एक मौका और : हमेशा होती है अच्छाई की जीत

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एक मौका और : भाग 2- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

पता चला कि सोहेल को भी किसी ने इस पागलों वाले अस्पताल में भरती करा दिया था, जबकि वह भी पूरी तरह स्वस्थ था. वह अस्पताल डा. काशान का था. कुछ देर बाद डा. काशान वहां आया तो सोहेल चीख पड़ा, ‘‘यह गलत है. आप सब धोखा कर रहे हैं. सही इंसान को यहां क्यों भरती कर रखा है?’’

डा. काशान ने इत्मीनान से कहा, ‘‘ये देखो.’’

इस के बाद उस ने रिमोट से एक स्क्रीन औन कर दी. स्क्रीन पर एक स्लाइड चलने लगी, जिस में सोहेल पागलों की तरह चीख रहा था, चिल्ला रहा था. 2 नर्सें उसे बांध रही थीं. वह देख कर सोहेल फिर चीखा, ‘‘यह सरासर झूठ है.’’

उस के इतना कहते ही डाक्टर के इशारे पर नर्स ने फिर से सोहेल को इंजेक्शन लगा कर सुला दिया.

सोहेल को जब होश आया तो उस ने नूर को गौर से देखा. उसे याद आया कि यह लड़की तो वही है जो ईमान ट्रस्ट स्कूल में पढ़ती थी. सोहेल भी बीकौम करने के बाद स्कूल में मदद के तौर पर पढ़ाने जाता था. वैसे सोहेल भी एक अच्छे परिवार से ताल्लुक रखता था.

उस के पिता की एक फैक्ट्री थी. फैक्ट्री में अचानक लगने वाली आग ने सब कुछ बरबाद कर दिया था. उस में उस के पिता की भी मौत हो गई थी. उस समय सोहेल 19 साल का था. उन दिनों वह ईमान ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ा रहा था.

सोहेल के लिए पिता की मौत बहुत बड़ा सदमा थी. उस ने अपने कुछ हमदर्दों की मदद से इंश्योरेंस का क्लेम हासिल किया. फिर से फैक्ट्री शुरू करने के बजाय उस ने वे पैसे बैंक में जमा कर दिए. फैक्ट्री की जमीन भी किराए पर दे दी, जिस से परिवार की गुजरबसर ठीक से होती रहे. उस के 2 और भाई थे जो उस से छोटे थे. एक था कामिल जिस की उम्र 15 साल थी, उस से छोटा था 12 साल का जमील.

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भाइयों और मां की जिम्मेदारी सोहेल पर ही थी. यह जिम्मेदारी वह बहुत अच्छे से निभा रहा था. एमबीए के एडमिशन में अभी टाइम था, इसलिए वह ट्रस्ट के स्कूल में पढ़ाता रहा. इस स्कूल में ज्यादातर गरीब घरों के बच्चे पढ़ते थे. नूर को उस ने उसी स्कूल में देखा था. वह बेहद खूबसूरत थी. उस नूर को आज वह एक मेच्योर औरत के रूप में देख रहा था. वही बाल, वही आंखें, वही नैननक्श.

यह क्लिनिक शहर से बाहर सुनसान सी जगह पर था. चारदीवारी बहुत ऊंची थी. ऊपरी मंजिल की सब खिड़कियों में मोटीमोटी ग्रिल लगी हुई थीं. इंतजाम ऐसा था कि कोई भी अपनी मरजी से बाहर नहीं निकल सकता था.

पहले डा. काशान एक मामूली मनोचिकित्सक था. वह प्रोफेसर मुनीर के साथ काम करता था. फिर उस ने अपना खुद का क्लिनिक खोल लिया. लोगों को ब्लैकमेल करकर के वह कुछ ही दिनों में अमीर हो गया. इस के बाद उस ने शहर के बाहर यह क्लिनिक बनवा लिया.

इस इमारत में आनेजाने के खास नियम थे. एक अलग अंदाज में दस्तक देने से ही दरवाजे खुलते थे. काशान ने यहां 5 लोग रखे हुए थे. 2 नर्सें, 2 कंपाउंडर, एक मैनेजर कम फोटोग्राफर जिस का नाम राहिल था. सही मायनों में राहिल ही उस क्लिनिक का कर्ताधर्ता था.

डा. काशान उसे उस समय यतीमखाने से ले कर आया था, जब वह बहुत छोटा था. अपने यहां ला कर उस ने उस की परवरिश की. धीरेधीरे उसे क्लिनिक के सारे कामों में टे्रंड कर दिया. अब वह इतना सक्षम हो गया था कि काशान की गैरमौजूदगी में अकेला ही सारे मरीजों को संभाल लेता था. एक तरह से वह डा. काशान का दाहिना हाथ था.

एक दिन डा. काशान कुछ परेशान सा था. उस ने राहिल की तरफ देखते हुए कहा, ‘‘राहिल, मुझे कुछ खतरा महसूस हो रहा है. शायद किसी को हमारे गोरखधंधे की खबर लग गई है. इसलिए मैं सोच रहा हूं कि सब कुछ खत्म कर दिया जाए.’’

राहिल घबरा कर बोला, ‘‘डाक्टर साहब, ऐसा कैसे हो सकता है? यह तो बहुत बड़ा जुल्म होगा.’’

‘‘तुम मेरे टुकड़ों पर पल कर यहां तक पहुंचे हो. तुम्हें सहीगलत की पहचान कब से हो गई. मैं जो कह रहा हूं, वही होगा. अगले हफ्ते यह काम हर हाल में करना है.’’ डाक्टर ने दहाड़ कर कहा.

नूर को ऐसा लगा जैसे कोई उस का नाम पुकार रहा है. उस ने दरवाजे की जाली की तरफ देखा तो वहां सोहेल के सफेद बाल दिखाई दे रहे थे. यह पहला मौका था जब किसी ने उसे पुकारा था. वरना वहां इतना सख्त पहरा था कि कोई किसी से बात तक नहीं कर सकता था. चोरीछिपे बात कर ले तो अलग बात है.

नूर को यहां आए दूसरा महीना चल रहा था. उसे अब लगने लगा था कि वह सचमुच ही पागल है. सोहेल ने फिर कहा, ‘‘नूर, मैं सोहेल हूं. याद है, जब मैं तुम्हें स्कूल में पढ़ाने आता था…’’

नूर ने कुछ याद करते हुए कहा, ‘‘हां, मुझे याद आ रहा है. आप हमारे स्कूल में पढ़ाते थे. मगर आप यहां कैसे?’’

‘‘मुझे एक साजिश के तहत यहां डाला गया है. मुझे लगता है कि तुम भी किसी साजिश का शिकार हो कर यहां पहुंची हो. इस बारे में मैं तुम से बाद में बात करूंगा.’’

नूर सोच में पड़ गई. उस के दिमाग में परिवार और कारोबार की पुरानी बातें घूमने लगीं. उस के दोनों बेटे सफदर और असगर के कालेज के जमाने से ही पर निकालने शुरू हो गए थे. दौलत के साथ सारी बुराइयां भी उन दोनों में आती गईं.

नूर उन्हें समझाने की बहुत कोशिश करती लेकिन उन पर कुछ असर नहीं हुआ. दूसरी तरफ उस का टेक्सटाइल मिल का बिजनैस भी आसान नहीं था. उस में भी उसे सिर खपाना पड़ता था. हालात बुरे से बुरे होते गए. अब दोनों बेटों ने घर पर शराब भी पीनी शुरू कर दी थी. रोज नईनई लड़कियां घर पर दिखाई देतीं.

नूर अगर ज्यादा जिरह करती या उन्हें कम पैसे देती तो घर की कीमती चीजें गायब होने लगतीं. अगर वह मेनगेट बंद करती तो पीछे के दरवाजे से निकल जाते. यहां तक कि उस के जेवर भी गायब होने लगे थे. जैसेतैसे उन दोनों ने ग्रैजुएशन किया और मां के सामने तन कर खड़े हो गए, ‘‘अम्मी, अब हम पढ़लिख कर इस काबिल हो गए हैं कि अपना बिजनैस संभाल सकें.’’

‘‘अच्छा, ठीक है. कल से तुम औफिस आओ. मैं देखती हूं कि तुम दोनों को क्या काम दिया जा सकता है.’’ नूर ने कहा.

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बेटी हुमा भी भाइयों से किसी तरह पीछे न थी. उस ने भी भाइयों की देखादेखी मौडर्न कल्चर सीख लिया था. रोज उस के बौयफ्रैंड बदलते थे. नूर पति के बिना अपने को बेहद अकेला और कमजोर समझने लगी थी. अब हालात उस के काबू से बाहर होते दिख रहे थे. मजबूर हो कर वह बेटी से बोली, ‘‘बेटा, जिसे तुम पसंद करती हो, उसे मुझ से मिलवाओ. अगर वह ठीक होगा तो उसी से तुम्हारी शादी कर दूंगी.’’

हुमा दूसरे दिन ही एक लड़के को ले आई, जिस का नाम अहमद था. वह शक्ल से ही मक्कार नजर आ रहा था. उस के मांबाप नहीं थे, चचा के पास रहता था. बीकौम कर के नौकरी की तलाश में था. हुमा के दोनों भाई इस लड़के से शादी के खिलाफ थे. नूर कोई नया तमाशा नहीं करना चाहती थी. उस ने बेटों को समझाया. 4 लोगों को जमा कर के बेटी का निकाह अहमद से कर दिया.

बेटी ने गरीब ससुराल जाने से साफ मना कर दिया. इसलिए अहमद भी घरजंवाई बन कर रहने लगा. असगर और सफदर तो बराबर औफिस जा रहे थे. काम भी सीख रहे थे पर पैसे मारने में कोई मौका नहीं छोड़ते थे. धीरेधीरे असगर मैनेजर की पोस्ट पर पहुंच गया. इस के बाद तो वह बड़ीबड़ी रकमों के घपले करने लगा, जिस में सफदर उस का साथ देता था. हुमा के कहने पर अहमद को भी नौकरी देनी पड़ी. हालात दिनबदिन खराब हो रहे थे. कंपनी लगातार घाटे में चलने लगी.

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एक मौका और : भाग 3- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

तब एक दिन नूर ने असगर, सफदर, हुमा और अहमद चारों को बैठा कर बहुत समझाया. बिजनैस की ऊंचनीच बताईं. आमदनी के गिरते ग्राफ के बारे में उन से बात की. उन चारों ने सारा दोष नूर के सिर जड़ दिया. इतना ही नहीं उन्होंने यहां तक कह दिया, ‘‘आप का काम करने का तरीका गलत है. अभी तक आप पुरानी टेक्नोलौजी से काम कर रही हैं. एक बार नए जमाने के तकाजे के मुताबिक सब कुछ बदल दीजिए, फिर देखिए आमदनी में कैसी बढ़त होती है.’’

2-3 दिन तक इस मामले को ले कर उन के बीच खूब बहस होती रही. पुराने मैनेजर भी शामिल हुए. वे नूर का साथ दे रहे थे. चौथे दिन बड़े बेटे ने फैसला सुना दिया, ‘‘अम्मी, अब आप बिजनैस संभालने के काबिल नहीं रहीं. अब आप की उम्र हो गई है. लगता है, आप का दिमाग भी काम नहीं कर रहा. ऐसे में आप आराम कीजिए, बिजनैस हम संभाल लेंगे.’’

इतना सुनते ही नूर गुस्से से फट पड़ी, ‘‘तुम में से कोई भी इस काबिल नहीं है कि इस बिजनैस के एक हिस्से को भी संभाल सके. मैं ने सब कुछ तुम्हारे बाप के साथ रह कर सीखा था. तब कहीं जा कर मैं परफेक्ट हुई. जब तुम लोग भी इस लायक हो जाओगे तो मैं सब कुछ तुम्हें खुद ही सौंप दूंगी.’’

बच्चे इस बात पर राजी नहीं थे. माहौल में तनातनी फैल गई. फिर योजना बना कर बच्चों ने नूर को पागलखाने भेजने की योजना बनाई. इस संबंध में उन्होंने डा. काशान से बात की. वह मोटा पैसा ले कर किसी को भी पागल बना देता था. नूर के बच्चों ने नशीला जूस पिला कर उसे डा. काशान के क्लिनिक पहुंचा दिया.

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सारी कहानी सुन कर सोहेल ने कहा, ‘‘यह सब एक साजिश है. तुम्हारे बच्चों ने बिजनैस हड़पने के लिए तुम्हें पागलखाने में दाखिल करा दिया और डाक्टर ने तुम्हें ऐसी दवाएं दीं कि तुम पागलों जैसी हरकतें करने लगीं. मैं डा. काशान को अच्छी तरह समझ गया हूं. तुम घबराओ मत. मैं जरूर कुछ करूंगा. मेरी कहानी भी कुछ तुम्हारे जैसी ही है, बाद में कभी सुनाऊंगा.’’

उस क्लिनिक में शमा नाम की 24-25 साल की एक खूबसूरत लड़की भी कैद थी. सोहेल ने उस के बारे में बताया कि यह एक बहुत बड़े जमींदार की बेटी है. एक दुर्घटना में इस के मांबाप का इंतकाल हो गया. मांबाप ने शमा की शादी तय कर दी थी. इस से पहले कि वह उस की शादी करते, दोनों चल बसे. उन की मौत के बाद चाचा ने उन की प्रौपर्टी पर कब्जा करने के लिए शमा को यहां भरती करा दिया.

वह जवान और मजबूत इच्छाशक्ति वाली थी. दवाएं देने के बाद भी जब उस पर पागलपन नहीं दिखा तो डा. काशान ने राहिल से कहा कि शमा को दवाएं देने के साथ बिजली के शाक भी दें.

ये सारे काम राहिल करता था. 2-4 बार शाक देने के बाद राहिल के दिल में शमा की बेबसी और मासूमियत देख कर मोहब्बत जाग उठी. उस ने उसे शाक देने बंद कर दिए.

राहिल ने शमा को बताया कि उस का सगा चाचा ही उसे नशे की हालत में यहां छोड़ गया था और उसे पूरी तरह पागल बनाने के उस ने पूरे 20 लाख दिए थे.

सारी बातें सुन कर शमा रो पड़ी. तनहाई की मोहब्बत और हमदर्दी ने रंग दिखाया और वह राहिल से प्यार करने लगी. राहिल के लिए यह मोहब्बत किसी अनमोल खजाने की तरह थी. उसे जिंदगी में कभी किसी का प्यार नहीं मिला था. उस की आंखों में एक अच्छी जिंदगी के ख्वाब सजने लगे. पर उस के लिए इस जिंदगी को छोड़ना नामुमकिन था.

वह डा. काशान को छोड़ कर कहीं नहीं जा सकता था. अगर जाता भी तो उसे ढूंढ कर मार दिया जाता. क्योंकि काशान के गुनाह के खेल के सारे राज वह जानता था. उस की जबान खुलते ही काशान बरबाद हो जाता. उस ने सोचा कि उसे तो मरना ही है, क्यों न शमा की जिंदगी बचा ली जाए. उस ने कहा, ‘‘सुनो शमा, मैं तुम्हें यहां से निकाल दूंगा. तुम अपने चाचा के पास चली जाओ.’’

शमा लरज गई. उस ने तड़प कर राहिल का हाथ पकड़ लिया और कहा, ‘‘मैं कहीं नहीं जाऊंगी. मैं अब आप के साथ ही जिऊंगी और मरूंगी.’’

राहिल को तो जैसे नई जिंदगी मिल गई. उस ने कहा, ‘‘मैं तुम्हें एक राज की बात बता रहा हूं. डा. काशान ने इस क्लिनिक को तबाह करने का हुक्म दिया है, यहां कोई नहीं बचेगा.’’

‘‘राहिल, तुम इतने पत्थरदिल नहीं हो सकते. तुम इस जुर्म का हिस्सा नहीं बनोगे. यह 17 लोगों की जिंदगी का सवाल है. तुम्हें मेरी कसम है. तुम ऐसा हरगिज नहीं करना.’’ वह बोली.

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि यह काम न करूं, पर उस से पहले मैं तुम्हें एक महफूज जगह पहुंचा देना चाहता हूं. वहां पहुंचा कर मैं तुम से मिलता रहूंगा. फोन पर बात भी करता रहूंगा.’’ राहिल ने कहा.

दूसरे दिन ही मौका देख कर उस ने बहुत खामोशी से शमा को लांड्री के कपड़े ले जाने वाली गाड़ी में कपड़ों के नीचे छिपा कर क्लिनिक से निकाल दिया. साथ ही एक फ्लैट का पता बता कर उसे उस की चाबी दे दी.

शमा सब की नजरों से बच कर उस फ्लैट तक पहुंच गई. यह फ्लैट राहिल का ही था पर इस के बारे में किसी को कुछ पता नहीं था. वहां खानेपीने का सब सामान था.

राहिल की दी हुई दवाओं से अब शमा की तबीयत भी ठीक हो रही थी. राहिल ने उसे बताया कि वह डा. काशान का क्लिनिक तबाह कर के बाहर जाने की फिराक में है. डा. काशान ने मरीजों के रिश्तेदारों को सब बता कर उन से काफी पैसे ऐंठ लिए हैं. किसी को भी उन की मौत से कोई ऐतराज नहीं है.

क्लिनिक से शमा के गायब हो जाने के बाद उस की गुमशुदगी की 1-2 दिन चर्चा रही. डा. काशान वैसे ही परेशान चल रहा था. पता चला कि शमा अपने घर नहीं पहुंची है. पर उस के चाचा के पास से कोई खबर न आने पर काशान निश्चित हो कर बैठ गया.

शमा की मोहब्बत ने राहिल को पूरी तरह बदल दिया था. बचपन से वह डा. काशान के साथ था. इस बीच उस के सामने 30 मरीज दुनिया से रुखसत हो चुके थे. जिस किसी को मारना होता था, उसे एक इंजेक्शन दे दिया जाता था, वह पागलों जैसी हरकतें करने लगता था. उस के 12 घंटे बाद डा. काशान मरीज को एक और इंजेक्शन लगाता. उस इंजेक्शन के लगाने के कुछ मिनट बाद ही मरीज ऐंठ कर खत्म हो जाता.

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मौत इतनी भयानक होती थी कि राहिल खुद कांप जाता था. डा. काशान मरीज की लाश डेथ सर्टिफिकेट के साथ उस के रिश्तेदारों को सौंप देता था. जिस की एवज में वह उन से एक मोटी रकम वसूल करता था.

शमा की मोहब्बत ने राहिल के अंदर के इंसान को जगा दिया था. 17 लोगों को एक साथ मारना उस के वश की बात नहीं थी. उस ने सोचा कि अगर वह पुलिस को खबर करता है तो वह खुद भी पकड़ा जाएगा. यह दरिंदा तो पैसे दे कर छूट जाएगा.

डा. काशान ने क्लिनिक खत्म करने की सारी जिम्मेदारी राहिल को सौंप दी थी. राहिल और क्लिनिक में काम करने वालों को काशान ने अच्छीखासी रकम दे दी थी. उसी रात क्लिनिक उड़ाना था. डा. काशान ने अपनी पूरी तैयारी कर ली.

रकम वह पहले ही बाहर के बैंकों में भेज चुका था. 10 हजार डौलर वह अपने साथ ले जा रहा था. रात 2 बजे उस की फ्लाइट थी. वह बैठा हुआ बड़ी बेचैनी से तबाही की खबर मिलने का इंतजार कर रहा था. तभी 8 बजे उस के मोबाइल पर राहिल का फोन आया, ‘‘बौस, यहां एक बड़ा मसला हो गया है.’’

‘‘कैसा मसला? जो भी है तुम उसे खुद सौल्व करो.’’ डा. काशान ने उस से कहा.

‘‘मैं नहीं कर सकता. आप का यहां आना जरूरी है, नहीं तो आज रात के प्लान पर अमल नहीं किया जा सकेगा. मैं आप को फोन पर कुछ नहीं बता सकता.’’ राहिल ने बताया.

डा. काशान ने सोचा आज की रात क्लिनिक बरबाद होना जरूरी है, क्योंकि कुछ लोगों को इस की भनक मिल चुकी थी. कहीं कोई मसला न खड़ा हो जाए, सोचते हुए उस ने अपना एक सूटकेस कार में रखा और क्लिनिक की तरफ रवाना हो गया.

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एक मौका और : भाग 1- हमेशा होती है अच्छाई की जीत

लेखिका- मरियम के. खान

कमाल खान के पिता स्क्रैप कारोबारी थे. कमाल अपने मांबाप की एकलौती संतान था इसलिए लाड़प्यार में वह पढ़ नहीं सका तो पिता ने उसे अपने धंधे में ही लगा लिया. कमाल ने जल्द ही अपने पिता के धंधे को संभाल लिया.

अपनी मेहनत और होशियारी से उस ने अपने पिता से ज्यादा तरक्की की. जल्दी ही वह लाखोंकरोड़ों में खेलने लगा. उस ने अपनी काफी बड़ी फैक्ट्री भी खड़ी कर ली. यह देख पिता ने उस की जल्द ही शादी भी कर दी. कमाल जिस तरह पैसा कमाता था, उसी तरह अय्याशी और अपने दूसरे शौकों पर लुटाता भी था. पिता ने उसे बहुत समझाया पर उस ने उन की बातों पर ध्यान नहीं दिया. इसी वजह से पत्नी से भी उस की नहीं बनती थी, जिस से वह बहुत तनाव में रहने लगी थी.

इस का नतीजा यह हुआ कि 10-12 साल बाद ही बीवी दुनिया ही छोड़ गई. कमाल के पिता दिल के मरीज थे, पर कमाल ने साधनसंपन्न होने के बावजूद न तो उन का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज कराया और न ही उन की देखभाल की, जिस से उन की भी मौत हो गई.

पिता की मृत्यु के बाद कमाल पूरी तरह से आजाद हो गया था. अब वह अपनी जिंदगी मनमाने तरीके से गुजारने लगा. एक बार उसे ईमान ट्रस्ट के स्कूल में चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाया गया था. वहां उस की नजर नूर नाम की छात्रा पर पड़ी जो सिर्फ 15 साल की थी और वहां 11वीं कक्षा में पढ़ती थी.

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कमाल खान उस पर जीजान से फिदा हो गया. उस ने फैसला कर लिया कि वह नूर से शादी करेगा. जल्द ही उस ने पता लगाया तो जानकारी मिली कि वह रहमत की बेटी है. रहमत चाटपकौड़ी का ठेला लगाता था. इस काम से उस के परिवार का गुजारा बड़ी मुश्किल से होता था.

इसी बीच अचानक एक दिन रात को उस के ठेले को किसी ने आग लगा दी. वही ठेला उस की रोजीरोटी का सहारा था. रहमत बहुत परेशान हुआ. उस के परिवार की भूखों मरने की नौबत आ गई. ऐसे वक्त पर कमाल खान एक फरिश्ते की तरह उस के पास पहुंचा. उस ने रहमत की खूब आर्थिक मदद की. इतना ही नहीं, उस ने उसे एक पक्की दुकान दिला कर उस का कारोबार भी जमवा दिया.

रहमत हैरान था कि इतना बड़ा सेठ उस पर इतना मेहरबान क्यों है. लेकिन रहमत की अनपढ़ बीवी समझ गई थी कि कमाल खान की नजर उस की बेटी नूर पर है.

जल्दी ही कमाल खान ने नूर का रिश्ता मांग लिया. रहमत इतनी बड़ी उम्र के व्यक्ति के साथ बेटी की शादी नहीं करना चाहता था, पर उस की बीवी ने कहा, ‘‘मर्द की उम्र नहीं, उस की हैसियत और दौलत देखी जाती है. हमारी बेटी वहां ऐश करेगी. फौरन हां कर दो.’’

रहमत ने पत्नी की बात मान कर हां कर के शादी की तारीख भी तय कर दी. नूर तो वेसे ही खूबसूरत थी, पर उस दिन लाल जोड़े में उस की खूबसूरती और ज्यादा बढ़ गई थी. मांबाप ने ढेरों आशीर्वाद दे कर नूर को घर से विदा किया.

कमाल खान उसे पा कर खुश था. अब नूर की किस्मत भी एकदम पलट गई थी. अभावों भरी जिंदगी से निकल कर वह ऐसी जगह आ गई थी, जहां रुपएपैसे की कोई कमी नहीं थी. नूर से निकाह करने के बाद कमाल खान में भी सुधार आ गया था.

उस ने अब बाहरी औरतों से मिलना बंद कर दिया. वह नूर को दिलोजान से प्यार करने लगा. उस के अंदर यह बदलाव नूर की मोहब्बत और खिदमत से आया था. कमाल ने सारी बुरी आदतें छोड़ दीं.

जिंदगी खुशी से बसर होने लगी. देखतेदेखते 5 साल कब गुजर गए, उन्हें पता ही नहीं चला. उन के यहां 2 बेटे और एक बेटी पैदा हो गई. कमाल खान ने अपने बच्चों की अच्छी परवरिश की. इसी दौरान कमाल अपने आप को कमजोर सा महसूस करने लगा. पता नहीं उसे क्यों लग रहा था कि वह अब ज्यादा नहीं जिएगा. एक दिन उस ने नूर से कहा, ‘‘नूर, तुम अपनी पढ़ाई फिर से शुरू कर दो.’’

पति की यह बात सुन कर नूर चौंकते हुए बोली, ‘‘यह आप क्या कह रहे हैं. मैं अब इस उम्र में पढ़ाई करूंगी? यह तो बेटे के स्कूल जाने का वक्त है.’’

‘‘देखो नूर, मेरे बाद तुम्हें ही अपना सारा बिजनैस संभालना है. तुम बच्चों पर कभी भरोसा मत करना. मुझे उम्मीद है कि मेरे बच्चे भी मेरी तरह ही खुदगर्ज निकलेंगे.’’ कमाल खान ने पत्नी को समझाया.

नूर को शौहर की बात माननी पड़ी और उस ने पढ़ाई शुरू कर दी. 4 साल में उस ने ग्रैजुएशन पूरा कर लिया. अब उस की बेटी भी स्कूल जाने लगी थी. नूर अपने बच्चों से बहुत प्यार करती थी. कालेज के बाद वह अपना सारा वक्त उन्हीं के साथ गुजारती थी. बच्चों की पढ़ाई भी महंगे स्कूलों में हो रही थी.

कमाल खान ने नूर के मायके वालों को भी इतना कुछ दे दिया था कि वे सभी ऐश की जिंदगी गुजार रहे थे. नूर के सभी भाईबहनों की शादियां हो गई थीं. नूर के ग्रैजुएशन के बाद कमाल खान ने उस का एडमिशन एमबीए की ईवनिंग क्लास में करा दिया था.

सुबह वह उसे अपने साथ नई फैक्ट्री ले जाता, जहां वह उसे कारोबार की बारीकियां बताता. नूर काफी जहीन थी. जल्दी ही वह कारोबार की सारी बारीकियां समझ गई.

उस का एमबीए पूरा होते ही कमाल ने उसे बोर्ड औफ डायरेक्टर्स का मेंबर बना दिया और कंपनी के एकतिहाई शेयर उस के नाम कर दिए. नूर समझ नहीं पा रही थी कि पति उसे फैक्ट्री के कामों में इतनी जल्दी एक्सपर्ट क्यों बनाना चाहते हैं.

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इस के पीछे कमाल खान का अपना डर और अंदेशा था कि जिस तरह वह स्वार्थ और खुदगर्जी की वजह से अपने पिता की देखभाल नहीं कर पाया तो उस के बच्चे उस की सेवा नहीं करेंगे, क्योंकि स्वार्थ व लालच के कीटाणु उस के बच्चों के अंदर भी आ गए होंगे. इसलिए वह नूर को पूरी तरह से परफेक्ट बनाना चाहता था.

नूर ने फैक्ट्री का सारा काम बखूबी संभाल लिया था. एक दिन अचानक ही उस के शौहर की तबीयत खराब हो गई. उसे बड़े से बड़े डाक्टरों को दिखाया गया. पता चला कि उसे फेफड़ों का कैंसर है. पत्नी इलाज के लिए उसे सिंगापुर ले गई. वहां उस का औपरेशन हुआ. उसे सांस की नकली नली लगा दी गई.

औपरेशन कामयाब रहा. ठीक हो कर वह घर लौट आया. वह फिर से तंदुरुस्त हो कर अपना कामकाज देखने लगा. हालांकि वह पूरी तरह स्वस्थ था, इस के बावजूद भी उसे चैन नहीं था. उस ने धीरेधीरे कंपनी के सारे अधिकार और शेयर्स पत्नी नूर के नाम कर दिए. अपनी सारी प्रौपर्टी और बंगला भी नूर के नाम कर दिया.

इस के 2 साल बाद कैंसर उस के पूरे जिस्म में फैल गया. लाख इलाज के बावजूद भी वह बच नहीं सका. उस के मरते ही उस के रिश्तेदारों ने नूर के आसपास चक्कर काटने शुरू कर दिए. पर नूर ने किसी को भी भाव नहीं दिया, क्योंकि पति के जीते जी उन में से कोई भी रिश्तेदार उन के यहां नहीं आता था.

वैसे भी कमाल खान जीते जी पहले ही प्रौपर्टी का सारा काम इतना पक्का कर के गया था कि किसी बाहरी व्यक्ति के दखलंदाजी करने की कोई गुंजाइश नहीं थी. उस का मैनेजर भी मेहनती और वफादार था. इसलिए बिना किसी परेशानी के नूर ने सारा कारोबार खुद संभाल लिया.

नूर के बच्चे भी अब बड़े हो चुके थे. एक बार की बात है. कारोबार की बातों को ले कर नूर की अपने तीनों बच्चों से तीखी नोंकझोंक हो गई. उसी दौरान नूर की बेटी हुमा एक गिलास में जूस ले आई.

नूर ने जैसे ही जूस पिया तो उस का सिर चकराने लगा और आंखों के सामने अंधेरा छा गया. वह बिस्तर पर ही लुढ़क गई. जब होश आया तो उस ने खुद को एक अस्पताल में पाया.

नूर ने पास खड़ी नर्स से पूछा कि उसे यहां क्यों लाया गया है तो उस ने बताया कि आप पागलों की तरह हरकतें कर रही थीं, इसलिए आप का यहां इलाज किया जाएगा.

नूर आश्चर्यचकित रह गई क्योंकि वह पूरे होशोहवास में थी. तभी अचानक उसे लगा कि यह सब उस के बच्चों ने किया होगा. नूर ने नर्स को काफी समझाने की कोशिश की कि वह स्वस्थ है, लेकिन नर्स ने उस की एक नहीं सुनी. वह उसे एक इंजेक्शन लगा कर चली गई. इस के बाद नूर फिर से सो गई.

जब नूर की आंखें खुलीं तो उसे सामने वाले कमरे में एक आदमी दिखा, जिस की उम्र करीब 45 साल थी पर उस के बाल सफेद थे. बाद में पता लगा कि उस का नाम सोहेल है. उस ने सफेद कुरतापायजामा पहन रखा था. वह बेहद खूबसूरत और स्मार्ट था. सामने खड़ा फोटोग्राफर उस के फोटो खींच रहा था.

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