करवा चौथ 2022: एक और करवाचौथ

family story in hindi

एक और करवाचौथ- भाग 3

पहले श्यामली का माथा ठनका. आखिर स्त्री की छठी इंद्री ऐसी शक्ति है जो उस पर पड़ी परपुरुष की निगाह की भाषा भी पढ़ लेती है और अपने पति की परस्त्री की तरफ पड़ी निगाहों की भाषा भी. शुभांगी व मानव का नैनमटक्का उस की निगाह में धीरेधीरे खटकने लगा पर बोलने के लिए कुछ था ही नहीं. उधर वरुण तो बीवी को अपने व परिवार की लंबी उम्र व सलामती के लिए व्रतउपवासों व ऐसे ही मौकों पर दोनों परिवारों के सामूहिक पर्व मनाने का इंतजार करते देख फूला न समाता और सोचता कि शुभांगी अब उसे कितना प्यार करने लगी है. उस की हर बात मानती है. सास भी अब कुछ खुश रहने लगी थी.

सालभर बीततेबीतते करवाचौथ फिर आ गई. श्यामली और वरुण इस बार बहुत खुश थे, क्योंकि इस बार तो शुभांगी व मानव भी करवाचौथ पूरे मन से मनाएंगे. इसलिए दोनों परिवारों का शाम को सामूहिक आयोजन होना तय हुआ था. उन दोनों की बातों में महीनाभर पहले से ही इस की झलक मिलने लगी थी. इसलिए दोनों का घमासान शुरू हो गया था.

मगर शुभांगी व मानव मन ही मन चिड़चिड़ा रहे थे. करवाचौथ वाले दिन महिलाएं भले ही आपस में मिल कर अपनी पूजा निबटा लें पर उन्हें रहना तो अपनेअपने साथी के साथ ही पड़ेगा. उन की बेचैनी व दिल्लगी अब सीमा पार करने लगी थी. एकदूसरे के बिना अब जिंदगी बेनूर लग रही थी.

आखिर दिल के हाथों मजबूर हो कर दोनों ने अब अपना रिश्ता जगजाहिर करने की ठान ली. समाज व परिवार को ठोकर मारते हुए दोनों ने करवाचौथ वाले दिन औफिस से ही भागने की योजना बना ली. सामूहिक करवाचौथ का आयोजन शुभांगी के घर पर होना तय हुआ था.

करवाचौथ वाले दिन दोनों घरों के लोगों में उत्साह का माहौल था. पर सुबह औफिस गए शुभांगी व मानव रात तक घर ही नहीं पहुंचे. चांद निकल कर चमक कर, पूजा करवा कर सुस्ताने भी लगा पर शुभांगी व मानव नदारद थे. श्यामली का मेकअप मलिन पड़ गया था और वरुण का इंतजार भी फीका पड़ गया था.

दोनों अपने फोन घर छोड़ गए थे और मजे की बात यह कि वरुण यह कह कर कि

कार में कुछ खराबी आ रही है, कार न ले जा कर टैक्सी से औफिस चला गया था. इसलिए सब का इंतजार गहराती रात के साथ चिंता में बदलने लगा था. आखिर चिंतित हो कर श्यामली के पापा व वरुण की मां ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवा दी. हालांकि श्यामली व वरुण इतनी जल्दी नहीं करना चाह रहे थे. पता नहीं क्यों दोनों का माथा ठनक रहा था.

उधर प्रेमरोग से ग्रस्त शुभांगी व मानव, लैपटौप बैग में 2-4 कपड़े व जरूरी सामान डाल कर औफिस से हाफ डे कर के घर से भाग कर तो आ गए थे पर शहर के आखिरी कोने में स्थित होटल के कमरे में तब से सिर झुकाए बैठे दोनों विचारों में गुम थे कि अच्छा किया या बुरा.

वैवाहिक जीवन में सबकुछ ठीक चलते हुए प्रेम की पींगे बढ़ा लेना अलग बात है, पर इस तरह परिवार व बच्चे छोड़ कर प्रेमी के साथ घर छोड़ कर भाग जाना सरल नहीं है. दोनों को प्यार पर अब नैतिकता भारी पड़ती महसूस हो रही थी.

सामाजिक, पारिवारिक मानमर्यादा को ठोकर मारना इतना भी आसान नहीं लग रहा था अब. आने वाली जिंदगी के बारे में सोच रहे थे. भावावेश में लिए गए इस निर्णय से भविष्य में आने वाली कठिनाइयों से निबटना दुष्कर कार्य था. यह कोई 3 घंटे की फिल्म नहीं थी. दोनों की नौकरी थी, 10-10 साल की शादियां थी, बच्चे थे. बिना तलाक के वे शादी कर नहीं सकते और तलाक लेना क्या इतना आसान है? सालों खप जाएंगे. ऊपर से बच्चों का क्या भविष्य होगा, यह भी चिंता थी. दोनों ऊहापोह में बैठे, नैतिक दुविधा में उलझे थे. एकदूसरे के लिए भागे हुए वे अब एकदूसरे की तरफ भी नहीं देख पा रहे थे. एकदूसरे का साथ पाने का खयाली तिलिस्म भी फीका पड़ गया था.

उधर पुलिस में रिपोर्ट हो जाने पर पुलिस छानबीन में लग गई. फोन क्योंकि दोनों घर छोड़ गए थे. इसलिए उन की लोकेशन ढूंढ़ना आसान नहीं था. औफिस कर्मियों से भी कुछ पता नहीं चला. औफिस में भी सबकुछ सामान्य रहा था और दोनों हाफ डे कर के अपनेअपने घर निकल गए. हां, मानव आज कार छोड़ कर टैक्सी से औफिस यह कह कर गया था कि उसे बौस के साथ किसी क्लाइंट से मिलने जाना है. शुभांगी तो वैसे भी पब्लिक ट्रांसपोर्ट से ही आतीजाती थी. पुलिस ने भी कुछ घंटे इधरउधर माथापच्ची की, हवा में तीर चलाए. सारे अस्पताल, सड़कें भी छान मारीं. कुछ क्षेत्रों के थानों में भी फोन किया कि कहीं कोई दुर्घटना इत्यादि की सूचना तो नहीं दर्ज हुई. फिर वापस आ गई.

उधर सिर झुकाए बैठे शुभांगी व मानव समझ नहीं पा रहे थे कि आगे कि रूपरेखा क्या होगी.

‘‘अब?’’ एकाएक शुभांगी ने चेहरा उठाया.

‘‘अब…अब क्या?’’ मानव के चेहरे पर भी कुछ हताशा, कुछ दुविधा वाले भाव थे.

‘‘क्या हम ने ठीक किया मानव? क्या सचमुच एकदूसरे को पा कर जीवन सुंदर, सुगम, सरल व चमदार हो जाएगा, जैसा हम चाहते हैं?’’

‘‘शायद नहीं,’’ मानव लाचारी से बोला, ‘‘इतना आसान नहीं है, बहुत सारे बैरिकेड्स हैं, जिन्हें हटाते जिंदगी की चमक फीकी पड़ जाएगी. ऊपर से कुछ गलत कर देने की मानसिक यंत्रणा से भी हम शायद कभी नहीं निकल पाएंगे.’’

‘‘हूं,’’ शुभांगी भी गहरे विचारों में डूबी हुई बोली, ‘‘और हमारे बच्चे? उन का क्या होगा? मेरे बच्चे मां के बिना कैसे रहेंगे और तुम्हारे बच्चे बिना आर्थिक संबल के कैसे पलेंगे? सबकुछ छिन्नभिन्न हो जाएगा.’’

‘‘सही कह रही हो शुभांगी. शायद मनुष्य की फितरत है, अप्राप्त फल पाने की… सबकुछ था न हमारे पास… पर हमारे विचार हमारे साथियों से मेल नहीं खाते थे और हम उन के विचारों के साथ घुटन महसूस करते थे. लेकिन वे हमारे लिए बुरे तो नहीं थे… विचारों की समानता हमें करीब ले आई. पर स्त्रीपुरुष के बीच में दोस्ती अकसर प्रेम का ही रूप क्यों ले बैठती है? क्या यह रिश्ता स्वस्थ नहीं रह सकता था? जैसे श्यामली और वरुण का था. वे दोनों भी तो एक ही वैचारिक धरातल पर विचरण करते हैं. तो क्या वे भाग गए एकदूसरे के साथ?’’ मानव स्थिति का सही विश्लेषण कर मन की दुविधा को शब्द देता हुआ बोला.

‘‘हां मानव, सही कह रहे हो. हमें अपनेअपने साथी में थोड़ाबहुत बदलाव लाने की कोशिश करनी चाहिए थी. पूरी तरह तो कोई नहीं बदल सकता. न हम, न वे पर बस सभी सरलता से जिंदगी को ले पाते, इतनी कोशिश तो की जा सकती थी.’’

‘‘हूं… तुम भी वरुण की जोरजबरदस्ती से घबरा गई और मैं भी हर समय श्यामली की सात्विक व अंधविश्वासी विचारधारा से तंग आ गया… मुझे एक आधुनिक विचारधारा वाली पत्नी चाहिए थी… वह मुझे तुम में दिखाई दी पर इस का मतलब यह तो नहीं कि विवाह को सूली पर टांग दिया जाए. इस के अलावा तो कोई शिकायत नहीं थी मुझे श्यामली से… मैं भी कोशिश कर सकता था धीरेधीरे उसे अपने विचार समझाने की पर मैं उस से हमेशा चिढ़ जाता था और दूर भागता रहता था.’’

‘‘हूं,’’ शुभांगी एक लंबी सांस भर कर गहरी सोच में डूब गई.

‘‘फिर, अब क्या करें?’’ थोड़ी देर बाद मानव बोला, ‘‘घर पर तो हम दोनों के गायब होने से हड़कंप मच गया होगा… सभी समझ गए होंगे अब तक तो… श्यामली को तो पहले ही शक हो रहा था.’’

एक और करवाचौथ- भाग 2

श्यामली फिर उखड़ गई. वह किचन में चाय बनाने चली गई. मानव को अफसोस हुआ कि वह चुप नहीं रह पाता है. श्यामली के इन विश्वासों पर व्यंग्य किए बिना जैसे उस का खाना ही नहीं पचता. उस का मूठ ठीक करने के लिए उस ने जेब से लिफाफा निकाला और उसे देने चला गया.

काफी इंतजार के बाद चांद निकला और श्यामली ने छलनी से चांद व अपने

पिया को निहारा, पैर छुए. मानव ने पानी पिला कर उस का व्रत खुलवाया. बच्चे वीडियो बनाने में मस्त थे. मानव को लग रहा था वह किसी शौर्ट फिल्म में ऐक्टिंग कर रहा है.

उधर शुभांगी जब घर पहुंची तो उस का पति वरुण उस से पहले ही घर पहुंच गया था, ‘‘बहुत देर कर दी तुम ने आज?’’

‘‘देर कहां? रोज वाले टाइम से ही तो आई हूं,’’ थकी, भूखी शुभांगी बोली.

‘‘मैं ने सोचा था. आज करवाचौथ है, तुम जल्दी आओगी,’’ वरुण ऐसे बोला जैसे जल्दी न आ कर उस ने करवाचौथ व पति दोनों का अपमान किया है.

‘‘हां, पर करवाचौथ पर हाफ डे नहीं होता है न औफिस में… मेरी समझ से सरकारी व गैरसरकारी सभी संस्थानों में करवाचौथ के दिन पूरी छुट्टी हो जानी चाहिए… आखिर देश के पुरुषों की सलामती की बात है…’’ शुभांगी थकी हुई थी और भूखी भी, इसलिए चिढ़ कर बोली, ‘‘अब हम महिलाएं आज के दिन अपने लिए तो कुछ करती नहीं हैं… बल्कि मैं तो कहती हूं हरतालिका तीज, वट सावित्री व्रत, नवरात्रे वगैरह जितने भी व्रतउपवास, पूजा वगैरह महिलाएं अपने बच्चों, पति, घरपरिवार की सलामती के लिए करती हैं… इन दिन राष्ट्रीय छुट्टी घोषित हो जानी चाहिए. आखिर परिवार सलामत रहेंगे… परिवार में बच्चे, पुरुष सलामत रहेंगे. तभी तो देश सलामत रहेगा. तो एक तरह से यह सिर्फ महिलाओं की नहीं, देश की समस्या है. सरकार को इस समस्या के विषय में विचार करना चाहिए,’’ चिढ़ी हुई शुभांगी गंभीरता से बोल कर बैडरूम में चली गई.

वरुण वहीं बैठा रह गया. शुभांगी की सास अपनी कुसंस्कारी बहू को घृणा से देख रही थी, जिसे अपने सुहाग की लंबी उम्र की जरा भी चिंता नहीं थी.

बैडरूम में जा कर शुभांगी थोड़ी देर खिन्न हो कर बैठी रही, फिर किसी तरह मूड ठीक किया. फ्रैश हुई. ‘अब जब सुबह से भूखी रह ही गई है तो शेष औपचारिकताएं भी निभा ही ले,’ सोच कपड़े बदल कर वह बाहर आ गई. उसे देख सास ने मुंह बिचका लिया, एक दिन भी ठीक से तैयार नहीं हो सकती?’’

‘‘कुछ अच्छा सा पहन लेती,’’ वरुण उस का मूड ठीक देख कर बोला.

‘‘ठीक मतलब? अच्छा ही तो पहना है वरुण. अभी औफिस से थक कर आई हूं. सुबह भी तुम्हारी जिद्द से कार्टून बन कर गई थी… मुझे नहीं पसंद यह चमकदमक… क्या यही पहन कर बताना पड़ेगा कि मैं तुम से प्यार करती हूं.’’ शुभांगी का मूड फिर उखड़ने लगा.

तभी बच्चे भागते आ गए, ‘‘मम्मी, चांद निकल गया… चांद निकल गया…’’

शुभांगी ने अपनी थाली उठाई और सब छत पर चले गए. वरुण अपनी आरती उतरवाते ऐसे खुश हो रहा था जैसे बस आज ही भांवरें पड़ने वाली हों.

मानव की पत्नी श्यामली व शुभांगी का पति वरुण दोनों परले दर्जे के दकियानूसी, रीतिरिवाजों के प्रति कट्टर, व्रतउपवास, कर्मकांड को मानने वाले और मानव व शुभांगी ठीक उस के विपरीत. मानव जितना श्यामली को बदलने की कोशिश करता, श्यामली उसे उतना ही संस्कृति व परंपरा का पाठ पढ़ाती. उधर शुभांगी यदि वरुण को कुछ समझाने की कोशिश करती तो दोनों मांबेटा अपनी इस कुसंस्कारी बहू व बीवी के लिए अपने को कोसते.

फलस्वरूप शुभांगी व मानव को अपनेअपने घर में न चाहते हुए भी सुखशांति व मानमर्यादा के लिए कई बातों में अपनेअपने जीवनसाथियों का साथ देना पड़ता. वे दोनों जो कुछ अपने घर में बेमन से करते, औफिस में एकदूसरे को बहुत मन से बताते और बता कर अपने मन की भड़ास निकालते. वे एकदूसरे के करीब आते जा रहे हैं, यह समझते हुए भी वे समझना नहीं चाह रहे थे.

समान विचारधारा और एकदूसरे से अपने दिल की बात करने की स्वतंत्रता होने का भरोसा उन्हें एकदूसरे के मन में गहरे बैठा रहा था. अब दोनों का काफी समय साथ बीतने लगा था. दोनों ने अपनेअपने घर में शिकायतें करना लगभग बंद कर दिया. उन की मानसिक, भावनात्मक, वैचारिक जरूरतें पूरी हो रही थीं. उधर दोनों के साथी समझ रहे थे कि उन्होंने दोनों को सुधार दिया.

श्यामली मानव में आए परिवर्तन को लक्ष्य ही नहीं कर पा रही थी. मानव अब उस की बात मान कर आराम से जान छुड़ा लेता. वह पारंपरिक भारतीय स्त्री की तरह अपनी मान्यताओं व विश्वासों में उलझी सालभर में आने वाले अपने तमाम रिचुअल्स में डूबी रहती और मानव के लिए यह और भी अच्छा हो गया था कि श्यामली अपनेआप में मस्त रहे और उस से अधिक पूछताछ न करे. उसे भी वह जो कुछ करने को कहती, वह चुपचाप कर देता था.

यही हाल कमोवश वरुण का भी था. उस ने भी यह सोचने की जहमत नहीं उठाई कि हर व्रतउपवास, पूजापाठ पर उखड़ने वाली शुभांगी इतनी सरलता से हर बात कैसे मानने लगी है. इसे वह अपनी जीत समझने में लगा था. शुभांगी उस के मन का कर के, उसे उस की खुशियों के साथ छोड़ कर अपनी खुशी के साथ मस्त थी.

शुभांगी और मानव का अब यह हाल हो गया था कि वे अब एकदूसरे के बिना रह ही नहीं पा रहे थे. औफिस के बाद भी अकसर दोनों मिलना चाहते. इस के लिए दोनों ने अच्छा हल यह निकाला कि दोनों परिवारों की मित्रता करा दी जाए और इस तरह एकदूसरे के घर में उन का आनाजाना शुरू हो गया. श्यामली और वरुण जहां हमेशा अपनी सात्विक चर्चा में लीन रहते, मानव व शुभांगी की नजरें उन से बच कर अपने जादुई संसार की संरचना को अलग ही आकार देती रहतीं.

मगर शुभांगी व मानव के बीच क्या पक रहा है और कितना पक गया है, इस से वे दोनों अनजान थे. उन के अब लगभग सभी तीजत्योहार, व्रतउपवास, साथ ही मनने लगे थे. एकदूसरे का साथ मिल जाने के कारण शुभांगी व मानव को भी अब ऐसे अवसरों का बेसब्री से इंतजार रहता. कहा जाता है कि इश्क व जंग में सब जायज है पर जब पानी सिर से गुजरने लगता है तो कहा यह भी जाता है कि ‘इश्क व मुश्क छिपाए नहीं छिपता.’

एक और करवाचौथ- भाग 1

‘‘सुनोआज शाम को जल्दी आ जाना?’’ श्यामली स्वर में मिठास घोल कर औफिस के लिए तैयार होते मानव से बोली.

‘‘क्यों रोज ही तो समय से आता हूं. आज क्या खास बात है?’’

‘‘अरे भूल गए क्या? 1 महीने से बता रही हूं और कल भी याद दिलाया था. आज करवाचौथ है, मेरा व्रत है. शाम को बाहर खाना खाने चलेंगे. यह देखो मेरी मेहंदी भी कितनी खिली है. सब कह रही थीं कि सब से ज्यादा मेहंदी श्यामली की खिली है… इस का पति इसे सब से ज्यादा प्यार करता है. पता है पूजा और नीरा के पति भी उपवास रख रहे हैं. पत्नियों की लंबी उम्र के लिए,’’

मानव झुंझला कर बोला, ‘‘उफ, तुम्हारे इन बकवास उपवासों से किसी की उम्र बढ़ती है क्या? कभी तीजव्रत, कभी वट सावित्री व्रत, कभी करवाचौथ व्रत, जन्माष्टमी, शिवरात्री, नवरात्रे, सावन के सोमवार और भी न जाने क्याक्या… तुम ने पढ़लिख कर भी अपनी आधी जिंदगी भूखे रह कर गुजार दी और मुझ से भी यही उम्मीद करती हो. मुझे नौकरी नहीं करनी है क्या? नाश्ता लगाओ. मुझे देर हो रही है.’’

मानव की झिड़की खा कर श्यामली टूटा दिल लिए नाश्ता लगाने चली गई. नाश्ता कर के मानव औफिस के लिए निकल गया पर श्यामली का मन खिन्न हो गया. आज वह अपने कुछ दोस्तों को घर बुलाने की सोच रहा था पर जब श्यामली ने करवाचौथ की याद दिलाई तो वह मन ही मन चिढ़ गया.

उच्चशिक्षित होने के बावजूद पता नहीं श्यामली इतने रीतिरिवाजों, व्रतउपवासों, पूजापाठ में क्यों डूबी रहती है… वह इन बातों से जितना दूर भागता है श्यामली उतनी ही इन में उलझी रहती है. उस की बातें भी हर समय वैसी ही होती हैं. 10 साल होने वाले हैं उन के विवाह को पर श्यामली के पूरा साल व्रतत्योहार चलते रहते हैं. मानव सोचता, खूब फुरसत है श्यामली को. अगर कहीं नौकरी कर रही होती तो क्या इतनी फुरसत मिल जाती. बच्चों को पढ़ाने के लिए फुरसत मिले न मिले, लेकिन इन सब बातों के लिए उसे खूब फुरसत रहती है.

इसी उधेड़बुन में मानव औफिस पहुंच गया. उस के औफिस में कुछ ही महीने पहले आई उस की सहकर्मी शुभांगी उसे लिफ्ट में ही मिल गईर्. उसे देख कर न जाने क्यों उस का दिल हमेशा बल्लियों उछल जाता. 2 बच्चों की मां शुभांगी आधुनिक खयालों वाली स्मार्ट महिला थी, जो उस के खुद के विचारों के साथ पूरी तरह मेल खाती थी. मगर आज उसे सोलहशृंगार में देख कर वह दुविधा में पड़ गया.

‘‘क्या बात है, आज क्या तुम्हारी शादी की सालगिरह है?’’ मानव ने पूछा.

‘‘नहीं भई, आज तो करवाचौथ है,’’ शिवानी मुसकराते हुए बोली, ‘‘क्यों तुम्हारी पत्नी ने नहीं रखा व्रत?’’

‘‘रखा है पर क्या तुम भी…’’

‘‘अरे भई मैं भी क्या… मेरे घर में सब इतना मानने वाले हैं कि पूछो मत… फिर पति मेरे प्रेम को ही इन्हीं सब बातों से आंकते हैं. इसीलिए मैं भी रख लेती. बेकार का झंझट खड़ा करने का क्या फायदा. मैं भी सजधज लेती हूं. शाम को कोई अच्छा सा गिफ्ट भी मिल जाता है. बुरा क्या है… वह मुसकराई.’’

जवाब में मानव भी मुसकरा दिया. अपने गिफ्ट देने की बात भी याद आ गई. कब खरीदेगा गिफ्ट… लिफाफा ही दे देगा… उफ, ये बीवियां… तभी लिफ्ट का दरवाजा खुल गया और दोनों बाहर निकल गए.

औफिस में दूसरी भी कई महिलाएं कुछ कम या ज्यादा सजधज कर आईं थीं. पति तो आज बलि के बकरे थे. कुछ खुशी से हलाल होने वाले थे, कुछ मजबूरी में… सोच कर मानव मुसकराया और फिर सोच ही सोच में अपनी पौकेट को तोला. एक सूट या साड़ी के पैसे तो निकालने ही पड़ेंगे वरना पड़ोसिनों के सामने श्यामली के पतिप्रेम की व्याख्या फीकी पड़ जाएगी.

लंच पर शुभांगी सामने बैठी थी, ‘‘मुझे तो आज पानी भी नहीं पीना है… शाम तक तो निढाल हो जाऊंगी,’’ मानव को खाते देख उस के पेट में चूहे कूद रहे थे.

‘‘तो चायबिस्कुट खा लो. यह कोई खाना थोड़े ही है,’’ मानव हंसता हुआ बोला, ‘‘वैसे भी मैं तुम्हारे पति को बताने वाला नहीं हूं.’’

शुभांगी ठहाका मार कर हंस पड़ी, ‘‘मेरे पति की उम्र कम हो जाएगी…

और मेरी सास को पता चल गया तो साथ में बिना बात मेरी भी… तुम्हारी पत्नी पीछे से कुछ खा ले तो तुम्हारी भी खैर नहीं.’’

‘‘वहां से कोई खतरा नहीं… जबरदस्ती भी खिला दूं तो उलटी कर देगी… इस जन्म छोड़ने वाली नहीं है मुझे…’’ मानव ने भी ठहाका लगाया.

‘‘और तुम उसे इसी जन्म में नहीं झेल पा रहे हो.’’

‘‘तुम झेल पा रही हो क्या अपने दकियानूसी पति को?’’

‘‘हूं…’’ शुभांगी धीमे से मुसकराई, ‘‘बहुत मुश्किल है. कोईर् भी तीजत्योहार, व्रत, उपवास नहीं छोड़ सकती मैं… मांबेटा जीना दूभर कर देंगे. कैसे समझाऊं कि ये सब ढकोसले हैं.’’

मानव उस दिन घर पहुंचा. रास्ते से एक लिफाफा खरीद कर, मन मार कर उस में रुपए रखे. बेमौसम बजट बिगड़ रहा था. अभी तो डिनर पर भी जाना है पर श्यामली के दिनभर भूखे रहने का मेहनताना तो देना ही था. आज तो घंटी बजाने की भी जरूरत नहीं पड़ी. श्यामली इंतजार में पलकपांवड़े बिछाए दरवाजे पर खड़ी थी.

‘‘कितनी देर कर दी… मैं कब से इंतजार कर रही थी.’’

मानव ने घड़ी देखी, ‘‘देर कहां, रोज वाले टाइम से ही तो आया हूं,’’ कह वह अंदर चला गया.

श्यामली पीछेपीछे आ गई. ‘‘मैं कैसी लग रही हूं?’’

उस ने ध्यान से श्यामली की तरफ देखा. शादी वाली लाल साड़ी, गहने, पूरा मेकअप, हाथों में मेहंदी… लेकिन चेहरे पर भूख व थकान के मारे मुरदनी छाई थी.

‘‘हां, ठीक लग रही हो,’’ वह लापरवाही से बोला.

‘‘बस ठीक लग रही हूं? ब्यूटीपार्लर से मेकअप करवा कर आई हूं… मेहंदी लगवाने में भी इतना खर्च किया… सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो… और तुम हो कि…’’ वह रोंआसी हो गई. यह भी एक एहसान था मानव पर.

खर्च की बात सुन कर उस के कान खड़े हो गए. यह खर्चा भी बाकी खर्चे में जोड़ लिया.

‘‘तो किस ने कहा था ये सब करने को… मुझे तो तुम वैसे ही अच्छी लगती हो.’’

यह सुनते ही श्यामली का मूड ठीक हो गया. ‘‘सच?’’ वह पास आ गई.

‘‘हां, पर मुझे भूख लग रही है. चाय बना दो और कुछ खाने को भी दे दो,’’ वह थोड़ा पीछे हटते हुए बोला.

‘‘भूख तो मुझे भी लग रही है. पर यह चांद… अभी तक नही निकला,’’ श्यामली बड़बड़ाई.

‘‘हां, यह तो गलती है चांद की… कम से कम आज के दिन तो जल्दी निकलना चाहिए था…पता नहीं उसे कि पृथ्वी पर महिलाएं आज के दिन ही तो उस की बाट सब से अधिक जोहती है,’’ मानव ने गंभीरता से उस की बात का समर्थन किया.

एक और करवाचौथ- भाग 4

‘‘वापस चलते हैं… अब जो भी होगा देर आयद, दुरुस्त आयद… अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा… एक रात भी बाहर नहीं रहे हैं अभी… बात संभल जाएगी… माफी मांग लेंगे… गलती की है तो सजा तो भुगतनी ही पड़ेगी…’’ शुभांगी धीरज बंधाती हुई बोली.

‘‘ठीक है, चलो फिर…’’ दोनों ने अपना इरादा मजबूत कर अपनाअपना बैग उठाया और बाहर निकल गए.

उधर पुलिस वाले यह कह कर पलट रहे थे कि आगे की कार्यवाही कल करेंगे. तभी गेट पर एक टैक्सी रुकी, गेट खुला और शुभांगी व मानव अंदर आते दिखाई दिए. सब लोग चिंतित से बाहर ही खड़े थे, उन्हें देख कर सब चौंक गए.

‘‘कहां, चले गए थे तुम लोग?’’ वरुण की मां बोली.

‘‘औफिस के काम से निकले थे आंटीजी…रास्ते में टैक्सी खराब हो गई…दूसरी मिली ही नहीं…इसीलिए इतनी देर हो गई,’’ मानव किसी तरह बात बना कर बोला.

सभी समझ रहे थे कि मानव झूठ बोल रहा है. मानव ने भी इस समय समझबूझ कर पुलिस वाले व सब के सामने बात बनाई थी. पर समय को देखते हुए सब ने उस झूठ को सच ही रहने दिया.

‘‘चलो श्यामली, घर चलें… टैक्सी खड़ी है बाहर…’’ समय व

स्थिति को देखते हुए श्यामली दोनों बच्चों को ले कर गेट की तरफ बढ़ गई. शुभांगी घर के अंदर चली गई और बच्चे उस के पीछेपीछे. पुलिस वाला आंखों में शक लिए बाहर निकलते हुए कह गया, ‘‘कल थाने आ कर आवश्यक कार्यवाही पूरी कर दीजिएगा?’’

शुभांगी लौबी में सिर झुकाए बैठी थी. वरुण की मां ने घृणा से उस की तरफ देखा और अपने कमरे में चली गई. वरुण ने भी दोनों बच्चों का हाथ पकड़ा और बैडरूम की तरफ चला गया.

उधर श्यामली और मानव घर पहुंचे तो श्यामली ने दोनों बच्चों सहित बैडरूम में जा कर दरवाजा बंद कर दिया. मानव ड्राइंगरूम में बैठा रह गया. दोनों घरों में यह करवाचौथ एक सन्नाटा ले कर आईर् थी जिसे दूर करने का तरीका किसी को नहीं सूझ रहा था.

बच्चों को सुला कर श्यामली छत को एकटक घूरे जा रही थी कि क्या फायदा इन व्रतउपवासों का? वह पति की लंबी उम्र की कामना में लगी रही और पति अपनी उम्र किसी दूसरी पर कुरबान करने को तैयार हो गया. अनायास ही उस की आंखों से आंसू बरसने लगे… गलती हो गई उस से. कहां कमी की उस ने मानव के प्रति प्यार में या गृहस्थी संभालने में… फिर यह धोखा क्यों?

यह सही है कि वह कईर् तरह के विश्वासों, रीतिरिवाजों व व्रतउपवासों में उलझी रहती है और मानव को यह सब कभी पसंद नहीं रहा. पर बाकी तो कमी नहीं की उस ने अपना प्यार लुटाने में… पर वैचारिक मतभेद उन्हें एकदूसरे से इतना दूर कर देगा, ऐसा तो उस के खयालों में भी नहीं आया. कई बार कहा भी मानव ने, कभी चिढ़ कर, कभी मजाक उड़ा कर, कभी गंभीरता से. पर वह हमेशा इसे मानव की गलती समझती रही और उसे भी जबरदस्ती वही सब करने, मानने के लिए विवश करती रही. लेकिन हरेक का वैचारिक धरातल अलग होता है. किसी पर जबरदस्ती अपने विचार, अपनी मान्याएं लादना क्या उचित है?

उस ने ये सब मानव की इच्छा के विपरीत तो किया ही, मानव को भी जबरदस्ती इन सब में शरीक होने के लिए बाध्य करती रही पर क्या इस का यह मतलब है कि मानव बीवीबच्चों को छोड़ कर भाग खड़ा हो.

मगर गलती कुछ हुई तो है उस से भी. दिल और भावनाओं के साथसाथ दिमागी व वैचारिक स्तर पर भी प्रतिबद्धता होनी चाहिए. तभी जिंदगी सुगम और सरल बन पाती है. फिर जिस के लिए वह ये सब करती रही, जब इस सब के बावजूद उसीको अपना नहीं पाई तो क्या औचित्य है इन ढकोसलों का.

श्यामली उठी और दरवाजा खोल कर बाहर आ गई. मानव बैठा था. उसे देख कर शर्मिंदगी से मुसकराया. वह किचन में गई. प्लेट में कुछ खाने के लिए डाला और मानव की बगल में आ कर बैठ गई. कुछ पिघली हुई नजरों से मानव की तरफ देखा.

‘‘मुझे माफ कर दो श्यामली,’’ मानव ने दोनों कान पकड़ लिए, ‘‘भविष्य में ऐसी गलती कभी नहीं होगी. वादा करता हूं और यह भी विश्वास दिलाता हूं कि मैं व शुभांगी भावनात्मक स्तर पर भले ही बहक गए थे पर रिश्ता दोस्ती से बाहर नहीं गया कभी.’’

सुन कर श्यामली के चेहरे पर कुछ विराम के से भाव उभरे. उस ने बिना कुछ कहे रोटी का टुकड़ा सब्जी में लपेट कर मानव के मुंह में ठूस दिया. मानव ने श्यामली को खींच कर बांहों में भींच लिया.

‘‘मैं भी पता नहीं किनकिन अजीबोगरीब विश्वासों से घिरी रहती हूं हर वक्त… तुम सही कहते हो, आधा साल तो भूखी रहती हूं… इतना समय किसी सार्थक काम में लगाऊं तो शायद कुछ अच्छा कर सकूं,’’ श्यामली भर्राए कंठ से बोली.

‘‘बस अब कुछ मत कहो,’’ मानव ने उसे और भी जोर से भींच लिया.

उधर शुभांगी भी सिर झुकाए सोफे पर बैठी थी. शर्म के कारण उसे कुछ नहीं सूझ रहा था. अंदर लेटा मानव सोच रहा था कहां गलती हो गई उस से शुभांगी को समझने में? आखिर क्या कारण था कि शुभांगी मानव की तरफ इतनी आकर्षित हो गई? कहीं मां के धार्मिक विचार खुद उस पर इतने अत्यधिक हावी तो नहीं हो गए थे कि जो एक कामकाजी महिला होने के नाते शुभांगी के लिए घुटन पैदा कर रहे हों? वह खुद इन विश्वासों से हर समय भरा रहता था और शुभांगी को भी ये सब मानने के लिए बाध्य करता था वरना रुतबा, खूबसूरती, पैसा, कहीं से भी तो कम नहीं है वह मानव से. अपने विचार हर समय जबरदस्ती शुभांगी पर लाद कर उस ने उस के लिए जीवन दूभर तो नहीं बना दिया था? कुछ गलती तो हुई है उस से भी.

कुछ सोच कर वह उठा और बाहर आ गया. शुभांगी ने उस की तरफ देखा, फिर

गरदन झुका ली. वरुण उस की बगल में बैठ गया. थोड़ी देर उसे चुपचाप निहारता रहा. शुभांगी की आंखें डबडबा गईं.

‘‘कुछ गलती हो गई थी क्या मुझ से शुभांगी या फिर कोई कमी है मुझ में?’’ वह निराश स्वर में बोला.

‘‘मुझे माफ कर दो वरुण… गलती तो मुझ से हो गई… बस इतना विश्वास दिलाती हूं कि शुभांगी पूरी तरह तुम्हारी ही है अभी भी,’’ कहतेकहते वह सिसकने लगी.

‘‘नहीं, गलती शायद मुझ से भी हुई है तुम्हें समझने में. जब विचार टकराते हैं तो इनसान भावनात्मक स्तर पर भी दूर होने लगता है और जब पतिपत्नी दिल से एकदूसरे के पास नहीं हैं तो फिर ये रिचुअल्स तो सब ढकोसले हैं. अब से ऐसा नहीं होगा… वैसे भी मेरे और बच्चों की सलामती के लिए तुम जो इतने व्रतउपवास कर भूखी रहती हो उस से हमारी उम्र को कुछ नहीं होने वाला. जिस की जितनी उम्र है उतनी ही रहेगी. मां को समझाने के बजाय पता नहीं मैं कब इन सब बातों में उलझ गया. पर अब से तुम अपने विचारों व मान्यताओं के साथ स्वतंत्र हो… जो करना चाहती हो करो… मेरी तरफ से कभी कोई दबाव नहीं रहेगा.’’

‘‘सच?’’ शुभांगी उस की तरफ देख कर आश्चर्य से बोली, ‘‘तुम ने मुझे माफ कर दिया वरुण?’’

जवाब में वरुण ने शुभांगी को खींच कर छाती से लगा लिया.

‘‘आज तो मेरी भी करवाचौथ हो गई. पेट खाली है. चूहे कूद रहे हैं… चल कर कुछ खा लें…’’ दोनों भरी आंखों से खिलखिला कर एकदूसरे से लिपट गए.

परदे की ओट से दोनों की बातें सुनती शुभांगी की सास भी विचारमग्न सी कुछ सोचती हुए वापस मुड़ गईं.

शायद वे सोच रही थीं कि उन्हें भी पुरानी सड़ीगली मान्यताएं त्याग कर अब आगे बढ़ जाना चाहिए. व्रत का मतलब भूखा रहना ही नहीं होता. व्रत का मतलब प्रतिज्ञा भी होता है. एक वचनबद्धता होती है एकदूसरे के प्रति. एकदूसरे की कमियों को आत्मसात करने के प्रति, एकदूसरे की खूबियों से प्यार करने के प्रति, हर व्रत पर वचनबद्धता थोड़ी और बढ़ जाए, इस कोशिश के प्रति. जो करवाचौथ इस साल इन चारों के बीच आई. एकदूसरे की गलतियों को माफ कर अपनी गलतियों को समझ उन्हें सुधारने की. इस से बढ़ कर करवाचौथ की सार्थकता भला और क्या हो सकती है?

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