्रम पर क्षमा मांगते हुए इस का पटाक्षेप करने की प्रार्थना की गई थी. पत्र कंप्यूटर पर टाइप किया हुआ था और उस में फौंट, स्याही और कागज वही इस्तेमाल हुए थे जो दूसरे पत्र के लिए हुए थे.

डाक्टर अमितोज ने ध्यान से वह पत्र कई बार पढ़ा. अचानक उन के मस्तिष्क में एक विचार तीव्रता से कौंधा. वे तेजी से हिंदी विभाग के कार्यालय में पहुंचे और सभी छात्रछात्राओं के आवेदनपत्र की फाइल लिपिक से कह कर अपने कार्यालय में मंगवा ली. तेजी से उन की निगाहें उन आवेदनपत्रों में पूर्व शैक्षणिक योग्यता के कौलम में कुछ खोज करती दौड़ने लगीं. अचानक उन्हें वह मिल गया जिस की उन्हें तलाश थी. उन्होंने पता देखा तो वह हौस्टल का था.

तीसरा पत्र उन के हाथ में था जब उन्होंने हौस्टल के उस कमरे का दरवाजा खटखटाया. दरवाजा खुलते ही उन की निगाह सामने रखे पीसी पर पड़ी. वे समझ गए कि उन की तलाश पूरी हो चुकी है. वह कमरा युवा तलाकशुदा छात्रा कांता का था जो पूर्व में अंगरेजी साहित्य में स्नातकोत्तर थी, उस की बदसूरती और गहरे काले रंग को ले कर सभी छात्रछात्राएं मजाक उड़ाया करते थे.

उन के सामने अब इस अपराध का मोटिव स्पष्ट था और इस पर किसी तर्क की गुंजाइश नहीं थी. उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि इस अपराध के लिए वे उस पर नाराज हों या तरस खाएं.

‘‘मैं नहीं पूछूंगा कि दूसरे पत्र को पोस्ट करवाने में जिन तीन लड़कों का तुम ने सहयोग लिया वे कौन थे क्योंकि उन्हें पता भी नहीं होगा कि वे क्या करने जा रहे हैं. लेकिन तुम्हारा गुरु होने के नाते एक सीख तुम्हें जरूर दूंगा. जो कमी तुम्हें अपने में नजर आती है और जिस में तुम्हारा अपना कोई दोष नहीं है उस के लिए स्वयं पर शर्मिंदा हो कर दूसरों से उस का बदला लेना अपनेआप में एक अपराध है, जो तुम ने किया है.

तुम ने इस अपराध के लिए क्षमा प्रार्थना की है. एक शर्त पर मैं तुम्हें क्षमा कर सकता हूं यदि तुम यह वादा करो कि कभी अपने रंगरूप पर शर्मिंदगी महसूस नहीं करोगी. अपनेआप से प्यार करना सीखो, तभी दूसरे भी तुम्हें प्यार करेंगे.’’ उन्होंने वह पत्र फाड़ा और आंसू बहाती कांता के सिर को सहला कर चुपचाप वहां से बाहर निकल आए.

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