एक नन्हा जीवनसाथी: पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

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एक नन्हा जीवनसाथी: भाग 1- पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

बस की प्रतीक्षा में वह स्टौप के शेड में बैठी थी. गरमी के कारण पसीने से लथपथ…सामने की मुख्य सड़क से लगातार ट्रैफिक भर्राता गुजर रहा था, कारें, सामान से लदे वाहन, आटो, सिटी बसें…हाथ के बैग से उस ने मिनरल वाटर की छोटी बोतल निकाली और 3-4 घूंट पानी पी कर गला तर किया.

कुछ राहत मिली तो उसे सहसा मां के कहे वाक्य स्मरण हो आए :

‘बुरे से बुरे हालात में भी जीवन जीने के लिए कुछ न कुछ ऐसा संबल हमें मिल जाता है कि हम व्यर्थ हो गए जीवन में भी अर्थ खोज लेते हैं. हालांकि बुरे हालात का दिमाग पर इतना असर होता है कि जीने की सारी आशाएं ही जीवन से फिसल जाती हैं और आदमी हो या औरत, आत्महिंसा रूपी भावनाएं दिलोदिमाग पर हावी हो जाती हैं. जिंदगी को इसलिए हमें कस कर थामे रखने वाले साहस की जरूरत होती है. साहस बाहर से नहीं, हमें अपने भीतर ही पैदा करना होता है. वादा करो, निराशा में कोई ऐसा गलत कदम नहीं उठाओगी जो मुझे बहुत अखरे और तुम्हें अपनी बेटी कहनेमानने पर पछताना पड़े कि मैं एक कमजोर दिमाग की लड़की की मां थी. विषम स्थितियों में भी हमें अच्छी स्थितियों की तलाश करनी चाहिए. निराशा जीवन का लक्ष्य नहीं होती, आशा की डोर हमेशा हमें थामे रहना चाहिए.’

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इस महानगर के भर्राते ट्रैफिक के ही शिकार हो गए थे मनीष. अपनी मोटरसाइकिल पर सुबह दफ्तर के लिए निकले थे और आधे घंटे बाद ही अस्पताल से फोन आया था, ‘तुम्हारे पति मनीष की बस से टक्कर होने से मृत्यु हो गई है. अस्पताल में आइए, पुलिस से खानापूरी करवा कर पति का शव ले जाइए.’ विश्वास नहीं हो रहा था कि वह जो सुन रही है, वह वास्तव में सच है. हड़बड़ाई सुलभा अस्पताल के लिए निकल गई, निपट अकेली.

बेतहाशा भागते ट्रैफिक के पार, सड़क के उस तरफ बने गुलाबी रंग के अस्पताल में कुछ देर पहले वह डाक्टर शर्मा के पास बैठी थी. जांच करवाने आई थी. उसे पूर्ण विश्वास था कि वह गर्भवती है. वह सोचती थी बच्चे के सहारे वह अपनी सूनी और नीरस जिंदगी को शायद ठीक से समेटने में सफल हो जाए. जीने का संबल मिल जाएगा तो जीवन का अर्थ भी खोज लेगी वह. परंतु डा. शर्मा ने जांच करने के बाद उस से साफ कह दिया, ‘सौरी मिसेज मनीष, आप गर्भवती नहीं हैं. आप को गलतफहमी है.’

‘ऐसा कैसे हो सकता है, डाक्टर?’ वह हताशा के बावजूद अविश्वास से बोली थी, ‘3 महीने से मुझे पीरियड नहीं आया है. ऐसा मेरे साथ पहले कभी नहीं हुआ. आप के जांच में कहीं कोई गड़बड़ी तो नहीं, डाक्टर?’

‘नहीं. अपने पति मनीष की मौत के हादसे ने आप के दिलोदिमाग पर बहुत गहरा असर डाला है. हार्मोनल असंतुलन के कारण कभीकभी कुछ महिलाओं को पीरियड्स में इस तरह की गड़बडि़यां झेलनी पड़ती हैं. जब दिलोदिमाग संतुलित हो जाएंगे तो हार्मोनल साइकिल भी सही हो जाएगी और सबकुछ सामान्य हो जाएगा.’

‘लेकिन मेरे लिए यह सूचना मेरे पति की मौत से कम भयानक नहीं है, डाक्टर.’ वह आंसू भरी आंखों से डाक्टर की तरफ देख रही थी. उसे अस्पताल के उस कक्ष में सबकुछ डबडबाता व डगमगाता नजर आ रहा था. पानी में तैरता, डूबता और बहता सा. सिर को हलके हाथों थपक दिया था डाक्टर ने, ‘जो सच है, उसे तो स्वीकारना ही पड़ता है, मिसेज मनीष. मनीष की मृत्यु मेरे लिए भी एक बड़ा हादसा है और अपूर्णीय क्षति है. अकसर दफ्तर से लौटते वक्त मनीष हमारे पास अस्पताल में कुछ देर बैठता था. हमारा सहपाठी रहा था वह. यह दूसरी बात है कि मैं ने मैडिकल लाइन पकड़ी और उस ने कंप्यूटर विज्ञान की लाइन.’

अस्पताल से हताशनिराश निकली सुलभा. बाहर आते ही उस ने मां को फोन लगाया, ‘डाक्टर ने जांच कर के बताया कि मुझे भ्रम है. मां, कुछ नहीं है. अब क्या होगा? कैसे और किस के सहारे जीने का मन बनाऊंगी? सिवा अंधकार के अब मुझे कुछ नजर नहीं आ रहा.’

मां फोन पर बिसूरती बेटी को तरहतरह से तसल्ली देती रही थीं. और कर भी क्या सकती थीं. हालांकि उन के दिमाग में यह बात भी आई थी कि बेटी मां नहीं बन रही तो इस के पीछे भी कुछ न कुछ अच्छा ही होगा. जब उस का गम कुछ हलका होगा और जिंदगी पटरी पर लौटेगी तो वह दूसरी शादी के बारे में सोच सकती है. पति के बीमे की रकम कितने दिनों तक उस के जीवन का आधार बनेगी? आखिर तो उसे कोई नौकरी पकड़नी पड़ेगी और बिखरे जीवन को फिर से समेटना पड़ेगा. बहुत संभव है कि उसे फिर कोई उपयुक्त जीवनसाथी मिल जाए. बच्चे वाली महिला से दूसरी शादी करने में लोग अकसर हिचकते हैं.

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मां ने भले कुछ ऐसा सोचा हो पर सुलभा के लिए डाक्टर द्वारा दी गई सूचना बेहद मारक थी और निराशा के गर्त में डूब जाने के लिए बहुत ज्यादा.

मनीष के मित्र डाक्टर ने सुलभा से कई बार कहा था, ‘घर पर दिनभर पड़ीपड़ी क्या करती हो? हमारा अस्पताल जौइन कर लो. नर्स की ट्रेनिंग ले रखी है तुम ने. किस दिन काम आएगी यह?’ परंतु मनीष ने ही डाक्टर के प्रस्ताव को ठुकरा दिया था तब, ‘क्या करेगी सुलभा वह मामूली नौकरी कर के? मेरी अच्छीखासी तनख्वाह है. घर संभालो. कुछ नई हौबीज के बारे में सोचो. किसी सामाजिक एनजीओ में अपने लिए उपयुक्त भूमिका तलाशो. नर्स के जौब में तुम्हें कोई आत्मसंतोष नहीं मिलेगा जिस की जरूरत हम मध्यवर्गीय लोगों को सब से ज्यादा रहती है.’

हालांकि आज जब वह डाक्टर के अस्पताल में गई तो डाक्टर ने उस के सामने वह पुराना प्रस्ताव नहीं दोहराया, परंतु सुलभा जानती है, जब चाहेगी, डाक्टर के उस अस्पताल को जौइन कर लेगी और अपना गम भुलाने में उसे सहूलियत हो जाएगी.

सहसा उस ने सामने दहाडे़ं मारते गुजरते टै्रफिक के बीच देखा कि एक सफेद रंग के बड़ेबड़े झबरीले बालों वाले पमेरियन ने सड़क पार करनी शुरू कर दी है. वह हालांकि काफी सावधान है परंतु जानवर आदमी जैसा सावधान कैसे हो सकता है? उसे लगा, अभी कुछ ही क्षणों में वह सफेद पमेरियन सड़क पर किसी वाहन के पहियों से कुचल जाएगा और उस का शव सफेद से लाल खूनी रंग में रंग जाएगा. एक दर्दभरी छोटी सी चीख निकलेगी और सबकुछ खत्म हो जाएगा. ऐसा ही हुआ होगा मनीष के साथ भी. हैलमैट के बावजूद सिर बुरी तरह कुचल गया था. पहचानने में नहीं आ रहे थे. मोटरसाइकिल की तरह ही उन के शरीर के भी परखचे उड़ गए थे. वही कुछ इस सफेद पमेरियन के साथ कुछ ही पलों में होने जा रहा है.

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एक नन्हा जीवनसाथी: भाग 2- पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

एकदम उछल कर वह सड़क की तरफ दौड़ पड़ी और बिना अपनी जान की परवा किए वह उस पमेरियन को बचाने का जोखिम उठा बैठी.

दायीं तरफ से आती लंबी कार ने जोर से ब्रेक लगाई. चीखती गाड़ी थमतेथमते भी उस तक आ लगी. शीशा नीचा कर उस में बैठा अफसरनुमा व्यक्ति जोर से चिल्लाया, ‘‘क्या कर रही हैं आप? बेवकूफ हैं क्या? एक कुत्ते को बचाने के लिए अपनी जान झोंक दी. मरना है तो जा कर यमुना या रेलगाड़ी चुनिए. हम लोगों को क्यों आफत में डालती हैं? आप तो निबट जाएंगी पर हम पुलिस और कोर्ट के चक्कर लगातेलगाते परेशान हो जाएंगे.’’

परंतु सुलभा जैसे कुछ सुन ही नहीं रही थी. उस ने सड़क पर से उस सफेद सुंदर पमेरियन को उठा लिया और गोद में लिए वापस बस स्टौप के उस शेड में आ बैठी. अब वह हांफ रही थी और उस कार वाले की बात को गंभीरता से ले रही थी. कह तो वह सही रहा था. एक कुत्ते के लिए उसे ऐसे अपनी जान जोखिम में नहीं डालनी चाहिए थी. पता नहीं, सड़क के इस पार की कालोनी में किस मकान का पालतू जानवर है यह. दुर्घटना जो अभी होतेहोते टली, उस के विषय में सोचते हुए उस के रोएं खड़े हो गए. सचमुच वह बालबाल बची. अगर उस कार चालक ने पूरी ताकत से ब्रेक न लगाया होते तो आज वह इस पमेरियन के साथ ही सड़क पर क्षतविक्षत लाश बनी पड़ी होती.

पमेरियन को गोद में उठाए सुलभा स्टौप के शेड के पास ही खोखे में रखी कोल्ड ड्रिंक और नमकीनों की दुकान की तरफ बढ़ गई. एक वृद्ध दुकानदार के रूप में वहां बैठा था, ‘‘आप ने जैसी बेवकूफी आज की है वैसी फिर कभी न करिएगा,’’ उस वृद्ध ने सुलभा को हिदायत दी, ‘‘इस शहर का टै्रफिक बहुत बेरहम है. वह तो कार वाला भला आदमी था जो उस ने ब्रैक लगा ली और आप बच गईं वरना जो होने जा रहा था वह बहुत बुरा होता. आप के पति और बच्चे आप को खो कर बहुत पछताते. अच्छीखासी युवती हैं आप. ऐसा कैसे कर बैठीं?’’

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उस वक्त इस नन्ही जान को बचाने के अलावा मैं और कुछ सोच ही नहीं पाई. अब उस सब को सोचती हूं तो भय से मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं. सचमुच मैं गलत कर बैठी थी, परंतु मुझे संतोष भी है कि मैं इस कुत्ते की जान बचाने में सफल हो गई. यह सब सोच कर हंस दी सुलभा.

एक बार को उसे लगा, उस ने अद्भुत साहस का परिचय दिया है आज. वह जीवन में जोखिम भी उठा सकती है, इस का भान हो गया उसे. अच्छा भी लगा, गर्व भी महसूस हुआ. क्या वह इस जानवर को बचा कर अपने पति को बचाने की कल्पना कर रही थी? या फिर इस नन्ही जान को बचाने के पीछे अपनी कोख में न आए नन्हे बच्चे को बचाने के लिए दौड़ी थी? अवचेतन में आखिर ऐसी कौन सी बात थी, जिस ने उसे अचानक स्टौप की बैंच से उछाल कर सड़क के बीचोंबीच पहुंचा दिया?

‘‘क्या आप बता सकते हैं, बाबा कि इस पीछे वाली कालोनी में किस घर का यह पालतू कुत्ता है? सड़क के उस पार यह भटकता हुआ पहुंच गया होगा. इस पार आने की कोशिश यह इसीलिए कर रहा था कि यह इस पीछे वाली कालोनी में ही किसी घर में पला हुआ है.’’

‘‘ठीक कह रही हैं आप. मकान नंबर 301,’’ वृद्ध बोला, ‘‘एक वृद्धा इसे पाले हुए थी. पर 15-20 दिन हुए उस की मृत्यु हो गई. फिर इस कुत्ते की किसी ने सुध नहीं ली. वह अकेली रहती थी. जो लोग उस का मालमत्ता समेटने आए उन्होंने भी इस मासूम जानवर को ले जाना जरूरी नहीं समझा. यह बेचारा अकसर यों ही कालोनी में भटकता रहता है.’’

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‘‘क्यों? यह है तो बहुत प्यारा और भोलाभाला. कोई भी इसे पाल लेता,’’ सुलभा ने प्यार से उस के सिर को सहलाया, मानो अपने नए पैदा बच्चे के सिर को सहला रही हो, जिस के सिर पर रेशम जैसे नरम बाल हों.

‘‘मनहूस मान रहे हैं लोग इस मासूम जानवर को,’’ वृद्ध ने बताया, ‘‘वह वृद्धा 2 महीने पहले ही इसे कहीं से लाई थी. पहले भी उस के पास एक कुत्ता था, काले रंग का, वह उस का बहुत वफादार जानवर था. इस सड़क पर ही किसी वाहन के नीचे आ कर मर गया तो वह बहुत रोई, कलपी. जैसे उस का अपना कोई था, उस की मौत हो गई हो. आदमी जानवर को भी कितना चाहने लगता है,’’ कुछ सोच कर वह वृद्ध फिर बोला, ‘‘लोग इसे रोटियां दे देते हैं पर पाल नहीं रहे, क्योंकि यह उस दिन वृद्धा की लाश के पास बैठा रोता रहा था.’’

‘‘तब इसे मैं अपने साथ लिए जा रही हूं,’’ सुलभा ने प्यार से उस कुत्ते के रेशम बालों पर हाथ फिराया.

‘‘ले जाइए,’’ वृद्ध बोला, ‘‘इस महल्ले में इसे कोई नहीं पाल रहा. अच्छा रहेगा, इसे एक घर मिल जाएगा,’’ कुछ सोच कर वह फिर बोला, ‘‘लेकिन आप इसे बाद में किसी कारण मनहूस मान कर छोड़ न दीजिएगा. महल्ले में मैं ही अकेला ऐसा आदमी हूं जो इसे अपने घर के बरामदे में रात को सोने देता है. जब इसे कहीं रोटी नहीं मिलती तो यह मेरे घर के दरवाजे पर अपने नन्हे पंजे मारने लगता है. मैं समझ जाता हूं, यह भूखा है और इसे किसी ने आज खाने को नहीं दिया है. बरामदे में एक तरफ मैं ने छोटा सा बरतन रख रखा है, उस में पानी हर दिन भरता रहता हूं. यह उसे पीता रहता है.’’

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‘‘आप इसे मनहूस नहीं मानते?’’ सुलभा ने उस वृद्ध से पूछा.

‘‘मानता तो हूं. डर भी लगता है कि कहीं उस वृद्धा की तरह मैं भी किसी दिन अकेला ही अपने मकान में मरा न पाया जाऊं. परंतु इस की भोली और अपनत्वभरी आंखों में जो अद्भुत चमक मुझे दिखाई देती है, उस के आगे मैं मनहूसियत की बात लगभग भूल ही जाता हूं. कभीकभी सोचता हूं, न कोई जानवर मनहूस होता है, न घर, न आदमी. मनहूसियत का खयाल हमारे मन का अपना भय होता है, वह उल्लू या घुग्घू का बोलना हो या कौए का किसी के सिर पर बैठना या फिर बिल्ली का रात को किसी घर के आसपास रोना.

‘‘हम अपने भीतर के भय को ही शायद इन बहानों से बाहर निकालते हैं वरना ये जानवर स्वाभाविक रूप से अपना जीवन जीते हैं और आवाजें निकालते हैं.’’

सुलभा बोली, ‘‘कोई अगर महल्ले में इसे खोजे तो आप बता दीजिएगा. आप चाहें तो मेरा फोन नंबर अपने फोन में सेव कर लें.’’

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एक नन्हा जीवनसाथी: भाग 3- पति के जाने के बाद सुलभा की जिंदगी में कौन आया

फिर उस ने उस वृद्ध का नंबर पूछा और अपने फोन से मिला कर उसे फोन कर दिया. वृद्ध का फोन बजा तो उस ने उसे सेव कर लिया.

‘‘अगर किसी कारण मैं इसे रख न सकी तो आप को वापस दे जाऊंगी. कम से कम यह जीवित तो रहेगा.’’

‘‘आप इसे बस से तो ले जा नहीं सकेंगी. बस वाले इसे भीतर नहीं ले जाने देंगे,’’ वृद्ध ने पूछा, ‘‘तब?’’

‘‘आटो कर लूंगी,’’ संक्षेप में कह वह सड़क की तरफ पलटी और एक खाली आटो ले अपने घर चल दी.

रास्ते में सोचती भी रही, अगर कल को नौकरी पर जाने लगी तो यह अकेला फ्लैट में कैसे रहेगा? अपने खाने की तो उसे बहुत चिंता नहीं होती पर इस के लिए तो कुछ न कुछ बनाना ही पड़ेगा. किसी जानवर को घर लाना आसान है, पर उसे पालना, उस के खानेपीने का प्रबंधन, पूरे एक बच्चे का पालना और उस का खयाल रखना है. वह वृद्ध सही कह रहा था, अगर न पाल सकी तो इसे उसी महल्ले में छोड़ना पड़ेगा. कम से कम जिंदा तो रहेगा.

रास्ते में पडे़ बाजार से सुलभा ने उस कुत्ते के लिए गले का पट्टा और जंजीर खरीदी. पानी के लिए एक बड़ा बरतन खाने के लिए घर में कटोरा था ही. पौटी के लिए क्या करेगी, सुबह इसे ले कर सड़क पर जाना पड़ेगा, वह यह सोचतेसोचते अतीत में चली गई.

पिता जब मां को अकेला छोड़ कर दूसरी औरत के पास चले गए तो मां पर जैसे मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा था. कुल हाईस्कूल पास थीं. न कोई टे्रनिंग न हुनर. वे 2 बहनें और एक छोटा भाई, 3 बच्चों को अकेली मां कैसे पाले, कई दिनों तक मां कुछ सोच ही नहीं पाईं. परंतु उन्होंने जिंदगी का सामना बड़ी बहादुरी से किया.

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अपने गहने बेच कर मां ने अपने कसबाई क्षेत्र के शहर में एक नया काम शुरू किया था. जाति और परिवार वालों ने उन का बहुत विरोध किया था पर उन का स्पष्ट उत्तर होता था, ‘फिर क्या करूं मैं? 2 लड़कियां हैं और 1 लड़का. 3 बच्चों को कैसे पालूं? कल को उन के शादीब्याह, पढ़ाईलिखाई. बाप तो साथ छोड़ भागा. दूसरी औरत के पास चला गया. क्या मैं भी इन्हें बेसहारा छोड़ किसी के साथ भाग जाऊं?’

कुंआरे या अकेले रहने वाले नौकरी कर रहे लोगों को टिफिन में खाना पहुंचाने का काम शुरू किया. शुरू में मुश्किलें आईं. पर उन के हल भी मां ने सोचे. काम चल निकला. सागदाल वे खुद बनातीं. रोटी बनाने के लिए एक सहायक औरत रख ली. टिफिन लोगों को घर तक पहुंचाने के लिए एक विक्की चलाने वाले लड़के को रख लिया. कुछ हजार लगा कर यह धंधा शुरू किया था मां ने. न खास शिक्षा, न कोई तकनीकी ज्ञान. फिर क्या करतीं वे?

मां ने उसी धंधे की आमदनी से सुलभा को बीएससी कराया. फिर उसे नर्स की टे्रनिंग दिलवाई. उस की छोटी बहन को पढ़ाया. अब उस का भाई भी आगरा में इंजीनियर की पढ़ाई कर रहा है. यह सब मां ने अपने भीतर के साहस से कर के दिखाया. न डरीं, न हिचकीं, न अपनी आलोचनाओं की परवा की. बाद में टिफिन मांजने और किचन के खाना पकाने वाले बड़े बरतनों को मांजने के लिए अलग से एक महिला रख ली. अपने ग्राहकों को वे घर भी जबतब बुलाती थीं और उन्हें विश्वास दिलाती थीं कि जो वे टिफिन में खाने के रूप में भेजती हैं, उसे बहुत ही सफाई से बनाया जाता है. लोग प्रभावित होते. शुरू में मां का हाथ सुलभा, बहन और भाई ने भी बटाया. बाद में बहुतकुछ काम के लिए रखी गई औरतों ने संभाल लिया. खाना एकदम घर जैसा बनता, इसलिए लोगों को पसंद आता. फिर लोगों ने सुबह नाश्ता भी चाहा, जिस का मेन्यू मां ने नाश्ता चाहने वालों की राय से ही बनाया. काम और अधिक बढ़ गया.

मां इसीलिए सुलभा के साथ इस हादसे के बाद अधिक दिन नहीं रह सकीं. लोगों को अकसर अपने से मतलब होता है. दूसरों की क्या जरूरतें, विवशताएं और परेशानियां हैं, इन से उन्हें कुछ लेनादेना नहीं होता. 250 से अधिक ग्राहक थे टिफिन और नाश्ते के, व्यक्तिगत रूप से कोई कुछ अलग चाहता था तो वह भी मां बना कर उसे भिजवाती थीं. संतोष और जिम्मेदारी का अच्छा नतीजा भी हुआ.

सुलभा का मनीष से परिचय एक दिन यों ही ट्रेन की यात्रा में हुआ था. मुरादाबाद में नर्स की ट्रेनिंग कर रही थी वह. छुट्टियों में घर आ रही थी कि ट्रेन

में अचानक लुटेरों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया. लुटेरों की अश्लील हरकतों से सुलभा को उस दिन मनीष ने ही बचाया था. फिर अगले स्टेशन पर सुलभा को अपने साथ उतार टे्रन के चेयरकार वाले डब्बे में बैठाया. ‘मेरे पास टिकट के इतने पैसे नहीं हैं,’ उस ने हिचकते हुए कहा था.

‘जब नौकरी करने लगो तो लौटा देना,’ मनीष मुसकराए थे. बस, वह मुसकान ही सुलभा को इतनी प्यारी लगी कि देर तक ठगी सी ताकती रही मनीष की तरफ. उसी दिन मनीष ने सुलभा का पूरा परिचय प्राप्त किया. सुलभा ने भी कुछ छिपाया नहीं. जो सच था, सब बता दिया.

सुन कर मनीष देर तक कुछ सोचते रहे. फिर पूछा, ‘अब आगे क्या इरादा है?’

‘नौकरी. किसी अच्छे अस्पताल में मिली तो तनख्वाह भी शायद इतनी मिले कि अपनी छोटी बहन को साथ रख कर पढ़ा सकूं.’

‘और अगर मैं तुम्हें नौकरी करने की इजाजत न दूं तो क्या करोगी?’ मनीष के होंठों पर सहज मुसकान थी.

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सुलभा पूछना चाहती थी, किस  अधिकार से आप रोकेंगे? पर वह संकोचवश पूछ न सकी. सिर झुकाए हुए बोली, ‘आप को अपने परिवार का इतिहास बता दिया. नौकरी करना मेरी मजबूरी नहीं लग रही आप को?’

‘इतिहास जान चुका हूं. भूगोल अपने सामने देख रहा हूं और सोच रहा हूं कि ऐसी आत्मविश्वास से भरी लड़की को अपना जीवनसाथी बना कर मैं कोई गलती नहीं करूंगा.’ मनीष हंसने लगे थे, ‘तुम्हारे शहर चल रहा हूं. तुम्हारी मां से बात करूंगा. अगर वे मान गईं तो अगले कुछ महीनों में ही तुम्हें मेरे साथ महानगर में रहना पड़ेगा. नौकरी मिल रही है वहां एक मल्टीनैशनल कंपनी में, अगर सबकुछ ठीकठाक रहा तो जल्दी हमारे पास रहने को अपना फ्लैट होगा और…’

‘आप को ऐसा नहीं लग रहा कि आप ने यह फैसला बहुत जल्दबाजी में ले लिया है? मां खाना बना कर खिलाने वाली एक परित्यक्ता हैं. बाप दूसरी औरत के साथ रहता है. यह सब जान कर भी आप को हिचक नहीं हो रही?’

‘कुछ फैसले दिमाग से नहीं, दिल से किए जाते हैं, सुलभा. और एक बार जो दिल कह दे उस में बहुत मीनमेख नहीं करना चाहिए,’ मनीष बोले थे.

मां से उस दिन सारी बातें कर लीं मनीष ने. घरद्वार भी देख लिया. कामधंधा भी. मां को आशा ही नहीं थी कि उस के लिए इस तरह अचानक कोई योग्य वर मिल जाएगा. अवसर को उन्होंने जाने नहीं दिया. हालांकि पिता ने जाना तो वे बाधक बनने के लिए आगे आए. मां ने उन्हें आड़े हाथों लिया, ‘हम लोगों से आप को क्या लेनादेना? जब हमारे जिंदा रहने, मरने की आप को कतई चिंता नहीं हुई तो बेटी के ब्याह में बाधक बनने का आप को क्या अधिकार है?’

गुस्से में पिता कह गए, ‘भाड़ में जाओ तुम सब, मेरे लिए मर गए तुम लोग.’

कुत्ते की भूंक के साथ वह वर्तमान में लौटी. घर ला कर सुलभा ने उसे दूध में रोटी मसल कर खिलाई तो वह खाने में ऐसे जुटा, मानो महीनों से कुछ खाने को न मिला हो. पानी के बरतन में पानी रखा. पूरे फ्लैट में वह घूमफिर कर निरीक्षण कर आया. फिर वह सुलभा के बैड के पास आ बैठा. एक झटका सा लगा सुलभा को. शायद इसी तरह उस मृत वृद्धा के पलंग के पास बैठा यह रोया होगा है. क्या रात को भी वह…? इस सवाल को आगे और सोचने का साहस नहीं जुटा पाई सुलभा.

रात को सोने से पहले उसे सचमुच एक अजीब भय ने जकड़ लिया. नहीं, यह सामान्य जंतु हरकत है. चूंकि यह उस वृद्धा के पलंग के पास ही रहता और सोता रहा होगा, इसलिए वही माहौल पा कर उसी तरह ये पसर कर बैठ गया है.

लेकिन सुलभा अब मौत के खयाल से डरने क्यों लगी है? अपनेआप से पूछा उस ने. पति की दुर्घटना में मौत और गर्भ में बच्चा न होने की मारक सूचनाएं सुलभा को जिंदगी से बेजार कर गई थीं, वही सुलभा अब जीना चाहती थी. क्यों? यह सवाल स्वयं उस के मन ने उस से पूछा.

आशा के विपरीत वह सुबह सचेत हुई. एक क्षण को भय भी लगा. कुत्ता सुबह एक विशेष आवाज में कुकियाने लगा था. कुकियाने के साथ वह अपने नन्हे पंजों से सुलभा के पलंग को खरोंचने लगा था. खरोंचने की आवाज से ही उस की आंख खुली थी और वह भय व आतंक से सहम सी गई थी.

कुछ ही पल में उस ने समझ लिया, कुत्ते को बाहर जाने की जरूरत है. वह उस के गले की बैल्ट में जंजीर बांध उसे ले कर बाहर सड़क पर आई तो कुत्ते ने मलमूत्र त्याग करने में देरी नहीं की. वृद्धा ने इसे सही शिक्षा दी है. वह उसे कुछ और देर तक टहलाती रही. वहां उस ने कुछ भागदौड़ की, अपने शरीर को खींचाताना. अचरज से देखती रही सुलभा. जानवर अपनी जिंदगी को कितनी सावधानी से जीने लायक बनाते हैं.

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अचानक एक जबर कुत्ता भौंकता हुआ उस नन्हे कुत्ते की तरफ दौड़ कर आया तो निहत्थी सुलभा सहम गई. कैसे इस हमले से अपने कुत्ते की रक्षा करे? कुछ सोच न पाई तो सड़क के किनारे पड़ा पत्थर का टुकड़ा उठा लिया उस ने और हमलावर कुत्ते को ललकारा. नन्हा कुत्ता भय से सिहर कर उस के पांवों के नीचे आ छिपा. कल से वह एक डंडा साथ रखेगी. सुलभा ने पमेरियन को हाथों में उठा, सीने से लगा लिया. अपनेआप को सुरक्षित समझ वह भी निश्चिंत हो गया.

फ्लैट में आ वह कुत्ते को उपयुक्त नाम व रिश्ता देने पर सोचने लगी, जब वह नौकरी पर जाने लगेगी, यह अकेला यहां कैसे रहेगा, यह समस्या उस का सिरदर्द बन रही थी, पर कोई न कोई तरीका उसे सोचना पड़ेगा. 2 उजड़े हुए साथी जैसे अनायास ही साथ हो गए हों एकदूसरे के सहारे को. आदमी हो या जानवर, बिना आपसी सहयोग के जीने में असमर्थ हैं. एक साथी चाहिए ही, चाहे साथी नन्हा ही हो.

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