दूसरी मुसकान: भाग-5

मेजर आनंद ने वापस कैंप में फोन किया. मगर वहां से भी नाउम्मीदी ही हाथ लगी. कार्यकर्ता अहमद ने बताया कि यहां जोर की बारिश और आंधीतूफान है…पहाड़ी नाला सड़क पर बहने लगा है, इसलिए कोई उन की मदद को नहीं आ सकता.

‘‘अब क्या होगा?’’ उस ने घबरा कर मेजर की तरफ देखा.

‘‘सिवा इंतजार के कोई रास्ता नहीं. आप तो काफी भीग गई हैं…पीछे बैग में कुछ ड्रैसेज रखी हैं, उन में से ही कुछ पहन लो. यों भीगे कपड़ों में रात भर रहीं तो बीमारी पड़ जाओगी,’’ कह मेजर गाड़ी से बाहर निकल गए.

उस ने देखा बैग में ट्रेड फेयर में बिकने वाले कपड़े रखे थे. कपड़े पारंपरिक थे. छींट का लहंगाचोली थी. उसे संकोच हुआ, मगर भीगे कपड़ों से छुटकारा पाने का यही तरीका था. उस ने गाड़ी की लाइट औफ की और कपड़े बदल लिए. बालों को भी खोल कर कपड़े से पोंछ लिया. अब काफी सुकून महसूस कर रही थी.

मेजर गाड़ी में आ कर बैठ गए. उन्होंने एक गहरी नजर से उसे देखा और फिर हलके से मुसकरा दिए. जाने क्या था उन नजरों में कि वह अपनेआप में सिमट गई. मेजर ने सीट ऐडजस्ट कर दी. वह पीछे की सीट में खुद को समेट कर लेट गई. रात यों ही गुजरने लगी. बारिश रुकरुक कर हो रही थी.

सुबह के 6 बजने वाले होंगे कि मैकैनिक बाइक में अपने साथी कारीगर के साथ वहां पहुंच गया. उसे रात में कब नींद लगी और मेजर कब से मदद के लिए फोन मिला रहे थे, उसे पता ही नहीं चला. मेजर ने उसे धीरे से हिलाया तो वह अचकचा कर उठ बैठी.

‘‘आओ, तुम्हें छोड़ दूं,’’ मेजर ने पहली बार उस के लिए आप की जगह तुम का प्रयोग किया था.

वह अपना लहंगा संभालती हुई गाड़ी से बाहर आ गई. मौसम में गजब की ठंडक थी. उस ने चुन्नी कस के बदन से लपेट ली.

‘‘सर, कच्चे रास्ते से जाइएगा, पक्का रास्ता तो जाम है,’’ मैकैनिक ने कहा. उन्होंने बिना कुछ बोले बाइक स्टार्ट की. वह चुपचाप उन के पीछे बैठ गई. रास्ता काफी उबड़खाबड़ था. वह गिरने ही वाली थी कि उस ने मेजर को पकड़ लिया.

सुबह का धुलाधुला मौसम, ठंडी हवा, आसपास का हराभरा नजारा, जाने क्या था कि उस पर रोमानियत छाने लगी. पहली बार उस को लगा कि यह रास्ता कभी खत्म न हो.

रास्ता एक अजीब सी खुमारी में खामोशी से कट गया. घर पास आतेआते वह संभल कर बैठ गई. मेजर ने घर के सामने बाइक रोकी. वह लहंगे को संभालते हुए उतर गई.

‘‘आइए, चाय पी कर जाइएगा,’’ वह शर्मिंदगी से बमुश्किल बोल पाई.

मेजर मुसकराए और फिर बाइक मोड़ कर बिना कुछ कहे चले गए. वह भाग कर घर में घुसी. डोरबैल बजाई, सामने विलियम खड़ी थी. उसे ऐसी ड्रैस में देख कर सुखद आश्चर्य में भर गई.

चाय पीतेपीते उस ने विलियम को सारा हाल कह सुनाया. वह हंस पड़ी. सर्दी से उसे बुखार चढ़ गया था. उस के जेहन से मेजर आनंद उतर ही नहीं रहे थे. उसे लगा एक खुली हवा का झोंका उस के अंदर की घुटन को बाहर निकाल रहा है और वह सालों बाद सांस ले रही है.

उधर मेजर आनंद बुखार में तप रहे थे. सारी रात गीले कपड़ों की वजह से अंदर जबरदस्त सर्दी बैठ गई थी. उस ने न आने के लिए अपनी साथी जमुना को फोन किया, तो उसे मेजर साहब की बीमारी के बारे में पता चला.

जमुना ने चुटकी ली, ‘‘दोनों एकसाथ बीमार…और सारी रात…क्या बात है.’’

वह भी हंस पड़ी थी. उसे सुकून की नींद आई थी.

सुकून भरी नींद की मिठास सालों बाद उस के हिस्से में आई थी. खुद को काफी हलका महसूस कर रही थी. अजीब सी खुमारी छाई हुई थी. उसे लगा मेजर साहब की तबीयत के बारे में उसे पूछना चाहिए. उन की यह हालत उस की वजह से ही तो हुई थी…न उसे छोड़ने आते न वह उन पर शक करती और न वे भीगते. अत: उस ने नंबर मिला दिया.

‘‘हैलो,’’ उधर से मेजर की उन्नींदी सी आवाज आई.

‘‘हैलो सर,’’ मैं शुमी.

‘‘हां, कहो शुमी क्या बात है?’’

‘‘जी आप कैसे हैं?’’

‘‘ठीक हूं,’’ छोटे से जवाब के साथ खामोशी छाई रही. उसे भी कुछ नहीं सूझा.

‘‘शुभी ठीक है? शायद पहली बार वह तुम्हारे बिना रही होगी.’’

वह हैरान थी कि मेजर साहब को उस की बेटी का नाम पता है. अरे, वे उस की बच्ची के बारे में पूछ रहे थे, जिस की सुध उस के अपने पिता ने भी कभी नहीं ली थी.

वह अंदर तक सुकून से भर गई. थोड़ी देर बाद उस ने हेमा दी को फोन किया और सालों बाद देर तक सुकून के साथ बातें कीं.

2 दिन तक वह छुट्टी पर रही थी. काम फिर शुरू हो गया था. अब वह पहले से ज्यादा उत्साह के साथ मेजर का दिया काम करने लगी थी. उन के हर काम का महत्त्व उसे समझ आने लगा था. धीरेधीरे वह काफी कुछ सीख गई और आश्चर्यचकित थी कि अगर हम अपनी सोच का दायरा फैलाएं और कुछ करने की ठान लें, तो दुनिया का अलग ही रंग नजर आता है.

वह मेजर साहब की दिल से इज्जत करने लगी थी. वे अपने दुखों से ऊपर उठ कर किस तरह दूसरों को सुख पहुंचाने की कोशिश करते थे… खुद को अकेला नहीं छोड़ा था उन्होंने… कितने लोग जुड़े हुए थे उन के साथ और एक वह थी. सालों तक खुद को ही बंद कर के बैठी हुई थी.

मेजर उसे जिस ट्रेड फेयर में जाने को कह रहे थे वह अब तक का सब से बड़ा ट्रेड फेयर था और मेजर के लिए महत्त्वपूर्ण भी था. उन्होेंने अपनी टीम के साथ मिल कर उस के लिए बहुत मेहनत की थी. लेकिन वह शहर से काफी दूर था, जहां से उसी दिन वापस नहीं आया जा सकता था. शुभी को कहां रखे? वह विलियम से कैसे कहे कि वह मेजर आनंद के साथ अकेली जा रही है और वह उस की बच्ची को रखे.

दूसरे दिन सुबह उठी तो खुद आश्चर्य से भर गई. हेमा दी सामने थीं. वह दीदी से लिपट गई.

‘‘अचानक कैसे दी? कोई फोन नहीं, खबर नहीं.’’

‘‘तुम से मिलने का बड़ा मन था,’’ हेमा दी ने प्यार से निहारा जैसे पहली बार देख रही हों. वे उसे ऐसे छू रही थीं जैसे मां अपने बच्चे को छूती है… वे उस की मां ही तो थीं. उस के हर दुखसुख में वे और रमन जीजाजी साथ खड़े रहे थे. वह देर तक दी से बातें करती रही.

‘‘कुछ बताना भूल तो नहीं रही?’’ दी ने प्यार से पूछा.

‘‘क्या?’’ वह हंस पड़ी.

‘‘मेजर आनंद…’’ दी ने कहा.

वह खामोशी से दी को देखने लगी. दी ने प्यार से उस के सिर पर हाथ फेरते हुए कहा, ‘‘जिंदगी ने तुझे एक मौका और दिया है. हाथ से जाने मत देना.’’

वह हैरान थी कि दी इतना कुछ कैसे जानती हैं?

हेमा दी ने मेजर आनंद को फोन कर के लंच पर बुला लिया और फिर दोनों ने मिल कर खूब चाव से अच्छेअच्छे व्यंजन बनाए.

मेजर आए तो वह उन के सामने बैठने से भी शरमा रही थी. हेमा दी मेजर आनंद से प्रभावित हुई थीं. दी ने काफी देर उन से बातें कीं. वे शुभी से भी घुलमिल गए थे. मेजर आनंद का शुभी से लगाव उसे अंदर तक भिगो गया. शुभी उन्हें अपनी बनाई ड्राइंग दिखा रही थी.

हेमा दी 3 दिन उस के पास रुकी और उन्होंने अपनी रजामंदी से उसे मेजर आनंद के साथ ट्रेड फेयर में भेज दिया. काफी शानदार मेला था. मेजर आनंद और उन की टीम की मेहनत नजर आ रही थी. उसे वहां काफी कुछ देखनेसमझने को मिला. रहने की व्यवस्था मेले के पास ही गैस्ट हाउस में की गई थी.

‘‘अपनी जिंदगी मेरे साथ बिताना पसंद करोगी?’’ चाय पीते हुए मेजर साहब ने उस से पूछा.

वह काफी देर खामोश रही. शुभी के बारे में काफी कुछ कहना चाहती थी, मगर कहां से शुरू करे समझ नहीं पा रही थी.

‘‘शुभी को मैं अपनी बेटी मान चुका हूं… बाकी मैं बोलने में नहीं करने में यकीन रखता हूं.’’

बिना कुछ कहे, बिना पूछे तसल्ली हो गई थी. ट्रेड फेयर से लौटते ही उस ने अपना फैसला दी को सुना दिया. सुन कर वे बहुत खुश हुईं और विलियम की आंखों में भी उस ने वह तसल्ली महसूस करी थी, जो वसंत के वक्त नहीं थी. उम्र के तजरबे और फर्क को वह अब महसूस कर पाई थी.

हेमा दी के जाते ही रमन जीजा आ गए. मेजर आनंद से मिले. सब बातें उन्होंने खोल कर सामने रखीं. दोनों तरफ से तसल्ली होने पर शादी तय हो गई.

हेमा दी ने काफी सामान पहले ही खरीद रखा था. बाकी तैयारी उस के और विलियम के साथ मिल कर कर ली. विलियम ने सारी तैयारी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया.

शादी साधारण तरीके से कोर्ट में संपन्न हुई. मेजर आनंद ने कुछ खासखास लोगों को ही शादी में शामिल किया. हेमा दी ने भी कुछ करीबी लोगों को ही बुलाया था. वह एक बार फिर शादी के बंधन में बंध गई.

हेमा दी ने उसे अपने हाथों से बड़े प्यार से सजाया और फूलों से महकते कमरे में पहुंचा दिया.

मेजर आनंद कमरे में आए तो उस का दिल जोरजोर से धड़कने लगा. उन्होंने धीरे से उस का हाथ अपने हाथ में ले कर हौले से दबाया और फिर झुक कर उस के माथे को चूम लिया. न जाने कितने सितारे उस के अंदर चमकने लगे, सैकड़ों फूल उस के दामन में खिल उठे.

‘‘जिंदगी भर मेरी दोस्त बन कर रहना, क्योंकि दोस्त से प्यार ज्यादा होता है. वैसे डर तो नहीं लग रहा?’’ मेजर आनंद ने उस के कान में शरारत से कहा, तो वह शर्म से उन की बांहों में पिघलने लगी. उसे महसूस हुआ चारों तरफ जुगनू चमकने लगे हैं और वह उन्हें मुट्ठी में भर रही है.

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