सेना में मौत औरतों के लिए आफत 

भारतचीन सीमा पर अभी तक गोलियों से सैनिक मारे नहीं जा रहे हालांकि तैयारी दोनों तरफ से पूरी है. 45 साल बाद पहली बार चीनी सैनिकों ने गोलियां चलाईं पर हवा में क्योंकि युद्ध पूरी तरह भड़क न जाए इस की कोशिश दोनों तरफ से हो रही है. चीन भारत को सबक सिखाने के लिए उतनी ही धमकी देना चाहता है जितनी जरूरत है, वह लंबी जानलेवा लड़ाई में उलझना नहीं चाहता, क्योंकि उस से कुछ नहीं मिलेगा.

भारतचीन सीमा का विवाद हमारी विदेश नीति की पूरी तरह धरासाई होने का नतीजा है. 1962 के बाद भारत और चीन में लंबी सीमा पर तनाव के बावजूद शांति बनी रही है, क्योंकि चीन इस आग को सुलगाए रखना चाहता है कि कभी तिब्बती राजाओं के अधीन रहे इलाके आज बीजिंग सरकार के हैं और अंगरेजों की खींची लाइनें बेमतलब की हैं पर वह उस जमीन को लेने के लिए बेचैन नहीं है, जिस पर उस का केवल सांस्कृतिक दावा है. पहाड़ों के ये इलाके मैदानी भारतीय राजाओं के लिए कभी भी मतलब के नहीं थे.

भारतचीन युद्ध यदि हुआ तो यह बहुत जानलेवा होगा. दोनों देशों ने भारी सेना सीमा पर जमा कर रखी है. हर तरफ तोपों, मिसाइलों, टैंकों को ले जाया गया है. सैकड़ों हवाईजहाज मौजूद हैं. अगर यहां युद्ध होता है तो दोनों तरफ की सैकड़ों औरतें विधवा होंगी यह पक्का है. इस युद्ध में जब बिना गोली चलाए ही सैनिकों की लाशें आ रही हैं तो युद्ध होने पर न जाने कितनी लाशें आएंगी?

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युद्धों की महिमा गाई जाती है. सरकारें अपनी जनता को जम कर उकसाती हैं. जनता खून की प्यासी हो जाती है पर जिन्होंने वास्तव में खून बहाया होता है उन्हें 2-4 दिन शहीद का नाम दे कर भुला दिया जाता है. यह भारत में ज्यादा होता है पर दूसरे देशों में भी होता है. युद्ध घायलों के लिए तो और आफत होते हैं. उन के घर वालों को जीवनभर इस युद्ध की विभीषिका सहनी पड़ती है जो उन्होंने देश के लिए लड़ा और देश उन्हें शुरुआत में पैसा दे कर भूलभाल जाता है.

भारत में जो सैनिक गांवों से आते हैं वहां तो और बुरी हालत होती है. विधवा को मिलने वाला पैसा पति के भाईबहन ही नहीं खुद के भाईबहन भी हड़प जाते हैं. यदि विधवा के बच्चे बड़े व समझदार न हों तो विधवा की खूब कफन की लूट मचती है. सेना की नौकरी अच्छी मानी जाती है पर सेना में मौत औरतों के लिए एक आफत होती है खासतौर पर भारत जैसे कट्टर समाज में जहां आज भी विधवा को पति की मौत का दोषी माना जाता है.

भारतचीन दोस्ती दोनों के लिए एक नियामत थी. भारत ने भरभर कर कच्चा माल निर्यात किया था और भरभर कर घर की जरूरत का सामान मंगाया था. युद्ध ने भारतीयों को सस्ते नएनवेले सामान से दूर कर दिया है. टिकटौक जैसे एप ने भारत की लड़कियों को टेलैंट दिखाने का मौका दिया था. उन्हें अपने खोल से निकलने का अवसर मिला था. उन की आजादी पर लगे कांटेदार तारों को काटने का अवसर मिला था, अब फिर फिसल गया है. भारतीय टिकटौक जब भी बनेगा, वह खुद के भी सैंसर का शिकार रहेगा और सरकारी सैंसर का भी. चीन से झड़पें दोनों देशों को महंगी पड़ेंगी, यह पक्का है.

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