एक भगोना केक: क्यों उसे देना पड़ा माफीनामा

स्नेहा तिरेक में लेख के महानायक, मुख्य महापुरुष मित्र सोनुवाजी ने एक भगोना केक बनाने की ग्रीष्म प्रतिज्ञा की. पूरा विश्व यह प्रतिज्ञा सुन कर प्रलयानुमान लगाने लगा. उन की यह प्रतिज्ञा इतिहास में ‘सोनुवा की प्रतिज्ञा’ नाम से लिखी जाएगी. आखिर क्यों? योंतो पिछले जन्म के पापों के आधिक्य से जीवन में अनेक चोंगा मित्रों की रिसीविंग करनी पड़ी, किंतु दैत्यऋण (दैवयोग के विपरीत) से हमारी भेंट मित्रों के मित्र अर्थात मित्राधिराज के रूप में प्रत्यक्ष टैलीफोन महाराज से हुई, जिन की बुद्धि का ताररूपी यश चतुर्दिक प्रसारित हो रहा था. दशोंदिशा के दिक्पाल उस टैलीफोन महर्षि के नैटवर्क को न्यूनकोण अवस्था में झुक झुक कर प्रणाम कर रहे थे. हमारे जीवन के संचित पुण्यों का टौकटाइम वहीं धराशायी हो गया क्योंकि हम ने उन से मित्रता का लाइफटाइम रिचार्ज करवा लिया था.

कला क्षेत्र में आयु की दृष्टि से भीष्म भी घनिष्ठ बडी बन जाते हैं लेकिन हमारे महापुरुष मित्र, भीष्म नहीं ग्रीष्म, प्रतिज्ञा किया करते हैं. हकीकत में वे महान भारतवर्ष की आधुनिक शिक्षा पद्धति के सुमेरू संस्थान एवं गुरुकल (प्रतिष्ठा कारणों से नाम का उल्लेख नहीं किया गया है) द्वारा उत्पादित एवं उद्दंडता से दीक्षित थे पर दीक्षित नहीं, किंतु ज्ञान के अत्यधिक धनी हैं, इतने धनी कि उन के आधे ज्ञान को जन्म के साथ ही स्विस बैंक के लौकरों में बंद करवाया गया. अन्यथा वे दुनिया कब्जा लेते और डोनाल्ड ट्रंप व जो बाइडेन को लोकतांत्रिक कब्ज हो जाता. हम उन की चर्चा करेंगे तो यह लेख महाकाव्य हो जाएगा. सो, मैं लेख को उन की एक जीवनलीला पर ही केंद्रित रखूंगा. उन की मित्रता में इतना सामर्थ्य था कि जब वे निषादराज के समान भक्तिभाव प्रकट करते थे तो सामने वाला मित्र एक युग आगे का दरिद्र सुदामा बन जाता था. कालांतर में यह हुआ कि हमारे एक अन्य पारस्परिक मित्र की जयंती की कौल आई तो रात्रि के 12 बजे देव, नाग, यक्ष, किन्नर, गंधर्व और दैत्यों ने बिना मोदीजी के आदेश के थालियां बजाईं और दीप जलाया. कहीं दीप जले कहीं दिल.

यह विराट दृश्य देख कर हमारा दिल सुलग उठा. उसी दिवस, स्नेहातिरेक में, लेख के महानायक व मुख्य महापुरुष मित्र ने केक बनाने की ग्रीष्म प्रतिज्ञा की. पूरा विश्व यह प्रतिज्ञा सुन कर प्रलयानुमान लगाने लगा. उन की यह प्रतिज्ञा इतिहास में ‘सोनुवा की प्रतिज्ञा’ नाम से लिखी जाएगी. उन के संदर्भ में यह जनश्रुति भी प्रचारित है कि वे मिनिमम इनपुट से मैक्सिमम आउटपुट देने वाले ऋषि हैं. सो, वे अपनी बालकनी में ‘एक टब जमीन’ में ही ‘वांछित उत्प्रेरक वनस्पतियों’ की जैविक खेती भी करते थे. ‘एक टब जमीन’ की अपार सफलता के बाद देवाधिपति सोनुवा महाराज ने ‘एक भगोना केक’ के निर्माण की घोषणा की. इस महान कार्य के वे स्वयंभू, नलनील एवं विश्वकर्मा अर्थात ‘थ्री इन वन’ थे. वे तत्काल इस कार्य में मनोयोग से लगे, मानो इसी के लिए उन का जन्म हुआ हो. सर्वप्रथम उन्होंने अनावश्यक सामग्रियों के एकत्रीकरण में दूतों को भेज कर उन की अव्यवस्था की.

इस के बाद अपने ज्ञानचक्षुओं को खोल कर बैठ गए. वैसे तो वे स्वभाववश मनमोहन सिंह थे किंतु ग्रीष्म प्रतिज्ञाओं के बाद वे किम जोंग हो जाते थे. तब उन का विकट रूप देख कर मैं ने अनेक भूतों को मदिरा मांगते देखा क्योंकि वे पानी नहीं पीते. किसी अभागी भैंस के 2 लिटर दूध को एक भगोने में डाल कर उसे सासबहू सीरियल की कथा सुना कर पकाते रहे. तत्पश्चात उन्होंने मैनमेड ‘मिल्कमेड’ डाल कर उसे शेख चिल्ली की बुद्धि जैसा मोटा बना दिया. अब उसे अनवरत कई युगों तक फेंटते रहे. जब उन का कांग्रेस का चुनावचिह्न शक्तिहीन हुआ तब उन्होंने वह पेस्ट दूसरे बड़े भगोने के अंदर नीचे कंकड़पत्थर की भीष्म शैया बना कर रख दिया और उन भगोनों को भाग्य के भरोसे अग्निदेव को समर्पित कर के 2 घंटे की तीर्थयात्रा पर निकल गए. मैं उन की रक्षा में लक्षमण सा फील करता हुआ धनुषबाण ले कर बैठ गया. लगभग एक युग के अंतराल के बाद मैं ने उन से दूरभाष पर संपर्क स्थापित किया तो उन्होंने अग्नि को और प्रबल कर के कुछ क्षणों में आने को कह दिया. मैं उन के आशीष वचन सुन कर निश्ंिचत रहा. सोनुवा महाराज ने आते ही अपनी यज्ञ सामग्री का निरीक्षण किया तो अपने परिपक्व ज्ञानलोचनों से उसे अधपका पाया.

एक और देव पुरुष ने उसे ‘बीरबल का केक’ कहा. तब भी सोनुवाजी के आत्मविश्वास में रंच मात्र भी कमी न आई. वे चीन का विरोध करते हुए आधा किलो चीनी की समिधा ‘केकाकुंड’ में झोंक कर चल दिए और इधर सब स्वाहा होता रहा. 2 घंटे के एक और युग बीत जाने पर प्रलय के बाद जब सृष्टि जगी तो पाया गया कि उस यज्ञ की बेदी में समय के थपेड़ों के गहरे काले स्याह निशान पड़ गए, जिन्हें सोनुवा महाराज ने अपने विज्ञान की कार्बन डेटिंग से बताया कि अभागी काली भैंस के दूध के रंग के कारण से यह पदार्थ भी वही रंग ले कर कोयले में परिवर्तित हो गया है जो कि दूसरे देशों को निर्यात कर के हम लोग कई भगोने केक चीन से आयात करेंगे. हम उन की इस सफलता पर भूतपूर्व अदनान सामी की तरह फूल कर कुप्पा और भूतपूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की तरह चुप्पा दोनों हो गए थे.

पर वास्तविक समस्या अब थी. कोयले की खान बने भगोनेरूपी पात्र अब एक बूंद पानी रखने के भी पात्र नहीं बचे. हम ने उन्हें इतना रगड़ा कि हाथ रगड़ गए. शायद आदि मानव के चकमक पत्थर रगड़ने के बाद विश्व इतिहास में यह रगड़ने की ऐसी दूसरी घटना थी. हालांकि, इस में बौस द्वारा कर्मचारी को रगड़ना नहीं सम्मिलित किया गया है. उस दिवस, विम बार और उस के समकक्ष सभी उत्पादों के विज्ञापन में आने वाली सुंदर महिलाएं सूर्पणखा के बराबर लगने लगीं. यद्यपि हम ने वह केक 70 कोनों का मुंह बना कर खाया भी और जन्मदिन वाले मित्र से कहा भी कि तुम ने जन्म ले कर अच्छा नहीं किया, अगर जन्म न लेते तो यह केक अस्तित्व में न आता. इस घटना से सोनुवा महाराज को पाककला से विरक्ति हो गई.

उन्होंने तत्काल स्वयं को किचन के किचकिचीय जीवन से मुक्त रखने का निर्णय ले कर सृष्टि पर उपकार किया. उन का माफीनामा जल्द ही संग्रहालय में रखवाया जाएगा जो मानवजाति को भोजन पर किसी भी ऐसे प्रयोग से हतोत्साहित करने का प्रमाणपत्र सिद्ध होगा. क्या उन का क्षमापत्र पढ़ कर काला हुआ पात्र उन्हें क्षमा करेगा? हम उन्हें भगोना बरबाद होने से लगे सदमे से बचाने में प्रयत्नशील हैं. इस के लिए 7 मित्रों की संसद में यह निर्णय हुआ है कि अब वह भगोना भी एक टब जमीन के साथ रखा जाएगा और उस में भी उसी वांछित उत्प्रेरक वनस्पति की खेती होगी जिसे वायु में उड़ा कर वातावरण को संतुष्टि मिलती है और हमारे मन को वह शक्ति जिस से हम इस केक को न याद कर पाएं और गाएं ‘एक भगोना केक, जल्दीजल्दी फेंक.’

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