महिलाओं में क्यों होता है मेनोपौज, इसके लक्षणों को ऐसे करें कंट्रोल

एक महिला को उम्र बढ़ने के साथसाथ कई तरह की सेहत संबंधी समस्याओं से गुजरना पड़ता है. किसी भी महिला को उम्र के हर मोड़ पर पीरियड्स से लेकर मेनोपौज तक इस तरह की कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है. इस दौरान महिला के शरीर में कई तरह के हार्मोनल बदलाव होते हैं, जिससे बौडी, मेंटल हेल्थ पर असर पड़ता है.

 

माना जाता है कि आमतौर पर महिलाओं में 45-50 की उम्र में मेनोपौज की शुरुआत होती है. यानी महिलाओं में हर महीने होने वाले मेंस्ट्रुअल साइकिल पूरी तरह बंद हो जाते हैं. अगर किसी महिला को लगातार 1 साल तक पीरियड्स न हो, तो यह मेनोपौज माना जाता है.

क्यों होता है मेनोपौज

यह एक नेचुरल प्रक्रिया है. जब ओवरी अंडे रिलीज करना बंद कर देती है, तो महिला को मेनोपौज होना शुरु हो जाता है. इससे महिलाओं में कई तरह के हार्मोन का स्तर भी लो हो जाता है. जिससे महिला में रिप्रोडक्टिव प्रौसेस बंद हो जाता है.

क्या है पेरी मेनोपौज पीरियड

मेनोपौज के पहले महिला के शरीर में एक बदलाव का समय आता है, इस स्थिति में कभी पिरियड आते है और कभी नहीं आते. इस अवस्था को पेरी मेनोपौज कहा जाता है.

मेनोपौज के लक्षण

  • अनियमित पीरियड्स
  • वेजाइनल ड्राइनेस
  • नींद न आना
  • मूड स्विंग्स
  • वेट बढ़ना
  • हेयर फॉल

मेनोपौज के लक्षणों से कैसे कंट्रोल करें

ऊपर दिए गए लक्षण नजर आए, तो इन्हें कम करने के लिए अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव करें. खाने में पौष्टिक चीजों को लें, रोजाना एक्सरसाइज करें. स्मोकिंग, एल्कोहल और ज्यादा कैफीन युक्त चीजें न लें. अगर आपको ज्यादा पसीना आता है, तो लूज कपड़े पहनें.

मेनोपौज दो स्टेज में होता है

  • 30 की उम्र के बाद ही कुछ महिलाओं में यह दिखाई देने लगते हैं. हालांकि मेनोपौज होने की सही उम्र 40 से 45 साल है.
  • कुछ महिलाओं को लेट से भी मेनोपौज होता है, 50 की उम्र में भी मेनोपौज हो सकता है.

मेनोपौज के दौरान खाएं ये फूड्स

  • ओमेगा-3 फैटी एसिड्स से भरपूर फूड्स खाएं, इसके लिए महिलाएं अपनी डाइट में सालमन, मैकेरल जैसी मछलियां खा सकती हैं. ये हेल्दी फैट्स से भरपूर होती हैं.
  • मेनोपौज के दौरान महिलाओं को हड्डियों से जुड़ी समस्याएं होती हैं, ऐसे में डेयरी प्रोडक्ट्स या अन्य कैल्शियम युक्त चीजें खाने की सलाह दी जाती है.
  • मेनोपौज वाली  महिलाओं की डाइट में फल और सब्जियां शामिल करना बेहद जरूरी है. ये विटामिन्स से भरपूर होते हैं.

अर्ली मेनोपॉज़ का होना बन सकता है कोरोनरी हार्ट रोगों का कारण

मासिक धर्म और उससे जुड़े हार्मोनल बदलाव किसी भी महिला के जीवन में प्रजनन काल के महत्‍वपूर्ण चरण माने जाते हैं, लेकिन समय से पहले यानि अर्ली मेनोपॉज़, अर्थात 40 वर्ष से पूर्व मेनोपॉज़ के कारण महिलाओं में कोरोनरी हार्ट रोगों की आशंका बढ़ जाती है.पिछले दोदशकों में ऐसे मामले तेजी से बढ़े हैं, जब किशोरियों में अर्ली प्‍यूबर्टी हो रही है और महिलाओं में अर्ली मेनोपॉज, इसकी वजह खराब डाइट, खराब जीवनशैली और तनाव को बताया जा रहा है. वहीं महिलाओं में बढ़ती स्‍मोकिंग और एल्‍कोहल की लत भी उनके स्‍वास्‍थ्‍य पर नकारात्‍मक असर डाल रही है. खासतौर से तनाव के कारण महिलाओं का स्‍वास्‍थ्‍य बुरी तरह प्रभावित हुआ है.

पहचाने लक्षण

इस बारें में दिल्ली के फोर्टिस एस्‍कॉर्ट्स हार्ट इंस्‍टीट्यूट की डायरेक्‍टर, इलैक्‍ट्रोफिजियोलॉजी एंड कार्डियाक पेसिंग की डॉ अपर्णा जसवाल कहती है कि कोरोनरी हार्ट रोग आजकल काफी होने लगा है. इसे साधारण किस्‍म के हृदय रोगों में शामिल किया जाता हैं, जिनमें हृदय के आसपास मौजूद धमनियों में प्‍लाक जमा होने की वजह से रुकावट पैदा हो जाती है और धीरे-धीरे यह समस्‍या गंभीर हो जाती है. यदि इसका समय रहते इलाज न कराया जाए, तो महिलाओं को सीने में दर्द, हार्ट अटैक या कई बार अचानक कार्डियाक अरेस्‍ट की शिकायत भी हो सकती है, जिन महिलाओं को अर्ली मेनोपॉज़ हुआ है उनमें कम समय में हृदय रोग होने की आशंका बढ़ जाती है. महिलाओं के मामले में हृदय रोगों की वजह से जोखिम बढ़ाने वाले कारक कौन से हो सकते हैं, जिसकी जोखिम मेनोपॉज़ सेजुड़ा हो सकता है, आइये जाने मुख्य लक्षण क्या है?

  • थकान
  • भोजन के बाद असहज होने का अहसास
  • जबड़े में और पीठ में भी अजीबोगरीब दर्द
  • बाएं और दाएं हाथ में दर्द
  • सीढ़ियां चढ़ते समय सांस ज्यादा फूलना, खासकर भोजन के बाद
  • खाने के बाद पेट में दर्द या पेट के ऊपरी हिस्से में दर्द हृदय संबंधी समस्या के कारण हो सकता है
  • बिना किसी कारण काफी ज्यादा पसीना आना आदि है.

डॉ. कौल ने बताया कि ये सभी दिक्कतें महिलाओं में दिल की समस्याओं के संकेत हैं. हालांकि, हृदय रोगों की जांच और इलाज पुरुषों व महिलाओं के लिए एक जैसा होता है.

सावधानी की जरुरत

डॉ. अपर्णा कहती है कि तीन में से एक से अधिक महिला को किसी न किसी तरह का कार्डियोवास्क्‍युलर रोग होता है. सच तो यह है कि हृदय रोग महिलाओं में मृत्‍यु का सबसे प्रमुख कारण बन चुका हैं. इसलिए हृदय रोगों से बचाव के लिहाज़ से महिलाओं को काफी सावधान रहने की जरूरत है. युवावस्‍था में महिलाओं का बचाव इस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍ट्रोन हार्मोनों से होता है, लेकिन यह सुरक्षा कवच मनोपॉज़ के साथ खत्‍म हो जाता है. जैसे-जैसे महिलाएं रजोनिवृत्ति की ओर बढ़ती हैं, उन्‍हें कई कष्‍टकारी लक्षणों का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें हॉट फ्लश, सोते समय पसीने छूटना, मूड में उतार-चढ़ाव, अवसाद, चिंता, और साथ ही, जेनाइटोयूरिनरी और यौन क्रियाओं में बदलाव आदि हो सकता है.

जोखिम कोरोनरी हार्ट डिसीज का

डॉ. अपर्णा आगे कहती है कि मेनोपॉज़ होने के बाद महिलाओं के शरीर में इस्‍ट्रोजेन और प्रोजेस्‍ट्रोन हार्मोनों का बनना रुक जाता है, जिसके चलते उन्‍हें भी पुरुषों के समान जोखिमों का सामना करना पड़ता है. ये हार्मोन न सिर्फ प्रजनन से जुड़े हैं, बल्कि महिलाओं के स्‍वास्‍थ्‍य में भी इनकी महत्‍वपूर्ण भूमिका होती है और उनकी धमनियों में प्‍लाक जमने, हृदय धमनी के रोगों, उच्‍च रक्‍तचाप, नुकसानदायक कलेस्‍ट्रोल के अधिक स्‍तर, उपयोगी कलेस्‍ट्रोल के कम स्‍तर जैसी परेशानियों से भी बचाते हैं. इस्‍ट्रोजेन के बारे में माना जाता है कि यह आर्टरी की अंदरूनी दीवार को सुरक्षित रखता है, रक्‍त वाहिकाओं को लचीला बनाता है और उन्‍हें सूजन, अन्‍य नुकसान से भी बचाता है, लेकिन जिन महिलाओं में रजोनिवृत्ति हो चुकी होती है, उनके शरीर में इस प्रकार के हार्मोन न रहने पर महिलाओं में उच्‍च रक्‍तचाप, कोरोनरी प्‍लाक और एंडोथीलियल की समस्‍या बढ़ जाती है. एंडोथीलियल को नुकसान पहुंचने के बाद, कोरोनरी आर्टरी रोग का जोखिम बढ़ जाता है और यहां तक कि हार्ट अटैक का भी जोखिम बढ़ जाता है.

असल में मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं को समान उम्र के पुरुषों की तुलना में हृदय रोग का जोखिम अधिक होता है. इसलिए हमेशा याद रखना चाहिए कि मेनोपॉज़ के बाद महिलाओं में जोखिम बढ़ने की वजह से उन्‍हें खुद को हृदय रोगों से बचाने वाले जोखिमों से बचाने का हर संभव प्रयास करना चाहिए. महिलाओं को अपनी कार्डियोवास्‍क्‍युलर सेहत को लेकर काफी सक्रिय होना चाहिए और अपने उच्‍च रक्‍तचाप तथा मधुमेह को नियंत्रित रखना चाहिए.साथ ही इस ओर काफी ध्‍यान देने की जरूरत है.इसके अलावा महिलाओं के कार्डियोवास्‍क्‍युलर जोखिम को कम करने के लिए पर्सनलाइज्‍़ड, प्रीवेंटिव कार्डियोलॉजी केयर काफी महत्‍वपूर्ण होता है.

रिस्क फैक्टर्स

कुछ रिस्क फैक्टर्स निम्न है,

  • परिवार में हृदय रोगों का इतिहास रहा हो, या मधुमेह, उच्‍च रक्‍तचाप, मोटापा, धूम्रपान और व्‍यायाम रहित जीवनशैली होने वालों में अर्ली मेनोपॉज़ के बाद कार्डियोवास्‍क्‍युलर समस्‍याएं बढ़ सकती है.
  • अर्ली मेनोपॉज़ होने पर अपने हृदय के स्‍वास्‍थ्‍य की ओर अच्‍छी तरह से ध्‍यान देना जरुरी है, जिसमे जीवनशैली में बदलाव, नियमित व्‍यायाम, स्‍वास्‍थ्‍यवर्धक भोजन, निरंतर ब्‍लड प्रेशर औरकोलेस्‍ट्रॉल स्‍तर की जांचकरना जरुरी है.
  • इसके अलावा मधुमेह रोगियों के ब्‍लड शुगर को नियंत्रित रखने, धूम्रपान न करने जैसे उपाय हृदय रोगों से बचाव में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं.

अर्ली मेंनोपॉज के बाद शरीर को स्‍वस्‍थ रखने के लिए आवश्‍यक पोषक तत्‍वों की आवश्यकता भोजन में होती है, जो निम्न है,

फल एवं सब्जियां

साबुत अनाज

कम वसायुक्‍त डेयरी उत्‍पाद

पोल्‍ट्री, मछली और मेवे

रैड मीट, शूगर युक्‍त फूड एवं बेवरेज़ेस का सीमित सेवन आदि

डॉ. मानती है कि महिलाओं को हृदय रोगों को खुद से दूर रखने के लिए हर हफ्ते शारीरिक व्‍यायाम को अपनी जीवनशैली में शामिल कर लें, ये भी व्‍यक्तिगत आवश्‍यकतानुसार वेट लॉस प्रोग्राम को ही अपनाएं.इसके अलावा, सैर, साइकिल चलाना, नृत्‍य करना और तैराकी जैसी गतिविधियां भी, जो कि मांसपेशियों का बड़े पैमाने पर इस्‍तेमाल करती हैं, अच्‍छे ऐरोबिक व्‍यायाम माने जाते हैं.महिलाओं के प्री-मेनोपॉज़ल और रिप्रोडक्टिव वर्षों में, मासिक धर्म के दौरान शरीर की एंडोमीट्रियल कोशिकाएं नष्‍ट होती रहती हैं.इसके अलावा मेनोपॉज़ के बाद हृदय रोगों से सुरक्षा के लिए हार्मोन रिप्‍लेसमेंट थेरेपी की सलाह नहीं दी जाती.

हर साल करवाएं जांच

इस प्रकार यह कहना सही होगा कि अर्ली मेनोपॉज़ होने पर महिलाओं को हर साल अपनी नियमित रूप से जांच करवानी चाहिए ताकि हृदय रोगों के जोखिम से बचा जा सके, साथ ही, जीवनशैली में भी बदलाव करें तथा गाइनीकोलॉजिस्‍ट से नियमित रूप से मिलें.

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें