डस्ट: इंसानी रिश्तों पर जमीं फरेब की धूल

Serial Story: डस्ट (भाग-3)

रमा को जब पूनम के साथ कृष्णकांत ज्यादा समय गुजारते दिखने लगा तो रमा ने उसे लंपट, आवारा, नीच कहा. कृष्णकांत ने पलट कर कहा, ‘‘तुम क्या हो? तुम ने अपनी दैहिक जरूरतों के लिए मुझे फंसा कर रखा. शर्म आनी चाहिए तुम्हें. तुम सैक्स की भूखी हो.’’

‘‘मैं तुम्हें कोर्ट में घसीटूंगी, दैहिक शोषण का आरोप लगा कर जेल भिजवाऊंगी.’’

‘‘और मैं छोड़ दूंगा तुम्हें. मैं भी तुम पर दैहिक शोषण का आरोप लगा सकता हूं. तुम्हारे घर वालों को, अपने घर वालों को बता दूंगा सबकुछ. लोग तुम पर हंसेंगे, न कि मुझ पर.’’

‘‘शादी हुई है हमारी.’’

‘‘सुबूत कहां हैं? कोर्ट मंदिर में की गई शादी नहीं मानता और उस समय मेरी उम्र 18 वर्ष भी नहीं हुई थी. अवयस्क उम्र के लड़के से विवाह करने के अपराध में तुम्हें सजा भी हो सकती है. सारा शहर तमाशा देखेगा. यदि शादी साबित कर भी देती हो तुम, तब भी मैं तलाक तो मांग ही सकता हूं. अब तुम पर है कि हंगामा खड़ा करना है या शांति से मसले को सुलझाना है.’’

रमा समझ चुकी थी कि तीर कमान से निकल चुका है. अब कुछ नहीं हो सकता. फिर बेमेल संबंधों को कब तक खींचा जा सकता है. अच्छा यह हुआ कि सावधानी रखने के कारण उन की कोई संतान नहीं थी.

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रमा के मातापिता भी अब कहने लगे थे, ‘बेटी, अपना फर्ज निभा लिया. भाईबहनों को पढ़ालिखा कर कामधंधे में लगा दिया. उन का विवाह कर दिया. अब कोई अपने हिसाब का लड़का तलाश और शादी कर ले.’

रमा वापस अपने शहर आ गई. उस ने कृष्णकांत से जुड़ी सारी यादें मिटा दीं. शादी के और उस के बाद के सारे फोटो नष्ट कर दिए. कृष्णकांत भी आजाद हो गया.

पूनम को देख कर कृष्णकांत सोचता, ‘इसे कहते हैं लड़की. पता नहीं क्यों मैं रमा के आकर्षण में बंध गया था? प्यार करने लायक तो पूनम है. सांचे में ढला हुआ दुबलापतला, आकर्षक शरीर. चेहरे पर चमक. जिस्म के पोरपोर में जवानी की महक. यही है उस के सपनों की रानी.’

आज पेड़ काटे जा रहे हैं. पौधे नष्ट किए जा रहे हैं. जंगल उजाड़े जा रहे हैं. सड़कों का डामरीकरण, चौड़ीकरण हो रहा है. देश का विकास अंधाधुंध तरीके से हो रहा है. विकास के लिए नएनए कलकारखाने और कारखानों से इन की गंदगी नदियों में बड़ीबड़ी पाइपलाइनों के जरिए जा रही है. नीचे पानी प्रदूषित हो रहा है व ऊपर आसमान और बीच में फंसा बेवकूफ मनुष्य, बस, बातें कर रहा है प्रदूषण के बारे में, जहरीली वायु के बारे में. जंगल नष्ट किए जा रहे हैं उद्योगों के लिए. शहर के हर कोने में बोर मशीनें चल रही हैं जमीन से पानी निकालने के लिए.

वातावरण में डस्ट बढ़ती जा रही है. गरमी बढ़ती ही जा रही है. सब अपनीअपनी सुखसुविधाओं में डूबे हैं. प्रकृति असंतुलित हो रही है.

यही हाल मानवीय मूल्यों और रिश्तों का भी है. रिश्ते प्रदूषित हो रहे हैं. रमा के पिता ने कहा, ‘‘बेटी, बहुत रिश्ते आएंगे. तुम आर्थिकरूप से निर्भर हो. अच्छा वेतन है तुम्हारा. सुरक्षित भविष्य है. कितनी बेरोजगारी फैली है. एक नहीं कईर् आदमी मिलेंगे शादी के लिए.

‘‘सुरक्षित भविष्य की चाह में कोई प्राइवेट जौब वाला, अस्थायी नौकरी वाला शादी के लिए तैयार हो जाएगा. प्रैक्टिकल बनो. मुझे तुम्हारे और कृष्णकांत के बारे में सब पता था लेकिन मैं ने तुम्हें कभी टोका नहीं. मैं जानता था अपनी जरूरतों के लिए तुम उस से जुड़ी हो. जो हुआ सो हुआ. लेकिन शादी अपनी जातिसमाज में ही करना उचित रहेगा.’’

कितना प्रदूषण है पिता की बातों में. रमा ने आश्चर्य से पिता की तरफ देखा. उसे पिता के चेहरे पर डस्ट जमी हुई दिखाई दी. फिर उस ने सोचा, ‘यह डस्ट तो सब के चेहरों पर है. बाजार में कितनी क्रीम, टोनर, साबुन, फेसवाश आ गए हैं डस्ट से बचने के लिए. इन फालतू की बातों में उलझ कर जीवन क्यों बरबाद करना. आगे बढ़ना ही जीवन है. उस ने डस्ट से भरा चेहरा साफ किया और नए जीवन की शुरुआत के लिए कोशिश शुरू कर दी.

कृष्णकांत के पिता रमाकांत क्लर्क थे. नौकरी के अंतिम बचे 2 वर्षों में अधिक से अधिक कमा लेना चाहते थे. लेकिन एक दिन रिश्वत लेते रंगेहाथों पकड़े गए. अधिकारी ने कहा, ‘‘मिलबांट कर खाना चाहिए. चोरी करने के लिए किस ने मना किया है? सरकारी नौकरी होती ही, कमाने के लिए है?

5 लाख रुपए का इंतजाम करो? इस मामले से तुम्हें निकालने की कोशिश करता हूं.’’

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रमाकांत ने बेटे को सारी बात बता कर कहा, ‘‘बेटा, 2 लाख रुपए की मदद करो. 3 लाख रुपए का इंतजाम है मेरे पास.’’

कृष्णकांत ने कहा, ‘‘पिताजी, आप ने रिश्वत ली.’’

रमाकांत ने गुस्से में कहा, ‘‘मदद मांगी है, उपदेश नहीं. वेतन से मात्र घर चलता है, वह भी 20 दिनों तक. बेटी की शादी, मकान, ऐशोआराम की जिंदगी बिना रिश्वत लिए नहीं चलती. रिश्वत मैं ने कोई पहली बार नहीं ली. हमेशा से लेता आया हूं. सब लेते हैं. बस, पकड़ा पहली बार गया हूं. मदद करो कहीं से भी.’’

‘‘मैं कहां से करूं?’’ कृष्णकांत ने असहाय भाव से कहा.

‘‘रमा से मांग लो,’’ पिता की यह बात सुन कर कृष्णकांत सन्नाटे में आ गया. मतलब पिता को, घर में सब को मालूम था.

‘‘रमा को मैं ने छोड़ दिया है,’’ कृष्णकांत ने कहा.

‘‘बेवकूफ, दुधारू गाय को कोई छोड़ता है, भला. मन भर गया था तो किसी दूसरे के पास चला जाता या दूसरी ढूंढ़ता, तो कमाई वाली ढूंढ़ता. नहीं कर सकता तो मेरे कहने से शादी कर. 5 लाख रुपए दहेज दे रहे हैं लड़की वाले. जल्दी आ जा. चट मंगनी पट ब्याह करा देते हैं.’’

‘‘मैं एक जगह बात कर के देखता हूं.’’

‘‘जो करना है जल्दी करना.’’

‘‘जी.’’

कृष्णकांत ने फोन काट दिया. क्या पिता है? सब मालूम था और ऐसे बने रहे कि जैसे कुछ मालूम न हो. रिश्तों में लालच की कितनी डस्ट जमी हुई है. चारों तरफ प्रदूषण फैला हुआ है. पैसा ही सबकुछ हो गया. इंसानी रिश्ते, भावनाएं सब में डस्ट जम गईर् है. पैसों और जरूरतों के आगे सब कचरे का ढेर हो गया है. कचरे के ढेर में आग लगाओ और जहरीला धुआं वातावरण में फैलने लगता है. कृष्णकांत ने खुद क्या किया? वही जो रमा ने किया. लेकिन कृष्णकांत को पिता की यह बात ठीक लगी कि दुधारू गाय है. क्यों छोड़ दी? लेकिन पिता को क्या बताए? दुधारू गाय का भी दूध ज्यादा निकालो तो वह भी सींग मारने लगती है. पैर झटकने लगती है.

कृष्णकांत ने पूनम से बात की. पूनम ने अपने पिता सेठ महेशचंद्र से मिलवाया. शादी की बात की. साथ में 2 लाख रुपए मदद की भी बात रख दी.

सेठ महेशचंद्र गुस्से में आ गए. उन्होंने कहा, ‘‘मैं दहेज के खिलाफ हूं. फिर तुम्हारी नौकरी कौन सी स्थायी है? न जाने कब छूट जाए?’’

फिर उन्होंने अपनी बेटी को समझाते हुए कहा, ‘‘अपनी बराबरी वालों से रिश्ता करना चाहिए. दोस्ती तक ठीक है. शादी के पहले 2 लाख रुपए मांग रहा है. बाद में 50 लाख रुपए मांग सकता है. शादी के लिए तुम्हें यही लड़का मिला था. मैं अपनी अमीर बिरादरी में क्या मुंह दिखाऊंगा लोगों को.

‘‘लोग क्या कहेंगे कि सेठ महेशचंद्र ने अपनी बेटी की शादी एक अस्थायी नौकरी वाले लड़के से कर दी. मैं तो तुम्हें होशियार समझता था, बेटी, लेकिन तुम भी प्रेम के नाम पर बेवकूफ बन गई. शादी अपने बराबर वाले से भविष्य की सुरक्षा व सुखों को ध्यान में रख कर की जाती है.’’

फिर उन्होंने कृष्णकांत से कहा, ‘‘एक फोन पर तुम्हारी नौकरी चली जाएगी. मेरी बेटी से दूर रहना.’’

सेठ ने अब बेटी से कहा, ‘‘अमेरिका जाने की तैयारी करो आगे की पढ़ाई के लिए. प्रेम जैसे वाहियात शब्द से दूर रहो.’’ बाद में पूनम ने कहा, ‘‘कृष्णकांत, मैं अपने पिता की बात नहीं ठुकरा सकती.’’

कृष्णकांत उदास हो कर घर आ गया. उस ने कहा, ‘‘पिताजी, मैं आप के कहे अनुसार शादी करने को तैयार हूं. पिता ने 5 लाख रुपए सगाई में ले कर रिश्ता पक्का कर दिया. वे रिश्वत लेते पकड़े गए, रिश्वत दे कर छूट गए.

कितने प्रकार के प्रदूषण हैं इस देश में. हैं तो पूरी धरती पर, लेकिन देश में ज्यादा है. वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण, जल प्रदूषण, रिश्तों में प्रदूषण. नित नए कड़वे होते रिश्ते. विकास और सुरक्षित भविष्य के लिए सब अनदेखा कर रहे हैं. घर में गाड़ी, टीवी के लिए सब एकदूसरे को चूस रहे हैं. सेठ महेशचंद्र चोरी का माल खरीदतेबेचते करोड़पति बन गए. लेकिन कैसे बने, इस बात की उन्हें रत्तीभर परवा नहीं थी. बने और सेठ कहलाए, इस गर्व से भरे हुए थे वे. पूनम ने प्रेम तो किया था लेकिन सुरक्षित भविष्य के डर से वह कृष्णकांत से दूर हो गई.

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रमा, कृष्णकांत, पूनम, रमाकांत, रमा के पिता, सेठ महेशचंद्र जैसे लोग भ्रष्ट व्यवस्था के हिस्से बने हुए हैं. उन के सारे शरीर पर भ्रष्टाचार की डस्ट जमी हुई है. चेहरा तो वे साफ कर लेते हैं, मन कैसे साफ करेंगे? यह शायद वे कभी सोचते भी नहीं होंगे. वाटर फिल्टर से पानी शुद्ध तो कर लेते हैं लेकिन उन नदियों का, जमीन के नीचे बोरिंग मशीन लगा कर निकाले गए पानी का क्या? उन की शुद्धता के बारे में लोग क्यों नहीं सोचते.

अब तो हवा शुद्ध करने के लिए एयर प्योरीफायर भी आ गया है. लेकिन जमीन, आसमान से ज्यादा दिमाग पर फैली हुई उस डस्ट का क्या, उस प्रदूषण का क्या? उसे साफ करने के लिए क्यों कुछ नहीं किया जाता? जब आदमी अंदर से बेईमान हो तो सारे प्रदूषण, सारे अधर्म, सारे पाप दूसरों के सिर पर मढ़ कर मुक्त हो जाता है. लेकिन इस दोषारोपण से क्या आप बच पाएंगे? आप की आने वाली नस्लों का क्या होगा? जिस दिन प्रकृति व रिश्ते हिसाब करेंगे, सिवा बरबादी के कुछ नहीं होगा.

Serial Story: डस्ट (भाग-2)

रमा ने अपना तबादला करवा लिया. घर में किसी को कुछ नहीं बताया. घर के लोग हंगामा खड़ा कर सकते थे. कृष्णकांत ने भी घर में झूठ बोला कि उस का ऐडमिशन कृषि महाविद्यालय में हो गया है. 12वीं तक की पढ़ाई उस ने कृषि विज्ञान से की थी. आगे की पढ़ाई के लिए पिता ने उसे अपनी आर्थिक स्थिति का हवाला दे कर दूसरे शहर में पढ़ाने से इनकार कर दिया था, लेकिन जब कृष्णकांत ने कहा कि उस ने प्रवेश परीक्षा क्लियर कर ली है और पढ़ाई का खर्च वह छात्रवृत्ति से निकाल लेगा तो घर में किसी ने विरोध नहीं किया.

रमा ने भी घर में कह दिया कि जब तक उसे सरकारी क्वार्टर नहीं मिल जाता, वह घर में किसी सदस्य को नहीं ले जा सकती. पैसे मनीऔर्डर से हर माह भिजवा दिया करेगी. लेकिन मेरे अपने खर्च भी होंगे. इसलिए मैं आधी तनख्वाह ही भेज पाऊंगी.

दूसरे शहर में आ कर दोनों पतिपत्नी की तरह रहने लगे. कृष्णकांत का सारा खर्च रमा ही उठाती. उस के लिए नएनए कपड़े खरीदती. एक बाइक भी खरीदी जिस में कृष्णकांत रमा को ले कर कालेज जाता. कृष्णकांत बीए में ही पढ़ रहा था.

कालेज में कृष्णकांत से कोई लड़की बात करती और रमा देख लेती तो वह ढेरों प्रश्न पूछती. रमा भी किसी प्रोफैसर या पिं्रसिपल के साथ कहीं जाती या उन से हंसते हुए बात करती तो वह भी प्रश्नों की झड़ी लगा देता. 3-4 वर्षों के भरपूर वैवाहिक आनंद लूटने के बाद रमा शंकित रहने लगी कृष्णकांत की तरफ से और कृष्णकांत का रमा के प्रति आकर्षण धीरेधीरे कमजोर होने लगा.

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एमए में पहुंचने पर कृष्णकांत को अपने रोजगार की चिंता सताने लगी. शायद इसीलिए वह रमा की पूछताछ और संदेहभरे प्रश्नों को झेल जाता कि रमा नहीं होगी तो उस की आर्थिक जरूरतें कैसे पूरी होंगी. वह रमा से जुड़ा रहा. रमा ने उस पर लगाम लगाए रखी ताकि घोड़े को बिदकने का मौका न मिले.

एक समय वह भी आया जब उसी कालेज में अस्थायी रूप से कृष्णकांत को असिस्टैंट प्रोफैसर की नौकरी मिल गई. रमा ने दबाव बनाया कि वह अपने घर वालों को अपनी शादी के बारे में बता दे. कृष्णकांत ने कहा, ‘कोई स्वीकार नहीं करेगा इस शादी को. पता चल गया तो तलाक करवा कर मानेंगे. अच्छा है कि यह बात घर तक न पहुंचे.’

‘और तुम्हारे घर वालों ने तुम्हारी शादी कहीं और तय कर दी, तब क्या होगा?’

‘ऐसा तो वे करेंगे ही. उन्हें हमारी शादी के बारे में थोड़े पता है. लेकिन मैं करूंगा नहीं. तुम स्वयं को असुरक्षित महसूस करना बंद कर दो.’

‘मैं क्यों असुरक्षित महसूस करने लगी भला. पक्की सरकारी नौकरी है मेरे पास. मैं आर्थिकरूप से स्वतंत्र हूं. तुम कालेज की लड़कियों से बहुत घुलमिल कर बातें करते हो. मुझे पसंद नहीं.’

‘तुम भी तो करती हो.’

‘तो क्या मैं चरित्रहीन हो गई बात करने से?’

‘तो क्या मैं हो गया?’

‘तुम क्यों होने लगे. मर्द जो ठहरे. यह ठप्पा तो हम स्त्रियों पर ही लगता है.’

‘तुम बात का बतंगड़ बना रही हो.’

‘जो देख रही हूं, वही कह रही हूं.’

‘तुम चाहती क्या हो? मैं ने सब तुम्हारे हिसाब से किया.’

‘मैं ने भी सब तुम्हारे हिसाब से किया.’

‘फिर पहले जैसा प्यार क्यों नहीं करते? कहां गया वह जोश?’

‘शारीरिक संबंध बनाना ही प्यार नहीं है.’

‘पहले जैसी प्यारभरी बातें भी तो नहीं करते. खिंचेखिंचे से रहते हो.’

‘तुम्हें शक की बीमारी है.’

‘शक नहीं, यकीन है मुझे.’

‘हुआ करे. मैं क्या कर सकता हूं.’

‘हां, अब तो तुम जो भी करोगे, पूनम के लिए ही करोगे.’

‘खबरदार, जो पूनम का नाम बीच में लाई तो.’

‘क्यों, मिर्ची लगी क्या?’

‘पूनम अच्छी लड़की है.’

‘वह तुम्हारी स्टूडैंट है.’

‘लेकिन हमउम्र भी है.’

आएदिन दोनों में तकरार बढ़ती रहती. कृष्णकांत के पिता उस के रिश्ते की खबर कई बार पहुंचा चुके थे. आ जाओ, लड़की देख लो. कृष्णकांत हर बार टालता रहता था. रमा के साथ उस ने

12 वर्ष गुजार दिए थे. बाद के कुछ वर्षों में वह रमा से बचने लगा था. उस के आकर्षण का केंद्र थी पूनम.

रमा की तरफ से उस का आकर्षण पूरी तरह खत्म हो चुका था.वह समझ चुका था कि रमा से उसे जो प्यार था वह मात्र दैहिक आकर्षण था. प्यार तो उसे अब पूनम से था, जिस की उम्र 27 वर्ष के आसपास थी. जो एमए फाइनल की छात्रा थी. पूनम उसे और वह पूनम को छिपछिप कर देखते थे शुरू में. फिर नजरें बारबार मिलतीं और वे मुसकरा देते. यह अच्छा था कि रमा ने कालेज में स्वयं नहीं बताया था कि कृष्णकांत उस का पति है ताकि लोग उम्र के इस अंतर को मजाक न बनाएं.

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रमा समझ रही थी कि उस ने कृष्णकांत के साथ अपनी जिस्मानी जरूरतें पूरी कर ली हैं. वह यह भी जानती थी कि उम्र के इस अंतर को मिटाया नहीं जा सकता. वह 45 साल की मोटी, सांवली, अधेड़ औरत लगती है और कृष्णकांत 30 वर्ष का जवान. लेकिन फिर भी वह अपना शिकंजा कसने की भरपूर कोशिश करती, लेकिन वह जानती थी कि एक न एक दिन यह शिकंजा ढीला पड़ ही जाएगा.

कृष्णकांत ने एक दिन पूनम से कहा, ‘‘मैं तुम से अकेले में कुछ जरूरी बात करना चाहता हूं. अपने विषय में.’’ पूनम ने खुश हो कर तुरंत ‘हां’ कह दी. दोनों शाम को शहर के बाहर बने कौफीहाउस में मिले.

कृष्णकांत ने कहा, ‘‘पूनम, मुझे बचा लो रमा मैडम से. मैं 18 वर्ष का था जब रमा ने मुझे अपने दैहिक आकर्षण में फंसा लिया था. मुझे कोर्टकचहरी की धमकी दी. मैं मजबूर हो गया. घर में गरीब मांबाप हैं. रमा ने मुझ से जबरदस्ती शादी की.  वे

18 वर्ष की मेरी कच्ची उम्र से ही मेरा दैहिक शोषण कर रही हैं. मैं क्या करूं?’’

ये सब इतने भावुक और रोने वाले अंदाज में कहा कृष्णकांत ने कि पूनम की आंखे भर आईं. पूनम ने कहा, ‘‘शादी का कोई प्रूफ है?’’

‘‘रमा के पास हो सकता है.’’

‘‘तुब सब नष्ट कर दो और उस से अलग हो जाओ. अगर वह तुम्हें कोर्टकचहरी की धमकी दे, तो तुम भी दे सकते हो. मैं खड़ी हूं तुम्हारे साथ. कुछ न हो तो तलाक तो ले ही सकते हो.’’

‘‘तुम अपनाओगी न मुझे?’’

‘‘हां, क्यों नहीं, मैं आप से प्यार करती हूं और किसी भी हद तक जाने को तैयार हूं.’’

कृष्णकांत आश्वस्त हुआ. गवाहों का तो अतापता नहीं था. बरसों पुरानी बात थी. शादी के सुबूत रमा की अलमारी में थे. जिन्हें तलाश कर कृष्णकांत ने नष्ट कर दिए.

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Serial Story: डस्ट (भाग-1)

वह शाम को घर वापस आया. चेहरे पर अजीब सी चिपचिपाहट का अनुभव हुआ. उस ने रूमाल से अपना चेहरा पोंछा और रूमाल की तरफ देखा. सफेद रूमाल एकदम काला हो गया था. इतना कालापन. मैं तो औफिस जा कर कुरसी पर बैठता हूं. न तो मैं फील्डवर्क करता हूं न ही किसी खदान में काम करता हूं. रास्ते में आतेजाते ट्रैफिक तो होता है, लेकिन मैं अपनी बाइक से जाता हूं और हैलमेट यूज करता हूं. फिर इतनी डस्ट कैसे?

उस ने टीवी पर समाचारों में देखा था कि महानगरों, खासकर दिल्ली में इतना ज्यादा प्रदूषण है कि लोगों को सांस लेने में तकलीफ होती है. दीवाली जैसे त्योहारों पर जब पटाखों का जहरीला धुआं वातावरण में फैलता है तो लोगों की आंखों में जलन होने लगती है और सांस लेने में दम घुटता है. ऐसे कई स्कूली बच्चों को मास्क लगा कर स्कूल जाते हुए देखा है.

महानगरों की तरह क्या यहां भी प्रदूषण अपनी पकड़ बना रहा है. घर से वह नहाधो कर तैयार हो कर निकलता है और जब वापस घर आता है तो नाककान रुई से साफ करने पर कालापन निकलता है.

यह डस्ट, चाहे वातावरण में हो या रिश्तों में, इस के लिए हम खुद जिम्मेदार हैं. रिश्ते भी मर रहे हैं. प्रकृति भी नष्ट हो रही है. नीरस हो चुके हैं हम सब. हम सिर्फ एक ही भाषा सीख चुके हैं, फायदे की, मतलब की. ‘दुनिया जाए भाड़ में’ तो इस तरह कह देते हैं जैसे हम किसी दूसरी दुनिया में रहते हैं.

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उसे पत्नी पर शक है और पत्नी को भी उस पर शक है. इस शक के चलते वे अकसर एकदूसरे पर आरोपप्रत्यारोप लगाते रहते हैं. पत्नी का शक समझ में आता है. कृष्णकांत ने अपनी उम्र से 15 वर्ष बड़ी महिला से शादी की थी. वह 30 वर्ष का है और उस की पत्नी 45 वर्ष की. जब वह 18 वर्ष का था तब उस ने रमा से शादी की थी. शादी से पहले प्यार हुआ था. इसे कृष्णकांत प्यार कह सकता था उस समय क्योंकि उस की उम्र ही ऐसी थी.

रमा कालेज में प्रोफैसर थी. कृष्णकांत तब बीए प्रथम वर्ष का छात्र था. रमा घर में अकेली कमाने वाली महिला थी. परिवार के लोग, जिन में मातापिता, छोटा भाई, छोटी बहन थी, कोई नहीं चाहता था कि रमा की शादी हो. अकसर सब उसे परिवार के प्रति उस के दायित्वों का एहसास कराते रहते थे. लेकिन रमा एक जीतीजागती महिला थी. उस के साथ उस के अपने शरीर की कुछ प्राकृतिक मांगें थीं, जिन्हें वह अकसर कुचलती रहती थी, लेकिन इच्छाएं अकसर अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए मुंहबाए उस के सामने खड़ी हो जातीं.

कृष्णकांत की उम्र में अकसर लड़कों को अपने से ज्यादा उम्र की महिलाओं से प्यार हो जाता है. पता नहीं क्यों? शायद उन की कल्पना में भरीपूरी मांसल देह वाली स्त्रियां ही आकर्षित करती हों. कृष्णकांत को तो करती थीं.

नई उम्र का नया खून ज्यादा जोश मारता है. शरीर का सुख ही संसार का सब से बड़ा सुख मालूम होता है और कोई जिम्मेदारी तो होती नहीं इस उम्र में. पढ़ने के लिए भी भरपूर समय होता है और नौकरी करने की तो अभी उम्र मात्र शुरू होती है. मिल जाएगी आराम से और रमा मैडम जैसी कोई नौकरीपेशा स्त्री मिल गई तो यह झंझट भी खत्म. हालांकि उसे रमा की तरफ उस का आकर्षक शरीर, शरीर के उतारचढ़ाव और खूबसूरत चेहरा, जो था तो साधारण लेकिन उस की दृष्टि में काफी सुंदर था, उसे खींच रहा था.

औरतें नजरों से ही समझ जाती हैं पुरुषों के दिल की बात. रमा ने भी ताड़ लिया था कि कृष्णकांत नाम का सुंदर, बांका जवान लड़का उसे ताकता रहता है. फिर उसे टाइप किए 3-4 पत्र भी मिले जिस में किसी का नाम नहीं लिखा था. बस, प्यारभरी बातें लिखी थीं. रमा समझ गई कि ये पत्र कृष्णकांत ने ही उसे लिखे हैं. रमा ने उस से कालेज के बाहर मिलने को कहा. रमा के बताए नियत स्थान व समय पर वह वहां पहुंचा.

अंदर से डरा और सहमा हुआ था कृष्णकांत. लेकिन रमा के शरीर में उस के पत्रों को पढ़ कर चिंगारिया फूट रही थीं. वह तो केवल कालेज में प्रोफैसर थी सब की नजरों में. घर में कमाऊ पूत. जो कुछ इश्कविश्क की बातें थीं वो उस ने फिल्मों में ही देखी थीं. उस का भी मन होता कि कोई उस से प्यारभरी बातें करे, लेकिन अफसोस कि ऐसा कभी हुआ नहीं और आज जब हुआ तो कालेज के छात्र से.

कोई दूर या पास से देख भी लेता तो यही सोचता कि छात्र और प्रोफैसर बात कर रहे हैं. रमा ने कृष्णकांत से कहा, ‘ये पत्र तुम ने लिखे हैं?’ कृष्णकांत चुप रहा, तो रमा ने आगे कहा, ‘मैं जानती हूं कि तुम ने ही लिखे हैं. डरो मत, स्पष्ट कहो और सच कहो. मैं किसी से नहीं कहूंगी.’

‘जी, मैं ने ही लिखे हैं.’

‘क्यों, प्यार करते हो मुझ से?’

‘जी.’

‘उम्र देखी है अपनी और मेरी.’

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कृष्णकांत चुप रहा. तो रमा ने ही चुप्पी तोड़ी और कहा, ‘क्या चाहते हो मुझ से, शादी, प्यार या सैक्स.’

‘जी, प्यार.’

‘और उस के बाद?’

कृष्णकांत फिर चुप रहा.

‘शादी नहीं करोगे, बस मजे करने हैं,’ रमा की यह बात सुन कर कृष्णकांत भी खुल गया.

उस ने कहा, ‘‘शादी करना चाहता हूं. प्यार करता हूं आप से.’’

‘कौन तैयार होगा इस शादी के लिए? तुम्हारे घर वाले मानेंगे. मेरे तो नहीं मानेंगे.’

‘मैं इस के लिए सारी दुनिया से लड़ने को तैयार हूं,’ कृष्णकांत ने कहा.

‘सच कह रहे हो,’ रमा ने उसे तोलते हुए कहा.

‘जी.’

‘तो फिर मेरे हिसाब से चलो. इस छोटे शहर में तो हमारे प्रेम का मजाक उड़ाया जाएगा. हम दूसरे शहर चलते हैं. मैं अपना ट्रांसफर करवाए लेती हूं. छोड़ सकते हो घर अपना.’ कृष्णकांत को तो मानो मनमांगी मुराद मिल गई थी.

एक पुरोहित को पैसे दिए. 2 गवाह साथ रखे और शादी के फोटोग्राफ लिए. मंदिर में शादी की और दोनों घर में झूठ बोल कर हनीमून के लिए निकल गए. कृष्णकांत ने जैसी स्त्री के सपने देखे थे, ठीक वैसा ही रमा में पाया और वर्षों पुरुष संसर्ग को तरसती रमा पर भरपूर प्यार की बरसात की कृष्णकांत ने. दोनों तृप्त थे.

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