फिल्म समीक्षाः ‘‘पठान: बेहतरीन एक्शन, बेहतरीन लोकेशन,बाकी सब शून्य…’’

रेटिंग: डेढ़ स्टार

निर्माता: आदित्य चोपड़ा

पटकथा लेखक: श्रीधर राघवन

निर्देषक: सिद्धार्थ आनंद

कलाकार: ष्षाहरुख खान,जौन अब्राहम,दीपिका पादुकोण, आषुतोष राणा,डिंपल कापड़िया, सिद्धांत घेगड़मल,गौतम रोडे,गेवी चहल,षाजी चैहान, दिगंत हजारिका, सलमान खान व अन्य.

अवधि: दो घंटे 26 मिनट

‘ये इश्क नही आसान’, ‘दुनिया मेरी जेब में’,‘शहंशाह ’ जैसी फिल्मों के निर्माता बिट्टू आनंद के बेटे सिद्धार्थ आनंद ने बतौर निर्देषक फिल्म ‘‘सलाम नमस्ते’’ से कैरियर की षुरूआत की थी.उसके बाद उन्होने ‘तारा रम पम’,‘बचना ऐ हसीनों’,‘अनजाना अनजानी’,‘बैंग बैंग’ और ‘वाॅर’ जैसी फिल्मंे निर्देषित कर चुके हैं.सिद्धार्थ आनंद निर्देषित पिछली फिल्म ‘‘वार’’ 2019 में रिलीज हुई थी,जो कि आदित्य चोपड़ा निर्मित ‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की तीसरी फिल्म थी.और लगभग साढ़े तीन वर्ष बाद  बतौर निर्देषक सिद्धार्थ आनंद नई फिल्म ‘‘पठान’’ लेकर आए हैं, जिसका निर्माण ‘यषराज फिल्मस’ के बैनर तले आदित्य चोपड़ा ने किया है. फिल्म ‘पठान’,‘वायआरएफ स्पाई युनिवर्स’ की चैथी फिल्म है.फिल्म ‘पठान’ पर ‘यषराज फिल्मस’के साथ ही इसके मुख्य अभिनेता षाहरुख खान ने भी काफी उम्मीदें लगा रखी हैं.2022 में ‘यषराज फिल्मस’ की सभी फिल्में बुरी तरह से असफल हो चुकी हैं.जबकि षाहरुख खान की पिछली फिल्म ‘‘जीरो’’ 2018 में प्रदर्षित हुई थी,जिसने बाक्स आफिस पर पानी तक नहीं मांगा था.फिल्म ‘पठान’ को तमिल व तेलगू में भी डब करके प्रदर्षित किया गया है.‘यषराज फिल्मस’ की यह पहली फिल्म है,जिसे आईमैक्स कैमरों के साथ फिल्माया गया है.

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‘यषराज फिल्मस’ ने फिल्म ‘पठान’ का जब पहला गाना अपने यूट्यूब चैनल पर रिलीज किया था,उस वक्त से ही वह गाना और  फिल्म विवादों में रही है.उस वक्त बौयकौट गैंग ने दीपिका पादुकोण की भगवा रंग की बिकनी को लेकर आपत्ति दर्ज करायी थी.पर अफसोस की बात यह है कि फिल्म ‘पठान’ में भगवा रंग कुछ ज्यादा ही फैला है.फिल्म देखकर दर्षक की समझ में ेआता है कि भगवा रंग तो ‘आईएसआई’ के एजंटांे को भी हिंदुस्तान की तरफ खीच लेता है.

कहानीः

एक्षन प्रधान,देषभक्ति व जासूसी फिल्म ‘‘पठान’’ की कहानी के केंद्र में राॅ एजेंट फिरोज पठान (षाहरुख खान) और पूर्व ‘राॅ’ अफसर जिम्मी (जौन अब्राहम) और पाकिस्तानी खुफिया एजंसी की जासूस डाॅ. रूबैया मोहसीन (दीपिका पादुकोण) और पाकिस्तानी आईएसआई जरनल हैं.फिल्म की षुरूआत 5 अगस्त 2019 से होती है,जब कष्मीर से धारा 370 हटाए जाने की खबर से बौखलाया हुआ पाकिस्तानी सेना का जनरल अपनी मनमानी करते हुए पूर भारत को नेस्तानाबूद करने का सौदा जिम्मी से करता है. जिम्मी दक्षिण अफ्रीका के खतरनाक हथियार विक्रताओं से हथियार खरीदने का सौदा करता है.जहां पर पठान घायलअवस्था में बंदी है.फिर कहानी तीन साल के बाद षुरू राॅ के आफिस से षुरू होती है.जब एक खुफिया पुलिस अफसर (सिद्धांत घेगड़मल),राॅ की अफसर नंदिनी को सूचना देता है कि पठान की तस्वीर नजर आयी है.अब नंदिनी उस अफसर के साथ पठान से मिलने निकलती है.विमान में बैठने के बाद वह पठान की कहानी बताती है कि राॅ प्रमुख कर्नल लूथरा ( आषुतोष राणा ) राॅ के हर एजेंट को कुछ समझता नही है.एक दिन खबर मिलती है कि दुबई में हो रहे वैज्ञानिकों के सम्मेलन में भारत के दो वैज्ञानिक भी होंगे तथा मुख्य अतिथि भारत के राष्ट्पति है.कर्नल लूथरा भारत के राष्ट्पति की पूरी सुरक्षा की जिम्मेदारी लेते हैं.पठान अपनी टीम के साथ आतकंवादियों को पकड़ने की जिम्मेदारी लेता है.कर्नल लूथरा राष्ट्पति व वैज्ञानिकों अलग अलग राह पर भेज देते हैं.जिम्मी वैज्ञानिको के सामने आकर उन्हे अपने कब्जे मंेकर लेता है,पठान पहुॅचता है,पर जिम्मी के हाथों परास्त हो जाता है.उसके हाथ कुछ नही आता.यहीं पर जिम्मी की बातों से खुलासा होता है कि जिम्मी एक पूर्व राॅ अफसर है,जिसे सरकार ने मरने के लिए छोड़ दिया था.भारत सरकार के रिकार्ड मंे राॅ अफसर जिम्मी की मौत हो चुकी है और उसे षौर्य पदक से नवाजा जा चुका है.इसलिए अब जिम्मी भी भारत के खिलाफ है.अब वह पैसे के लिए पाकिस्तानी आईएसआई एजंसंी के जनरल के लिए काम करता है.फिर एक दिन पता चलता है कि लंदन में डांॅ रूबया के एकाउंट से बहुत बड़ी रकम जिम्मी को ट्ांसफर हुई है. पठान जानकारी निकाल कर स्पेन पहुॅचता है?जहां पता चलता है कि उसे जिम्मी ने वहां बुलाने के ेलिए यह खबर राॅ तक भिजवायी थी.डाॅ रूबिया आईएसआई एजेट हैं और जिम्मी के साथ काम कर रही है.पर उसका दिल पठान पर आ जाता है,इसलिए वह जिम्मी के गुंडांे ेसे उसे बचाती है और फिर उसके ेसाथ मिलकर रक्तबीज लेने जाती है.रक्तबीज हाथ में आते ही डाॅ. रूबिया अपनी असलियत पा आ जाती है और पठान को बताती है कि उसने तो जिम्मी के कहने पर उसके ेसाथ यह नाटक किया क्योंकि रक्तबीज उसकी मदद के बिना पाना मुष्किल था.पठान को मौत के मंुहाने पर छोड़ देती है.रक्तबीज की मदद से जिम्मी रूस के एक षहर में बंदी बनाए गए भारतीय वैज्ञानिक से ऐसा वायरस बनवा रहा है जिसे छोड़ देने पर पूरे भारत के लोग ‘स्माल फाॅक्स’ की बीमारी से ग्रसित होकर एक सप्ताह के अंदर मौत के मंुह में समा जाएंगे.अब पठान की लड़ाई देष को बचाने के लिए जिम्मी से है.बीच में टाइगर (सलमान खान) भी पठान की मदद के लिए आ जाते हैं.अंततः  यह लड़ाई कई मोड़ांे से गुजरती है और नंदिनी सहित कई राॅ के अफसर व वैज्ञानिको की मौत के बाद जिम्मी की चाल असफल हो जाती है.पठान को अब नंदिनी की जगह बैठा दिया जाता है.

लेखन व निर्देषनः

फिल्म बहुत तेज गति से दौड़ती है,मगर पटकथा मंे काफी गड़बड़ियंा हैं. कहानी कब वर्तमान मंे और कब अतीत में चल रही है,पता ही नही चलता.पूरी फिल्म एक खास अजेंडे के तहत बनायी गयी है.फिल्म मेंपाकिसतानी एजेट रूबिया भगवा रंग के कपड़े व भगवा रंग की बिकनी पहनती है और अंततः भारत के पक्ष में कदम उठाती हैं.फिल्म में ंअफगानिस्तान को दोस्त बताया गया है.यानीकि ‘अखंड ’भारत का सपना साकार होने वाला है,षायद ऐसा फिल्मकार मानते हैं. फिल्म अजेंडे के तहत बनायी गयी है,इसका अहसास इस बात से होता है कि भारत को बर्बाद करने की जिम्मेदारी एक भारतीय राॅ एजंसी के एजेंट जिम्मी ने उठाया है.जिम्मी कहता है कि- ‘भारत माता’ ने उसे क्या दिया.भारत माता ने उसकी मां को मरवा दिया.उसके पिता को बम से उड़वा दिया.वगैरह वगैरह..इन संवादांे से जिसे जो अर्थ लगाने हो लगाए.पर देष के राजनीतिक घटनाक्रमों व घटनाओं को इन संवादांे सेे जोड़कर देखे,तो कुछ बातें साफ तौर पर समझ में आ सकती हैं कि फिल्मकार कहना क्या चाहता है? पर क्या इस तरह के संवाद व इस तरह के किरदार को फिल्म में प्रधानता देकर हमारी अपनी ‘राॅ’ के  कार्यरत लोगों का उत्साह खत्म नही कर रहे हैं? अब तक हमेषा यह होता रहा है कि जब भी फिल्मकार किसी अजेंडे के तहत फिल्म बनाता है तो फिल्म की कहानी व उसकी अंतर आत्मा गायब हो जाती है. इसलिए फिल्म देखना दुष्कर हो जाता है.फिल्म में एक्यान दृष्य बहुत अच्छे ढंग से फिल्माए गए हैं. एक्षन के षौकीन इंज्वाॅय कर सकते हैं.फिल्म में कुछ खूबसूरत लोकेषन हैं.तो वहीं कई दृष्य देखकर फिल्मकार व लेखक की सोच पर तरस आता है.मसलन-विमान के ऐसी डक के अंदर ‘वायरस’ रक्तबीज है.राॅ अफसर विमान के पायलट को उसके नाम से फोन कर कहते है कि वह देखे.पायलट एसी डक मंे वायरस रक्तबीज के होने की पुष्टि करता है.पर पायलट के चेहरे पर या विमान यात्रियों के चेहरे पर कोई भय नजर नही आता.फिर कर्नल लूथरा आदेष देते हैं कि विमान को दिल्ली षहर से बाहर ले जाओ और पूरे विमान को गिरा दो.जबकि ‘एटीसी’ कंट्ोलर ही विमान के पायलट से फ्लाइट का नाम लेकर बात करता है.राॅ अफसर कर्नल लूथरा मिसाइल से विमान को गिराने का आदेष देते है,मिसाइल छूटने के बाद उसका रास्ता भी मुड़वा देेते हैं.यानीकि बेवकूफी की घटनाए भरी पड़ी हैं.फिल्म के अंत में प्रमोषन गाने के ेबाद पठान(षाहरुख खान  )और टाइगर (सलमान खान)एक साथ रूस में उसी टूटे हुए पुल पर नजर आते हैं, और कहते है कि अब हमने बहुत कर लिया.अब दूसरो को करने देते हैंफिर किसे दे,यह काम का नहीख्,यह बेकार है.अंत में कहते है कि हमें ही यह सब करना पड़ेगा,हम बच्चों के हाथ में नही सौंप सकते.अब इस दृष्य की जरुरत व मायने हर दर्षक अपने अपने हिसाब से निकालेगा..फिर विरोध होना स्वाभाविक है.रूस में बर्फ के उपर के एक्षन दृष्य अतिबचकाने व मोबाइल गेम की तरह नजर आते हैं.

संवाद लेखक अब्बास टायरवाला के कुछ संवाद अति सतही हैं.

कैमरामैन बेजामिन जस्पेर ने बेहतरीन काम किया है.पर संगीतकार विषाल षेखर निराष करते हैं.

अभिनयः

पठान के किरदार में षाहरुख खान नही जमे.एक्षन दृष्यों में बहुत षिथिल नजर आते हैं.उनके ेचेहरे पर भी उम्र झलकती है.जिम्मी

के किरदार में जौन अब्राहम को माफ किया जा सकता है क्योंकि वह पहले ही कह चुके हैं कि उनके किरदार के साथ और उनके साथ न्याय नही हुआ.पाकिस्तानी एजेंट रूबैया के किरदार में दीपिका पादुकोण के हिस्से कुछ एक्षन दृष्यों के अलावा सिर्फ जिस्म की नुमाइष करना व खूबसूरत लगने के अलावा कुछ आया ही नही.खूफिया एजेंट होते हुए जब आप किसी को फंसा रही है,तो उस वक्त जो चेहरे पर कुटिल भाव होने चाहिए,वह दीपिका के चेहरे पर नही आते.डिंपल कापड़िया,प्रकाष बेलावड़े व आषुतोष राणा की प्रतिभा को जाया किया गया है.

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