REVIEW: मेडिकल घोटालों पर चोट करती रहस्य प्रधान फिल्म ‘हलाहल’

रेटिंग: तीन स्टार

निर्माता: जीशान कादरी
निर्देशक: रणदीप झा
कलाकार: सचिन खेडेकर, वरुण सोबती, मनु ऋषि चड्ढा, जयदीप अहलावत, अर्चना शर्मा, सानिया बंसल, द्विवेदु भट्टाचार्य व अन्य
अवधि: एक घंटा 36 मिनट
ओटीटी प्लेटफॉर्म : इरोज नाउ

हमारे देश में आए दिन इस तरह की खबरें आती रहती हैं कि भ्रष्टाचार में लिप्त इंसान किस तरह अपने गुनाहों पर पर्दा डालने के लिए सत्य का साथ देने वाले इंसानों की हत्या कर उन्हें आत्महत्या का रूप देकर अपनी कमीज को सफेद बताते रहते हैं. यह कोई नई बात नहीं है. इसी तरह की कई घटनाओं से प्रेरित होकर जीशान कादरी ने एक काल्पनिक कहानी पर रहस्य और रोमांच प्रधान फिल्म “हलाहल” का लेखन व निर्माण किया है, जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी रणदीप झा ने संभाली है .एक घंटा 36 मिनट की यह फिल्म ” इरोज नाउ” पर 21 सितंबर से देखी जा सकती है.मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले की तर्ज पर उत्तर प्रदेश का एक मेडिकल सीट घोटाला जीशान कादरी ने इसकी कहानी में बुना है. कम से कम यह फिल्म देखकर लोग सोचने पर मजबूर जरूर होंगे.

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कहानी:

फिल्म की कहानी गाजियाबाद के हाईवे से शुरू होती है, जहां एक लड़की अर्चना एक लड़के अशीश से रुकने के लिए कह रही है. अर्चना कहती है कि’अशीश रुक जाओ, सब ठीक हो जाएगा.’ पर अचानक एक ट्रक अर्चना को रौंद देता है. अशीश भाग खड़ा होता है. उस ट्रक में सवार तीन लोग उतरते हैं, और अर्चना शर्मा को मृत देखकर उस पर पेट्रोल छिड़ककर आग लगा देते हैं. पता चलता है कि अर्चना शर्मा ‘गाजियाबाद मेट्रो मेडिकल कॉलेज’ की छात्रा होने के साथ ‘ ए सी ई कोचिंग अकादमी’ में पढ़ाती भी थी.अर्चना शर्मा के पिता डॉक्टर शिव शर्मा(सचिन खेडेकर) रोहतक में रहते हैं और उन्हें अपनी बेटी की मौत की खबर से सदमा लगता है. वह तुरंत पुलिस स्टेशन पहुंचते हैं, जहां उन्हें बताया जाता है कि उनकी बेटी अर्चना ने आत्महत्या कर ली. डॉक्टर शिव को इस बात पर यकीन नहीं होता. डॉक्टर शिव के अनुसार उनकी बेटी अर्चना आत्महत्या नहीं कर सकती. मगर ‘गाजियाबाद मेट्रो मेडिकल कॉलेज’ के डीन डॉ आचार्य द्वारा तैयार की गई पोस्टमार्टम रिपोर्ट भी यही कहती है कि अर्चना ने आत्महत्या की है. पोस्टमार्टम रिपोर्ट देखकर डॉक्टर शिव शर्मा को एहसास हो जाता है कि यह आत्महत्या नहीं है, क्योंकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में अर्चना का ब्लड ग्रुप गलत लिखा होता है. शिव शर्मा प्रतिज्ञा करते हैं कि वह अर्चना की मौत की सच्चाई सबके सामने लाकर रहेंगे. डॉक्टर शिव शर्मा अपनी तरफ से जांच शुरू करते हैं. अर्चना शर्मा के बैंक खाते में 12 लाख से अधिक रकम देखकर भी डॉक्टर शिव शर्मा चौकते हैं. उधर उसी पुलिस स्टेशन में एक भ्रष्ट पुलिस इंस्पेक्टर युसूफ अंसारी(वरुण सोबती) भी है,का जो कि महज पैसे लेकर सारे काम करता है. पुलिस इस्पेक्टर युसूफ हर किसी से पैसे लेते हुए नजर आता है. शिव शर्मा सबसे पहले तो डॉक्टर आचार्य से मिलकर सच जानने की कोशिश करते हैं और उन्हें धमकाते हैं कि उन्होंने सच नहीं बताया ,तो वह इस मुद्दे को मेडिकल काउंसिल में उठाएंगे. उसके बाद डॉक्टर आचार्य के इशारे पर पर कुछ गुंडे शिव शर्मा पर हमला कर देते हैं. इस बीच डॉक्टर शिव शर्मा एक हवलदार के कहने पर पुलिस इंस्पेक्टर युसूफ अंसारी से उनके घर पर मिलते हैं और कहते हैं कि वह आशीश को तलाश कर लें आए, इसके लिए एडवांस में युसुफ को दो लाख रुपए देते हैं. इसके बाद शिव शर्मा व युसुफ जांच शुरू करते हैं, जांच के दौरान शक के घेरे में कई लोग आते हैं. कुछ छात्राओं की भी मौत होती है, कई लोगों की भी हत्याएं हो जाती हैं, जिन पर शक है. तमाम घटनाक्रम तेजी से बदलते हैं.फिर जो सच सामने आता है , वह बहुत भयानक होता है .उसके बाद इस मसले से जुड़े हर इंसान की जिंदगी बदल जाती है .

लेखन व निर्देशन:

हमने यहां पर फिल्म की कहानी को पूरा नहीं बताया है, क्योंकि हम नहीं चाहते कि दर्शकों का फिल्म देखने का मजा किरकिरा हो जाए. पर एक कसी हुई पटकथा में रहस्य रोमांच के जो मोड़ हैं ,वह दर्शकों को बांध कर रखते हैं. फिर क्लाइमेक्स वह फिल्म का जो अंत है, उसकी कल्पना तो दर्शक कभी कर ही नहीं सकता. मगर इस फिल्म का क्लाइमैक्स और इसका अंत, हमारे समाज का सबसे बड़ा कड़वा सच है. इसी वजह से यह फिल्म देखकर हर इंसान सोचने पर और अपने अंदर झांकने पर मजबूर भी होगा. फिल्म देखते समय दर्शक की आंखों के सामने से मध्य प्रदेश के व्यापम घोटाले व उत्तर प्रदेश का एक मेडिकल सीट घोटाला सहित कई घटनाएं घूमेंगी.

शिक्षा व्यवस्था पर करारा चोट करती यह फिल्म इस बात पर रोशनी डालती है कि बच्चे को शिक्षा दिलाना हर इंसान के लिए हलाहल/जहर पीने जैसा है. इस बात को फिल्म का एक संवाद पुख्ता करता है.संवाद है-‘‘क्या करें?इस देश में जैसे ही बच्चा पैदा हेता है,मां बाप उसे डाक्टर या इंजीनियर ही बनाना चाहता है. अब सीटें तो गिनती की हैं.’’

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ से चर्चा में आए आए लेखक,अभिनेता,निर्देशक, निर्माता जीशान कादरी ने कुछ कमियों के बावजूद बतौर निर्माता व लेखक अपनी नई फिल्म ‘हलाहल’में गाजियाबाद को परदे पर चमका दिया है. निर्देशक रणदीप झा का निर्देशन सराहनीय है. कैमरामैन ने तारीफ वाला काम किया है.

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अभिनय:

डॉक्टर शिव शर्मा के किरदार में अभिनेता सचिन खेडेकर ने कमाल का अभिनय किया है. एक पिता का दर्द,भूमाफिया से भिड़ने का जज्बा,अपने ही व्यवसाय से जुड़े लोगों पर सवालिया निशान लगाता डॉक्टर षिव और फिर बेटी अर्चना की असलियत सामने आने पर घुटनों के बल आ गया इंसान,इन सारे पड़ाव को सचिन खेड़ेकर ने अपने शानदार अभिनय से जिस तरह से सकार किया है कि पर्दे पर उन्हें देखते हुए लोग भूल जाएंगे कि वह सचिन खेडेकर को देख रहे हैं ,बल्कि उन्हें तो हर जगह डॉ शिव शर्मा ही नजर आएंगे. सचिन खेडेकर ने अब तक जितने भी किरदार निभाए हैं, उन्हें कोई दूसरा नहीं कर सकता. वह एक उम्दा कलाकार हैं, इस बात को उन्होंने इस फिल्म में भी साबित करके दिखाया है. भ्रष्ट पुलिस इंस्पेक्टर रुआबदार मूंछें, चेहरे से झलकता कमीनापन,हर काम में सिर्फ पैसे का लालच,अंत में डाॅ. षिव के हालात देख इंसानियत के नाते उनके पैसे वापस कर देने और अपने वरिष्ठ से भिड़ जाने के रोमांच को वरूण सोबती ने बेहतरीन तरीके से अपने अभिनय से परदे पर उकेरा है. अब तक छोटे पर्दे पर लोगों ने उन्हें जिस रूप में देखा है, उससे उनका यह एक अलग रूप है. राज्य के उपमुख्यमंत्री विजेंद्र सिंह फोटो उर्फ भाई साहब के छोटे किरदार में मनुश्री चड्ढा एक बार फिर दर्शकों का दिल जीत लेते हैं. इसके अलावा अन्य कलाकार भी अपनी अपनी जगह सही है.

 

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