एक जिद्दी सी ख्वाहिश: क्या थी रिनी की ख्वाहिश

मैं हूं रिनी, फाइन आर्ट्स से एमए कर रही हूं, दिल आया हुआ है साथ में पढ़ने वाले सुमित पर. वह है ही ऐसा. किस का दिल नहीं आएगा उस पर.

लड़कियां बिना बात के उस के चारों तरफ जब मंडराती हैं न, सच कह रही हूं आग लग जाती है मेरे मन में. मन करता है एकएक को पीट कर रख दूं. डार्क, टौल एंड हैंडसम वाले कांसैप्ट पर वह बिलकुल फिट बैठता है. इजैल पर पेंटिंग रख कर जब उस पर काम कर रहा होता है न, मन करता है उस की कमर में पीछे से बांहें डाल दूं. पता नहीं किस धुन में रहता है. उस की कहींकोई गर्लफ्रेंड न हो, यह बात मुझे दिनरात परेशान कर रही है.

फर्स्ट ईयर तो इसे देखने में ही गुजर गया है. अब सैकंड ईयर चल रहा है. समय गुजरता जा रहा है. मेरे पास ज्यादा समय नहीं है इसे पाने के लिए. क्या करूं? मैं कोई गिरीपड़ी लड़की तो हूं नहीं, प्रोफैसर पेरैंट्स की इकलौती संतान हूं, पानीपत के अच्छे इलाके में रहती हूं. जब टीचर रमा मिश्रा ने अटेंडेंस लेनी शुरू की तो मेरा मन चहका. टीचर मेरे बाद सुमित का ही नाम बोलती हैं. कितना अच्छा लगता है हम दोनों का नाम एकसाथ बोला जाना. आज मैं जानबूझ कर अपनी पेंटिंग को देखने लगी. सुमित मेरे बराबर में ही खड़ा था. मैं ने टीचर का बोला जाना इग्नोर कर दिया तो सुमित को मुझे कहना ही पड़ गया, ‘रिनी, अटेंडेंस हो रही है.’ मैं ने चौंकने की ऐक्टिंग की, ‘यसमैम.’

हमारे सर्किल के बीच में हमारी मौडल आ कर बैठ गई थी. आज करीब 20 साल की एक लड़की हमारी मौडल थी. हमारा डिपार्टमैंट रोज पेडमौडल बुलाता है. अब हमें उस लड़की की पेंटिंग में कलर भरने थे. हम स्केच बना चुके थे. अचानक मौडल सुमित को देख कर मुसकरा दी. मेरा मन हुआ कलर्स की प्लेट उस के चेहरे पर उड़ेल दूं. हमारी क्लास में 15 लड़कियां और सिर्फ 4 लड़के हैं. सुमित ही सब से स्मार्ट है, इसलिए कौन लड़की उसे लिफ्ट नहीं देगी. और इस नालायक को यह पता है कि लड़कियां इस पर मरती हैं, फिर भी ऐसा सीरियस हीरो बन कर रहता है कि मन करता है, कालर पकड़ कर झिंझोड़ दूं.

ये भी पढ़ें- हकीकत : लक्ष्मी की हकीकत ने क्यों सोचने पर मजबूर कर दिया

हाय, कालर पकड़ कर उस के पास जाने का मन हुआ ही था कि मैम की आवाज आई, ‘रिनी, कहां ध्यान रहता है तुम्हारा, काम शुरू क्यों नहीं करती?’ डांट खाने में इंसल्ट सी लगी वह भी सुमित के सामने. ये रमा मैम अकेले में नहीं डांट सकतीं क्या? मैं ने सुमित को देखा, लगा, जैसे वह मेरे मन की बात जानता है. चोर कहीं का, दिल चुरा कर कैसा मासूम बना घूमता है. बाकी लड़कियों को मुझ पर पड़ी डांट बहुत ही खुश कर गई.

मैं ने कलरिंग शुरू कर दी. मैम मेरे पास आईं, बोलीं, ‘रिनी, आजकल बहुत स्लो काम करती हो. सुमित को देखो सब लोग. कैसी लगन से पेंटिंग में डूब जाता है. तुम लोग तो पता नहीं इधरउधर क्या देखती रहती हो.’

मन हुआ कहूं कि मैम, आप तो शायद घरगृहस्थी में प्यारमोहब्बत भूल चुकीं, हमें थोड़ी देर महबूब के साथ अकेले नहीं छोड़ सकतीं क्या आप? पेंटिंग एक की जगह दो घंटे में बन गई तो आप का क्या चला जाएगा? पर मैं चुपचाप काम करने लगी. आज यह सोच रही थी कि नहीं, चुपचाप पेंटिंग ही बनाती रही तो मेरे जीवन के हसीं रंग इन्हीं चालाक लड़कियों में से कोई ले उड़ेगी. रिनी, कुछ कर. तू हार मत मानना. यह सुमित इतना कम बोलता है, इतना भाव खाता है कि कोई और हो तो इस का ख़याल छोड़ दे पर तुझे तो एक ज़िद सी हो गई है, मन यह ख्वाहिश कर बैठा है कि तुझे यही चाहिए तो रिनी अब सोच मत, कुछ कर. सोचते रह जाने से तो कहानी बदलने में समय नहीं लगता. बस, अब मैं ने सोच लिया कि अपने दिल की यह ख्वाहिश पूरी कर के मानूंगी. एक दिन सुमित की बांहों में सब भूल जाऊंगी. पीरियड ख़त्म होते ही मैं सुमित के पास गई, पूछ लिया, “सुमित, तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड है?”

उसे जैसे करंट सा लगा, “नहीं तो, क्या हुआ?”

मैं ने चैन की एक सांस जानबूझ कर उस के सामने खुल कर ली और कहा, “बस, फिर ठीक है.”

”मतलब?”

“सचमुच बेवकूफ हो, या बन रहे हो?”

वह हंस दिया, “बन रहा हूं.”

“मोबाइल फोन कम यूज़ करते हो क्या? फोन पर बहुत कम दिखते हो?”

“हां, खाली समय में पढ़ता रहता हूं और क्लास में तो फोन का यूज़ मना ही है.”

“अपना नंबर देना.”

“क्या?”

“बहरे हो?”

सुमित मुझे नंबर बता रहा था. सारी लड़कियां आंखें फाड़े मुझे देख रही थीं. और मैं तो आज हवाओं में उड़उड़ कर अपने को शाबाशी दे रही थी. मुझे और जोश आया, पूछा, “कैंटीन चलें?”

“मैं चायकौफ़ी नहीं पीता.”

“पानी पीते हो न?”

“हां,” कह कर वह जोर से हंसा.

“तो वही पी लेना,” मैं ने उस का हाथ पकड़ कहा, “चलो.”

“तुम लड़की हो, क्या हो?” उस ने अपना हाथ छुड़ाते हुए पूछा.

“तुम्हें क्या लगती हूं?”

“सिरफिरी.”

”सुनो, मुझे कैंटीन नहीं जाना था,” मैं ने बाहर आ आ कर कहा, ”बस, यों ही तुम्हारे साथ क्लास से यहां तक आना था. “चलो, अब कल मिलते हैं.”

”यह तुम आज क्या कर रही हो, कुछ समझ नहीं आ रहा.”

मैं आज बहुत ही खुश थी. मैं ने कोई गलत बात नहीं की थी. बस, एक कदम बढ़ाया था अपनी ख्वाहिश की तरफ और मेरे मन में जरा भी गिल्ट नहीं था. कोई अच्छा लगता है तो इस में बुरा क्या है. मेरा मन है सुमित को प्यार करने का, तो है.

मेरे पास अब उस का नंबर था. पर मैं ने न तो उसे कोई मैसेज किया, न फोन किया. अगले दिन क्लास में लड़कियां मुझे ऐसे देख रही थीं जैसे मैं क्लास में नईनई आई हूं. मैं ने काम भी बहुत अच्छा किया, रमा मैम ने मुझे शाबाशी भी दे दी. मैं ने किसी की तरफ नजर भी नहीं डाली. लड़की हूं, महसूस कर रही थी कि सुमित का ध्यान मेरी तरफ है आज. मजा तब आया जब रमा मैम ने उसे डांट दिया, ”सुमित, अभी तक मौडल का फेस फाइनल नहीं किया, यह मौडल, बस, आज ही है, तुम लोग लेट करते हो तो एक्स्ट्रा पेमैंट जाता है डिपार्टमैंट से, नुकसान होता है. काम में मन लगाओ.”

ये भी पढ़ें- Top 10 Best Family Story in Hindi: टॉप 10 बेस्ट फैमिली कहानियां हिंदी में

मैं ने अब सुमित को देखा और मुसकरा दिया. बेचारा, कैसा चेहरा हो गया उस का, पहली बार डांट पड़ी थी. हमारा क्या है, हमें तो पड़ती रहती है. पीरियड के बाद क्लास की सब से सुंदर लड़कियां आरती, नेहा और कुसुम मेरे पास आईं, ”रिनी, क्या चल रहा है तेरा सुमित के साथ?”

मुझे पहले इन्हीं का डर लगा रहता था कि कहीं सुमित किसी दिन इन में से किसी पर फ़िदा न हो जाए. मैं ने इठलाते हुए कहा, ”वही जो तुम्हें लग रहा है.”

”सच?”

”हां, भई, इस में क्या झूठ बोलना.”

इतने में मैं ने सुमित को देख कर बड़े अपनेपन से कहा, ”चलें?”

”आज जल्दी जाना है मुझे, मैं अपनी बाइक भी नहीं लाया.’’

”ठीक है, मैं स्कूटी से छोड़ देती हूं, आओ.”

सब को अवाक छोड़ मैं फिर सुमित के साथ क्लासरूम से निकल गई. सुमित बेचारा तो बहुत ही कन्फ्यूज्ड था, ”तुम मुझे छोड़ोगी?”

”हां, आओ,” आज मुझे अपनी स्कूटी बहुत ही अच्छी, प्यारी लगी जब सुमित मेरे पीछे बैठा. उस ने मुझे बताया कि कहां जाना है तो मैं ने कहा, ”अरे, मैं वहीँ तो रहती हूं.”

”अच्छा?”

इस टाइम मेरे मम्मीपापा कालेज में होते थे. मुझे थोड़ी शरारत सूझी. मैं उसे सीधे अपने घर ले गई. उस ने घर का नंबर पढ़ते हुए कहा, ”यहां कौन रहता है?”

”मैं, आओ, थोड़ी देर…”

सुमित चुपचाप अंदर आ गया. मैं ने दरवाजा बंद किया. अपना बैग रखा. उसे देखा, वह इतना प्यारा मुसकराया कि मैं बेहोश होतेहोते बची.

वह मेरे पास आया और मेरे गले में बांहें डाल दीं, बोला, ”कितना इंतज़ार किया है मैं ने इस पल का. पिछला पूरा साल निकल गया, बस, तुम्हें देखतेदेखते. दिल में एक छोटी सी ख्वाहिश हमेशा सिर उठाती रही कि कभी तुम्हारे करीब आऊं, तुम्हे प्यार करूं. जिस दिन तुम्हें पहली बार देखा था तभी से दिल में ऐसी बसी हो कि बता नहीं सकता. और सुनो, मेरी बाइक भी कालेज में ही खड़ी है, झूठ बोल दिया था तुम से कि बाइक नहीं लाया. मुझे लगा कि शायद तुम कह दो कि तुम मुझे घर छोड़ दोगी. आज एक कदम बढ़ाया था अपनी ख्वाहिश पूरी करने की तरफ.”

”अरे, मूर्ख प्रेमी, पुरानी मूवी के राजेंद्र कुमार बने रहे, कभी तो रणवीर सिंह बन कर देखा होता, बता नहीं सकते थे क्या. तंग कर के रख दिया. तुम्हारे चक्कर में कितनी डांट खा ली मैम से!”

”वह तो मैं ने भी खाई है. हिसाब बराबर न. मैं अपनी ख्वाहिश को धीमीधीमी आंच पर पका रहा था जिस से इंतज़ार का मीठामीठा सा स्वाद इस में भर जाए,” यह कहते हुए उस ने मुझे अपने गले से लगा लिया. मैं उस के कंधे पर सिर रखे अपनी ज़िद्दी सी ख्वाहिश पूरी होने पर खुश, हैरान सी उस के पास से आती खुशबू में गुम थी. इतने दिनों से चुपचुप सी 2 ख्वाहिशें आज क्या खूब पूरी हुई थीं.

ये भी पढ़ें- येलो और्किड: मधु के जीवन में सुरेंदर ने कैसे भरी खुशियां

अनलिमिटेड कहानियां-आर्टिकल पढ़ने के लिएसब्सक्राइब करें