एक मां का पत्र: रेप जैसे घिनौने कृत्य पर एक मां का बेटे को पत्र

‘‘प्रियविभोर, ‘‘शुभाशीष,

‘‘जब तुम्हें मेरा यह पत्र मिलेगा तो तुम्हें हैरानी अवश्य होगी कि मुझे अचानक क्या हो गया जो मैं ने तुम्हे यह पत्र भेजा है, जबकि रोज ही तो हम दोनों की बात फोन पर होती और समय मिलने पर तुम वैबकैम पर भी मुझ से बात कर लेते हो. फिर ई मेल और व्हाट्सऐप के इस जमाने में पत्र लिखता ही कौन है. चैट करना आसान है. इसलिए तुम्हारे चेहरे पर आए आश्चर्य के भावों को बिना देखे भी मैं महसूस कर पा रही हूं. ‘‘तुम्हें होस्टल गए अभी मात्र 2 महीने ही हुए हैं. इस से पहले 19 साल तक तुम मेरे पास थे. लेकिन मुझे यह लगता है कि आज जो मैं तुम से कहना चाहती हूं उसे कहने का यही उपयुक्त समय है, जब तुम मुझ से और परिवार से दूर रहे हो. जब तुम पास थे तब शायद इन बातों को तुम सही तरीके से समझ भी नहीं पाते. हर बात समय पर ही समझ आती है, हालांकि बचपन से ही मैं ने तुम्हें अच्छे संस्कार देने की कोशिश की है और मैं जानती भी हूं कि तुम उन संस्कारों का मान भी करते हो.

‘‘मेरे बेटे मुझे लगता है कि समाज इस समय जिस दौर से गुजर रहा है और आधुनिकीकरण की एक अलग ही तरह की परिभाषा गढ़ जिस तरह से आज की पीढ़ी ऐक्सपैरिमैंट करने के चक्कर में अपने संस्कारों को धूल चटा रही है, ऐसे में तुम्हें सही दिशा दिखाना मेरा कर्तव्य है. ‘‘होस्टल का माहौल घर जैसा नहीं होता और फिर वहां तुम्हारे नएनए दोस्त भी बन गए होंगे. उस के अपने आदर्श होंगे, सोच होगी, जिन के साथ हो सकता है तुम तालमेल न बैठा पाओ और सही मार्गदर्शन के अभाव में अपने लक्ष्य से भटक जाओ. भिन्न परिवेश से आए और बच्चों के जीवन जीने के पैमाने तुम से अलग हो सकते हैं.

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‘‘हो सकता है तुम्हें उन की सोच पसंद न आए, हो सकता है उन्हें तुम्हारे विचार दकियानूसी लगें या वे तुम्हारी परवरिश का मजाक उड़ाएं. इस तरह का माहौल जब होता है तो भटक जाने की संभावना ज्यादा होती है. ‘‘यह तुम्हारा अपनी पढ़ाई पर ध्यान देने और उस के बाद कैरियर पर फोकस करने का वक्त है. बस इसीलिए तुम से कुछ कहना चाहती हूं. तुम्हें मेरी बातें अजीब लग सकती हैं पर एक मां होने के नाते मैं उन बातों को अनदेखा नहीं कर सकती हूं.

‘‘मैं तुम्हें समझाना चाहती हूं कि क्यों जरूरी है हर लड़की का सम्मान करना. उसे उस के शरीर के परे जा कर देखना. बुरी संगत में पड़ कर कोई ऐसी हरकत मत करना जिस से तुम खुद से नजरें न मिला सको. हां, मैं रेप जैसी वहशीपन की बात कर रही हूं. कुछ पल का मजा लेने के लिए एक लड़की की पूरी जिंदगी बरबाद करना. उस के परिवार को दुख और अपमान में जीने को विवश कर देना कैसा सुख है? ‘‘जब किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो एक पूरा परिवार, एक पूरी पीढ़ी उस के दंश का शिकार होती है. कभीकभी तो उम्र निकल जाती है उस पीड़ा से बाहर आने में. फिर भी उस लड़की के जीवन में पहले जैसा कुछ भी सामान्य नहीं हो पाता है.

‘‘विडंबना तो यह है कि जो पुरुष एक पिता, एक भाई, एक बेटा और पति होता है वह अपने जीवन में आने वाली हर औरत की रक्षा करने की कोशिश करता है, उस के प्रति प्रोटैक्टिव रहता है तो फिर किसी अन्य औरत के साथ वह कैसे रेप करने की हिम्मत जुटा पाता है? क्या तुम अपनी बहन व दूसरे किसी की बहन में इस तरह का भेदभाव कर पाओगे? ‘‘बचपन में जब तुम देखते थे कि कोई तुम्हारी छोटी बहन को तंग कर रहा है तो कितना गुस्सा आता था तुम्हें. एक बार किसी लड़के ने खेलखेल में उस की चोटी खींच दी थी तो तुम आगबबूला हो गए थे कि आखिर उस की हिम्मत कैसे हुई ऐसा करने की? जब तुम किसी लड़की के साथ बुरा व्यवहार होते देखो या कभी तुम्हीं कुछ करना चाहो तो याद रखना वह भी किसी की बहन है और तब तुम खुद ही रुक जाओगे.

‘‘बेटा, रेप जैसा घिनौना कृत्य केवल औरतों से ही नहीं जुड़ा है, यह केवल उन की ही समस्या नहीं है, क्योंकि इस में 2 पक्ष शामिल होते हैं-एक दोषी और दूसरा पीडि़ता. मुझे यकीन है तुम्हें दिल्ली में हुए निर्भया गैंग रेप की बात याद होगी. जिस तरह की क्रूरता और वहशीपन देखने को मिला था उसे भूल पाना किसी के लिए संभव ही नहीं है. तब एक आश्चर्यजनक बात हुई थी. पूरा देश उस के विरोध में खड़ा हो गया था और विरोध करने वालों में पुरुष भी थे. तब कितने सवाल मन को झिंझोड़ गए थे कि आखिर ऐसा वहशीपन कहां से जन्म लेता है? ‘‘मानती हूं कि कामवासना ऐसा करने के लिए प्रेरित करती है. औरत को मात्र भोग की वस्तु मानने से जन्म लेती है, उस पर पुरुष का अपना एकाधिकार मानने से जन्म लेती है. पुरुष जब उस के शरीर को रौंदता है तो वह उस की घृणा का पर्याय होता है तो यह घृणा आती कहां से है. जबकि हर पुरुष का जन्म एक औरत से ही होता है, वही उस का पालन करती है और उस के सुखदुख के पलों की साक्षी व बांटने वाली भी होती है.

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‘‘जब सही समय आएगा तब तुम औरतपुरुष के सही संबंधों को खुद ही महसूस कर लोगे. सैक्स शब्द से तुम अपरिचित नहीं होगे बेटे, लेकिन इस खूबसूरत संबंध का रेप जैसे घिनौनेपन का सहारा लेना क्या तुम सही मान सकते हो…नहीं न…इसीलिए अगर अपने आसपास कभी ऐसा होते देखो तो बिना एक भी पल गंवाए उस का विरोध करना. ‘‘हमारे नेता, हमारे बुद्धिजीवी, हमारे समाज के तथाकथित सुधारक यह मानते हैं कि रेप के लिए खुद औरत ही जिम्मेदार होती है, क्योंकि वह देह दिखाने वाले कपड़े पहनती है, वह रात को देर तक बाहर रहती है, वह पुरुषों से दोस्ती करती है, जिस की वजह से बेचारे पुरुष बहक जाते हैं और उन से रेप हो जाता है.

‘‘औरत जिस तरह के कपड़े चाहे पहन कर आजादी से घूम सके, अपना मनचाहा कर सके, खुशी से जी सके और उन्मुक्त हो सांस ले सके. आखिर क्यों नहीं वह ताजा हवा को अपने भीतर उतरने दे सकती. सिर्फ इसलिए कि वह एक औरत है, क्योंकि उस की देह के कुछ हिस्से पुरुषों को आकर्षित करते हैं… ‘‘जब किसी लड़की के साथ बलात्कार होता है तो उस के ही चरित्र पर सवाल खड़ा कर उसे कठघरे में खड़ा कर दिया जाता है. मानसिक व शारीरिक रूप से टूटी लड़की को ही इस के लिए दोषी माना जाता है और रेपिस्ट या तो कुछ दिनों में जेल से छूट जाता है या फिर उस का जुर्म साबित ही नहीं हो पाता है. त्रासदी तो यह है कि खुला घूमता वह रेपिस्ट फिर किसी मासूम को अपनी हवस का शिकार बनाता है.

‘‘लड़की अपनी इज्जत बचाने की खातिर चुप रहती है, वह अगर इस के खिलाफ शिकायत करती है तो अदालत में तरहतरह से उसे प्रताडि़त किया जाता है मानो एक बार बलात्कार हो गया तो अब किसी के साथ कभी भी संबंध बना लेने में हरज ही क्या है. उस से पूछा जाता है कहांकहां बलात्कारी ने तुम्हें छूआ था? क्या उस वक्त तुम्हें भी मजा आया था? तुम्हारी बिना मरजी के कोई तुम्हें हाथ नहीं लगा सकता. इस का मतलब है तुम ने ऐसा होने की छूट दी होगी… ‘‘मैं चाहती हूं कि तुम औरतों का सम्मान करो. उन्हें देखते समय उन के शरीर के उभारों पर नजर डालने के बजाय उन की योग्यता की प्रशंसा करो…अपनी मां से यह सब सुनना तुम्हें अजीब लग रहा होगा. सकुचाहट भी हो रही होगी.

‘‘प्रकृति ने स्त्री को भावुक, संवेदनशील, सहिष्णु व कोमल बनाया है और यही उस की सुंदरता व आकर्षण है और उस के इसी गुण को पुरुष अपने शारीरिक बल के आधार पर उस को स्त्री की कमजोरी समझ कर, अपने अहंकार व दंभ से उसे दबाना अपनी बहादुरी समझ बैठता है. ‘‘बलात्कार का सब से दुखद पहलू यह है कि पीडि़ता को शारीरिक और मानसिक कष्ट ही नहीं सामाजिक लांछन भी सहना पड़ता है. यह भयानक प्रताड़ना है. इसलिए मजबूरी में अकसर यह चुपचाप सह लिया जाता है. इस के लिए बदलाव मात्र कानूनों में ही नहीं सामाजिक मान्यताओं में भी लाना जरूरी है और आज की पीढ़ी को ही इस बदलाव को लाना होगा. यानी तुम भी उस बदलाव का एक हिस्सा बनोगे…

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‘‘जब भी इस तरह की घटना देखो तो तुम्हारे अंदर रोष पैदा होना चाहिए. जिस समाज में रोष नहीं होता उस के लोग भुगतते रहते हैं, खासकर औरत… ‘‘आज मैं तुम से अपना एक सीक्रेट शेयर करना चाहती हूं. जानती हूं किसी भी मां के लिए अपने बेटे के सामने ऐसा राज रखना कितना अपमानजनक व पीड़ादायक हो सकता है. पर आज मुझे लगता है कि तुम्हारे साथ इसे बांटना जरूरी है. हो सकता है तुम यह जानने के बाद आक्रोश से भर जाओ या तुम इसे बरदाश्त न कर पाओ. वहां तुम्हें संभालने के लिए मैं नहीं हूं, पर मुझे विश्वास है कि तुम इतने लायक तो हो कि खुद को संभालोगे और इस बात को समझोगे भी. मुझे इस बात का भी डर है कि कहीं यह जानने के बाद मेरे प्रति तुम्हारे व्यवहार में अंतर न आ जाए. पर बेटा ये सब जानने के बाद कोई गलत कदम मत उठाना… संयम से काम लेना.

‘‘बेटा, जब मैं कालेज में पढ़ती थी तो एक लड़का मुझे चाहने लगा था. यह एकतरफा प्यार था. मैं ने उसे खूब समझाया कि मैं उसे पसंद नहीं करती और वह मुझ से दूर रहे. पर शायद उस का मेरे प्रति वह प्यार एक जनून बन गया था. उस ने मुझ से कहा कि वह मेरी हां सुनने के लिए इंतजार करेगा. पर उस ने मेरा पीछा करना नहीं छोड़ा. मैं उसे देख रास्ता बदल लेती. मेरी तरफ से कोई पौजीटिव रिस्पौंस न पा वह आगबबूला हो गया और एक दिन जब मैं कालेज जा रही थी तो उस ने जबरदस्ती मुझे अपने स्कूटर पर बैठा लिया. ‘‘वह मुझे अपने किसी दोस्त के घर ले गया. मैं ने उस से बहुत अनुनयविनय की कि वह मुझे छोड़ दे पर वह नहीं माना बस एक ही बात कहता रहा कि अगर तुम मेरी नहीं हो सकती तो मैं तुम्हें किसी और की भी नहीं होने दूंगा. मेरा विरोध बढ़ता देख उस ने मुझे मारना शुरू कर दिया. फिर मेरी अर्धबेहोशी की हालत में मेरा रेप किया.

‘‘तभी उस का दोस्त वहां आ गया. यह देख उस ने उसे बहुत मारा. उसे पता नहीं था कि यह दुष्कर्म करने के लिए उस ने उस के घर की चाबी ली थी. वह स्वयं को दोषी मान रहा था. मुझे उसी ने घर छोड़ा, जानते हो वह दोस्त कौन था…तुम्हारे पापा…हां बाद में उन्होंने ही मुझ से शादी की…पर उस दिन के बाद से आजतक कभी उस हादसे का जिक्र तक नहीं किया. ‘‘यह समझ लो मैं ने पत्र में जो भी कुछ तुम्हें कहना चाहा है, वह मेरा ही भोगा हुआ सच और पीड़ा है…

‘‘आशा है तुम्हें मेरी बातें समझ आ गई होंगी और एकदम साफसुथरी व सुलझी हुई दृष्टि के साथ तुम अब संबंधों को समझ पाओगे और लड़कियों का सम्मान भी करोगे. और यह भी आशा करती हूं कि मेरे प्रति तुम्हारे व्यवहार में कोई अंतर नहीं आएगा. ‘‘ढेर सारा प्यार

‘‘तुम्हारी मां.’’

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