अहंकार से टूटते परिवार

पुरानी मान्यताओं के हिसाब से बेटी की शादी करने के बाद मातापिता उस की जिम्मेदारियों से पल्ला झड़ लेते थे. लड़की की मां चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती थी. लड़के की मां को ही पतिपत्नी के बीच तनाव का कारण माना जाता था. मगर आधुनिक युग में बेटी के प्रति मातापिता की सोच बहुत बदली है. ज्यादातर घरों में पति से ज्यादा पत्नी का वर्चस्व नजर आने लगा है. इसलिए बेटी की ससुराल में होने वाली हर छोटीबड़ी बात में उस की मां का हस्तक्षेप बढ़ने लगा है.

आजकल की बेटियों का तो कुछ पूछो ही नहीं. अपने घर की हर बात अपनी मां को फोन से बताती रहती हैं. छोटेछोटे झगड़े या मनमुटाव जो कुछ देर बाद अपनेआप ही सुलझ जाता है उसे भी वे मां को बताती हैं. मांपिता को पता लग जाने मात्र से बखेड़ा शुरू हो जाता है.

बहू के घर वाले खासकर उस की मां उसे समझने के बदले उस की ससुरालवालों से जवाब तलब करने लगती है, जिसे लड़के के घर वाले अपने सम्मान का प्रश्न बना लेते हैं और अपने लड़के को सारी बातें बता कर उसे बीच में बोलने के लिए दबाव बढ़ाने लगते हैं.

पति को अपने मातापिता से जब अपनी ससुराल वालों के दखलंदाजी की बातें मालूम होती हैं, तो वह इसे अपने मातापिता का अपमान समझ कर गुस्से में आ कर पत्नी से झगड़ पड़ता है. उधर पत्नी भी अपने मातापिता के कहने पर उन के सम्मान के लिए भिड़ जाती है. मातापिता के विवादों की राजनीति में पतिपत्नी के बीच बिना बात झगड़ा और तनाव बढ़ता है.

छोटीछोटी बातों का बतंगड़

हर मातापिता जब अपने बच्चों की शादी करते हैं तो उन की खुशहाली ही चाहते हैं. फिर भी अपनी अदूरदर्शिता के कारण अपने ही बच्चों की जिंदगी बरबाद कर देते हैं. आजकल बेटी की मां को लगता है कि वह बराबर कमा रही है तो किसी की कोई बात क्यों सुने? यह बात भी सही है, गलत बात का विरोध करना चाहिए, अत्याचार नहीं सहना चाहिए, पर अत्याचार या कोई गलत व्यवहार हो तब न.

अकसर छोटीछोटी बातों का ही बतंगड़ खड़ा होता है. जरूरी नहीं है कि हर बात के लिए उद्दंडता से ही बात की जाए. अगर कोई बात पसंद नहीं आती हो तो बड़ों का अपमान करने के बदले शांति से समझ कर भी बातें की जा सकती हैं. बातबात पर उलझ कर यह बताना कि हम बराबर कमाते हैं, इसलिए हम किसी से कम नहीं, मेरी ही सारी बातें सही हैं जैसी बातें करना गलत है.

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लड़कियों में इस तरह की बढ़ती स्वेच्छाचारिता उन की स्वत्रतंता को नहीं दर्शाती है, बल्कि उन की उद्दंडता को ही दर्शाती है. किसी भी चीज का विरोध शांतिपूर्ण ढंग से भी समझ कर किया जा सकता है. लड़की को भी समझना चाहिए कि यह उस का घर है और घर की भी अपनी एक मर्यादा होती है.

बेवजह की बातें

मेरे पड़ोस में रिटायर बैंक कर्मचारी रहते हैं. उन का बेटा एक सरकारी औफिस में ऊंचे पद पर कार्यरत है. उन की बहू भी बेटे के औफिस में नौकरी करती है. हाल ही में उन्हें पोता हुआ, तो उन्होंने कोरोना को देखते हुए कुछ अती करीबी लोगों को ही बुलाया.

लड़के की बूआ बहू को बच्चे की बधाइयां देते हुए बोली, ‘‘समय से पहले ही बच्चे का बर्थ हो जाने से बच्चा बहुत कमजोर है. लगता है बहू कोल्डड्रिंक और फास्टफूड ज्यादा खाती थी तभी बच्चे का जन्म समय से पहले हो गया.’’

तुरंत लड़के की मां ने विरोध किया, ‘‘नहीं… ऐसी कोई बात नहीं है दीदी… बस हो जाता है कभीकभी.’’

पास में बैठी बहू की बहन ने सुन लिया. तुरंत रिएक्ट करते हुए बोली, ‘‘अच्छी बात है जिस के मन में जो आता है वही बोल जाता है. दीदी तुम ने विरोध क्यों नहीं किया, यों ही कब तक घुटघुट कर जीती रहोगी.’’

संयोग से तब तक बूआजी बगल वाले कमरे में चली गई थीं.

तुरंत बहू की मां ने रिएक्ट किया, ‘‘जिसे पूछना है मुझ से पूछे, दामादजी से पूछे, यों मेरी बेटी को जलील करने का उन्हें कोई हक नहीं है. वह कोई गंवार लड़की नहीं है, दामादजी के बराबर कमाती है.’’

लड़के की मां दौड़ी आईं, ‘‘कुछ मत बोलिए, वह घर की सब से बड़ी है. जो भी कहना हो बाद में मुझ से कह लीजिएगा.’’

तुरंत बहू बोली, ‘‘मेरी मां ने ऐसा क्या गलत कह दिया जो आप लोग उसे चुप कराने लगे?’’

फिर से बहन बीच में पड़ी, ‘‘इस सब में सब से ज्यादा गलती तो जीजाजी की है. वे अपनी बूआ से क्यों नहीं पूछते हैं कि वह इस तरह का ऊटपटांग बातें क्यों करती है.’’

तुरंत लड़़के की मां बोली, ‘‘मेरे बेटे के बाप की तो हिम्मत ही नहीं है कि अपनी बहन से सवाल पूछे. फिर मेरा बेटा क्या पूछेगा? अपने घर में हम अपने से बड़ों से उद्दंडता से बातें नहीं करते.’’

छोटी सी बात थी मगर

एक 80 साल के बुजुर्ग की बातों को ले कर दोनों परिवारों में कितने दिनों तक ठनी रही. लड़की के मातापिता अपनी बेटी को कहते कि उस की ससुराल में उन का अपमान हुआ है. वे लड़के वाले हैं तो क्या हुआ, मेरी बेटी उन के घर में इस तरह की उलटासीधी बात क्यों सुनेगी. लड़के की बूआ माफी मांगे वरना हम लोग लीगल ऐक्शन भी ले सकते हैं.’’

जब बहू ने ये सब बातें अपनी ससुराल में बोलीं तो लड़के के मातापिता बिगड़ गए, लड़के की मां बोली, ‘‘अच्छी जबरदस्ती है. मेरे घर की हर बात में टांग अड़ाते हैं, उलटे हमें धमकियां भी देते हैं. जो करना है करें, इतनी सी बात के लिए कोई माफी नहीं मांगेगा. इतना गुमान है तो रखें अपनी बेटी को अपने घर.’’

यह छोटी सी बात इतनी बढ़ी कि लड़की की मां अपनी बेटी को अपने घर ले गईं. न चाहते हुए भी पतिपत्नी, एकदूसरे से अलग हो गए. अपनेअपने मातापिता की प्रतिष्ठा बचातेबचाते बात तलाक तक पहुंच गई. बड़ी मुश्किल से लड़के के दोस्तों ने बीच में पड़ कर बात को संभाला.

गलत सलाह कभी नहीं

वंदना श्रीवास्तव एक काउंसलर है के अनुसार मातापिता के बेटी की ससुराल में छोटीछोटी बातों में दखल देने और लड़के के मातापिता के अविवेकी गुस्से और नासमझ भरी जिद्द से आज परिवार तेजी से टूट रहे हैं. वंदनाजी के अनुसार, उन के पास ज्यादातर ऐसे ही मामले आते हैं, जिन में मां की गलत सलाह के कारण बेटियों के घर टूटने के कगार पर होते हैं.

मेरे पड़ोस में एक सिन्हा साहब रहते हैं. उन्होंने अपनी इकलौती संतान अपने बेटे की शादी बड़ी धूमधाम से की. बहू को बेटी का मान देते थे. बहू भी बहुत खुश रहती थी और आशाअनुरूप सब से काफी अच्छा व्यवहार करती थी.

1 महीने बाद बेटा बहू के साथ दिल्ली लौट गया. वह वहीं जौब करता था. बहू भी वहीं जौब करती थी. जब बहू गर्भवती हुई बेटा मां को अपने पास बुला लाया, पर यह बात बहू की मां को पसंद नहीं आई. पहले वह समधन को यह कर घर लौटने की सलाह देती रही कि अभी से रह कर क्या कीजिएगा, समय आने पर देखा जाएगा. जब वह नहीं लौटी तो वह बेटी को समझने लगी कि जरूर तुम्हारी सास के मन में कुछ है, उन के हाथों का कुछ भी मत खानापीना.

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जैसे ही लड़के की मां की समझ में यह बात आई, वह वहां से जाने को तैयार हो गई, लेकिन बेटे के काफी अनुरोध करने पर उस की मां को वहां रुकना ही पड़ा. जब बच्चे का जन्म हुआ बहू की मां भी आ गई. फिर तो वह बच्चे को दादीदादा को छूने ही नहीं देती थी. बहू का व्यवहार अपनी मां को देख बदलने लगा. सीधीसादी सास उसे कमअक्ल नजर आने लगी. अपनी मां का साथ देते हुए सास से बुरा व्यवहार करने लगी. फिर अपनी मां के साथ अचानक मायके चली गई.

सासूमां और ससुरजी पटना लौट आए. तब से वे लोग बेटे के घर नहीं जाते हैं. बेटा खुद अपने मातापिता से मिलने आता है. रोज फोन भी करता है. बहू को ये सब पसंद नहीं है इसलिए घर में हमेशा तनाव बना रहता है. बहू के मां के कारण एक खुशहाल परिवार तनाव में जीता है.

अगर अपनी बेटी को सुखी रखना है तो खासकर लड़की की मां को बेटी का रिश्ता ससुराल में मजबूत बनाने में मदद करने के लिए उसे अच्छी सलाह देनी चहिए ताकि अपने अच्छे आचारविचार से वह सब का दिल जीत कर सब का प्यार और सम्मान पा सके. मां की जीत तभी है जब बेटी की ससुराल वाले उस पर नाज करें. तभी उस की बेटी खुद भी शांति से रहेगी और दूसरे को भी शांति से रहने देगी.

वहीं लड़के के मातापिता को बहू के मायके वालों की बातों को अपने सम्मान का विषय न बना कर इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों का घर छोटीछोटी बातों से न टूटे वरना मातापिता के अहं की लड़ाई में बिना कारण बच्चों के घर टूटते रहेंगे.

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#lockdown: अपने अंदर के ईगो को ना कहे! 

लॉक डाउन में पूरा वसुधा घर में कैद है ,इस समय आपका घर तू तू मैं मैं का अखाडा न बने इसके लिए पति और पत्नी दोनों को सझना होगा. घर में कलह आने से पहले ही रोकना होगा . जीवन एक यात्रा है और इस यात्रा के दो पहिये है पति पत्नी, दोनों को मिल कर रहना ईगो  आवश्यक है .पति -पत्नी के रिश्ते में भी शिष्टाचार जरूरी है. जीवन में इस शिष्टाचार का ईगो  योगदान है , तो आइए जानते हैं इसका इस रिश्ते के सात ईगो  पहलू के बारे में जिनका जीवन में महत्व है .

1. आपसी सम्मान की भावना विकसित करे

 घर में दोनों का महत्व सामान्य है तो दोनों का एक दूसरे के प्रति सम्मान की भावना ही बराबर होनी चाहिए. इस लॉक डाउन में यह बात आपको तय कर सुधार लेना ही होगा कि अगर आपके घर में कोई मेहमान आया है तो उसके सामने एक-दूसरे पर कटाक्ष ना करे.  ना ही एक -दूसरे का या एक-दूसरे के परिवार का मजाक उड़ाए . इसके बदले आप अपने व्यवहार में सहजता लाएं. आपसी सम्मान दें और छींटाकशी करने से बचे.

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2. समय की कोई पाबंदी नहीं एक-दूसरे को बेहतर समझ

यह लॉक डाउन का समय परिवार के लिए अनमोल समय है. जो समय का रोना रोकर परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे, उसके लिए समय ही समय है. तो इस समय का उपयोग परिवार में उत्पन आपसी विवादों को आपसी समझौतों को दूर करने का है,किसी भी समस्या का हल है आपसी बातचीत किया जा सकता है . इसके लिए व्यस्त जीवनशैली से थोड़ा सा समय साथी के लिए निकालें और उसके साथ क्वालिटी टाइम बताएं. इस तरह से आपके रिश्तो की डोर मजबूत होगी. यह वह समय होता है जब आप एक-दूसरे को बेहतर समझ सकते हैं.

3. सन्देश, पार्सल या गिफ्ट चैक करने से बचे

एक दूसरे के किसी भी प्रकार के सन्देश को चैक ना करें. बेवजह एक-दूसरे के मोबाईल में आने वाले मैसेज या ई- मेल्स चैक करने से बचे . अगर आपके साथी के नाम पर कोई  पत्र, कोरियर पार्सल या गिफ्ट भी आता है तो उसे खुद ना खोलें . जिसके नाम सन्देश, पार्सल या गिफ्ट हो उस से ही बोले वह खोले और देखे . उस में अपनी रूचि ना दिखाए. ऐसे करने से आप अपने साथी के लिए खुद ही एक सकारात्मक सोच विकसित करने में मदद करेंगे .

4. आपसी अहंकार को ख़त्म करे

लॉक डाउन से पहले हर कोई अपने जीवन में इतना उलझा हुआ था कि किसी के पास समय नहीं था, अब समय ही समय है ,तो आपसी अंहकार को भूला कर खुद को दूसरों से श्रेष्ठ साबित करें. पति-पत्नी में से कोई भी एक-दूसरे की भावनाओं को समझने की कोशिश नहीं करता. ऐसे में एक-दूसरे की बात पर ध्यान दीजिए वरना यह अशिष्टता मानी जाएगीअहंकार को न पनपने दें. समझें कि आपका पार्टनर आपके जितना ही बुद्धिमान व जिम्मेदार है.

5. आपसी रिश्ते को सम्मान करें

परिवार में पति पत्नी का रिश्ता अनमोल होता है चाहे कोई सा भी हो, आपसी सम्मान बहुत जरूरी है. एक-दूसरे की इज्जत करें. संभव हो सके तो सॉरी, थैंक्यू या प्लीज जैसे मैजिक शब्दों का इस्तेमाल करें. यदि किसी बात पर गुस्सा आ रहा है तो शांत होने पर ही बात करें वरना अनावश्यक बहस बढ़ेगी.

6. खास समय के समय गैजेट से दूरी बनाये रखे

लॉक डाउन में जीवन में गैजेट का भी प्रभाव तेजी से बढ़ा है. इस बात का बेहत ध्यान देना है कि जब भी पति – पत्नी दोनों एक-दूसरे के साथ खास समय (क्वालिटी टाइम) बिता रहे हों, इस समय मोबाइल या किसी भी अन्य गैजट से दूरी बनाकर रखें.

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7 . पर्सनल स्पेस की ज़रूरत को समझे

लॉक डाउन में आप घर में इसका मतलब यह नहीं है कि आपके पति या पत्नी का कोई पर्सनल स्पेस की ज़रूरत नहीं है . हर किसी को अपने लिए पर्सनल स्पेस की ज़रूरत होती है. यह बात आपको समझनी चाहिए. हर वक्त और हर चीज में दखल देना आपको आपके पार्टनर के नजदीक लाने के बजाय आपके बीच दूरी बढ़ने का कारण हो सकता है. इसलिए एक-दूसरे के पर्सनल स्पेस का विशेष ख्याल रखे.

शादी: दो दिलों का खेल या दो दिलों का बंधन?

शादी के पहले हम हज़ारों सपने देखते हैं कि हम अपनी शादी में यह करेंगे वह करेंगे, सारी रस्मे निभाएंगे. हम बहुत खुश होते हैं. लेकिन क्या होता है शादी के बाद? हमारे अंदर ईगो आ जाता है क्यों?

क्या ईगो हमारे प्यार से ज्यादा जरूरी है हमारे आत्म सम्मान से ज्यादा जरूरी है?

अहंवाद में आकर शादी के जोड़े अपनी शादी को बर्बाद कर देते हैं. आत्म सम्मान और अहंकार के बीच एक ऐसी रेखा है जिसकी दूर दूर तक कोई समानता नहीं है.

कुछ लोग तो आत्म सम्मान और अहंकार में फर्क ही नहीं समझते . दोनों के बीच कोई समानता नहीं है यह दोनों एक दूसरे से बिल्कुल अलग है. आत्मसम्मान का मतलब खुद का सम्मान करना और ईगो का मतलब दूसरों का अनादर करना .

अहंवाद एक ऐसी समस्या है जिससे ना जाने कितने रिश्ते टूटते और बिखरते हैं.

इस अहंकार की वजह से ही रिश्तों की खनक नहीं गूंजती. अपने हो पार्टनर के सामने किसी और की तारीफ करना ये डिवोर्स का बड़ा कारण हैं.

अपनी सीमा को मत लांघे , क्यूंकि एक सीमा से कोई भी चीज उपयुक्त नहीं है.

कैसे इगो को खत्म करें :

अगर आपको अपने पार्टनर की कोई चीज अच्छी लगती है तो उसकी तारीफ करने से कभी नहीं हिचकिचाएं. ऐसा करने से आपके बीच में प्यार बढ़ेगा और दूरियां कम होंगी.

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हम सब जानते हैं कि दो पार्टनर एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं लेकिन कहने से हिचकिचाते हैं. ये हिचक आपके लिए अनावश्यक समस्याओं को जन्म दे सकती है.

बोलना बहुत जरूरी है.

अपने पार्टनर को कभी भी किसी के लिए ignore मत करें और किसी बाहर वाले के सामने सिर्फ अपनी तारीफ मत करो अपने पार्टनर की तारीफ भी करें. अगर ऐसा नहीं है तो यही तलाक का बहुत बड़ा कारण बन सकता है.

तारीफ करें

अपने आपको अपने पार्टनर के सामने सबसे अच्छा बताना तो यह करने की वजह है अगर आप उससे यह कहे कि तुम मेरी जिंदगी के सबसे लकी पर्सन हो तो यह आपके रिश्ते के लिए अच्छा होगा.

क्योंकि अहम इंसान का ना सिर्फ ईगो बनाता है बल्कि उसे दलदल में धकेल देता है जिससे हमारा रिश्ता टूटने में मिनट भी नहीं लगता.

एक दूसरे  को समझें

एक दूसरे की भावनाओं को समझें एक दूसरे की गलतियां एनालाइज करें और आपस में सुलझा लें. अगर किसी एक को कोई समस्या है तो वह अपने पार्टनर से शेयर करें खुद में मत उलझे रहे वरना वह समस्या और बढ़ जाएगी और आपके अलगाव की दूरियां और कम हो जाएंगी.

अगर आपके पास कोई फाइनेंशियल प्रॉब्लम आ भी जा जाए तो एक दूसरे पर चिल्लाने की बजाए एक दूसरे का साथ दें, उसका हल निकाले. क्योंकि अक्सर इंसान जब परेशान होता है तो वह अपने आप पर नियंत्रण नहीं रख पाता है और चिल्लाने में कोई कसर नहीं छोड़ता है. लेकिन यह हमारे रिश्ते पर भारी पड़ सकता है और हमारा रिश्ता टूट कर बिखर जाता है.

थोड़ा सा टाइम निकालें

कभी-कभी क्या होता है कि हमारे पार्टनर के पास टाइम नहीं होता है तो वही हमें बहुत तकलीफ देता है तो इस समस्या का भी हल निकले अगर अपने रिश्ते को बचाना चाहते हैं तो.

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अगर आप अपने काम में बिजी हैं तो थोड़ा सा टाइम निकालें ताकि अपने पार्टनर के साथ बैठकर कुछ बातें कर सके कुछ प्यार के पल बिता सकें इससे आपके पार्टनर को अच्छा फील होगा. अपने पार्टनर के साथ बैठे कुछ प्यार भरी बातें करें एक दूसरे को समझे. इससे आपके अंदर ही हो कब होगा और आपके बीच की दूरियां भी कम होंगी.

अगर आपका पार्टनर कोई नया काम करने जा रहा है तो उसे सराहें. उस को प्रोत्साहित करें. कभी भी हतोत्साहित मत करें . इससे आपका प्यार और बढ़ेगा आपके रिश्ते में चार चांद लगेंगे और उसका काम करने में ही मन लगेगा. क्योंकि क्या होता है ना कि जब हम को नया काम करने जाते हैं तो हमें अंदर से डर रहता है तो कुछ देर अपने पार्टनर के पास बैठे और इस बारे में सलाह करें.

मेल ईगो को कहे बाय -बाय

एक बार बंगलुरु में जब सेलेब्रिटी क्रिकेट मैच चल रहा था, तो कुछ प्लेयर्स ने अभिनेता रितेश देश्मुख को जेनिलिया का पति कहकर संबोधन किया, इससे रितेश थोड़े झेंप गए और तुरंत जवाब दिया कि यहाँ वे जेनेलिया के पति के रूप में जाने जा रहे है, जबकि महाराष्ट्र में अभिनेत्री जेनेलिया उनकी पत्नी के रूप में जानी जाती है. इस पर उस व्यक्ति ने महाराष्ट्र के अलावा ऐसे कई राज्य गिनवाएं, जहां वे जेनेलिया के पति के रूप में ही जाने जाते है, जो रितेश को अच्छा नहीं लगा. ये सही है कि जेनेलिया और रितेश के बीच कभी कोई समस्या या झगड़े की बात सुनने में नहीं आया. वे दोनों अपनी शादीशुदा जिंदगी से बहुत खुश है. कई बार रितेश अपनी जिंदगी की सबसे अच्छी सिलेक्शन जेनिलिया को बता चुके है, जिसने उन्हें जिंदगी की हर ख़ुशी दी है. इस जोड़े को कई शादीशुदा जोड़े आदर्श भी मानते है,ऐसे में उन्हें जेनेलिया का पति कहना क्यों ख़राब लगा? क्या उनका मेल ईगो हर्ट हुआ? ऐसे कई प्रश्न सोचने पर मजबूर करते है, क्योंकि इस मेल इगो की वजह से सालों से न जाने कितने रिश्तों में दरार पड़ी होगी. कितने घर टूट गए होंगे.  

असल में समाज पुरुषसत्तात्मक है, ऐसे में मेल ईगो किसी न किसी रूप में दिखाई पड़ता है, क्योंकि  पहचान (रेकॉगनिशन), आदर-सत्कार (अटेंशन) और कर्म (एक्शन), ये सब इससे ही निकलकर आता है. पुरुषों को महिलाओं की तुलना में अधिक एक्टिव और बलशाली माना जाता है. इसलिए सैनिक, नेता, वैज्ञानिक आदि अधिकतर पुरुष ही होते रहे है, लेकिन आज के परिवेश ने इसे उलटकर रख दिया है. महिलाये आज हर क्षेत्र में पुरुषों से आगे है. जो पुरुषों को कई बार पसंद नहीं होता. इससे अलग भी कई उदाहरण है, जिसमें इंजीनियरिंग की पढ़ाई छोड़कर लेखक बने चेतन भगत ने एक इंटरव्यू में कहा कि उनको हाउस हसबैंड कहा जाना कतई बुरा नहीं लगता, क्योंकि पत्नी के ऑफिस चले जाने के बाद वे आराम से खाना बना लेते है और फिर राइटिंग में लग जाते है. बच्चे स्कूल से आने के बाद वे उनकी देखभाल भी करते है. लिखना उनके जीवन में शामिल हो चुका है और इस स्थिति को वे एन्जॉय करते है. 

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इस बारे में काउंसलर राशिदा कपाडिया का कहना है कि पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से आज भी महिलाओं का आगे बढ़ना पुरुषों को सहन नहीं होता. वे खुद को असुरक्षित महसूस करते है, इसलिए पुरुष कई बार महिलाओं से अभद्र व्यवहार करते है, उन्हें आगे बढ़ने से रोकते है. मैंने कई बार देखा है कि अगर कोई महिला तरक्की करती है, तो कुछ पुरुष उसे संदिग्ध निगाह से देखते है. अगर पुरुष ऐसा न भी करें ,तो आसपास के लोग उन्हें एहसास करवाते रहते है. पुरुष किसी से प्यार करे, तो कोई समस्या नहीं, लेकिन महिला करे, तो उसे बदनाम किया जाता है. गाँवों में तो उन्हें मार तक दिया जाता है. 

समाज में ऐसी मानसिकता पुरुष प्रधान समाज होने की वजह से ही परंपरा के तौर पर चली आ रही है. लडको को ये मानसिकता बचपन से ही होती है कि वे सुपीरियर है, परिवार को  प्रोटेक्ट करने वाले और कमाने वाले भी वे है. अगर वे कुछ गलती भी करते है, उन्हे कुछ अधिक कहा नहीं जाता, जबकि लड़कियोँ पर कोई जिम्मेदारी शुरू से ही नहीं डाली जाती. उन्हें बार-बार कहा जाता है कि वे पराई धन है शादी कर ससुराल चली जाएगी. ये चीजे लड़के छोटी अवस्था से देखते है और उनके अंदर ईगो पनपने लगता है. घर का काम भी लड़कियों को ही करने के लिए कहा जाता है, लड़कों को नहीं. यही वजह है कि अगर कोई लड़की सफल होती है तो उसे रोकने की कोशिश लड़के करते है, जिसे आज कोई लड़की सहन नहीं करती, जिससे रिश्ते और रिलेशनशिप टूटते है. आज के परिवेश में कुछ बाते पुरुषों को ध्यान में रखने की जरुरत है, ताकि मेल ईगो उनके रिश्ते में दरार न पैदा करें,

  • आपकी पत्नी आपकी कॉम्पिटीटर नहीं, वह आपकी साथी है, उसकी सफलता से आपको ख़ुशी मिलनी चाहिए,
  • उसकी सफलता आपको नीचा दिखाना नहीं, बल्कि उसकी कैरियर को आगे बढ़ाने से होता है,
  • अगर कभी अनबन भी हो जाय, तो अपने इमोशन को काबू में रखें, ताकि रिश्तों में दरार न आयें और बच्चों पर इसका असर न पड़े,
  • किसी भी कहासुनी में कैरियर को बीच में न लायें, बच्चों के लालन-पालन में माता-पिता की बराबर की जिम्मेदारी होती है, इसका ख्याल रखें,
  • आपस में ब्लेम गेम न करें, एक दूसरे को सम्मान दें और बेटे को भी महिलाओं का सम्मान करना बचपन से ही सिखाएं.

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कही ईगो न बन जाए आपके रिश्ते के टूटने का कारण

“राजेश क्या तुम अपने पहने कपड़ों को सही जगह नहीं रख सकते? लांड्री बैग है, फिर क्यों सब बिखरा पड़ा है? मैं और कितना करूँगी”!

राजेश  कहता है, “अजीब बात है, मैं ऑफिस से थका हुआ घर आया हूँ, तो एक कप चाय पूछने के बजाए तुम कपड़ों को लेकर झगड़ रही हो! माँ सही कहती थी, तुम कभी मेरी सही पत्नी नहीं बन सकती!”

ऐसे छोटे छोटे झगड़ों से ही रिश्ते में तनाव आता है. गौर करें ‘सही’ शब्द पर. आखिर ‘सही’ की परिभाषा क्या है? ये समझ ना पाने की वजह से ही रिश्ते टूटते हैं. इंसान क्यों शादी जैसे पाक रिश्ते को तोड़ना चाहता है, और कैसे हम इसे बचा सकते हैं?

1. क्रोध बुरा है

अपने गुस्से को खुद पर हावी न होने दें. मतभेद होंगे, झगड़ा होगा, एक दूसरे पर कभी कभी गुस्सा भी आएगा, पर अपने गुस्से से अपने प्यार को मिटने न दें.

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2. बात करना ज़रूरी है

अगर आप बात नहीं करेंगे, तो एक दूसरे के नज़रिये को समझ नहीं पाएंगे, और इससे, गलतफहमियां बढ़ सकती है. इसलिए, समस्या जो भी है, गुस्सा है, मलाल है, तो बता दीजिये. बैठ कर उस पर विचार करें, तो मन हल्का हो जाएगा, और मुश्किलें आसान हो जाएँगी.

3. सुनने और समझने की कोशिश करें

नमन वैसे तो शांत इंसान था, लेकिन हर दिन घरवालों की शिकायत से वह तंग आ गया था. वह अपने घरवालों को जानता था, उनसे जुड़ी समस्या को भी समझता था, पर सपना की बात को सुनना नहीं चाहता था. समस्या से मुंह फेरना, समस्या का हल नहीं है. सपना गलत नहीं थी. वह घर में नई थी, और उसे कई नई परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा था, और ऐसे में वह नमन को छोड़ किसे बताती? इसलिए अपने साथी की बात को सुने, उनका सहारा बने. उनसे बहस करना ज़रूरी नहीं है, समझाया बाद में भी जा सकता है.

4. खुद को उनकी जगह रख कर सोचें

ये पति पत्नी दोनों पर लागू होता है, कि बहस के वक़्त, वे खुद को एक दूसरे की जगह रख कर सोचें. अगर सपना ऐसा करती तो वह समझ पाती कि घरवालों की निंदा हमेशा नमन को सुनना पसंद नहीं होगा.

5. अपने साथी पर का दबाव न डालें

हम अकसर अपने साथी को सर्वोत्तम समझने लगते हैं, और चाहते हैं, की वह हमारी तरह सोचें और करें, पर सब अलग व्यक्ति है, मत अलग है, तो ये आशा न करें कि आपका साथी आपकी तरह सोचेगा.

6. साथी बने, अभिभावक नहीं

पत्नियां सोचती हैं, कि वे अपने पति को बदल देंगी, पर इसकी ज़रूरत क्या है? मोबाइल चेक करना, हर बात पर टोकना, घर से बाहर जाते वक़्त रोकना, ये हरकतें, आपको उनके दिल से  दूर कर सकती हैं . उन्हें अपनी ज़िन्दगी जीने दें, अगर कोई आदत उनके लिए हानिकारक है, तो उन्हें सही तरह से समझाएं.

पति को भी समझना चाहिए की उनकी पत्नी एक पूर्ण महिला हैं, और उन्हें अपनी जिम्मेदारी और फैसले लेना आता है. तो उनके साथी बने, अभिभावक नहीं.

7. साथ में फैसले करें

इससे हर साथी खुद को ख़ास और महत्वपूर्ण महसूस करेगा, और आपके रिश्ते पर अच्छा असर पड़ेगा.

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8. ईगो को छोड़ दें

“मैं क्यों आगे जा कर बात करूँ, उसने झगड़ा किया है, उसे माफ़ी मांगनी चाहिए, अगर उसे परवाह नहीं, तो मुझे भी नहीं”, ऐसी मनोवृत्ति रखने का कोई फायदा नहीं. उन्हें हो न हो, आपको उनकी ज़रूरत है, ये आप समझें, अगर आप कहते हैं, “परवाह नहीं”, तो आप खुद को धोखा  दे रहे हैं.

इस लिए ईगो को छोड़ दें, और खुद आगे बढ़ कर रिश्ते में सुधार लाएं, और अपनी शादी को बचाएं.

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