Serial Story: एक ही भूल (भाग-3)

‘‘ठीक है बाबा, कई बार तो बता चुकी हो,’’ अपनी नईनवेली दुलहन को बांहों में भरते हुए विनय बोला.

‘‘बारबार बताना जरूरी है, क्योंकि मैं जानती हूं मेरे औफिस जाने के बाद तुम बिना कुछ खाएपीए ही औफिस निकल जाओगे, इसलिए तुम्हारा नाश्ता बना जाया करूंगी… बस ओवन में गरम कर के खा लिया करना.’’

‘‘जो हुक्म रानी साहिबा,’’ विनय ने प्यार से उस का गाल चूम लिया. एक अच्छे पति की तरह वह सारिका की सारी बातें मान लेता था.

दोनों सुबह अपनेअपने काम पर चले जाते थे. वीकैंड की छुट्टी में दोनों लौंग ड्राइव पर निकल जाते… उन की जिंदगी प्यार से लबरेज थी.

यों ही 3 साल किसी सुखद सपने से गुजर गए. फिर धीरेधीरे सारिका को एक बच्चे की चाह होने लगी. हमउम्र सहेलियां 1 या 2-2 बच्चों की मांएं बन चुकी थीं. उन्हें देख कर सारिका का भी दिल चाहता कि उस के आंगन में भी बच्चे की किलकारियां गूंजें.

‘‘अब हमें भी 2 से 3 होने के बारे में सोचना चाहिए… मेरा बहुत मन करता है कि हमारे घर में भी एक नन्हा बिलकुल तुम्हारी तरह प्यारा सा हो,’’ उस ने एक दिन विनय की नाक खींचते हुए कहा.

विनय को अपनी कंपनी से प्र्रमोशन मिलने वाली थी. आजकल वह रातदिन अपनी परफौर्मैंस बेहतर बनाने में जुटा था. यह प्रमोशन उस के सुनहरे भविष्य के सपने को पूरा कर सकती थी. मगर औफिस में उस के साथ प्रतिस्पर्धा करने वाले और भी बहुत थे. ऐसे में उसे अपने को सर्वश्रेष्ठ साबित कर के किसी भी तरह इस प्रमोशन को पाना था.

विनय सारिका की हर बात से इत्तफाक रखता था. मगर इस वक्त उस के जीवन में बच्चे से ज्यादा जरूरी उस का कैरियर था. वह इस समय बच्चे की जिम्मेदारी बिलकुल नहीं लेना चाहता था.

विनय ने सारिका को कुछ और वक्त तक इंतजार करने को कहा. इस तरह 1 और साल बीत गया. विनय तरक्की की सीढि़यां चढ़ रहा था और सारिका बच्चे की चाह में दिनबदिन और बेचैन होने लगी. उस ने कई बार कोशिश की मगर हर बार असफलता ही हाथ आती. लाख चाहने के बावजूद वह मां नहीं बन पा रही थी.

‘‘हिम्मत मत हार. मेरी एक परिचित मशहूर लेडी डाक्टर हैं, मैं तु झे उन के क्लीनिक का पता दे देती हूं. तू उन से मिल… कोई न कोई रास्ता जरूर निकल जाएगा,’’ एक दिन उस की एक सहेली ने कहा.

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अपनी सहेली के बताए पते पर पहुंच कर सारिका डाक्टर से मिली. सारिका से बहुत सी बातें पूछने के बाद डाक्टर ने उसे पति के साथ आ कर कुछ टैस्ट करवाने को कहा.

यह जानते हुए भी कि सारिका मां बनने के लिए बहुत उतावली है, विनय का रवैया इस मामले में बेहद ठंडा था.

‘‘क्या जरूरत थी बेकार में डाक्टर के पास जाने की? आज नहीं तो कल बच्चा हो ही जाएगा. तुम बिना बात इतना परेशान हो रही हो बच्चे के लिए,’’ विनय बोला.

‘‘तुम नहीं सम झोगे विनय… मैं मां बनने के लिए तरस रही हूं… और कितना इंतजार करेंगे हम? कब से तो कोशिश कर रहे हैं. और यह भी तो हो सकता है शायद मु झ में या फिर तुम में कोई कमी हो… टैस्ट से सब पता चल जाएगा.’’

विनय के चेहरे से लगा उसे सारिका की बात चुभ गई कि सारिका का मतलब कहीं यह तो नहीं कि मेरे अंदर पिता बनने की क्षमता नहीं है.

‘‘तुम यह कैसे कह सकती हो मेरे अंदर कोई कमी है? ऐसा नहीं हो सकता. मु झ में कोई कमी नहीं है,’’ अपनी मर्दानगी पर आघात लगता देख विनय का लहजा कड़वा हो उठा.

सारिका चुप लगा गई. उसे विनय का कटु व्यवहार बहुत खला. इस बात को ले कर दोनों में कुछ दिनों तक मनमुटाव चलता रहा. न जाने कितने पापड़ बेले सारिका ने किसी भी तरह विनय को टैस्ट के लिए राजी करने के लिए.

भोर होने में अभी देर थी. कबीर के सिरहाने बैठा विनय नींद की बो िझलता से ऊंघने लगा. सारिका ने जा कर उस पर कंबल डाला तो वह उठ बैठा.

कबीर धीमेधीमे सांसें भर रहा था. दोनों की नजरें उस की उठतीगिरती छाती पर थीं. दोनों एकदूसरे की नजरों से छिप कर चुपकेचुपके रो पड़ते. वक्त जैसे रेत की तरह मुट्ठी से फिसलता जा रहा था.

‘‘तुम थोड़ी देर आराम कर लो सारिका,’’ विनय बोला.

‘सारिका अब वक्त नहीं बचा. बता दो विनय को सच… शायद इस सच से ही कबीर की जिंदगी बच जाए,’ सारिका सोच रही थी. उस के लिए अब और सहना मुश्किल हो गया था.

‘‘विनय,’’ उस ने अचानक पुकारा.

‘‘बोलो.’’

‘‘कबीर को डोनर मिल सकता है.’’

‘‘अच्छा… कौन है वह? तुम जानती हो क्या उसे? फिर तो कबीर का जल्द से जल्द इलाज हो सकेगा,’’ विनय के चेहरे पर उम्मीद की रोशनी चमकी.

‘‘हां, मैं जानती हूं, मगर तुम नहीं जानते उसे. तुम्हें उसे ढूंढ़ने में मेरी मदद करनी पड़ेगी. करोगे न?’’

‘‘हां सारिका, अपने कबीर के लिए मैं कुछ भी करूंगा.’’

सारिका ने अपनी अलमारी में साडि़यों की तहों के बीच छिपा कर रखी उस पुरानी फाइल को बाहर निकाला.

विनय के साथ वह उसी क्लीनिक में गई जिस का पता उस की सहेली रोमा ने दिया था. उस ने हाथ जोड़ कर डाक्टर को सारी बातें बता कर मदद करने के लिए कहा.

विनय कुछ सम झ नहीं पा रहा था. लेडी डाक्टर ने उन्हें मदद का भरोसा दिया और दूसरे दिन ही सारिका को फोन कर के क्लीनिक में मिलने बुलाया.

‘‘सारिका यों तो हम अपने क्लाइंट की प्राइवेसी मैंटेन रखते हैं, मगर तुम्हारी परेशानी गंभीर है, इसलिए डोनर से इजाजत ले कर ही मैं तुम्हें यह पता और फोन नंबर दे रही हूं. तुम जा कर मिल लो. मु झे उम्मीद है तुम्हारे बेटे का इलाज हो जाएगा.’’

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‘‘अब तो बताओ यह क्या माजरा है? हम किसे ढूंढ़ रहे हैं?’’ विनय बेचैन स्वर

में बोला. उस के साथ गाड़ी में बैठी सारिका बारबार विषय बदल रही थी.

कबीर को फिर से तेज बुखार चढ़ आया था, जिस के लिए उसे फिर से अस्पताल में रखना पड़ा था.

उस फ्लैट के दरवाजे पर नेम प्लेट लगी थी. यही पता था. सारिका ने घंटी दबा दी. विनय को उस ने गाड़ी में ही इंतजार करने के लिए बोला.

आगे पढ़ें- सारिका उस नौजवान के सामने सोफे पर बैठी थी…

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